यदि मैं प्रधानमंत्री होता | Essay on If I were the Prime Minister in Hindi!
हमारे देश की गणतंत्रात्मक शासन व्यवस्था में कोई भी नागरिक प्रधानमंत्री बन सकता है । प्रधानमंत्री वही बनता है, जो आम चुनाव के फलस्वरूप लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता होता है ।
राष्ट्रपति उसे ही प्रधानमंत्री पद के लिए आमंत्रित करते हैं और उससे अपनी सरकार बनाने का आग्रह करते हैं । इससे स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री बनना आसान काम नहीं है । उस जिम्मेदारी का सफलतापूर्वक निर्वाह करने का दृढ़ संकल्प करते हुए यदि मैं प्रधानमंत्री होना स्वीकार कर लेता हूँ तो मैं अपने अधिकारों का उपयोग किस प्रकार करूँगा, यह मैं बता देना चाहता हूँ ।
प्रधानमंत्री बनने पर मेरे सामने जो प्रथम कार्य है, वह है मंत्रिपरिषद् का गठन । मैं अपनी मंत्रिपरिषद् का गठन करने में बहुत सावधानी बरतूँगा । मैं उसमें ऐसे व्यक्तियों को स्थान दूँगा, जो व्यक्तिगत और दलीय स्वार्थों से ऊपर हों, निष्पक्ष हों, न्यायप्रिय हों, सच्चे जनसेवी हों, कार्य-कुशल हों, अपने देश की ज्वलंत ममस्याओं से भली-भाँति परिचित हों और जातीय, प्रांतीय तथा सांप्रदायिक भावनाओं के शिकार न हों ।
मैं अपनी मंत्रिपरिषद् के प्रत्येक मंत्री की कार्य-प्रणाली पर पैनी दृष्टि रखूँगा और यदि कोई अपने कर्तव्यों के पालन में ढिलार्ड करता हुआ पाया जाएगा तो मैं उसे अपनी मंत्रिपरिषद् से हटाने में संकोच नही करूँगा । इस प्रकार का कड़ा रुख अख्तियार करने से ही मैं जनता का विश्वासपात्र वन सकूँगा और घूसखोरी, चोरबाजारी आदि से जनता की रक्षा कर सकूँगा ।
मेरा दूसरा काम होगा- देश की सैनिक शक्ति में वृद्धि करना और उसे युद्ध के आधुनिकतम अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित करना । अहिंसा में विश्वास करते हुए भी मैं अपने देश को निर्बल बनाने की नीति का समर्थक नहीं हूँ । अपनी सैनिक शक्ति बढ़ाने और हर तरह के अस्त्र-शस्त्रों का संग्रह करने का अर्थ यह नहीं है कि मैं चीन अथवा पाकिस्तान से युद्ध के नारे लगाता रहूँगा ।
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मैं किसी देश पर आक्रमण नहीं करूँगा; किंतु यदि कोई देश मुझे ललकारेगा और मेरे देश पर आक्रमण करेगा तो मैं अहिंसा की आड़ लेकर चुपचाप नही बैठूँगा । मैं उसे ऐसी शिकस्त दूँगा कि फिर कभी मेरे राष्ट्र की ओर कुदृष्टि रखने का दुःसाहस न कर सके ।
प्रधानमंत्री होने पर मेरा तीसरा काम होगा अपने देश को स्वावलंबी, आत्मनिर्भर और धन-धान्य से संपन्न बनाना । इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए मैं सबसे पहले कृषि की उन्नति पर ध्यान दूँगा । खेती की सर्वागीण उन्नति के लिए मैं किसानों की भरपूर सहायता करूँगा । मैं उन्हें वैज्ञानिक ढंग से खेती के लिए शिक्षा दिलाऊँगा । उनके खेतों की सिंचाई के लिए समुचित प्रबंध करूँगा ।
उनके लिए उत्तमोत्तम खाद और बीजों की व्यवस्था करूंगा । लोभी शासकों से उनकी रक्षा करूँगा । उनके पशुओं की नस्ल सुधारने में उनकी सहायता करूँगा और उन्हें अपने खेतों से अधिक-से-अधिक फसल उपजाने का प्रेरणा दूँगा । इस प्रकार मैं अपने देश की खाद्य-समस्या को सुलझाने की पूरी कोशिश करूँगा । खाद्य-समस्या सुलझ जाने से हमोर देश का जो धन अन्न क्रय करने में विदेश चला जाता है, वह बच जाएगा और हमारी आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी ।
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हमारे देश की आर्थिक स्थिति अत्यंत भयावह है । हम राजनीतिक दृष्टि से स्वतंत्र अवश्य हैं, पर आर्थिक दृष्टि से धनी राष्ट्रों के गुलाम बने हुए हैं । अपनी पंचवर्षीय योजनाओं को हठपूर्वक चलाने के लिए हमारे पूर्व प्रधानमंत्रियों ने विदेशी राष्ट्रों के दरवाजे खटखटाए और उनसे ऋण लेकर देश को भिखारी बना दिया । मैं अपनी साधन-शक्ति का उचित उपयोग कर अपने देश की आर्थिक उन्नति करना चाहता हूँ ।
वर्तमान परिस्थितियों में पंचवर्षीय योजना से हम अधिक लाभ नहीं उठा सकते । इस योजना में यांत्रिक उद्योग को भी अधिक महत्त्व दिया गया है । मैं कुटीर उद्योगों का प्रबल समर्थक हूँ । मैं भारत के प्रत्येक घर को कुटीर उद्योग का कारखाना बनाना चाहता हूँ ।
इससे बेकारी की समस्या का निराकरण होगा, सबको काम मिलेगा, सब परिश्रम का महत्त्व समझेंगे, सब में आत्मनिर्भरता, स्वावलंबन व आत्मविश्वास की भावना आएगी और उद्योग के लिए बड़ी-बड़ी मशीनों के क्रय करने में हमारे देश का जो धन विदेश चला जाता है, वह नहीं जा सकेगा ।
प्रधानमंत्री की हैसियत से मेरा पाँचवाँ उद्देश्य होगा भ्रष्टाचार का उन्मूलन करना । देश में नियंत्रण विभाग, आपूर्ति विभाग, राशनिंग व्यवहार, सहकारिता विभाग आदि भ्रष्टाचार के अड्डे हैं । इसलिए मैं इन विभागों को समाप्त कर दूँगा । इन विभागों ने चोरबाजारी को बढ़ावा दिया है और शासकों को घूसखोर बनाया है । ऐसा आभूषण पहनने से कोई लाभ नहीं, जो शरीर को ही विकृत कर दे । इसलिए ऐसे विभागों का उन्मूलन ही श्रेयस्कर है ।
हमारे देश की शिक्षा-पद्धति बेरोजगारी बढ़ानेवाली है । मैं अपने देश के विद्यार्थियों के लिए रोजगारपरक शिक्षा की व्यवस्था करूँगा । किसी भी स्तर पर दिए जानेवाले सारे आरक्षणों को पूरी तरह से समाप्त कर दूँगा । देश से अल्पसंख्यक- बहुसंख्यक, सवर्ण-असवर्ण, पिछड़े-इन सारे शब्दों को मिटा दूँगा ।
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जो वास्तव में दलित-पतित, अभावग्रस्त हैं उनके बच्चों को अलग से पढ़ाई-लिखाई के सर्वसाधन उपलब्ध कराऊँगा । महिलाओं को साक्षर बनाने के लिए हर संभव प्रयास करूँगा और प्रत्येक योजना में इसे प्राथमिकता के साथ प्रोत्साहन दूँगा ।
मैं किसी भी धर्म से संबंधित मूर्ति-प्रतिमा, मंदिर-मसजिद, गिरजाघर आदि पूजा-स्थलों को सार्वजनिक स्थानों पर निर्माण करने की स्वतंत्रता नहीं दूँगा । जिसे इन सबके प्रति मोह हो, वे अपने घर के अंदर बना सकते हैं, कारण कि धार्मिक कर्मकांडों के चलते आज हमारे देश का मानव-समाज बिखर गया है । किसी भी कोटि के अपराधी को दंडित करने में मेरा प्रशामन कोई कोताही नहीं
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करेगा । पुलिस-तंत्र भी किसी भी राजनेता के नियंत्रण में नही रहेगा । किसी की भी मृत्यु पर देश में किसी प्रकार का अवकाश नहीं रहेगा । मात्र दो मिनट का मौन धारण करने के पश्चात् सभी अपने कार्य में पूर्ववत् संलग्न हो जाएँगे ।
अंत में, मैं यह निवेदन कर दूँ कि मैं किसी राज्य को स्वेच्छाचरि नहीं बनने दूँगा । मैं प्रत्येक राज्य को केंद्रीय अनुशासन में रखूँगा । यदि कोई राजनीतिक दल अनुशासन-विहीन होकर देश के किसी कोने में उपद्रव खड़ा करेगा तो मैं अपनी संवैधानिक शक्ति के दायरे में अच्छा सबक सिखाऊँगा । स्वस्थ विरोध का मैं स्वागत करता हूँ; पर ऐसा विरोध, जो देश को पतन के गर्त की ओर ले जानेवाला है मैं सहन नहीं कर सकूँगा ।
हमारे देश की जनता कर-भार से दबी हुई है और संत्रस्त हे । इसका मुख्य कारण है हमारे सिर पर लदा हुआ विदेशी ऋण । कर-भार के साथ-साथ देश में जो महँगाई है, उसका भी मूल कारण यही है । फिर भी, मैं यथाशक्ति जनता को कर-भार से मुक्त करने की चेष्टा करूँगा । इन शब्दों के साथ मुझे विश्वास है कि मेरे उद्देश्यों की पूर्ति में जनता मुझे अपना पूरा सहयोग देगी ।