आज के युग में विदेश-नीति की महत्ता पर निबन्ध | Essay on Leadership Must Count for More in Foreign Affairs than It can in Domestic Affair in Hindi!
आधुनिक विश्व में राष्ट्रीय की अपेक्षा अन्तरराष्ट्रीय गतिविधियों को अधिक महत्व दिया जा रहा है । विश्व भर के 150 राष्ट्रों में किसी न किसी प्रकार का पारस्परिक संबंध अवश्य होना चाहिए ।
निःसंदेह किसी भी राष्ट्र के प्रशासन में घरेलू विषयों का महत्व है परन्तु एक सुदृढ़, शक्तिशाली राष्ट्र बनने की इच्छा रखने के लिए दूसरे राष्ट्र से सम्बन्ध बनाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है । विज्ञान, तकनीक द्वारा यातायात के माध्यमों से समस्त विश्व के देश एक दूसरे के निकट आ गए हैं ।
तीव्र वेग से चलने वाले वायुयानों ने विभिन्न राष्ट्रों के मध्य की दूरी मिटा दी है । राजनैतिक दृष्टि से भी भिन्न-भिन्न राष्ट्रों को संगठित किए जाने का प्रयास हो रहा है । संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य राष्ट्रीय, अन्तरराष्ट्रीय संस्थाएं राष्ट्रों के पारस्परिक संबंधों में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं ।
अंतरराष्ट्रीय मामलों में रुचि और सक्रिय भूमिका निभाने वाले राष्ट्र विश्व में अपने प्रयासों के लिए प्रशंसा के पात्र बनते है । भारत पिछले कुछ दशकों से विश्व के विभिन्न विषयों में क्रियात्मक भूमिका निभा रहा है । स्वतंत्रता से पूर्व भी श्री जवाहर लाल नेहरू ने विश्व स्तर के अनेक विवाद तथा उपनिवेशवाद, पूंजीवाद, प्राचीन राजनैतिक प्रणालियों के बहिष्कार संबंधी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी ।
उनके लेखों, कथनों का उस समय के आन्दोलनों पर गहन प्रभाव पड़ा था । उनके लेखों ने न केवल भारतीय युवकों को बल्कि समस्त एशिया के युवकों को भी अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया था । दक्षिण-पूर्वी एशिया और अफ्रीका के स्वतंत्रता आन्दोलनों का विशेष श्रेय उनको ही जाता है । उपनिवेशवादी शक्तियाँ उन्हें अपनी उन्नति का एक गंभीर खतरा मानती थी ।
विन्देश नीति से तात्पर्य उन कार्य प्रणालियों और निर्णयों से है, जो राष्ट्रीय घटनाओं और राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर एक राष्ट्र निर्धारित करता है । इनसे संबंधों की प्रगाढ़ता और राष्ट्रों में पारस्परिक सहयोग की भावना में प्रगति होती है ।
गृह-नीति की अपेक्षा विदेशी नीति को अधिक महत्ता दी गई है । इसलिए नही कि यह विदेशी राजनीति के विशेषज्ञों द्वारा स्पष्ट की जाती है, बल्कि इसलिए कि राष्ट्रीय हित और प्रतिष्ठा के लिए विभिन्न देशों की वर्तमान सामाजिक राजनैतिक स्थिति और युद्ध नीति तथा परिवर्तनकारी क्रियाओं की समझ आवश्यक है । विदेशी मामलों के संबंध में निर्णय लेने की प्रक्रिया अत्यंत जटिल और बहुमुखी होती है ।
इनके संबंध में देश के राजनयिकों का नजरिया साफ एवं स्पष्ट होना चाहिए तभी वे निर्णय ले सकते हैं अथवा प्रतिक्रया व्यक्त कर सकते है । उनके निर्णयों की न्यायोचितता का समर्थन सम्पूर्ण राष्ट्र द्वारा किया जाना चाहिए । विदेश नीति निर्माता का कार्य केवल राष्ट्रीय लक्ष्य का चयन ही नहीं बल्कि नीति निर्माण और लक्ष्य तक पहुँचने के लिए नीतियों का कार्यान्वयन भी है ।
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विदेश नीति से संबंधित आधारभूत तत्वों की चर्चा करने के उपरांत भारत जैसे विकासशील देश के उदाहरण से इसकी महत्ता को सिद्ध किया जा सकता है । भारत की जनसंख्या विश्व की जनसंख्या का सातवाँ भाग है । यद्यपि यह देश वित्तीय दृष्टि से निर्धन तथा आर्थिक और वैज्ञानिक दृष्टि से अविकसित है, परन्तु विभिन्न अंतरराष्ट्रीय विषयों पर सक्रिय भूमिका निभाने की इसकी परम्परा अत्यंत प्राचीन है ।
पुराने समय से ही भारत में अनेक शांति आंदोलन की उत्पत्ति हुई है यद्यपि भारतीय लोगों के शांति प्रिय स्वभाव के कारण उन्हें कई बार विदेशी आक्रमणों का सामना भी करना पड़ा है । भारतीय संस्कृति अंहिसा के सिद्धांतों पर आधारित है । राष्ट्र को ऐसे नेतृत्व की उगवश्यकता रहती है जो विदेशों में अपने देश की स्पष्ट छवि और उत्तम प्रभाव को बनाए रखने में सफल हो सके ।
नि:संदेह विदेशी और घरेलू विषयों को एक समान नहीं समझा जा सकता । राष्ट्र का नेतृत्व इस ढंग से होना चाहिए ताकि दोनों प्रकार के विषय अच्छी तरह से निभाए जा सकें । देश की आंतरिक दृढ़ता अन्य देशों के साथ सामंजस्यपूर्ण संबंधों पर आधारित होती है ।
उसकी आंतरिक दृढ़ता का प्रभाव बाह्म संसार पर पड़ना चाहिए, अन्यथा वह अपने आंतरिक मामलों में दूसरे देशों के साथ सहयोग और समर्थन संबंध में आश्वस्त नहीं हो सकता है । इसलिए किसी देश में सरकार का दायित्व केवल आंतरिक प्रशासन ही नहीं बल्कि विदेशी मामलों में सक्रिय भागीदारी भी है ।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न राष्ट्रों में प्रतिस्पर्धा होती है । प्रत्येक राष्ट्र दूसरे को अपना विरोधी समझता है । परन्तु राष्ट्रों के मतभेद का प्रमुख कारण उनके सिद्धांतों, नीतियों में अन्तर होना है । राष्ट्रीय विषयों की अपेक्षा अन्तरराष्ट्रीय विषयों में बढ़-चढ़ कर भाग लेने का महत्व अधिक है क्योंकि जब एक नेता किसी विशेष अंतरराष्ट्रीय स्थिति में अपने विचार प्रकट करता है तो उसके निर्णय को तब अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण से परखा जाता है ।
अन्य राष्ट्र उसके साथ सहमत भी हो सकते है और असहमत भी । अपने राष्ट्रों का विदेशी नीतियों के संबंध शानदार और सफलतापूर्वक नेतृत्व करने वाले महान नेताओं ने विश्व के इतिहास में अपना विशेष स्थान बनाया है । विज्ञान, तकनीक के वर्तमान विकास से लगभग सभी राष्ट्र एक दूसरे पर निर्भर हो गए है ।
श्रम विभाजन, विभिन्न राष्ट्रीय स्रोतों के विषय में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहन मिला है । विश्व के किसी भी देश को पूर्णत: आत्म निर्भर नही कहा जा सकता है । यहाँ तक कि सबसे धनी देश भी अनेक आवश्यक वस्तुओं, सामग्रियों और आध्यात्मिक रूप से अन्य देशों पर निर्भर होता है ।
अंतरराष्ट्रीय विषयों पर किसी देश की अग्रणीयता का सीधा संबंध उसकी विदेश-नीति के उद्देश्यों से होता है । सामान्यत: उनके उद्देश्य राष्ट्रीय हित से जुड़े होते हैं । लेकिन ये राष्ट्रीय हित इतने संकीर्ण नहीं होते है कि अन्य देश उन्हें निजी स्वार्थ से प्रेरित माने ।
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प्रत्येक नीति की अपनी एक कूटनीति होती है । हमारे राष्ट्रीय हित अंतरराष्ट्रीय सहमति और पारस्परिक सद्भावना पर आधारित होने चाहिए । विदेश नीति के संबंध में अन्य देशों के संदेह की संभावना नहीं होनी चांहिए । उचित विदेश नीति के द्वारा आपसी सौहार्द और सहयोग के वातावरण का निर्माण होता है ।
भारत की विदेश नीति के निर्माण में जितना योगदान पं. नेहरू का है, उतना किसी और का नही है । उन्होंने स्वतंत्रता के पूर्व ही भारत की विदेश नीति के मूल सिद्धांत निर्धारित किए थे, जो स्वतंत्रता के बाद अब असाधारण रूप से सफल है । इन सिद्धांतो के बल पर ही भारत विश्व के मामले में महत्वपूर्ण भूमिका बुना सका है ।
भारत ने निशस्त्रीकरण की नीति अपनाकर विश्व में प्रशंसा प्राप्त की । आज न केवल विश्व के लगभग 100 देश निशस्त्रीकरण गुट में शामिल है, बल्कि अमरीका और सोवियत संघ जैसी महाशक्तियों के सम्मुख भारत एक नवीन राह दिखाने में भी सफल रहा है ।
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एक प्रजातांत्रिक देश की विदेश नीति को जनता का समर्थन प्राप्त होना आवश्यक है । वह दृढ़ समर्थन जिसे झूठे प्रचार, तथ्यों आदि से नष्ट नहीं किया जा सके । जनता द्वारा मान्य प्रतिनिधियाँ की सहमति से ही विदेश नीति तैयार की जानी चाहिए ।
किसी देश की विदेश नीति राष्ट्र-कल्याण पर आधारित होनी चाहिए । वह कार्यपालिका अथवा न्यायपालिका के प्रभुत्व से मुक्त होनी चाहिए । उन देशों के साथ हमारे संबंध अच्छे होने चाहिए जिससे हमारी आवश्यकताएँ पूरी हो सकें । इस प्रकार आज के युग में विदेश नीति की महत्ता बहुत अधिक है ।