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Here is an essay on transportation in India especially written for school and college students in Hindi language.

बात करते हैं परिवहन विभाग की । जहां ड्राईविंग लाइसेंस व गाडियों के परमिट बनाये जाते हैं । इसमें तो ज्यादा बताने की आवश्यकता नहीं है । 

ये तो सर्व विदित है कि वहां तो सभी कार्य दलालों के माध्यम से कराया जाता है चाहे गाड़ी का परमिट प्राप्त करना हो या ड्राईविंग लाईसेंस बनवाना हो तो आप दलाल से सम्पर्क करें और उसको आवश्यक दस्तावेज के साथ सुविधा शुल्क भी दें तो वो आपको लाईसेंस परमिट आसानी से  उपलब्ध करा देगा और यदि आप वैधानिक तरीके से ड्राईविंग लाइसेंस प्राप्त करना चाहते हैं तो पहले तो आपको लिखित परीक्षा देनी होगी उस परीक्षा में आपको निश्चित ही अनुतीर्ण कर दिया जायेगा और किसी कारणवश आपने लिखित परीक्षा उत्तीर्ण भी कर ली तो आपके दस्तावेजों में कुछ न कुछ कमी बताकर परिवहन विभाग के बाबू लोग आपको परेशान करते रहेंगे ।

यदि आपने उक्त बाबू को सुविधा शुल्क दे दी तो तुरन्त ही आपको ड्राईविंग लाईसेंस मिल जायेगा । अंधे और लंगड़े लोगों को भी ड्राईविंग लाइसेंस जारी करने के उदाहरण हमारे देश में देखने को मिले हैं । जानकारों के अनुसार परिवहन विभाग के लाईसेंस विभाग व परमिट विभाग के बाबू की औसतन मासिक आमदनी नोएडा जैसी जगह पर 70 हजार से 1 लाख रूपये मासिक है जो करोड़ों की चल-अचल सम्पत्ति के मालिक हैं जिनका आयकर विभाग भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।

राज्य परिवहन निगम की गाड़ियों के ड्राईवर व कंडेक्टर (चालक व परिचालक) की कमाई का तरीका कुछ इस प्रकार है कि माना कोई गाड़ी दिल्ली से कानपुर के लिए चलती है तो उसमें कानपुर तक जाने वाले यात्रियों के ही टिकिट बनाये जाते हैं बाकी बीच में आने वाले शहरों के यात्रियों को किराया लेकर बिना टिकिट ही यात्रा करा दी जाती है उससे आने वाले किराये को चालक व परिचालक आपस में बाँट लेते हैं तो इस प्रकार राज्य परिवहन निगम की आमदनी कम तथा चालक व परिचालक की आमदनी ज्यादा होती है ।

ऐसा ही कुछ हाल भारतीय रेलवे का भी है जिसमें सबसे पहले घोटाला आरम्भ होता है आरक्षण खिड़की से । जहां दलाल सक्रिय रहते है जो रेलवे कर्मचारियों से मिलकर पहले ही सीटें आरक्षित करा लेते हैं और आम जनता जब आरक्षण के लिए जाती है तो उनको वेटिंग ही मिलती है ।

दलाल अपना व रेलवे कर्मचारी का हिस्सा लेकर आरक्षित टिकिट को मुनाफे में बेच देता है और आम आदमी जो ज्यादा पैसा वहन करने की स्थिति में नहीं होता वह बेचारा वेटिंग टिकिट पर यात्रा करता है और सीट पक्की कराने के लिए या तो टिकिट चेकर को 100/200 रूपये तो शयनयान श्रेणी में ही दे देता है नहीं तो बिना सीट के ही यात्रा करता है ।

टिकिट चेकर व आर.पी.एफ. के जवानों का एक दूसरा खेल देखिए जो गाडियां पूर्वांचल या बिहार से दिल्ली आती हैं उनमें आर.पी.एफ. के जवान टिकिट चेकर व रेलवे ड्राईवर आपस में गठजोड़ कर बिना टिकिट यात्रियों को सवार करा लेते हैं । तथा उनसे अवैध वसूली कर उनको जंक्सन से थोड़ा पहले हल्का सा ब्रेक देकर उतार दिया जाता है ।

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जिसमें रेलवे ड्राईवर, आर.पी.एफ. के जवान तथा टिकिट चेकर का अपना-अपना हिस्सा तय होता है जो अच्छी खासी रकम इस तरह कमा लेते हैं साथ ही रेलवे में टिकिट चेकर का एक खेल और भी है वो है सामान्य श्रेणी का टिकिट लेकर आरक्षित श्रेणी में यात्रा कराने का ।

जिसमें यात्री टिकिट चेकर को सुविधा शुल्क देकर उचित श्रेणी में यात्रा करता है तथा गाडी चेक होने पर चेकिंग स्टाफ से बचाने का कार्य भी टिकिट चेकर ही करता है । टिकिट चेकर उस यात्री को अपना साथी या रिश्तेदार जो भी उचित समझता है मौके पर चेकिंग स्टाफ को बताता है ।

इस प्रकार भारतीय रेलवे में टिकिट चेकर, आर.पी.एफ. और रेलवे ड्राईवर अपने कर्त्तव्य का पालन करते हैं । रेलवे में भर्ती घोटाले का खुलासा सी.बी.आई. द्वारा मुम्बई भर्ती रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष एस.एस. शर्मा के बेटे, रायपुर के तत्कालीन ए.डी.आर.एम. व स्वयं अध्यक्ष एस.एस. शर्मा समेत 10 लोगों को गिरफ्तार करके किया जो भर्ती परीक्षा का प्रश्नपत्र अभ्यार्थियों को परीक्षा से 1-2 दिन पहले लाखों रूपये में बेचते थे ।

करोड़ो रूपये के इस रेलवे भर्ती घोटाले में बोर्ड अध्यक्ष की संलिप्तता इंगित करती है कि कि किस तरह भारत में परीक्षाओं का संचालन व अपने हित के लिए दुरूपयोग होता है । इस प्रकार रेलवे में भर्ती व यात्राएं की जाती हैं जिसमें अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक सब संलिप्त है तथा रेलवे का कम व अपना लाभ अधिक अर्जित कर रहे हैं । पंजाब लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष रहे सिंधु का प्रकरण भी किसी से छुपा नहीं है जिसने राज्य लोग सेवा आयोग की परीक्षा तक की पवित्रता को नष्ट किया था ।

ऐसे लोगों को देश की कोई परवाह नहीं है । परवाह है तो केवल अपने धन कमाने की । शर्म आनी चाहिए ऐसे अधिकारियों को जो केवल और केवल अपने स्वार्थ के लिए सरकारी सेवा में हैं । उनको देश सेवा से कोई लेना-देना नहीं हैं ।

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