Here is a compilation of Essays on ‘Terrorism’ for Class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12 as well as for teachers. Find paragraphs, long and short essays on ‘Terrorism’ especially written for Students and Teachers in Hindi Language.
List of Essays on Terrorism
Essay Contents:
- आतंकवाद : मानवता का शत्रु | Essay on Terrorism in Hindi Language
- आतंकवाद की परिणति । Essay on Terrorism for Teachers in Hindi Language
- जैविक आतंकवाद । Paragraph on Terrorism for School Students in Hindi Language
- आतंकवाद: मानवता पर एक कलंक । Essay on Terrorism for Teachers in Hindi Language
- आतंकवाद विश्व के लिए एक गम्भीर समस्या है । Essay on Terrorism for College Students in Hindi Language
1. आतंकवाद : मानवता का शत्रु | Essay on Terrorism in Hindi Language
आज विश्व के अधिकांश देशीं में आतंकवाद प्रमुख समस्या बनी हुई है । आतंकवाद के खतरों से आम नागरिक ही नहीं बल्कि कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में रहने वाले देश के कर्ता-धर्ता भी मौत के साये में जी रहे हैं । प्राय: देश की सीमा पर तैनात सैनिकों से आतंकवादियों की मुठभेड़ होती रहती है ।
आधुनिक हथियारों से युक्त आतंकवादी मासूम नागरिकों के खून से होली खेल रहे हैं और विश्व की महाशक्ति माने जाने वाले देश भी आतंकवाद पर काबू पाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं । जिहाद के नाम पर कुछ आतंकवादी संगठनों द्वारा की जा रही विनाश-लीला निरन्तर बेगुनाह पुरुष-महिलाओं और मासूम बच्चों को मौत की नींद सुला रही है । आज आतंकवाद मानवता का सबसे बड़ा शत्रु बना हुआ है ।
हमारे समस्त धार्मिक अन्यों में मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म समस्त प्राणियों से प्रेम करना बताया गया है । सभी धर्मों का मूल संदेश मानव का मानव से प्रेम ही है । प्रेम के द्वारा ही मानव जाति सुरक्षित और सुखी रह सकती है ।
ईश्वर प्राप्ति भी मनुष्य प्रेम के द्वारा ही कर सकता है । विभिन्न धार्मिक ग्रन्थों में बताया गया है कि प्रत्येक मानव में ईश्वर का वास है । अत: प्रत्येक मानव से प्रेम करना ही ईश्वर से प्रेम करना है । परन्तु कुछ लोग धर्म के नाम पर उन्माद में मासूम लोगों की हत्याएँ कर रहे हैं ।
आतंकवादी संगठन बनाकर ये लोग निहत्थे नागरिकों को बेरहमी से गोलियों से भून रहे हैं और इसे धर्म की लड़ाई का नाम दे रहे हैं । ये आतंकवादी संगठन भूल रहे हैं कि कोई भी धर्म मासूम लोगों की हत्या की अनुमति नहीं देता ।
वास्तव में आतंकवाद को किसी धर्म से जोड़ना उचित नहीं है । एक आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता । वह केवल एक हत्यारा होता है । कुछ लोगों के बहकावे में आकर वह मानवता की राह से भटककर अमानुष बन जाता है ।
उसकी किसी से व्यक्तिगत शत्रुता नहीं होती, परन्तु अपने मार्ग-दर्शकों के आदेश पर वह निर्भय होकर किसी की भी हत्या कर, देता है । आतंकवादी के जीवन का एकमात्र लक्ष्य आतंक फैलाना होता है ।
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विभिन्न भयोत्पादक उपायों के द्वारा आतंक फैलाकर आतंकवादी सरकार पर अपनी अनुचित माँगों के लिए दबाव डालने का प्रयास करते हैं ।
इस प्रयास में आतंकवादी अपनी जान जोखिम में डालने से भी नहीं घबराते । आजकल विभिन्न आतंकवादी संगठनों द्वारा ऐसे ही आत्मघाती दस्ते अधिक तैयार किए जा रहे हैं । इन दस्तों में शामिल आतंकवादियों को जान लेने और देने का ही प्रशिक्षण दिया जाता है ।
आज आतंकवाद ने सारे विश्व में युद्ध की सी स्थिति उत्पन्न कर दी है । युद्ध और आतंकवाद में अन्तर केवल इतना है कि युद्ध में दो सशस्त्र सेनाएँ आमने-सामने होती हैं और नियमों के अनुसार दोनों अपने अपने सैन्य बल का प्रयोग करती हैं, जबकि आतंकवाद सभी नियमों को ताक पर रखकर कभी भी कहर बनकर बेगुनाहों पर टूट पड़ता है ।
आतंकवाद के युद्ध में आतंकवादी पक्ष तो पूर्णतया प्रशिक्षित और हथियारयुक्त होता है, लेकिन दूसरा पक्ष निहत्थे आम नागरिक होते हैं । वास्तव में आतंकवाद एक युद्ध नहीं, बल्कि मानवता के शत्रुओं का मानव जाति पर एकतरफा हमला है ।
विश्व के लगभग सभी देश आतंकवाद की समस्या के प्रति चिंतित हैं और आतंकवाद को काबू में करने के यथासम्भव प्रयास कर रहे हैं । परन्तु आतंकवादी संगठनों की शक्ति किसी सेना से कम नहीं है । विभिन्न क्षेत्रों में गुप्त रूप से आतंकवादी संगठनों के प्रशिक्षण शिविर चल रहे हैं । उनके पास आधुनिक हथियारों और गोला-बारूद की भी कमी नहीं है ।
इन आतंकवादी संगठनों को कुछ देशों का समर्थन भी प्राप्त हो रहा है । इस स्थिति में आतंकवाद पर काबू पाना मानव-समाज के लिए अयंत कठिन हो गया है । हमारे देश में कुछ आतंकवादियों ने सरकार के सामने आत्मसमर्पण भी किया है । इन भटके हुए युवा आतंकवादियों ने स्वीकार किया कि उन्हें बहला फुसलाकर धर्म के नाम पर आतंकवादी बनने पर विवश किया गया था ।
उन्होंने अपनी भूल स्वीकार की और प्रायश्चित के लिए हथियार त्याग दिए । आतंकवादी संगठनों में शामिल हुए युवाओं में इसी भावना के जागृत होने की आवश्यकता है तभी आतंकवाद का अन्त हो सकता है ।
2. आतंकवाद की परिणति । Essay on Terrorism for Teachers in Hindi Language
छठी शताब्दी ई.पू. में दो धर्मों का अभुदय गौतम बुद्ध और महावीर जैन के नेतृत्व में हुआ और इन दोनों धर्मों ने संपूर्ण विश्व-समुदाय को शांति और अहिंसा के मार्ग को अपनाने के लिए प्रेरित किया, परंतु छठी शताब्दी ईस्वी में मुहम्मद साहब के नेतृत्व में इस्लामिक धर्म का उदय को मूर्तिपूजा के विरोध में अवश्य हुआ था, परंतु उसकी स्थापना के उद्देश्य अन्य धर्म के अनुयायियों को आतंकित करना नहीं था ।
इस्लाम के सिद्धांतों की गलत व्याख्या कर खलीफाओं ने इस धर्म के अनुयायियों को दिग्भ्रमित किया । इसका परिणाम नकारात्मक हुआ और इस्लामिक कट्टरता के दुष्प्रभावों का शिकार आज भी संपूर्ण विश्व समुदाय को होना पड़ रहा है ।
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वैसे तो विश्व में अनेक प्रकार के आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं और उनका पृथक-पृथक लक्ष्य है परंतु सर्वाधिक संगठित इस्लामिक आतंकवाद ही है और विश्वव्यापी विनाश इसका लक्ष्य है ।
पिछले कई वर्षो में ओसामा बिन लादेन के रूप में इस्लामिक आतंकवादियों का एक ऐसा नेतृत्वकर्ता उत्पन्न हुआ है जिसने संयुक्त राष्ट्र अमरीका जैसे देशों को प्रत्यक्ष रूप से चुनौती देनी शुरू कर दी ।
राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित तीव्र हिंसा का प्रयोग आतंकवाद है । आतंकवाद शब्द का निर्माण ‘आतंक’ और ‘वाद’ से हुआ है । ‘आतंक’ का अर्थ होता है भय और ‘वाद’ का अर्थ होता है अवधारणा । यदि सामान्य अर्थ में देखा जाए तो किसी भी तरह के भय उत्पन्न करने की विधि को आतंकवाद की संज्ञा दी जा सकती हैं ।
आज से विश्व में आतंकवाद सर्वाधिक भयानक समस्या के रूप में उपस्थित है । अपनी-अपनी मांगों की पूर्ति के लिए किया जाने वाला सकारात्मक प्रयत्न (शांतिपरक एवं अहिंसात्मक) आंदोलन कहलाता है और इस व्यापक स्तर पर सहयोग भी प्राप्त होता है किंतु अपनी मांगों की आपूर्ति के लिए किया जाने वाला नकारात्मक प्रयत्न (हिंसा एवं अशांति पर आधारित) आतंकवाद कहलाता है और इसे व्यापक स्तर पर सहयोग की प्राप्ति नहीं होती ।
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विगत कुछ वर्षों में आतंकवाद का स्वरूप और भी भयानक हो गया है । आज इन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनो गतिविधियों का प्रसार करना शुरू कर दिया है । विकासशील राष्ट्र तो लंबी अवधि से आतंकवाद के शिकार रहे हैं परंतु आजकल इस समस्या ने विकसित राष्ट्रों को भी अपनी चपेट में ले लिया है । इस्लामिक आतंकवादी संगठनों ने जब संयुक्त राज्य अमेरिका के तंजानिया (दार-ए-सलाम) और केन्या (नैरोबी) स्थित दूतावासों पर बम विस्फोट कर दिया तब विश्व की सभी प्रमुख शक्तियाँ हतप्रभ हो गईं ।
इस घटना के बाद से इस्लामिक आतंकवाद चर्चा के केंद्र में आ गया । इस समय से सभी अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने आतंकवाद की आलोचना शुरू कर दी । अमरीका ने तो प्रतिक्रियास्वरूप तत्काल अफगानिस्तान और सूडान में आतंकवादियों के ठिकानों पर हमले भी किये थे । इस्लामिक आतंकवाद का स्वरूप बहुत ही वीभत्स है । इसके अनुयायी धार्मिक कट्टरता के आग्रही हैं तथा संपूर्ण विश्व में किसी भी प्रकार से आतंक फैलाने में सक्षम हैं ।
उनके पास विश्व के अधिनूतन शस्त्रास्त्र हैं और उनका संगठन पूर्ण रूप से सैनिक पद्धति पर आधारित है । अब तो इन आतंकवादियों का आत्मघातक दस्ता भी तैयार हो गया है, जो अधिक खतरनाक है । पहले तो ये आतंकवादी किसी स्थान विशेष पर संगठित होकर तबाही मचाते थे परंतु आजकल इन्होंने विश्व के सभी प्रमुख शहरों में अपना प्रसार कर लिया है और मनोवांछित रूप से तबाही मचाने लगे हैं ।
स्थूल रूप से देखने पर आतंकवाद का कोई विशेष लक्ष्य दृष्टिगोचर नहीं होता, किंतु सूक्ष्मतापूर्वक अध्ययन करने पर यह ज्ञात होता है कि इसका लक्ष्य उन देशों को तबाह करना है, जहाँ इसका नहीं है अथवा जहाँ इसके विरोध में गतिविधियाँ चल रही हैं ।
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विश्व के सभी धर्मों में इस्लाम और ईसाई धर्म का प्रसार ही सर्वाधिक हुआ है । वर्तमान ईसाई धर्म के अनुयायी अपेक्षाकृत ज्यादा विकसित हैं और संपूर्ण विश्व राजनीति उनके नियंत्रण में है । इस्लामिक आतंकवाद का प्रभाव संपूर्ण विश्व समुदाय पर हो रहा है । हिंसा एवं अशांति को फैलाने में तो इसका योगदान है ही बहुत से ऐसे राष्ट्र हैं जिनकी विकासात्मक गतिविधियाँ पूर्ण रूप से अवरुद्ध हो गई हैं ।
इससे मानवाधिकारों का हनन भी हुआ है, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने वियना अधिवेशन में आतंकवाद को मानवाधिकार का हननकर्त्ता घोषित किया था । प्रख्यात आतंकवादी सरगना ओसामा बिन लादेन द्वारा बिल क्लिंटन जैसे राष्ट्राध्यक्षों को हत्या की धमकी दिया जाना इस तथ्य को उजागर करता है कि सामान्य आदमी की जिंदगी अब किस प्रकार से आतंकवादियों के हाथों में चली गयी है ।
आतंकवाद तो आतंकवाद है वह चाहे जातीय आधार पर विकसित हो अथवा धार्मिक या क्षेत्रीय भावना के आधार पर । आतंकवाद को किसी भी दृष्टि से न्यायोचित सिद्ध नहीं किया जा सकता ।
वैदिक साहित्य में मानव के लिए महत्वपूर्ण संदेश दिया गया है और यजुर्वेद में लिखा गया है कि ‘मा भे:’, अर्थात न तो भयभीत हों और न ही किसी को भयभीत करने का प्रयत्न करो ।
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आतंक न्याय और मानवता की इस आधारभूत शर्त ‘निर्भयता’ को ही आक्रांत कर अपना आधार विकसित करता है । इसलिए आतंकवाद चाहे धर्म के नाम पर समर्थन पा रहा हो अथवा जातीय हितों के आधार पर उसका प्रतिकार होना ही चाहिए ।
3. जैविक आतंकवाद । Paragraph on Terrorism for School Students in Hindi Language
आज संपूर्ण विश्व जैविक युद्ध की आशंका से चिंतित है । अमरीका पर आतंकवादी हमला किया गया जिसके जवाबी हमले के रूप में अमरीका ने अफ्गानिस्तान पर हमला किया । इसके बाद अमरीका में घातक बीमारी एंथ्रेस के रोगियों की पुष्टि हुई । फ्लोरिडा में एंश्रेक्स पीड़ित रोगी की मौत के साथ ही दुनिया में एक नए प्रकार के आतंकवाद का खतरा सामने प्रकट हुआ ।
विश्व के कई भागों में कई संगठनों और व्यक्तियों को एंथेक्स जीवाणुओं सें भरे पत्र मिलने की पुष्टि हुई है । इन पत्रों में एंथेक्स जीवाणु सफेद पाउडर के रूप में भेजे गए थे । जैविक आतंकवाद या जैविक तथा रासायनिक युद्धों के खतरे ने मानवता को विनाश के कगार पर खड़ा कर दिया ।
यदि आतंकवादियों द्वारा इनका प्रयोग किया गया तो वे मृत्युकारी विषाणुओं तथा जीवाणुओं की वर्षा द्वारा कुछ ही घंटों में लाखों लोगों को मौत के घाट उतार सकतै हैं । एंथ्रेक्स सामान्यत शाकाहारी पशुओं जैसे गाय भैंस बकरी भेड़ हिरन नील गाय इत्यादि में प्राकृतिक रूप से होने वाली एक बीमारी है जो एक प्रकार के जीवाणु बैसीलस एंथ्रेक्स से होती है ।
जिन भौगोलिक क्षेत्रों में शाकाहारी पशु पाए जाते हैं वहां यह बीमारी अधिकतर देखी जा सकती है । दक्षिण मध्य अमेरिका दक्षिण एवं पूर्वी यूरोप एशिया अफ्रीका और मिडिल ईस्ट में सामान्यतया यह बीमारी पायी जाती है ।
एंथ्रेक्स के जीवाणु यदि शरीर में प्रवेश कर जाएं तो इसका तत्काल पता नहीं चल पाता । वायु में फैले एंथ्रेक्स जीवाणुओं के संपर्क में आने के बाद दो दिन के अंदर ही इसके लक्षण प्रकट हो सकते हैं, लेकिन बीमारी विकसित होने में कम से कम छह से आठ सप्ताह तक लग सकते हैं ।
एंथ्रेक्स रोग होने के शुरुआती लक्षणों में बुखार या कफ जैसे रोग होते हैं जिसकी वजह से यदि एंर्श्रेक्स का पूर्ण संदेह न हो तो इसका पता लगाना कठिन हो जाता है । यदि लक्षणों के विकसित होने से पहले ही उपयुक्त एंटी बायोटिक्स न लिए जाएं तो 90 प्रतिशत मामलों में व्यक्ति की मृत्यु निश्चित है ।
एंथ्रेक्स विश्व में पाई जाने वाली सभी बीमारियों में सबसे घातक बीमारी है । इस बीमारी को ‘साइलेंट किलर’ के नाम से भी जाना जाता है । एंथ्रेक्स के जीवाणुओं को जैविक प्रयोगशाला में उत्पादित करना बहुत ही आसान और कम खर्चीला है ।
इसके लिए कोई विशेष या उच्च तकनीक की आवश्यकता नहीं होती तथा इसे बहुत अधिक मात्रा में उत्पादित किया जा सकता है । अपनी शुरुआती तथा प्राकृतिक स्थिति में एंथेक्स मनुष्य को कम गति से संक्रमित करता है किंतु एंशेक्स को फेफड़े में संक्रमण के द्वारा मौत का कारण बनने वाले हथियार में बदलने के लिए आधुनिक तकनीक तथा क्षमता का सहारा लिया जाता है ।
सर्वप्रथम बैसीलस एंथ्रेक्स नामक अवयव को प्रयोगशाला में विकसित किया जाता है । इसके बाद जीवाणुओं को बीजाणुओं में बदला जाता है । बीजाणु के अलग-अलग रहने और हवा में अधिक समय तक बने रहने के लिए इन्हें धूल के कणों के साथ संयुक्त कर दिया जाता है ।
इसके उपरांत हर बीजाणु का आकार लगभग एक माइक्रान के बराबर हो जाता है । मनुष्य इसे तीन प्रकार से ग्रहण कर सकता है । एंथ्रेक्स द्वारा संक्रमित पशु के माँस को खाने से पेट और अति का इंद्रवन हो सकता हे । इसके अतिरिक्त एंश्रेक्स से प्रभावित जानवर के संपर्क में कटी-फटी त्वचा के आने से स्थानीय इमैक्यान या संभवत: सिस्टनिक इंफैक्शन हो सकता है ।
एंथ्रेक्स के स्पोरस को सूंघने से फेफडों का इंफैक्शन हो सकता है । एंथेक्स के रोगी में प्राय: भूख न लगना, जी मिचलाना, आतों में सूजन, उल्टी एवं बुखार के बाद पेट में दर्द आदि लक्षण पाए जाते हैं । बाद में खून की उल्टी व गंभीर दस्त शुरू हो जाते हैं । इस प्रकार एंथ्रेक्स के 25 से 60 प्रतिशत रोगियों की मौत हो जाती है ।
फेफड़ों के लक्षण सामान्यत: जुकाम के लक्षणों से मिलते-जुलते हैं । फेफड़ों का एंथ्रेक्स बहुत घातक होता है जिसमें रोगी की मृत्यु की पूरी संभावना होती है । बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में तत्कालीन सोवियत संघ और अमेरिका समेत कई देशों ने व्यापक जैविक हथियार कार्यक्रमों के अंतर्गत एंथ्रेक्स को विकसित किया ।
वर्ष 1970 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने एक निष्कर्ष के दौरान बताया कि यदि 50 लाख की जनसंख्या वाले क्षेत्र में एंथेक्स जीवाणु गिराए जाए तो करीब ढाई लाख लोग इस घातक बीमारी की चपेट में आ सकते हैं । एंथ्रेक्स के संक्रमण से पूर्व इसका टीकाकरण करवाया जाता है । अमेरिका के द्वारा एंशेक्स का टीका ‘बायोपोर्ट कॉर्पोरेशन लेन्सिंग’ अमेरिका के द्वारा बनाया जा रहा है ।
यह एक कोशिका मुका फिल्टरेट टीका है अर्थात इसके टीके में जिंदा या मृत किसी भी प्रकार का जीवाणु या बैक्टीरिया नहीं होता है । एंथ्रेक्स के प्रभावशाली टीकाकरण हेतु 3 सबक्यूटेनियस इंजेक्मान दो-दो हफ्ते के अंतर में दिए जाते हैं ।
बाद में प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाने हेतु तीन अन्य सब क्यूटेनियस इंजेक्यान दि जाते हैं । आज विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विश्व के सभी देशों को इस घातक बीमारी से लड़ने के लिए रक्षात्मक उपाय करने की सलाह दी है और यह कार्य संपूर्ण विश्व रामुदाय के समन्वित कार्य करने से ही संभव है ।
4. आतंकवाद: मानवता पर एक कलंक । Essay on Terrorism for Teachers in Hindi Language
मनुष्य को अपने गुण कर्म और प्रकृति से शांत अहिंसक और आपसी प्रेम और भाई-चारे जैसी उत्कृष्ट भावनाओं से आप्लावित होकर जीने वाला प्राणी माना जाता है, किंतु कई बार विभिन्न प्रकार की विषम परिस्थितियों के चलते मनुष्य में हिंसक-प्रवृत्तियाँ पनपती देखी गई हैं ।
मनुष्य में हिंसक-प्रवृत्तियाँ बीज रूप में सोई रहती है तथा विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों जैसे: नमी, खाद व पानी आदि पाकर ये बीज अंकुरित हो जाते हैं । मानव की हिंसक मनोवृत्तियों का सर्वाधिक भयावह, विनाशकारी और मानवता विरोधी स्वरूप उग्रवाद या आतंकवाद होता है । यही कारण है कि उसे मानवता को आतंकित करने वाला भीषणतम तत्व माना गया है ।
जहाँ तक आतंकवाद के अभिप्राय का प्रश्न है, विवेकहीन और सिरफिरे लोगों की जघन्यतम हिंसक वृत्तियों उनके क्रियात्मक हिंसक और प्राणहारी रूपों को ही आतंकवाद की संज्ञा दी गई है । आतंकवाद से आज भारत के कुछ भाग ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देश किसी न किसी हद तक व किसी न किसी रूप में प्रभावित हैं। सामान्यत: मनुष्य को एक विवेकशील और समझदार प्राणी माना जाता है ।
किसी प्रकार की समस्या या मतभेद आदि होने पर वह आपस में बातचीत करके अपनी समस्याओं और विवादों को सुलझा सकता है । परंतु कुछ विवेकशून्य और हिंसक मनोवृत्तियों के लोग ऐसे भी होते हैं, जो मानव की तथा स्वयं अपनी विवेकसम्मत वैचारिकता पर विश्वास नहीं करते ।
ऐसे लोग केवल अस्त्र-शस्त्रों और हिंसक उपायों को ही हर प्रश्न और समस्या का हल मानते हैं । ऐसे ही लोगों की हिंसक वृत्तियों से प्रेरित क्रियाकलापों को आतंकवाद की संज्ञा दी जाती है । हिंसक गतिविधियों का सहारा लेकर अपनी अनुचित माँगों को मनवाने की चेष्टा करने वाले व्यक्तियों को ही आतंकवादी कहा जाता है ।
आतंकवाद के जन्म के पीछे मुख्य कारण कुछ लोगों का असंतोष होता है । असंतोष केवल प्रतिक्रियावादी किसी प्रकार की बदले की भावना से उत्पन्न या फिर किसी लोभ-लालच और उकसावे का परिणाम भी हो सकता है ।
जहाँ तक भारत के विभिन्न भागों में जारी आतंकवादी गतिविधियों का प्रश्न है तो कुछ सीमा तक इनकी उत्पत्ति के कारण स्थानीय भी रहे हैं और केंद्र सरकार की उपेक्षा भी उसका एक कारण हो सकती है । लेकिन भारत में जारी आतंकवाद मुख्य रूप से प्रतिक्रियावादी उकसावे तथा बदले की भावना अथवा लोभ-लालच की भावना से ही प्रेरित है ।
नक्सली आतंकवाद सामंती मनोवृत्ति से उत्पन असंतोष का परिणाम तो था ही माओवाद से भी प्रेरित और प्रभावित था । कश्मीर और पंजाब का आतंकवाद विशुद्ध रूप से विदेशी उकसावे बदले की भावना तथा अलगाववाद की भावना भड़काकर या लोभ-लालच देकर उत्पन्न किया गया आतंकवाद है ।
उत्तर-पूर्वी सीमा से लगे राज्यों में जारी हिंसक गतिविधियों में भी कतिपय स्थानीय कारणों से उत्पन्न असंतोष के अलावा कुछ स्वार्थी लोगों की उकसाहट भी काम करती है । भारत में अधिकांश आतंकवादी गतिविधियों का कारण भारत की सहायता से पाकिस्तान के एक भाग का अलग होकर बांग्लादेश का बनना है ।
सीमापार से आतंकवाद को बढ़ावा देकर अब पाकिस्तान भारत से अपना बदला लेना चाहता है । जब आतंकवाद अपने हिंसक और कूरतम रूप में पूरी तरह सक्रिय होता है तो इसका दुष्परिणाम प्राय: निर्दोष आम नागरिकों को ही भोगना पड़ता है । उदाहरण के लिए हम पंजाब और कश्मीर घाटी के आतंकवाद को ले सकते हैं ।
आतंकवाद प्रभावित इलाके के लोग आतंक की ओर छाया में ही जीने का विवश हो जाते हैं । उनका चैन से साँस लेना तक भी दूभर हो जाता है । उनके काम-धंधे लगभग पूरी तरह ठप्प हो जाते हैं । घर-बार छूट जाने और बेघर हो जाने के भय से भी उन्हें दो-चार होना पड़ता है । पंजाब और कश्मीर के आतंकवाद के चलते हजारों लोग शरणार्थी बनकर रहने को विवश हो गए थे ।
यदि ये लोग अपने घरों से मोह के चलते वहीं रहना जारी रखते हैं तो उन्हें अभावों-अभियोगों से भरा जीवन जीने को विवश होना पड़ता है और किसी भी पल प्राण जाने अथवा मान-सम्मान लुट जाने का खतरा भी वे निरंतर झेलते रहते हैं ।
आतंकवाद और आतंकवादी का अपना कोई धर्म या जाति नहीं होती और इसी कारण वह अन्य लोगों की जाति और धर्म का भी सम्मान नहीं करता और सभी के लिए भय का पर्याय होता है । आतंकवादी खुद तो सुरक्षा बलों के भय से आतंक की छाया में नारकीय जीवन जीता ही है उसके आस-पास रहने वाले लोग भी आतंक के साये में जीने को विवश होते हैं ।
ये कठोर हृदयी आतंकवादी स्त्री-पुरुषों बच्चों-बूढ़ों किसी पर भी दया नहीं करते । स्त्रियों के सतीत्व के साथ खिलवाडू करना इन हिंसक पशुओं का आम व्यवहार बन जाता है । ये वैयक्तिक सामूहिक सभी तरह की हत्याओं जैसे जघन्य कर्म आए दिन करते रहते हैं ।
अस्त्र-शस्त्रों की प्राप्ति के लिए धन आदि की लूटपाट तथा अपहरण आदि के माध्यम से अपनी अनुचित मांगों को पूरा कराने की चेष्टाओं में भी ये लोग लिप्त रहते हैं । इस प्रकार हिंसक आतंकवाद का सक्रिय स्वरूप और प्रभाव बड़ा ही घिनौना है ।
आतंकवाद के स्वरूप, कारण, सक्रियता और प्रभाव आदि का नियंत्रण करने के बाद इस समाप्त करने के दो ही उपाय कहे जा सकते हैं: यदि आतंकवाद स्थानीय कारणों या केंद्र सरकार के प्रति असंतोष की उपज है तो उन कारणों को ढूँढकर व उन्हें दूर करके उसक उस्तान सहज ही किया जा सकता है । यदि वह दुर्भावनाओं से प्रेरित आतंकवाद है, तो एस आतंकवाद को पूरी ताकत के साथ कुचल देना ही श्रेयस्कर होता है ।
5. आतंकवाद विश्व के लिए एक गम्भीर समस्या है । Essay on Terrorism for College Students in Hindi Language
आतंकवाद समस्या का वास्तविक व अंतिम समाधान अहिंसा द्वारा ही संभव है । आतंकवाद को परिभाषित करना सरल नहीं है । क्योंकि यदि कोई पराजित देश स्वतंत्रता के लिए शस्त्र उठाता है तो वह विजेता के लिए आतंकवाद होता है ।
स्वतंत्रता के लिए भारतीय क्रांतिकारी प्रयास अंग्रेजों की दृष्टि में आतंकवाद था । देश के अंदर आतंकवाद व्यवस्था के प्रति असंतोष से उपजता है । यह अति शोषण और अति पोषण से पनपता है । यदि असंतोष का समाधान नहीं किया जाए तो वह विस्फोटक होकर अनेक रूपों में विध्वंस करता है और निरपराधियों के प्राणों से उनकी प्यास नहीं बुझती ।
आतंकवाद को निष्प्रभावी बनाने के लिए उनको जीवित रखने वाली परिस्थितियों को नष्ट करना आवश्यक है । असहिष्णुता, अवांछित अनियंत्रित लिप्सा, अत्याधुनिक शस्त्रों की सुलभता आतंकवाद को जीवित रखे हुए है । पूर्वांचल का आतंकवाद व कश्मीर का आतंकवाद धर्मों के नाम पर विदेशों से धन व शस्त्र पाकर पुष्ट होता है ।
वर्तमान में आतंकवाद हमारे देश के लिए ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक समस्या बन गया है । आतंकवाद से अभिप्राय अपने प्रभुत्व व शक्ति से जनता में भय की भावना का निर्माण कर अपना उद्देश्य सिद्ध करने की नीति ही आतंकवाद कहलाती है । हमारा देश भारत सबसे अधिक आतंकवाद की चपेट में है ।
पिछले दस-बारह वर्षों में हजारों निर्दोष लोग इसके शिकार हो चुके हैं । अब तो जनता के साथ-साथ सरकार को भी आतंकवाद का सामना करना पड़ रहा है । वर्तमान शासन प्रणाली तथा शासकों को हिंसात्मक हथकंडे अपनाकर समाप्त करना या उनसे अपनी बातें मनवाना ही आतंकवाद का मुख्य उद्देश्य है ।
भारत में आतंकवाद की शुरुआत बंगाल के उत्तरी छोर पर नक्सलवादियों ने की थी । 1967 में शुरू हुआ यह आतंकवाद तेलंगाना, श्री काकूलम में नक्सलियों ने तेजी से फैलाया । 1975 में लगे आपातकाल के बाद नक्सलवाद खत्म हो गया । आतंकवाद के मूल में सामान्यत: असंतोष एवं विद्रोह की भावनायें केन्द्रित रहती हैं ।
धीरे-धीरे अपनी बात मनवाने के लिए आतंकवाद का प्रयोग एक हथियार के रूप में किया जाना सामान्य सी बात हो गयी है । तोड़-फोड़, अपहरण, लूट-खसोट, बलात्कार, हत्या आदि करके अपनी बात मनवाना इसी में शामिल है । असंतुष्ट वर्ग चाहे वह राजनीतिक क्षेत्र में हो या व्यक्तिगत क्षेत्र में अपनी अस्मिता प्रमाणित करने के लिए यही मार्ग अपनाता है ।
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आज देश के कुछ स्वार्थी तत्वों ने क्षेत्रवाद को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है इससे सांस्कृतिक टकराव, आर्थिक विषमता, भ्रष्टाचार तथा भाषायी मतभेद को बढ़ावा मिल रहा है । ये सभी तत्व आतंकवाद का पोषण करते हैं ।
भाषायी राज्यों के गठन में भारत में आतंकवाद को पनाह दी । इन प्रदेशों के नाम पर जमकर खून-खराबा हुआ । मिजोरम समस्या, गोरखालैण्ड आन्दोलन, कथक उत्तराखंड, खालिस्तान की मांग जैसे कई आन्दोलन थे जिन्होंने क्षेत्रवाद को बढ़ावा दिया ।
पंजाब में खालिस्तान की मांग ने विकराल रूप धारण कर लिया । वहां पर 1980 में राजनीतिक सरगर्मियां इस मांग को लेकर तेज हो गयी थीं । इस दौरान आपातकाल के बाद पुन: प्रधानमंत्री बनी इंदिरा गांधी ने भिंडरवाला को शह दी । इस पर भिंडरवाला ने वहां पर तानाशाही रवैया अपनाते हुए जिसने भी उसके खिलाफ आवाज उठायी उसे कुचल दिया ।
अनेक पत्रकार, पुलिस अफसर व सेना अधिकारी उसकी इस तानाशाही के शिकार हुए । वहा स्थिति बेकाबू हो गयी थी । अमृतसर का स्वर्ण मंदिर आतंकवादियों का गढ़ बन गया था । उस पर विजय प्राप्त करने के लिए सैनिक बल का प्रयोग किया गया । बाद में भिंडरवाला की तानाशाही का अंत हो गया । इस तरह पंजाब में आतंकवाद की शुरूआत हुई ।
बाद में श्रीमती गांधी की हत्या उन्हीं के एक सिक्ख अंगरक्षक ने कर दी । इस प्रकार पंजाब में आतंकवादी गतिविधियां दिन-ब-दिन बढ़ती चली गईं । हालांकि प्रशासनिक व राजनीतिक कुशलता ने स्थिति को काफी हद तक संभाल लिया । अन्यथा खालिस्तान की मांग पाकिस्तान की मांग का रूप धारण करती जा रही थी ।
वर्तमान में कश्मीर समस्या आतंकवाद का कारण बनी हुई है । हालांकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही कश्मीर में घुसपैठिये हथियारों की समस्या उत्पन्न हो गयी थी । भारत पाक सीमा पर आतंकवादियों से सेना की मुठभेड़ आम बात हो गयी थी ।
अंतत: यह समस्या कारगिल युद्ध के रूप में सामने आई । आज वर्तमान में भी पाकिस्तान की सीमा पार से आतंकवादी गतिविधियां जारी हैं । कथित पाक प्रशिक्षित आतंकवादियों द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में बम विस्फोटों की घटनायें देखने को मिल रही हैं । भारतीय संसद पर हमला, गुजरात का अक्षरधाम मंदिर हमला, जम्मू के रघुनाथ मंदिर पर हमले की कार्यवाही आतंकवाद का ही हिस्सा है ।
हमारा देश ही नहीं आतंकवाद से और भी कई राष्ट्र पीड़ित हैं । सन् 2001 में 11 सितम्बर को विश्व के सबसे खतरनाक आतंकवादी ओसामा बिन लादेन ने विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर को धराशायी कर दिया । इसके अलावा विश्व की सबसे सुरक्षित इमारत समझी जाने वाले पेन्टागन पर भी अपहृत विमान को गिरा दिया । घटना में हजारों लोग मारे गये ।
घटना के बाद कई माह तक अमेरिका ओसामा बिल लादेन को ढूंढता रहा लेकिन वह उसके हाथ नहीं चढ़ सका । अब तक की विश्व इतिहास में आतंकवाद की यह सबसे बड़ी घटना थी । इसी तरह 13 दिसम्बर 2001 को 11 बजकर 40 मिनट पर भारत के संसद भवन पर भी आतंकवादियों ने हमला किया ।
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इसमें हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिल पायी और संसद भवन के सुरक्षाकर्मियों के साथ हुई मुठभेड़ में हमले को अंजाम देने आये आतंकवादियों को मार गिराया गया । आतंकवादी ए.के. 47 राइफलों और ग्रेनेडों से लैस थे । ये उग्रवादी एक सफेद एम्बेसडर कार से संसद परिसर में घुसे थे । कार में भारी मात्रा में आर.डी.एक्स था ।
संसद भवन में घुसते समय इन्होंने उपराष्ट्रपति के काफिले में शामिल एक कार को भी टक्कर मारी थी । सुरक्षाकर्मियों तथा आतंकवादियों के बीच करीब आधे घंटे तक गोलीबारी जारी रही । इस दौरान संसद भवन परिसर में दहशत और अफरातफरी का माहौल था । यदि आतंकवादी अपने मकसद में सफल हो जाते तो कई केन्द्रीय मंत्रियों सहित सैकड़ों सांसदों को जान से हाथ धोना पड़ता ।
इस घटना की विश्व के अधिकांश देशों ने निन्दा की और आतंकवाद को समाप्त करने का संकल्प लिया । अमेरिका के वर्ड ट्रेड सेन्टर व पेन्टागन पर हुए आतंकवादी हमले ने आतंकवाद को अंतर्राष्ट्रीय रूप दे दिया । आतंकवाद के मूल में राजनीति का अपराधीकरण होना तो एक वजह है ही लेकिन वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की भूमिका भी इसके लिए कम उत्तरदायी नहीं है ।
आतंकवाद के नाम पर विभिन्न राष्ट्रों द्वारा एक दूसरे पर दोषारोपण करना आम बात हो गयी है । भारत में आतंकवादियों की बढ़ती गतिविधियों को देखते हुए कुछ राष्ट्र भारत को समर्थन देने के नाम पर लामबंद होने की बात करने लगे हैं । एक समय पाकिस्तान का समर्थक रहा अमेरिका भी अब पाकिस्तानी आतंकवाद से परेशान है ।
कुल मिलाकर यदि इस पर जल्द ही काबू न पाया गया तो यह समूचे विश्व के लिए घातक सिद्ध हो सकता है । इसलिए जरूरी है कि आतंकवाद पर विजय प्राप्त करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक, सामाजिक आदि सभी स्तरों से प्रयास किये जाएँ ।