राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष मौजूद खतरे पर निबंध | Essay on Dangers to National Security in Hindi!
भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा को हानि पहुंचाने वाले तत्त्वों की जानकारी आम नागरिक को नहीं है । आज के हालात में बाहरी और आंतरिक सुरक्षा में भेद करना कठिन हो गया है । हमारी सुरक्षा को वास्तविक खतरा गुप्त कार्रवाइयों, विद्रोही और आतंककारी गतिविधियों से है ।
जम्यू-कश्मीर में लम्बे समय तक चला आन्दोलन इसका ताजा उदाहरण है । सुरक्षा एजेंसियों को इस बात को मानने में कोई परहेज नहीं है कि इन आन्दोलनों में हिंसा फैलाने वालों में पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकवादियों का हाथ था । जम्मू-कश्मीर मुस्लिम बहुल राज्य है ।
यही वजह है कि आतंककारी आसानी से यहा के नागरिकों में घुल-मिल जाते हैं । धर्म और जाति के नाम पर लोगों में फूट और उनमें मुकाबले की स्थिति उत्पन्न कर अपने आतंककारी मंसूबों में आसानी से कामयाब हो सकते हैं । राष्ट्रीय सुरक्षा, पर प्रभाव डालने वाले कुछ मुख्य बिन्दुओं पर हम यहाँ विचार करेंगे ताकि महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर आम आदमी में जागरूकता बढ़ाई जा सके ।
पाक प्रायोजित आतंकवाद:
भारत को स्थायी रूप से हानि पहुंचाने की पाकिस्तान की क्षमता भले ही धीरे-धीरे घटती जा रही है, लेकिन पाकिस्तान मौन रहकर राजनीतिक और सैन्य रूप से विरोधी रूख अपनाए रह सकता है । यह सम्भव है कि पाकिस्तान में उग्रवादी दल काबिज हो जायें और तालिबान की तरह पाकिस्तान सरकार से हमें बातचीत समझौते के लिए कोई समुचित उपाय निकालना पड़े ।
बांग्लादेशियों की बढ़ती घुसपैठ:
बांग्लादेश से भारी संख्या में लोगों के पलायन कर भारत में आने की समस्या पर तुरन्त ध्यान दिये जाने की जरूरत है । इस मुद्दे पर बांग्लादेश सरकार के साथ बातचीत कर एक व्यापक नीति बनाने की जरूरत है सिर्फ समय-समय पर होने वाली वार्ताओं और तदर्थ उपायों से अवैध बांग्लादो,शेयों की इस ‘बाढ़’ को नहीं रोका जा सकता है ।
भारत में जातीय, धार्मिक और सामाजिक-आर्थिक हिंसा:
कुछ गलत नीतियों और राजनीतिक एजेण्डों के चलते उत्पन्न आतरिक हिंसा ने बाहरी खतरों की अपेक्षा आन्तरिक सुरक्षा को ज्यादा प्रभावित किया है । समुदायों के बीच उत्पन्न समस्याओं को ज्यादा लम्बे समय तक अटकाए रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए । यदि ये समस्याएं उत्पन्न होती हैं, तो इसे सभी राजनीतिक दलों के प्रयास से सुलझाया जा सकता है । धार्मिक और जातीय दंगे, मन्दिर-मस्जिद विवाद जैसी समस्याओं को शीध्र सुलझाना चाहिए । यदि ऐसी समस्याएं जारी रहती हैं तो देश के वातावरण में केवल जहर ही घुलेगा ।
बाहरी तत्त्वों का अलगाववाद को समर्थन:
बाहरी तत्त्वों द्वारा अलगाववादी आन्दोलनों और आतंककारी गतिविधियों को दिये जा रहे समर्थन को केवल पुलिस बल के सहारे ही नियंत्रित नहीं किया जा सकता । इसके लिए उचित राजनीतिक पहल की जरूरत है । हिंसात्मक आन्दोलनों पर नियंत्रण पाने के लिए हमें पिछड़े लोगों के आर्थिक उत्थान और उनके सामाजिक और राजनीतिक कल्याण के लिए कार्य करना होगा ।
समाज का धार्मिक ध्रुवीकरण:
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धार्मिक ध्रुवीकरण हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बहुत खतरा बन जायेगा । इसका आर्थिक सुदृढ़ता और राष्ट्रीय विकास पर असर पडेगा । हमारे शत्रुओं और सहयोगियों की सैन्य और आर्थिक क्षमताओं का आकलन किया जाना चाहिए, ताकि हम पूरी तैयारी के साथ उचित रक्षात्मक उपाय करने में समर्थ हो सकें । इस्लामिक कट्टरवाद की गिरफ्त में हम और ज्यादा आये हैं जिससे आन्तरिक अन्तर्द्वंद्व और हिंसा को बढ़ावा मिला है । बढ़ते खतरों को देखते हुए योजनाएं बने तथा इसे नियमित रूप से ‘अपडेट’ किया जाये ।
इसके कुछ उपाय नीचे दिये जा रहे हैं:
i. आतंकवाद और विद्रोह से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में सुधार किये जायें । जरूरत पड़ने पर सैन्य मदद ली जाये ।
ii. कुछ भागों में स्थायी रूप से आतंकवाद और विद्रोह से निपटने के लिए तंत्र स्थापित किया जाये ।
iii. प्रभावित क्षेत्रों में तटस्थ नागरिकों के संरक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण कदम उठाने के साथ ही शांति योजनाएं चलाई जाये ।
iv. सुरक्षा बलों को संचार के आधुनिकतम साधन उपलब्ध कराए जायें ।
v. खतरे की पूर्व चेतावनी के लिए बेहतर सूवना तत्र बने ।
आतंकवादियों के क्षेत्रीय सम्यकों को खत्म करने के प्रयास किये जाने चाहिए । इनमें से कुछ निम्न हैं:
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i. भारत के बड़े भू-भाग में नक्सली गतिविधियां संचालित हैं । नक्सली अक्सर नेपाल के माओवादी संगठन से हाथ मिला लेते हैं । वे हथियार हासिल करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से भी सम्पर्क जोड़ लेते हैं ।
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ii. सशस्त्र नागा विद्रोही म्यामार के जनजातीय इलाकों में शरण पा लेते हैं और उनसे जाति के आधार पर संबंध जोड़ लेते हैं ।
iii. असम (असोम) के अलगाववादियों का आईएसआई और बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठनों से तालमेल ।
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iv. कश्मीर के आतंकवादियों का पाकिस्तान के कट्टरपंथियों से धार्मिक और जातीय संबंध ।
देश के समक्ष मौजूद हर तरह के खतरों, जिसमें हमारे शत्रुओं, अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू आतंकवादियों, विद्रोहियों और संगठित अपराधी गिरोहों से मिलने वाली सभी तरह की धमकियां हैं, पर हमें अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए ।
आन्तरिक अशांति, विद्रोह, आतंकवाद और संगठित अपराध से जुड़े तत्त्वों को हमें कुचल देना चाहिए । बाहरी ताकतें और अंदरूनी सामाजिक सकट देश के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता को हानि पहुंचाते हैं । उनके साथ सख्ती से पेश आते हुए उन्हें कुचल देना चाहिए । आम आदमी को इस बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए और राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने वाले मामलों में उन्हें शामिल करना चाहिए ।