राष्ट्रपति की स्थिति तथा अधिकार पर निबन्ध | Essay on Rights and Position of President of India in Hindi!

भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है । गणराज्य उस देश की व्यवस्था को कहते हैं जिसका सर्वोच्च मुखिया निर्वाचित हो । उदाहरण के लिये इंग्लैण्ड देश जहाँ का मुखिया राजा या रानी होते हैं किन्तु वह निर्वाचित नहीं होते ।

इसीलिये इंग्लैण्ड को गणराज्य नहीं माना जा सकता । भारत गणराज्य में सारे सरकारी काम मुखिया अर्थात् राष्ट्रपति के नाम पर किये जाते हैं किन्तु वह देश का वास्तविक शासक नहीं होता बल्कि उसकी स्थिति नाममात्र तथा रबर स्टैम्प जैसी होती है ।

देश की कार्यपालिका ( अर्थात् शासन करने वाली संस्था) के तीन भाग होते हैं – 1. लोकसभा (जनता की प्रतिनिधि सभा तथा निम्न सदन) 2. राज्य सभा ( राज्यों की प्रतिनिधि सभा तथा उच्च सदन) 3. राष्ट्रपति । दूसरे शब्दों में भारतीय संघ की कार्यपालिका के प्रधान को राष्ट्रपति कहते हैं । केन्द्रीय कार्यपालिका की समस्त शक्तियाँ राष्ट्रपति में निहित होती हैं ।

संविधान के द्वारा भारत के राष्ट्रपति को अनेक अधिकार प्राप्त हैं जो निम्न हैं:

(1) देश का प्रशासन उसके नाम से चलाया जाता है ।

(2) वह प्रधानमन्त्री की नियुक्ति करता है तथा उसकी सलाह से अन्य

मन्त्रियों की नियुक्ति करता है ।

(3) वह राज्यपालों महाधिवक्ता, महालेखा परिक्षक, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष वो सदस्यों तथा विदेशों में भारत के राजदूतों की नियुक्ति करता है ।

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(4) वह भारत की तीनों सेनाओं का प्रधान सेनापति है ।

केन्द्रीय कार्यपालिका:

राष्ट्रपति

(वैधानिक अध्यक्ष)

प्रधानमन्त्री

(वास्तविक अध्यक्ष)

मन्त्रिपरिषद

(प्रधानमंत्री की सहयोगी संस्था)

1.विधायी संस्था:

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(1) वह संसद का अभिन्न अंग है ।

(2) वह दोनों सदनों के अधिवेशन बुलाता है तथा उनका सत्रावसान करता है ।

(3) राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बिना कोई विधेयक कानून का रूप नहीं ग्रहण कर

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सकता ।

(4) राष्ट्रपति आवश्यकता पड़ने पर संविधान के अनुच्छेद 108 के अन्तर्गत किसी विधेयक पर दोनों सदनों में मतभेद होने पर संयुक्त बैठक बुला सकता है । पोटो विधेयक पर 26 मार्च, 2002 को दोनों सदनों की संयुक्त बैठक राष्ट्रपति के.आर. नारायणन द्वारा बुलाई गई ।

2.वित्तय शक्तियाँ:

(1) धन विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति के बिना लोकसभा में प्रस्तावित नहीं किया जा सकता ।

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(2) केन्द्रीय बजट राष्ट्रपति की अनुमति से ही लोकसभा में रखा जा सकता है ।

3. न्यायिक शक्तियाँ:

(1) राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीशों को नियुक्त करता है ।

(2) वह किसी दण्डित अपराधी को क्षमा कर सकता है अथवा उसके दण्ड को कम कर सकता है । राष्ट्र के सम्मुख आए संकट का सामना करने के लिए राष्ट्रपति को विशेष शक्ति दी गई हैं ये शक्तियाँ इस प्रकार हैं ।

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1.युद्ध बाहरी आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह से उत्पन्न संकट:

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संविधान के अनुच्छेद 352 के अनुसार यदि देश में युद्ध बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण संकट उत्पन्न हो गया है तो राष्ट्रपति पूरे देश के लिए या देश के किसी एक, या कुछ भागों के लिए संकटकाल की घोषणा कर सकता है । 44वें संविधान संशोधन द्वारा इसमें कुछ नए बिन्दु जोड़ते हुए कहा है कि, इस प्रकार का संकटकल मन्त्रिमण्डल द्वारा राष्ट्रपति को लिखित परामर्श देने पर ही घोषित होगा ।

साथ ही केवल आन्तरिक अशान्ति के नाम पर संकटकाल घोषित नहीं होगा । इस प्रकार की गई घोषणा का अनुमोदन संसद द्वारा एक माह के अंदर होना आवश्यक है । इस प्रकार की घोषणा होने पर राष्ट्रपति राज्य सरकारों को प्रशासन के सम्बन्ध में निर्देश दे सकता है । सकटकाल में नागरिकों के जीवन और शारीरिक स्वतन्त्रता को छोड़कर अन्य सभी स्वतन्त्रताएँ एवं मौलिक अधिकार स्थगित किए जा सकते हैं ।

2.राज्यों में संवेधानिक तन्त्र के विफल होने पर:

संविधान के अनुच्छे 356 द्वारा राष्ट्रपति को यह शक्ति दी गई है कि, यदि उसे राज्यपाल के प्रतिवेदन पर अथवा अन्य किसी प्रकार यह महसूस हो जाए कि, किसी राज्य का शासन संवैधानिक मापदण्डों के अनुरूप नहीं चलाया जा रहा है ।

तब वह इस अनुच्छे के तहत राज्य में ‘ राष्ट्रपति शासन ‘ लागू कर सकता है । इस प्रकार के संकट के समय राष्ट्रपति यह घोषित कर सकता है कि संकट के दौरान उस राज्य की कानून निर्माण शक्ति का प्रयोग संसद करेगी । संकट की अवधि में राष्ट्रपति राज्य में अनुच्छेद 19 द्वारा नागरिकों को प्रदत्त मौलिक स्वतन्त्रताओं पर रोक लगा सकता है।

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