Here is an essay on the Indian police especially written for school and college students in Hindi language.
देश की सीमा पर सेना के जवान पहरा देते हैं तो देश बाह्य शक्तियों से सुरक्षित रहता है और देश के अन्दर पुलिस पहरा देती है तो देश के नागरिक निर्भय-निडर होकर अपना कार्य करते हैं और यदि सेना के जवान अपना कर्त्तव्य निभाने में कोताही बरतें तो निश्चित ही देश असुरक्षित हो जायेगा क्योंकि जिस देश की सीमा ही सुरक्षित नहीं है तो वह देश भी सुरक्षित नहीं ।
यह कटु सत्य है और अगर देश की पुलिस व्यवस्था लचर रहे तो निश्चित ही देश की आंतरिक सुरक्षा भी सुरक्षित नहीं जितना महत्व देश की सीमा को सुरक्षित रखने का है । उतना ही महत्व देश की आंतरिक सुरक्षा का भी है क्योंकि जब देश की आंतरिक सुरक्षा मजबूत होगी तभी देश का नागरिक सुरक्षित होगा और जब देश का नागरिक अपने आप को सुरक्षित महसूस करेगा तभी वह निर्भय होकर अपने संसाधनों का प्रयोग देशहित में कर सकेगा जिसका देश के विकास में योगदान होगा ।
आज देश के सम्मुख सबसे महत्वपूर्ण चुनौती आंतरिक सुरक्षा की भी है जो समय के साथ और चुनौतीपूर्ण होती जा रही है ऐसा महसूस किया जा रहा है कि भारतीय पुलिस व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन किया जाना समय की मांग है ।
भारतीय पुलिस की तुलना अगर किसी युरोपीय देश से की जाये तो निश्चित ही अत्यधिक अन्तर देखने को मिलेगा । भारतीय पुलिस संसाधनों के अभाव में आंतरिक सुरक्षा कर रही है जबकि वर्तमान समय में आंतरिक सुरक्षा और सीमा सुरक्षा में कोई अधिक अन्तर नहीं है क्योंकि सीमा पर भी देश की सेना को आतंकवादियों से रूबरू होना पड़ रहा है तो आंतरिक सुरक्षा में भी भारतीय पुलिस को आतंकवादियों से लोहा लेना पड़ रहा है ।
जबकि यदि सेना और भारतीय पुलिस की तुलना की जाये तो किसी भी स्तर पर भारतीय पुलिस व सेना की कोई भी समानता नहीं है । सेना के पास अत्यधिक आधुनिक हथियार, बेहतर विश्वस्तरीय प्रशिक्षण, जांबाज युवा देशभक्त, अत्यधिक संसाधन, अनुशासन आदि के अलावा रूटिन प्रशिक्षण व्यवस्था मौजूद है जो हमारे देश के गौरव की रक्षा के लिए घर परिवार को छोड़कर देश की सीमा पर घर बनाये हुये हैं ।
जबकि भारतीय पुलिस के पास आधुनिक हथियारों का अभाव विश्वस्तरीय प्रशिक्षण की कमी और मूलभूत संसाधनों के अभाव में भी देश की आंतरिक सुरक्षा कर रही है जबकि अपराधियों के पास आधुनिक हथियार, बेहतर सूचना प्रौद्योगिकी और संगठित नेटवर्क मौजूद है लेकिन फिर भी भारतीय पुलिस उनका सामना कर रही है ।
आज भी भारतीय पुलिस के पास साधारण रायफल और पुरानी जीप मौजूद हैं जबकि अपराधी स्वचालित हथियारों से अपराधों को अंजाम दे रहे हैं । सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार भारतीय पुलिस के लिए कोई व्यवस्था बजट नहीं है जो जीप के लिए रख-रखाव व ईंधन की व्यवस्था कर सके न ही कोई बजट थानों के लिए निर्धारित है जो सरकार से भारतीय पुलिस को मिलता हो आम धारणा यह है कि पुलिस थानों, चौकियों व कार्यालयों का खर्च अपने आप उठायें जिस कारण पुलिस को गलत अवैधानिक कार्यों में लिप्त होना पड़ता है ।
जब बॉस के कार्यालय का खर्च थानाध्यक्ष उठाते है और थानों का खर्च चौकी इंचार्ज और चौकियों का खर्च भी स्वयं चौकी इंचार्ज वहन करते हैं तो क्या भारतीय पुलिस से भ्रष्टाचार मुक्त पुलिस व्यवस्था की आशा की जा सकती है ? अर्थात कदापि नहीं ।
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क्योंकि यदि कोई पुलिस कर्मी ईमानदारी का परिचय दे भी दे तो उसको थाना या चौकी से हटाकर रिजर्व पुलिस लाईन में भेज दिया जाता है उसके बाद वह पुलिस कर्मी भी भ्रष्ट आचरण करने को मजबूर होता है वह स्वयं के लिए और अपने बॉस के लिए अवैध उगाही करना ही अपना कर्त्तव्य समझता है ।
वह अवैधानिक पैसा इक्टठा करने का कार्य अपने बॉस की आज्ञा समझकर करता है । कई बार तो ऐसी अवैध उगाही करने वाले पुलिस कर्मी जो सड़क पर खडे होकर वाहनों की जाँच करने के नाम पर पैसा वसूल करते हैं उनको वाहनों द्वारा कुचलकर मारने की घटना भी देखने को मिलती है ।
अपनी जान जोखिम में डालकर अवैध उगाही करते पुलिस कर्मी मुख्य रूप से राष्ट्रीय राजमार्गों पर, व्यस्त चौराहों पर, महानगरों में, औद्योगिक क्षेत्रों में देखे जा सकते हैं जो विशेषत: औद्योगिक क्षेत्रों आदि में अधिक कमाई करते हैं ।
जहाँ उद्योगों से निकलने वाले भारी वाहनों से वसूली करते हैं जिस वसूली के पीछे उनका तर्क होता है कि गाडियों से आम लोगों के लिए परेशानी उत्पन्न होती है और यदि हम पुलिस कर्मी आपकी मदद नहीं करें तो आपके लिए परेशानी उत्पन्न हो सकती है इसलिए ऐसे पुलिसकर्मी गाड़ियों को सुविधा देने के एवज में सुविधा शुलक वसूल करते हैं । जो कई बार तो महिनावार के रूप में पुलिसकर्मी गाड़ियों से तय कर लेते हैं और गाडी वाले भी सहर्ष प्रत्येक महीने की निश्चित तारीख को तय रकम पुलिसकर्मीयों को भेंट करते हैं ।
इसके अलावा भी पुलिसकर्मी अवैध पार्किंग से होने वाली कमाई में अपना हिस्सा तय कर लेते हैं जो अवैध पार्किंग चलाने वालों को होने वाली आमदनी का पच्चीस से तीस प्रतिशत तक होता है इसके आलवा सड़क पर गाडी खड़ी करके सवारी बिठाने वाले गाड़ी मालिक प्रत्येक माह की निश्चित तारीख को सम्बंधित क्षेत्र के थानाध्यक्ष महोदय को तय रकम चुपचाप पहुंचा देते हैं अगर किसी कारणवश निश्चित तारीख को तय रकम नहीं पहुंचती है तो उसका परिणाम यह होता है कि थानाध्यक्ष महोदय गाडियों को पकड़कर थानों में बंद करा देते हैं कि बिना लाईसेंस परमिट के सवारी बिठा रहे थे इसलिए आपका चालान किया जायेगा । कोर्ट से गाड़ी छुटा लेना ।
अब माना किसी गाडी मालिक को एक दिन में एक गाड़ी सम्पूर्ण खर्चा काटने के बाद एक हजार रूपये की आमदनी देती है और थानाध्यक्ष महोदय ने चार गाडी बंद कर दी तो एक दिन में चार हजार रूपये का नुकसान हो गया और अगर चालान कर दिया तथा कोर्ट से चालान का भुगतान होने में पांच-छ: दिन का समय लग गया ।
चार हजार प्रतिदिन के औसत से पांच-छ: दिन में बीस से पच्चीस हजार रूपये का नुकसान होना निश्चित है और यदि थानाध्यक्ष महोदय को दस-पन्द्रह हजार रूपये देकर गाड़ी छुट जाती है तो फिर भी लाभ का सौदा है इसलिए गाड़ी मालिक और थानाध्यक्ष महोदय आपस में सौदा तय करके मामला निपटा लेते हैं ।
एक विशेष समझौते के अन्तर्गत कि भविष्य में तय प्रतिशत हिस्सा निश्चित तारीख से विलम्ब नहीं होना चाहिए । इसके अलावा भी भारतीय पुलिस की आय के विभिन्न स्रोत होते हैं जैसे चौराहे पर तैनात पुलिसकर्मी रेड लाइट जम्प करने वाले वाहन को चालान काटने की धमकी देकर कई सौ रूपये तक वसूल करते हैं यह पैसा वसूली वाहन स्तर और परिस्थिति पर निर्भर करता है कि वह पुलिसकर्मी कितना पैसा वसूल कर पाता है रेड लाईट (लालबत्ती) चौराहे पर तैनात पुलिसकर्मी को आमतौर पर आमदनी बिना वेतन पचास से साठ हजार रूपये तक पहुंच जाती है बाकी सब निर्भर करता है परिस्थिति पर कि कितनी आय एक ट्रैफिक पुलिसकर्मी कर पाता है इसकी तो केवल कल्पना ही की जा सकती है ।
बाकी पी॰सी॰आर॰ जिप्सी की भी आय के स्रोत कई हैं जैसे- पी॰सी॰आर॰ गाड़ी आदि राष्ट्रीय राजमार्ग पर तैनात हैं तो वहां से गुजरने वाले सभी वाहनों को जो अन्य राज्यों में पंजीकृत हैं या अन्य राज्यों के हैं अपने किसी कार्यवश उस राज्य से गुजर रहे होते हैं तो भारतीय पुलिस अन्य देशों को जाने वाले यात्री को मिलने वाले बीजा की तरह उस वाहन को तुरन्त रोक कर उससे समस्त दस्तावेज मांगे जाते हैं ।
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दस्तावेजों में कमी न भी हो तो भी कमी बताकर उस गाडी वाले से परिस्थितिवश अच्छी खासी रकम वसूल कर ली जाती है बेशक गाड़ी वाले किसी मजबूरीवश उक्त दस्तावेज पूर्ण न होने के कारण भी उस रास्ते पर आ गये हों ।
लेकिन ऐसे निर्दयी पुलिसकर्मी किसी की मजबूरी को न समझकर अपने स्वार्थ की गंगा में डुबकी लगाकर आने-जाने वाले यात्रियों से अच्छी खासी अवैध वसूली पुलिस द्वारा की जाती है जिससे भारतीय पुलिस की वास्तविक तस्वीर सामने आ जाती है ।
जो निश्चित ही इंगित करती है कि वर्तमान समय में भारतीय पुलिस अपने अस्तित्व को ही खो चुकी है जो अपने मूल कर्त्तव्य को भूलकर धन उगाही में लगी है । जिससे आम जनता में भारतीय पुलिस की छवि धूमिल हो रही है एक अन्य रास्ता भी पी॰सी॰आर॰ गाडी को आमदनी की ओर ले जाता है जैसे राष्ट्रीय राजमार्ग या अन्य किसी स्थान पर जहां पी॰सी॰आर॰ गाड़ी तैनात होती है सम्बन्धित क्षेत्र में कोई वाहन दुर्घटना होने पर पी॰सी॰आर॰ गाड़ी घायल व्यक्ति को एक निश्चित नर्सिंग होम या अस्पताल में ही ले जाती है कहा जाता है कि ऐसे नर्सिंग होम या अस्पताल घायल व्यक्ति को पहुंचाने वाली पी॰सी॰आर॰ को एक निश्चित रकम का भुगतान करते हैं ।
जिसको पी॰सी॰आर॰ पर तैनात पुलिसकर्मी आपस में बांट लेते हैं ये कोई एक पी॰सी॰आर॰ गाड़ी की बात नहीं है बल्कि अधिकतर पी॰सी॰आर॰ गाडी पर यह सिद्धान्त लागू होता है क्योंकि अस्पताल या नर्सिग होम मालिक इस बात को स्वीकार करते हैं कि इससे नर्सिंग होम की आमदनी बढ़ती है तथा उसमें से यदि कुछ हिस्सा हम पी॰सी॰आर॰ को दे भी देते हैं तो हर्ज ही क्या है ?
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इन सबसे जुदा ठेली लगाने वाले, खोमचे वाले, चाय वाले, फल सब्जी बेचने वाले, फेरी वाले आदि सभी से पुलिसकर्मियों को अच्छी खासी आमदनी हो जाती है कुछ फेरी वाले जो पुलिसकर्मियों को नगद भुगतान नहीं कर पाते हैं वे फल व सब्जी आदि भेंट करते हैं चाय वाला बिना पैसा चाय पिलाता है, बूट पालिश करने वाला भी पुलिसकर्मियों से कोई पैसा वसूल नहीं करता यहाँ तक कि जिस राशन दुकानदार ने दुकान के बाहर बोरियाँ लगा रखी हैं वो भी पुलिसकर्मियों को मुफ्त में बिना पैसा राशन देता है और तो और पुलिसकर्मी सेविंग कराने तक के पैसा नहीं देते और न बेचारा बारबर पैसा मांग पाता है ।
इससे भी दो कदम आगे जाकर यदि कोई पुलिसकर्मी डयूटी समाप्त कर अपने घर भी जाता है तो निजी वाहन चालकों को यात्रा का किराया भी नहीं देते वह किराया न देना अपना अधिकार मानते हैं । ऐसी स्थिति भारतीय पुलिसकर्मियों की है जो इस देश के नागरिकों की रक्षा करने के स्थान पर उनका भक्षण कर रहे हैं और अपनी अंतर आत्माओं का दमन कर भारतीय पुलिस व्यवस्था पर तो प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं साथ ही अपने कर्त्तव्य का पालन भी उचित रूप में नहीं कर रहे हैं जिससे देश में कानून व्यवस्था की स्थिति दयनीय हो चली है । जो केवल पुलिसकर्मियों की कमाई तक ही सिमट कर रह गई है ।
भारतीय पुलिस का नकारात्मक पक्ष जो आम जनता की दृष्टि में बना हुआ है वह यह है कि कोई भी पुलिसकर्मी किसी भी नागरिक से शिष्टाचार में बात करना अपनी बेइज्जती समझता है प्रत्येक पुलिसकर्मी का आम नागरिकों के प्रति भी ऐसा ही व्यवहार होता है जैसा किसी अपराधी के प्रति होता है ।
भारतीय पुलिस व्यवहारिक दृष्टि से अपराधी और पीड़ित में कोई अन्तर महसूस नहीं करती बल्कि पीड़ित या आम नागरिक से भी अपराधियों जैसा व्यवहार करना अपना कर्त्तव्य समझती है, गाली-गलौच से बात करना पुलिसकर्मी अपना नैतिक कर्त्तव्य समझते हैं उनका ऐसा विश्वास है कि वर्दी पहनने के साथ ही अव्यवहारिक रूप से गाली-गलौच में बात करना उनके कर्त्तव्य का अंग है ऐसा भी देखा जाता है जब बेवजह आम नागरिक या पीड़ित पक्ष को भी पुलिसकर्मियों की गाली-गलौच का सामना करना पड़ जाता है । पुलिसकर्मियों द्वारा अशिष्ट आचरण करना उनके कर्त्तव्य का अंग है ऐसे पुलिसकर्मियों से शिष्टाचार की आशा करना सरासर नाइंसाफी है ।
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भारतीय पुलिस की आय का एक अन्य स्रोत देश में जुआ या सट्टेबाजी को बढ़ावा देना भी है जिसमें सम्बंधित क्षेत्र के थानाध्यक्ष को अच्छी खासी रकम सट्टेबाजी से होने वाली आय से प्राप्त होती है जिसमें स्थानीय लोग कितना ही विरोध करें लेकिन सम्बन्धित थानाध्यक्ष महोदय की सरपरस्ती में सब कुछ विधिवत रूप से चलता रहता है जिसमें सट्टेबाजी का व्यवसाय करने वाला व्यक्ति निडरता से उक्त व्यवसाय को करता रहता है और देश के युवा सट्टेबाजों की खेप तैयार करता रहता है जिसमें भारतीय पुलिस की भूमिका भी सराहनीय होती है जो सट्टेबाजों को गिरफ्तार करने के स्थान पर उसने हिस्सेदारी तय करके सट्टेबाजी के व्यवसाय को और अधिक फलने-फूलने में मदद करती है ।
भारतीय पुलिस व्यवस्था के कार्य करने के तरीके पर हम प्रकाश डालने की कोशिश कर रहे हैं जो बिल्कुल ही भिन्न है । कोई पीड़ित व्यक्ति थाने में रिपोर्ट लिखवाने जाये तो उसकी रिपोर्ट नहीं लिखी जाती । अगर वह पीड़ित कुछ हजार रूपये थानाध्यक्ष महोदय को सुविधा शुल्क दे देता है तो रिपोर्ट लिखी जायेगी ।
साथ ही अगर अभियुक्तगण थोड़ा मजबूत है और वह थानाध्यक्ष महोदय को अच्छी खासी रकम दे देता है तो उसकी रिपोर्ट भी पीड़ित पक्ष के ऊपर लिख दी जायेगी । अब दोनों तरफ से रिपोर्ट लिखने के बाद खेल शुरू होता है धारा लगवाने का धारा कटवाने का ।
जो पक्ष डाक्टर को अच्छी खासी रकम देकर गम्भीर चोट, हड्डी फ्रेक्चर आदि का मेडिकल प्रमाण पत्र बनवा लेता है तो उसकी ओर से गम्भीर धाराएं दूसरे पक्ष पर लगा दी जाती है । हड्डी फ्रेक्चर का मेडिकल बनवाना कोई मुश्किल कार्य नहीं है । जहां फ्रेक्चर दिखाना होता है वहा लोहे की वायर रखकर एक्स-रे करा दिया जाता है हड्डी फ्रेक्चर की रिपोर्ट तैयार हो जाती है जिसे कहीं चेलेंज नहीं किया जा सकता ।
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उक्त मेडिकल रिपोर्ट को लगाकर थानाध्यक्ष महोदय गम्भीर संज्ञेय धाराओं में विवेचना कर मुकदमे का आरोप पत्र तैयार करते हैं । यदि एफ.आई.आर. से धारा कटवाने का मामला हो तो उसके लिए मेडिकल रिपोर्ट को चेलेंज कर डाक्टरों का पेनल गठित कर मेडिकल रिपोर्ट अपने पक्ष में कराकर विवेचक से मिलकर उसको सुविधा शुल्क देकर विवेचना में किसी अभियुक्त का नाम कटाना हो, कोई संज्ञेय धारा कम करानी हो वो सब भी हो जायेगा ।
बस केवल विवेचक व थानाध्यक्ष महोदय को उनकी सुविधा शुलक उनके पद के अनुसार पहुंच जानी चाहिए । आपका काम हो जायेगा । यदि कोई अभियुक्त जेल में है और अपराध भी गम्भीर प्रकृति का है और आपको लगता है कि न्यायालय जमानत नहीं देगा लेकिन फिर भी जमानत मिलनी चाहिए । इसके लिए विवेचक से मिलकर उसको अच्छी मोटी रकम दो ।
विवेचक आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल करने में 90 दिन से अधिक का समय लेने के लिए विवेचक को तैयार कर लो उसके बाद अपने वकील के द्वारा जमानत प्रार्थना पत्र न्यायालय मे दो कि पुलिस को तय समय 90 दिन के अन्दर कोई साक्ष्य अभियुक्त के विरूद्ध नहीं मिला है ।
इसलिए पुलिस आरोप पत्र दाखिल नहीं कर पायी । लिहाजा आरोपी जमानत पाने का हकदार होगा और निश्चित ही न्यायालय आरोपी को जमानत दे देगा । यदि किसी व्यक्ति के ऊपर गैर जमानती धाराओं में मुकदमा पंजीकृत हो जाता है और वह न तो जेल जाना चाहता है, न जमानत कराना चाहता है, पुलिस गिरपतारी से बचने के लिए कई रास्ते हो सकते हैं ।
या तो अग्रिम जमानत ले लो या उच्च न्यायालय से गिरफ्तारी पर स्थगन आदेश ले लो । अगर दोनों रास्ते कारगर न हो तो जिला पुलिस कप्तान से मिलकर विवेचना विशेष अनुसंधान शाखा को स्थानांत्रित करा लो । कम से कम तुरन्त गिरफ्तारी तो रूक ही जायेगी । विवेचना में दोषी पाये जाने पर ही गिरपतारी होगी और यदि आप अच्छा खासा पैसा खर्च कर सकते हैं ।
तो शासन से विवेचना सी.बी.सी.आई.डी. को स्थानांत्रित करा लिजिए तो मुकदमे को आप अपने तरीके से तैयार करा सकते हैं जिसमें आपका कुछ नहीं होने वाला । तो ये तो भारतीय पुलिस की वैधानिक व्यवस्था है बाकी अगर अवैधानिक की बात करे जैसे अपने किसी दुश्मन पर फर्जी मुकदमा दर्ज कराना हो, उसे जेल पहुंचाना हो, किसी प्रोपर्टी पर कब्जा करने में मदद चाहिए, किसी शादी समारोह में रोब दिखाने के लिए पुलिस वर्दी हथियार, जिप्सी चाहिए तो सब सुविधाऐं आपको उचित सुविधा शुलक देकर प्राप्त की जा सकती हैं ।
फर्जी मुकदमा पंजीकृत कराना हो तो इसके लिए थानाध्यक्ष महोदय मुकदमे की धाराओं के अनुसार 50 हजार रूपये से लेकर 1 लाख रूपये तक में आपको यह सुविधा उपलब्ध करा देंगे । आपका दुश्मन आपके पैरों में होगा ।
अब यदि किसी प्रोपर्टी पर कब्जा करने का प्रकरण है तो उसके लिए प्रोपर्टी की कीमत के अनुसार तय प्रतिशत पर सौदा हो जायेगा और उसमें पुलिस की भूमिका इतनी ही होगी कि जब तक आपके आदमी कब्जा करते हैं तो हम दूर से ही आपको प्रोटेक्ट करते रहेंगे लेकिन आपके पकड़ेगे नहीं बल्कि आपको घटना स्थल से सुरक्षित निकालने में मदद करेंगे ।
यदि आप छोटे-मोटे स्थानीय नेता हैं और जनता में आपको रोब-रूतबा कायम करना है तो थानाध्यक्ष महोदय को उचित सुविधा शुलक देकर शादी समारोह आदि में रोब जमाने हेतु पुलिस फोर्स आपको मिल ही जायेगा ।
ऐसी स्थिति भारतीय पुलिस की है कि रात के समय किसी भी गस्त लगाती जिप्सी में पुलिसकर्मी सोते नजर आ जायेंगे और कई बार तो नशे में सोते हुए भी देखे गये हैं । किसी गरीब की मदद करने का वाक्या तो आपको बहुत कम ही सुनने को मिला होगा जहां पुलिस ने किसी निर्बल निर्धन की मदद की हो । यहां तक कि पीड़ित लोगों को उल्टे जेल में डालते हुए अवश्य देखा है ।
एक मुकदमे की सुनवाई के दौरान दिल्ली उच्च न्यायालय के विद्वान न्यायधीश श्री शिव नारायण ढींगरा जी ने पुलिस को फटकार लगाते हुए टिप्पणी की थी कि यदि आपके बॉस (कमिशनर) का कुत्ता भी खो जाये तो उसे ढूंढने के लिए समस्त पुलिस बल फोटो लेकर पूरे शहर को छान डालता है लेकिन यदि किसी आम आदमी की सुरक्षा की बात हो तो उनको सुरक्षा उपलब्ध नहीं करा पाते ।
इससे जाहिर होता है कि भारतीय पुलिस किस प्रकार अपना कर्त्तव्य निभा रही है और किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की धज्जियां भी उड़ाती है ।
माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा रिट संख्या 539/86 डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य में जो 18.12.1996 को निर्णित हुए में मार्ग दर्शक निर्देश निर्धारित किये कि:
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1. पुलिसकर्मी जो गिरफ्तार करते हैं तथा गिरफ्तार व्यक्ति से पुछताछ करते हैं उन्हें शुद्ध स्पष्टदर्शी व साफ पहचान की नाम पट्टीका धारण करनी चाहिए । वर्दी के साथ पद के बेज अवश्य हों । उन सभी पुलिस कर्मियों का जो गिरफ्तार व्यक्ति से पूछताछ करते हैं विवरण एक रजिस्टर में अंकित किया जाना चाहिए ।
2. व्यक्ति की गिरफ्तारी के समय पुलिस अधिकारी एक फर्द (ज्ञापन या मेमो) तैयार करेगा जिसे कम से कम एक व्यक्ति / गवाह द्वारा प्रमाणित किया जायेगा जो या तो अभियुक्त के परिवार का सदस्य हो अथवा उस क्षेत्र का सम्मानित व्यक्ति हो जहां पर गिरफ्तारी की गयी । इस फर्द पर अभियुक्त द्वारा भी प्रति हस्ताक्षर किया जायेगा तथा इस पर गिरपतारी का समय व दिनांक भी अंकित किया जायेगा ।
3. जो व्यक्ति गिरफ्तार किया गया है अथवा निरूद्ध किया गया है अथवा किसी थाने की अभिरक्षा में पूछताछ केन्द्र पर है अथवा लॉकप / हवालात में है को यह अधिकार होगा कि उसके किसी मित्र / रिश्तेदार अथवा ऐसे व्यक्ति को जो उससे भली भांति परिचित हो और उसका शुभचिंतक हो, को जितना शीघ्र संभव हो आसानी से उपलब्ध साधन से सूचना भेजी जायेगी और जिसमें यह स्पष्ट रूप से बताया जायेगा कि अमुख व्यक्ति गिरफ्तार किया गया है और विशिष्ठ स्थान पर निरूद्ध किया जा रहा है यदि गिरपतारी के ज्ञापन के अनुप्रमाणक साक्षी स्वयं गिरफ्तार किये गये व्यक्ति का मित्र / सम्बन्धी नहीं है ।
4. यदि गिरफ्तार किये गये व्यक्ति के मित्र / रिश्तेदार जिले या कस्बे के बाहर के रहने वाले हैं तो उन्हें जिले की विधिक सहायता संगठन एवं सम्बन्धित थाने द्वारा वायरलेस / टेलीग्राफ के माध्यम से सूचना, गिरफ्तारी का समय एवं स्थान अंकित करते हए 8 से 12 घंटे के अन्दर दे दी जायेगी ।
5. जैसे ही यदि कोई व्यक्ति गिरफ्तार होता है पुलिस का यह दायित्व होगा कि वह उसे अपने इस अधिकार से अवगत करा दे कि वह अपनी गिरफ्तारी एवं अवरूद्ध किये जाने के सम्बन्ध में किसी को सूचना दे सकता है ।
6. किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के सम्बन्ध में निरूद्ध रखे जाने के स्थान पर डायरी में यह अंकित किया जाना आवश्यक है कि गिरफ्तार व्यक्ति के किस मित्र / रिश्तेदार को गिरफ्तारी की सूचना दी गई । उन पुलिसकर्मियों के नाम भी अंकित किये जायेगें जिनकी अभिरक्षा में गिरफ्तार व्यक्ति को रखा गया है ।
7. यदि गिरफ्तार व्यक्ति प्रार्थना करता है तो गिरफ्तारी के समय उसके शरीर की प्रत्येक बड़ी व छोटी चोटों का निरक्षण करके विवरण निरीक्षण मेमो पर अंकित किया जायेगा । इस निरीक्षण मेमो पर गिरफ्तार व्यक्ति तथा पुलिस अधिकारी दोनों के हस्ताक्षर कराये जायें तथा फर्द की एक प्रति गिरफ्तार व्यक्ति को भी दी जाये ।
8. प्रत्येक गिरफ्तार किये गये व्यक्ति की डाक्टरी परीक्षा उसकी निरूद्धि के प्रत्येक 24 घंटे के अन्दर प्रशिक्षित डाक्टर द्वारा अवश्य करायी जाये जो महानिदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य द्वारा अनुमोदित पेनल पर हो । शासन से अनुरोध किया गया है कि वह महानिदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य द्वारा प्रत्येक जिले व तहसील स्तर पर ऐसे प्रशिक्षित चिकित्सकों के पेनल तैयार करा दें ।
9. समस्त अभिलेखों की प्रतियां गिरफ्तारी के फर्द की सहित जैसा कि ऊपर सन्दर्भित किया है क्षेत्र के मजिस्ट्रेट को उनके रिकार्ड के लिए भेजी जायेगी ।
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10. बन्दी बनाये गये व्यक्ति को पूछताछ के मध्य अपने अधिवक्ता से मिलने की अनुमति दी जा सकती है परन्तु ऐसी सुविधा सम्पूर्ण पूछताछ के मध्य अनुमन्य नहीं होगी ।
11. प्रत्येक मुख्यालय एवं जिले स्तर पर एक पुलिस कन्ट्रोल रूम बनाया जायेगा जहां प्रत्येक गिरफ्तार किये जाने वाले व्यक्ति व स्थान की सूचना गिरफ्तार करने वाले अधिकारी द्वारा 12 घंटे की अवधि के भीतर दी जायेगी । कन्ट्रोल रूम के बाहर एक नोटिस बोर्ड लगाया जायेगा जिस पर सहज दृष्य या सूचना अंकित की जायेगी ।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह भी निर्देश दिया गया है कि यदि किसी पुलिस अधिकारी द्वारा उपरोक्त वर्णित प्रावधानों का अतिक्रमण किया जाता है तो उसके विरूद्ध विभागीय कार्यवाही के साथ-साथ न्यायालय की अवमानना के लिए दण्डित भी किया जा सकता है लेकिन उक्त निर्देशों का पालन करने में पुलिसकर्मी कितना रूचि दिखाते हैं ये तो सभी भली भांति परिचित हैं ।
पुलिसकर्मियों की शारीरिक बनावट की बात करें तो भर्ती उपरान्त प्रशिक्षिण तक तो वे पुलिसकर्मी लगते हैं लेकिन प्रशिक्षिण के बाद लगभग 1-2 वर्ष की नौकरी के बाद पुलिसकर्मी किसी भी दृष्टि से पुलिसकर्मी कम लालाजी ज्यादा नजर आते हैं जो दुकान पर बैठे-बैठे पेट की चर्बी बढ़ा लेते हैं तोंद निकली हुई भाग-दौड़ में अक्षम जो किसी भी मायने में पुलिसकर्मी नजर नहीं आते ।
क्या आप मान सकते हैं कि ऐसे पुलिसकर्मियों की सुरक्षा व्यवस्था के दम पर आप चेन की नींद सो सकते हैं ? कदापि नहीं । जो पुलिसकर्मी अपने शरीर की रक्षा नहीं कर सकते वो आम जनता की रक्षा क्या कर पायेंगे ? ऐसा सोचना भी बेईमानी होगा । क्या ऐसी स्थिति के लिए पुलिसकर्मी जिम्मेदार हैं या पुलिस के उच्च अधिकारी । कुछ हद तक तो दोनों ही उत्तरदायी हैं जो ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई ।