कचहरी का एक दृश्य पर अनुच्छेद | Paragraph on A View of Court in Hindi
प्रस्तावना:
कुछ दिन पूर्व मुझे अपने नगर इन्दौर जाने का मौका मिला । मेरे पिता ने अपने एक वकील मित्र से मिलने के लिए मुझे कचहरी भेजा था ।
मैं कचहरी में उनके चैम्बर मे गया, लेकिन वे वही नहीं थे । वहाँ एक आदमी ने बताया कि वे किसी मुकदमे के सिलेसिले में अदालत गए हैं । वह यह नहीं बता पाया कि वे किस मजिस्ट्रेट की अदालत में गए हैं । कई मजिस्ट्रेटों के कमरे झाकने के बाद वे मुझे जिलाधीश की अदालत में दिख गए । मैं उनसे वहीं जाकर मिला । मुझे वे वही त्यरत्त थे अत: उन्होंने मुझे से कहा कि मैं उनके चैम्बर में प्रतीक्षा करू । कुछ देर बाद वे वहीं आकर मुझसे मिलेंगे ।
वकीलों के कमरे:
कचहरी के एक तरफ कुछ कमरे बने हुए थे कुछ जिनमें प्रसिद्ध वकीलों के चैम्बर थे । उनके बाहर उनके नाम का बोर्ड लगा था । एक बड़ा-सा बार रूम भी था, जिसमे अनेक वकील, टाइपिस्ट आदि अपनी-अपनी मेजों पर बैठे थे । कुछ वकील अखबार पढ़ रहे थे व कुछ सिगरेट का आनन्द उठा रहे थे । कुछ लोग मुवक्किलों से बातचीत कर रहे थे । मैं थोड़ी-सी देर वकील साहब के चैम्बर में बैठा और फिर कचहरी का नजारा देखने बाहर निकल पड़ा ।
अदालतों के दृश्य:
कचहरी के मुख्य भवन में अनेक कमरे थे । इन कमरों में न्यायाधीश बैठे हुए थे और मुकदमे सुन रहे थे । मैंने झाँक कर देखा कि एक कमरे में दो पुलिस वाले एक अभियुक्त के दोनों ओर खड़े थे । अभियुक्त के दोनों हाथों में हथकडियाँ लगी थी, जिसके बीच से एक रस्सी बंधी थी ।
पुलिस वाला वह रस्सी पकड़े था । न्यायाधीश के मंच के नीचे एक महिला खड़ी थी । वह अपने तीन-चार रिश्तेदारों से घिरी थी । वहाँ काला चोगा पहिने चार वकील भी थे । सम्भवत: दो-दो वकील क्रमश: अभियुक्त तथा उस महिला की ओर से थे ।
वकीलों के साथ उनके मुन्शी थे जिनके हाथ में फाइलें व कुछ कानूनी किताबें थीं, ताकि आवश्यकता पड़ने पर उन्हें न्यायार्धोश को दिखाया जा सके । वकीलों की बहरा चल रही थी । न्यायाधीश ध्यान से उनके बाते सुनता जाता और बीच-बीच में कुछ नोट कर लेता । कभी-कभी वह वकीलों से कुछ पूछ लेता और उनकी उत्तर पर कुछ टिप्पणी लिख लेता ।
टाइपिस्ट, पेटीशन लिखने वाले आदि:
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अदालत के इस दृश्य को देखने के बाद मैंने देखा कि कुछ दूरी पर मैदान में जगह-जगह पर पाँच-रनात आदमियों कै अलग-अलग कई झुंड थे । नजदीक जाकर मैंने पाया कि मैदान में पेडों के नीचे छोटे-छोटे डेस्कों पर कुछ टाइपिस्ट और पेटीशन लिखने वाले बैठे है ।
यही लोगों के हलफनामे और पेटीशन आदि लिखे जा रहे थे और टाइपिस्ट उन्हें टाइप करने में लगे थे । वे काम की सौदेबाजी भी कर रहे थे । काम समाप्त होने के बाद पैसे लेकर वे ग्राहको को उनके कागज-पत्र दे देते थे । कुछ पेडों के नीचे वकीलों के मुन्शी व दलाल भी बैठे हुए थे । वे आपस में गप्पे लड़ा रहे थे ।
एक मेले का सा-दृश्य:
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अदालत का दृश्य देखने वाला होता है । ऐसा लगता है, जैसे यहाँ कोई बड़ा मेला लगा हुआ हो । यही हर गरीब-अमीर, शहरी-देहाती, पुरुष-स्त्री, पढ़े-लिखे व निरक्षर सभी तरह के लोग अपनी-अपनी पोशाकों मे दिखाई देते हैं । कहीं वकील दीखते है, तो कहीं पुलिस वाले ।
कई हथकड़ी लगे अभियुक्त भी दिखाई देते थे । कचहरी के मैदान के एक कोने में साइकिलो और स्कूटरों का स्टैण्ड था, जहाँ भारी जमाव था व जगह-जगह कारें खड़ी थीं । दो-तीन पुलिस-गाडियां भी दिखाई दीं । कचहरी के फाटक के बाहर तांगों और रिक्शों की भरमार थी ।
उपसंहार:
लगभग एक घण्टा बिताकर मैं पुन: में अपने वकील साहब के चैम्बर में लौट आया । वे अभी तक नहीं लौटे थे । मैं ज्यों ही पुन: बाहर आने लगा मेरी निगाह दूर से आते हुए वकील साहब पर पड़ी । मैं उनसे मिलकर अपना काम पूरा करके कचहरी से बाहर निकल आया । कचहरी एक ऐसा स्थान है, जहाँ हर दिन सैकड़ों मुकदमों का फैसला किया जाता है ।