विद्यालय वार्षिकोत्सव के विषय में मित्र को पत्र!

चेन्नई

30 अप्रैल 2003

प्रिय मित्र,

हार्दिक प्यार ।

मैं सकुशल हूँ । तुम्हारी कुशलता की आशा है । बहुत दिनों से मैं तुम्हें पत्र नहीं लिख सका, इसका मुझे अफसोस है । वास्तव में पिछले दिनों मैं अपने विद्यालय के वार्षिकोत्सव (annual function) की तैयारियों में जुटा था ।

इस बार का वार्षिकोत्सव पिछले वर्षों से कुछ अलग प्रकार का रहा । इस अवसर पर स्वयं राज्यपाल महोदय हमारे विद्यालय में पधारे थे । तुम्हें यह जानकर प्रसन्नता होगी कि उनके हाथों मुझे पिछले वर्ष के सर्वश्रेष्ठ छात्र का पुरस्कार प्रदान किया गया ।

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प्रधानाचार्य (principal) तथा अन्य आमंत्रित (invited) व्यक्तियों के भाषण के पश्चात् रंगारंग कार्यक्रम (cultural programmes) प्रस्तुत किये गए जिन्हें शिक्षकों की देखरेख में हमने बड़ी मेहनत से तैयार किया था । इन सब कार्यक्रमों ने विद्यार्थियों के अभिभावकों तथा दर्शक छात्र-छात्राओं का मन मोह लिया । राज्यपाल महोदय ने भी प्रभावित होकर इस विद्यालय के विद्यार्थियों की प्रशंसा की ।

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यह मेरे जीवन का पहला अवसर था जब किसी महान व्यक्ति ने मेरी इतनी प्रशंसा की । लेकिन इन सबके बीच तुम्हारी कमी हमेशा मेरे मन में खटकती रही । यदि तुम साथ होते, तो मेरी खुशी और अधिक बढ़ जाती । आशा करता हूँ अगली बार के वार्षिकोत्सव देखने जरूर आओगे ।

चाचाजी और चाचीजी को मेरा नमस्ते कहना ।

तुम्हारा प्रिय मित्र

‘क’

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