मँहगाई की मार पर निबन्ध | Essay on Inflation in Hindi!
मँहगाई या मूल्य वृद्धि केवल एक सामाजिक समस्या ही नहीं वरन एक आर्थिक समस्या भी है । आज विश्व बाहरी तौर पर हमें महान भले ही मान रहा हो, गाँधी के नाम की माला को जप रहा हो किन्तु वह हमारी आन्तरिक दुर्बलता से भली- भाँति परिचित है ।
वह है हमारी व्यवस्था तथा शासन में आर्थिक अनुशासन की कमी जिसका परिणाम हमें मँहगाई के रूप में देखने को मिलता है । इस मूल्य वृद्धि से जनजीवन बहुत ही त्रस्त हो गया है ।
आज का प्रत्येक विक्रेता अधिक से अधिक लाभ कमाने के चक्कर में है, यदि किसी वस्तु के भाव की वृद्धि का तो तुरन्त विक्रेता पहले से दुकान पर वर्तमान वस्तु के दाम एकदम बढ़ा देता है, जबकि नवीन वसुर यदि महँगी खरीदे तो उसे अधिक मूल्य पर देनी चाहिए । परन्तु पुरानी वस्तु को उसे पिछले भाव – में देना चाहिए ।
कभी-कभी तो बढ़े मूल्य से भी अधिक मूल्य पुरानी बस्तुओं पर वह ले लेता है, यही अधिक लाभवृत्ति ही मूलय वृद्धि कहलाती है । ये कारण एक नैतिक कारण है । जिससे मँहगाई फैलती है किन्तु एक दूसरी वजह सरकार का व्यापारियों पर अन्धाधुन्ध कर लगाना तथा अफसरशाही द्वारा व्यापारी वर्ग को परेशान करके घूस के रूप में पैसा खींचना ।
तंग आकर व्यापारी वर्ग के सामने मूल्य बढ़ाने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं रह जाता । जो इम्पोर्टर हैं (आयातकर्त्ता) उनके माल पर इतना सीमा शुल्क लगा दिया जाता है कि वे भी बाजार में वस्तुओं के दाम बढ़ाने के लिये मजबूर कर दिये जाते है ।
इसके अतिरिक्त विचार करने पर माँहगाई के अनेक कारण दृष्टिगोचर होते हैं, जिनमें से मुख्य इस प्रकार हैं:
(1) उत्पादन की कमी:
अर्थशास्त्र का सिद्धान्त है की यदि उत्पादन कम हो और
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उपभोग या माँग अधिक हो तो मूल्य की स्वाभाविक रूप से वृद्धि होती है ।
(2) व्यापारी वर्ग द्वारा मुनाफाखोरी तथा जमाखोरी की प्रवृति:
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विशेष रूप से व्यापारी वर्ग उस समस्या को भयंकर बनाने में भरसक प्रयत्नशील है । वह वस्तुओं को अवैध रूप से इकट्ठा करके जमा करता है । फिर बाजार में कृत्रिम अभाव उत्पन्न कर देता है । आज का भौतिकवादी मानव वस्तुओं को खरीदने के लिए विवश होकर उसको बढ़े मूल्यों पर वस्तुओं को खरीदता है ।
(3) काला धन:
वाँचू कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार देश में सात हजार करोड़ रुपयों का काला धन है । इस धन से अनुचित रूप से जमाखोरी, करों की चोरी तथा विदेशों में तस्करी व्यापार हो रहा है, जिससे मूल्य वृद्धि हो रही ।
(4) जनसंख्या वृद्धि:
इन 40 वर्षों में भारत की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई है । इसके लिए अधिक अन्न व वस्त्रादि की आवश्यकता पड़ती है । हमारी सरकार इसकी पूर्ति के लिए जितने प्रयत्न करती है, वे सब बढ़ोतरी की मात्रा में न्यून पड़ जाते हैं। अवश्यकता से कम वस्तुओं की उपलब्धि होने से मूल्य वृद्धि का होना स्वाभाविक है।
(5) दोषपूर्ण वितरण प्रणाली:
देश में वितरण का प्रबन्ध भी उचित नहीं है । बहुत- सी वस्तुएँ तो मार्ग में तथा गोदामों में ही नष्ट हो जाती हैं, जिससे वस्तुओं की कमी होने पर महँगाई हो जाती है ।
(6) भ्रष्टाचार:
इसके कारण भी तेजी आती है । लोगों की भ्रष्ट नीतियों से विकास योजनाएँ समय पर पूर्ण नहीं होती है, पुलों व सड़कों आदि को मिलावट के सीमेन्ट आदि से बनाया जाता है, जिससे वे जल्दी टूट जाते हैं और पुन: बनवाने में पर्याप्त व्यय होता है । इससे सामान का अभाव होता है और तेजी की वृद्धि होती है ।
मूल्य वृद्धि के दुष्परिणामों को देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि समस्या अति विकराल है, इसका समाधान करना ही होगा ।
मूल्य वृद्धि के समस्त कारणों को दूर करने के लिए उपाय निम्न हैं:
1. जनसंख्या पर नियन्त्रण:
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यद्यापि सरकार ने ‘ परिवार नियोजन ‘ विभाग खोल रखा है, परन्तु कार्य जिनन हाना चाहिए उतना नहीं हो रहा है । यदि सही अर्थों में यह कार्य पूर्ण हो जाय, तो वस्तुओं की कमी नहीं हो और मूल्य वृद्धि पर अंकुश लग जाय।
2. उत्पादन में वृद्धि:
सरकार क्र कृषि उत्पादन तथा उद्योग – धन्धों पर विशेष ध्यान देना चाहिए जिससे वस्तुओं की मात्रा, तो कीमतें स्वयंमेव कम हो जाएगी ।
3. बहिष्कार प्रवृत्ति:
उपभोक्ता संग्रह वृत्ति व अधिक मूल्य की वस्तुओं का बहिष्कार करें । गृहणियाँ कम संग्रह व कम वस्तु में कार्य चलाने का प्रयास करें, इससे मूल्य वृद्धि रूकेगी ।
4. कानून द्वारा:
सरकार एव जनता दोनों को चाहिए कि जमाखोर एवं मुनाफाखोर व्यापारियों के प्रति कड़ा व्यवहार करे । सरकार इनको पर्याप्त दण्ड दे और जनता इनकी समाज में भर्त्सना करे । इससे भी मूल्य वृद्धि रूकेगी । टैक्स प्रणाली सरल की जाये ताकि व्यापारी वर्ग में निराशा उत्पन्न न हो और वह वस्तुओं के दामों को बढ़ाने पर मजबूर न हो ।
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हमारी जनप्रिय सरकार महँगाई रोकने के अनेक प्रयत्न कर रही है । उद्योगों तथा कृषि के लिए विकास योजनाएँ बन रही हैं । देश में बाजार तथा उपभोक्ता भण्डार खुल रहे हैं । सरकार को वितरण प्रणाली में भी आमूल-चूल परिवर्तन करना चाहिए । यद्यपि देश के बड़े-बड़े नेता, शिक्षाशास्त्री, अर्थशास्त्री एवं प्रशासक महँगाई की विकराल समस्या के समाधान में लगे हैं । इसी में सबका कल्याण है ।