Here is an essay on the corrupt political system in India especially written for school and college students in Hindi language.
वक्त बुला रहा है एक और स्वतन्त्रता के महासंग्राम के लिए । लेकिन इस बार संग्राम फिरंगियों से नहीं बल्कि भारतीयों के रूप में उनके खून में बस चुके भ्रष्टाचार अत्याचार बेरोजगार और गरीबी से करने के लिए समाज में व्याप्त विधिक अज्ञानता को दूर करने के लिए होगा ।
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देश को आजाद हुए आज 63 वर्ष हो चुके हैं लेकिन क्या आपने सोचा है कभी कि हमारी आजादी का मतलब क्या है ? क्या आजादी का मतलब सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को जायज कार्यों के लिए भी रिश्वत देना है ? क्या आजादी का मतलब है ? पुलिस द्वारा लोगों को सरेआम बेइज्जत करना ? क्या आजादी का मतलब है ? प्रत्येक सरकारी बाबू द्वारा रिश्वत लेना ? क्या आजादी का मतलब है ?
विकास कार्यों के लिए आने वाले सरकारी धन को ग्राम प्रधानों, निगम पार्षदों, जिला पंचायत सदस्यों, विधायकों और सांसदों द्वारा हजम करके चंद दिनों में ही करोड़पति बनना । क्या आजादी का मतलब है ? सरेआम बहन-बेटियों के साथ अराजक तत्वों द्वारा छेड़छाड़ करना अश्लील फब्तियां कसना । क्या आजादी का मतलब है ? प्रत्येक सरकारी भर्ती में सरकार द्वारा गड़बड़ी कराना और फिर अगली सरकार द्वारा भर्ती होने वालों को बेरोजगार बनाना ।
अगर आजादी का अर्थ उक्त यही है तो इससे गुलाम ही अच्छे थे । समाज में इतना सब हो रहा है और समाज का शिक्षित युवा वर्ग उसको चुपचाप सहन कर रहा है आखिर क्यों चुप है ? हैरानी होती है उन युवाओं पर जो सरदार भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद, सुभाष चन्द्र बोस, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेन्द्र लहरी जैसे महान क्रान्तिकारियों को अपना आदर्श मानते हैं ।
बिस्मिल जी के शब्दों में:
”मरते बिस्मिल रोशन लहरी अशफाक अत्याचार से ।
होगें पैदा सैकडों इनके लहू की धार से” ।।
जरूरत आज भी है उन युवाओं को आगे आने की जो सोचते हैं कि आजादी के समय अगर हम होते तो हम भी उस स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेते अन्तर केवल इतना है कि आज हमें लड़ना होगा बिना हथियार के, आज हमें लड़ना होगा ।
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अपने अधिकारों के लिए आज हमें जगाना होगा इस सोये हुए समाज को, इस मृत्युप्राय हो चुके जिन्दगी के ढांचे को । जो जानता तो सब कुछ है लेकिन डर और दहशत इस कदर उनके दिलों में बैठ चुकी है कि कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती ।
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हमें वो हिम्मत वापिस लानी है हमें दूर करना होगा उनके डर को हमें उनके अन्दर के सोये हुए इंसान को जगाना होगा उनके अन्दर जोश पैदा करना होगा । नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी जब जर्मन रेडियों से भारतियों को सम्बोधित करते थे तो उनकी शुरूआत बहादुरशाह जफर के इन शब्दों से होती थी-
”गाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की ।
तख्ते लंदन तक चलेगी तेग हिन्दुस्तान की” ।।
हमें प्रेरणा लेनी होगी ऐसे महापुरूषों से जिन्होने इस देश पर अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया और लिया ना कुछ भी । अगर आज वो होते तो इस देश के सिस्टम पर जरूर रोते जहां राजनीति व्यवसाय बन चुका है अपराधी राजनेता जिनकों होना चाहिए था जेलों में वो राजनीति के चोले में अपराध की दुनिया के बेताज बादशाह बन गये हैं ।
चारों तरफ माफिया राज हो गया है कहीं भू माफिया, कहीं शिक्षा माफिया, कहीं शराब माफिया, कहीं खनन माफिया पैदा हो गये हैं । ऐसा क्यों हो रहा है सोचो ! सोचो ! सोचो ! दोषी कौन ? हम और आप ।