पोटा: औचित्य एवं दुरूपयोग पर निबन्ध | Essay on POTA – Rationale and Abuse in Hindi!
विगत कुछ वर्षों से भारत में आतंकवादी गतिविधियाँ काफी हद तक बढ़ गई हैं । इन आतंकी गतिविधियों को रोकने के साथ-साथ देश की सुरक्षा व्यवस्था को बनाए रखने के लिए एक कडे कानून की आवश्यकता महसूस की गई । फलत: ‘पोटा’ (POTA-Prevention of Terrorism Act) का जन्म हुआ ।
राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद में गुणात्मक वृद्धि, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के प्रति जागरूकता तथा वर्ल्ड ट्रेड सेंटर एवं भारतीय संसद पर हुए आतंकी हमले के पश्चात् एक खास सोच और रणनीति के तहत् मंत्रिमण्डल की सहमति से राष्ट्रपति ने 24 अक्तूबर, 2001 को POTO जारी किया । इस कानून को पास होने के साथ ही विरोधों का सामना करना पड़ रहा है । ऐसा विरोध निम्न कारणों से हो रहा है ।
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आतंकवादी संगठन व गतिविधियाँ जिन्हें आतंकवादी गतिविधि की श्रेणी में रखा गया है काफी विस्तृत परिभाषा वाली है । जिसका पुलिस द्वारा दुरूपयोग किया जा सकता है । इसका प्रयोग टाडा की भांति अल्पसंख्यक समुदाय के विरूद्ध किया जा सकता है । संपत्ति की जफ्ती के अधिकार का दुरूपयोग हो सकता है ।
सम्प्रेषणों को रास्ते में ही रोकने,टेप करने, सुनने इत्यादि का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19 का हनन है । पुलिस को दिए गए बयान को साक्ष्य रूप में मान्य मानना साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 के विरूद्ध है । किसी आतंकवादी गतिविधियों की जानकारी होने पर पुलिस प्रशासन को सूचित न करने को भी अपराध मानना जनसाधरण के लिए पेरशानी का कारण बनेगा, क्योंकि पुलिस अस्पष्ट प्रावधानों का प्रयोग जनता को डराने, चमकाने व धन दोहन हेतु कर सकती है ।
आतंकवादी गतिविधि की परिभाषा ऐसी है कि पत्रकार विशेषकर संवाददाता या खोजी पत्रकार यदि किसी आतंकी या देशद्रोही गतिविधि में जिस व्यक्ति से सम्पर्क करता है तो वह भी आवश्यक रूप से अध्यादेश के प्रावधनों से प्रभावित होगा । इसलिए पत्रकारों ने भी इसका विरोध किया ।
विभिन्न विधियों में आतंकवादी गतिविधियों को रोकने हेतु सक्षम प्रावधान है तो नए अध्यादेश की आवश्यकता अमान्य है । उपर्युक्त विरोधों को ध्यान में रखते हुए ‘पोटो-2001’ में कुछ संशोधन कर मार्च 2002 में आतंकवादी पर रोक लगाने के लिए नया कानून आलंकवादी निवारण अधिनियम 2002 (POTO) पारित किया गया ।
इस अधिनियम के महस्तूपर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं । यह अधिनियम सम्पूर्ण देश में लागू होगा । अधिनियम की धारा तीन के अनुसार, आतंकवादी कार्यों- ऐसा कार्य जो देश की अखण्डता, सुरक्षा, एकता, सम्प्रभुता के विरूद्ध किया गया है या ऐसे कार्य के लिए धन दिया गया या एकत्रित किया गया है, आतंकवादी कार्य कहलाएगा एवं करनेवाला आतंकवादी कहलाएगा ।
जो आतंकवादियों को शरण देता है वह भी दण्ड का भागी होगा । यदि आतंकवाद के दौरान किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो आतंकवादी को आजीवन कारावास या जुर्माने से दण्डित किया जाएगा । अन्य मामलों में 5 वर्षों का कारावास जो आजीवन कारावास तक हो सकता है, दिया जाएगा ।
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अध्याय-4 ऐसे मामलों के निराकरण के लिए विशेष न्यायलय की स्थापना संबंधी प्रावधानों का उल्लेख करता है । इस अधिनियम में पुलिस के समक्ष दिए गए साक्ष्य ग्राह्य होंगे । इस अधिनियम में कुल 64 धाराओं का उल्लेख किया गया है । पोटा का दुरूपयोग निम्नलिखित तरह से हो सकता है ।
इस अधिनियम में प्रथम बार सम्पति का समपहरण या बैंक खातों को सील करने को दण्ड की भाँति प्रयोग किया गया है । यह अधिकार पुलिस महानिरीक्षक को प्रदान किया गया है । इसकी परिभाषा इतनी व्यापक दी गई है कि शान्तिपूर्ण राजनीतिक गतिविधियाँ भी आतंकवाद की सीमा में आ जाती हैं । आतंकवाद को परिभाषित करते हुए विधि आयोग ने तीन आवश्यक तत्वों को महत्युपर्ण बताया है ।
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1. आशय-भारत की एकता, अखण्डता, सम्प्रभुता एवं सुरक्षा का भय अथवा जन-साधारण में भय फैलाना ।
2. रीति-हिंसा. उदाहरणार्थ बम का प्रयोग, आग्नेययास्वों का प्रयोग इत्यादि ।
3. प्रभाव-कृत्य का प्रभाव मृत्यु, सम्पत्ति का विनाश, आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति में बाधा इत्यादि हो ।
उक्त परिभाषा के अन्तर्गत किसी अन्य अहिंसक शांतिपूर्ण प्रदर्शन, बन्द, हड़ताल इत्यादि जिससे आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में बाधा पड़े आतंक की सीमा में आ सकते हैं । अधिनियम की धारा-18 के माध्यम से केन्द्र सरकार को अधिकृत किया गया है कि वह आतंकवादी संगठनों की सूची जारी’ करें । साथ ही धारा 21(1) में आतंकवादी संगठन के लिए सहयोग जुटाने वाले व्यक्ति को अपराधी माना गया है ।
धारा 21(2) में वह व्यक्ति र्भो अपराधी है जो किसी ऐसी गोष्ठी या सभा की व्यवस्था करता है उसे आतंकवादी संगठन माना गया है । इन सभी का दुरूपयोग पुलिस द्वारा किसी भी व्यक्ति को प्रताड़ित कर ऐसे कार्यो के प्रति स्वीकृति प्राप्त की जा सकती है जो इस अधिनियम के अन्तर्गत साक्ष्य के रूप में ग्रास है ।