बीसवीं शताब्दी के दौरान भारत में सामाजिक प्रगति पर निबन्ध | Essay on Social Progress in India During the Twentieth Century in Hindi!
बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में भारत सामाजिक दृष्टि से बहुत अधिक पिछड़ा हुआ था । राजनैतिक दृष्टि से भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था । सभी प्रतिष्ठित और शक्तिशाली पद विदेशियों ने संभाले हुए थे ।
अंग्रेज सरकार की नीतियों ने भारतीय जनता को निर्धन और पिछड़ा हुआ बना दिया । यद्यपि उनमें से कुछ मुख्य नेता स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे महान संतो के बौद्धिक विचारों से प्रभावित होने लगे थे, परन्तु फिर भी अधिकतर व्यक्ति अंधविश्वासों और छूआछूत जैसी रूढ़ियों के शिकार ही बने रहे ।
नगरों की संख्या बहुत कम थी, पूरे देश में छोटे-छोटे गाँवों की संख्या अधिक थी, उस समय कृषि उत्पादन पर्याप्त मात्रा में होता था । और वस्तुओं का मूल्य भी कम था, परन्तु लोगों के पास उन्हें खरीदने के लिए धनराशि नहीं थी ।
ब्रिटिश शासकों ने भारत के कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन नहीं दिया जो कि मध्ययुग में ही नहीं बल्कि मुगल शासनकाल में भी सफलता के उच्च शिखर पर थे । यहाँ जितना भी थोड़ा बहुत कपास का उत्पादन होता था, वह इंग्लैंड को निर्यात कर दिया जाता था । वहाँ से तैयार माल भारत में बिकने के लिए आ जाता था ।
इसी प्रकार के कई हथकंडे अपनाकर ब्रिटिश सरकार भारत के आर्थिक तंत्र को कमजोर बनाती जा रही थी । 19वीं सदी के अंत तक भारत की सामाजिक स्थिति भी इसी प्रकार पिछड़ी हुई थी । जमींदार अग्रेजों की चापलूसी करके उनके प्रिय मित्र बन चुके थे और उनसे अपने लिए विशेष सुविधाएँ प्राप्त कर लेते थे ।
जमींदार कृषकों के साथ दुर्व्यवहार किया करते थे और वे बदले में अन्याय के विरुद्ध सिर भी नहीं उठा पाते थे । गाँवों में शैक्षिक संस्थाओं का अभाव था । केवल बम्बई, कलकत्ता और मद्रास में विश्वविद्यालय खुले हुए थे । अंग्रेजी प्रशासन में सहयोग देने वाले अंग्रेजी भाषा में निपुण क्लर्क (लिपिक) ही उनसे शिक्षा प्राप्त करते थे ।
अंग्रेज फूट डालो और शासन करो की नीति में विश्वास रखते थे । उन्होंने विभिन्न संप्रदायों में फूट डलवा कर हिंसक दंगों को बढ़ावा दिया । राष्ट्र भर में अपना आदेश चलाए रखने के लिए हिन्दुओं को मुसलमानों के विरुद्ध और मुसलमानों को हिन्दुओं के विरुद्ध भड़काना शुरू किया । विभिन्न प्रशासनिक या सामाजिक सुधारों का उद्देश्य भी साम्प्रदायिकता को फैलाना ही था ।
बीसवीं शताब्दी के आरंभ तक भारत की स्थिति ऐसी ही बनी रही । महात्मा गाँधी, मोतीलाल नेहरू, लाला लाजपत राय जैसे नेताओं के आगमन से ही राष्ट्रीय भावना का विकास हुआ । इन सभी ने मिलकर अंग्रेजी नीतियों का विरोध किया ।
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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने राष्ट्र के राजनैतिक, सामाजिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । पहली बार देश भर के युवकों ने संगठित रूप से धर्म, जाति मत आदि विभेदों को त्यागकर राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए लड़ना आरंभ किया ।
इसका प्रथम प्रभाव 1909 में ‘मार्ले-मिंटो सुधार’ के दौरान दृष्टिगत होता है, जब अंग्रेज सरकार को सामाजिक, राजनैतिक सुधार स्वीकार करने पड़े थे । इसके अंतर्गत ब्रिटिश सरकार ने मुस्लिमों को पृथक निर्वाचन का अधिकार दिया । मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में हो गई थी । इस प्रकार वे अपनी फूट डालने की नीति में सफल हुए । हालाँकि भारतीय नेताओं ने इसका विरोध किया था, लेकिन कुछ मुस्लिम नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए इसका स्वागत किया ।
सन् 1914 में हुए प्रथम विश्वयुद्ध ने भारत के राष्ट्रीय आंदोलन को और अधिक तीव्रता प्रदान की । अंग्रेजों ने स्वयं इसमें भाग लिया था और भारतीयों से सहयोग की माँग की थी । भारतीयों ने इस शर्त पर उन्हें सहयोग देना स्वीकार किया कि युद्ध के बाद अंग्रेज सरकार उनको स्वतंत्र कर देगी । परन्तु विश्वयुद्ध के बाद अंग्रेज सरकार अपने वायदे से मुकर गई ।
यद्यपि राष्ट्रीय आंदोलन की प्रचंडता के अधीन उन्हें भारत सरकार अधिनियम, 1919 के अंतर्गत कुछ राजनैतिक सुधारों को लागू करने के लिए मजबूर होना पड़ा । लेकिन इस मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार से भारतीय नेताओं को संतोष नहीं हुआ और उन्होंने इसके विरोध में जलियाँवाला बाग में एक सभा आयोजित की, जहाँ लाखों निर्दोष लोगों को मौत का शिकार होना पड़ा ।
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जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने राष्ट्रीय आंदोलन रूपी यज्ञ में आहुति की भूमिका निभाई । इससे देश के प्रत्येक कोने में सामाजिक चेतना का संचार हुआ जिसके कारण अंतत: भारत में अंग्रेजों का शासन समाप्त हुआ । इन दो विश्वयुद्धों के मध्य का काल भारत में सामाजिक प्रगति का आरंभिक काल है ।
इस समय कई प्रकार की विधायी संस्थाओं की स्थापना से राजनैतिक स्थिति में सुधार आया बल्कि आर्थिक क्षेत्र भी विकसित हुए । महात्मा गाँधी के नेतृत्व में स्वदेशी आंदोलन के कारण अंग्रेजों को बम्बई तथा अन्य बड़े नगरों में वस्त्र उद्योगों की स्थापना करनी पड़ी । विज्ञान और तकनीकी विकास की किरणें भी फैली ।
विशेषकर विद्युत के द्वारा भारत के शहरों और गांवों में रोशनी और अन्य सुविधाओं का प्रयोग होने लगा । विज्ञान और तकनीक के विकास के साथ-साथ भारतीय समाज से अंधविश्वास, रूढ़ियों का कुछ हद तक सफाया हो गया, लोगों में विवेक और तर्कशक्ति का प्रसार हुआ । प्रकृति पर मनुष्य की इस विजय से उनमें नवीन उत्साह पैदा हुआ । रेलगाड़ी, मोटर गाड़ी आदि तकनीकी सुविधाओं से भारतीय जन-मानस में वैज्ञानिक चेतना का तीव्र गति से प्रसार हुआ ।
सन् 1939 में दूसरा विश्वयुद्ध छिड़ा तो ब्रिटिश शासकों ने भारतीय नेताओं से राय लिए बिना भारतीय सहयोग की हामी भर दी । भारतीय नेताओं का रवैया प्रारंभ में नकारात्मक ही था, क्योंकि प्रथम विश्व युद्ध के बाद भी अंग्रेजो ने अपने ‘पूर्ण स्वराज्य’ के वायदे को पूरा नहीं किया था । अंत में भारतीय सेना ने भी युद्ध में भाग लिया ।
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युद्ध के दौरान बड़ी संख्या में सैनिक ठेके भारतीय व्यापारियों को दिए गए, वस्त्र उद्योग ने भी पर्याप्त उन्नति की विशेष रूप से सैनिकों की वर्दी तथा अन्य वस्तुओं को बनाने की दृष्टि से । उच्च स्तर पर सैनिक शस्त्रों के निर्माण के कारण इंजीनियरिंग उद्योग ने भी काफी उन्नति की ।
युद्ध और युद्ध क्षेत्र की सूचनाओं के प्रसारण, यूरोप और द. पूर्वी एशिया विशेषकर जापान में हुए विनाश के कारण भारतवासियों में स्वतंत्रता की भावना चरम उत्कर्ष पर पहुँच गई । महात्मा गाँधी और पं. जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन और सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज की ललकार ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को और भी मजबूती प्रदान की ।
दीर्घकालीन बातचीत और क्रीप्स मिशन एवं एटली मिशन के द्वारा अंतत: अंग्रेज शासकों ने भारत को स्वतंत्र करने का निश्चय किया, लेकिन इससे पहले उन्होंने भारत को हिन्दुस्तान और पाकिस्तान दो देशों में विभक्त कर दिया । इस प्रकार वे भारत को विभाजित करने के अपने लक्ष्य में कामयाब हो गए । आज का कश्मीर विवाद और सीमा पर घुसपैठ आदि समस्याएं, विभाजन की ही देन है ।
स्वतंत्रता के बाद नेहरूजी ने सामाजिक सुधार लाने का प्रयास किया । स्वतंत्रता के प्रथम बीस वर्षो के दौरान सामाजिक प्रगति के साथ-साथ राजनैतिक आर्थिक स्थिति में भी सुधार लाने के कई प्रयास किए । अनेक नदी घाटी परियोजनाओं द्वारा गाँवों के कृषि योग्य क्षेत्रों को लाभ पहुँचा है । 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू हुआ और लोगों को चुनाव द्वारा अपने प्रतिनिधि को चुनने का अधिकार प्राप्त हुआ । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पिछले चार दशकों के दौरान आम चुनाव आठ बार हुए ।
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सन् 1977-80 के दौरान भी विरोधी दल ने सत्ता संभाली । सत्ता का शांतिपूर्वक हस्तांतरण भारत की प्रजातांत्रिक व्यवस्था की पुष्टि करता है । पिछले पांच दशकों में हमने आठ पंचवर्षीय योजनाओं को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है । इन योजनाओं से राष्ट्र को शक्ति, स्थिरता प्राप्त हुई है । भारत की राष्ट्रीय आय लगभग दोगुनी हो गई है । 1951-52 में भारत का खाद्यान्न उत्पादन 52.2 करोड़ टन था जो 1984- 85 में बढ्कर 15.0 करोड़ टन हो गया ।
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भारत में गाँवों की संख्या अधिक है जहाँ जीविका का साधन कृषि ही है । निर्धन कृषकों की सहायता के लिए सरकार ने जमींदारी प्रथा को समाप्त करने का बीड़ा उठाया । भूमिहीन किसानों की समस्या को सुलझाने के लिए आचार्य विनोबा भावे ने पांचवे दशक में ‘भूदान आंदोलन’ प्रारंभ किया । जिसमें उन्होंने सम्पन्न किसानों से भूमि दान करने की माँग की । इससे उन्होंने लगभग 40 लाख एकड़ भूमि एकत्र की और भूमिहीन किसानों में बांट दी ।
गाँवों की बहुमुखी प्रगति के लिए कई अन्य कदम उठाए गए जैसे जमींदारी प्रथा का उन्मूलन, भूमिसीमा का निर्धारण, किसी भी प्रकार की जमाखोरी को अपराध घोषित करना आदि इस से भारत के रूप में परिवर्तन आ गया है । हरित क्रांति से गाँवों की स्थिति में आए परिवर्तन के फलस्वरूप शहरों में भी सुधार हुआ है । सामुदायिक विकास परियोजनाओं और पंचायती राज ने कृषकों की स्थिति में सुधार ला दिया है ।
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ब्रिटिश शासन काल के दौरान भारतीय समाज कई बुराइयों से ग्रस्त था । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ऐसे दोष काफी हद तक दूर हो गए हैं । जाति प्रथा को भी समाप्त किया जा रहा है । हिन्दू संहिता अधिनियम का निर्माण नारी मुक्ति के नए अध्याय को प्रस्तुत करता हैं । समाज से दहेज प्रथा को दूर करने के लिए सरकार ने कड़े उपाय किए है । बेरोजगारी और जनसंख्या वृद्धि की समस्या से जूझने के लिए भी कई प्रयास किए जा रहे हैं ।
परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भी भारत ने विशेष योग्यता का प्रदर्शन किया । परमाणु शक्ति द्वारा कृषि, उद्योग, चिकित्सा के क्षेत्रों में सुधार लाया गया । 1948 में स्थापित किए गए अणु शक्ति आयोग द्वारा बड़े पैमाने पर उद्योग स्थापित करने में सफलता मिली है । हमारे तीन परमाणु ऊर्जा केन्द्र औद्योगिक एवं घरेलू उपयोग के लिए विद्युत उत्पादन में लगे थे । सन् 1974 में आर्यभट्ट के सफलतापूर्वक छोड़े जाने से भारत ने अंतरिक्ष युग में प्रवेश कर लिया है ।
अपने देशवासियों को उत्तम जीवन सुविधाएँ उपलब्ध कराने के प्रयासों के कारण भारत ने विश्व का ध्यान आकर्षित किया है । इस ओर हमारे साहसिक प्रयासों से ही हमारे देशवासियों का जीवन-स्तर ऊँचा उठेगा । अभी बहुत कुछ करना है और अधिक त्याग- भावना की आवश्यकता है, जिससे हम सामाजिक, आर्थिक दृष्टि से पूर्णरूप से स्वतंत्र हो सकें । पिछले पाँच दशकों की हमारी उपलब्धियाँ हमारे मन में अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए नवीन उत्साह को उत्पन्न करती है ।