Mega list of popular Hindi Nibandhs or essays for School Children’s.
Contents:
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भिखारी अथवा भिक्षक पर निबन्ध | Essay on The Beggar in Hindi
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महानगर की यात्रा पर निबन्ध | Essay on Visit to a Metro City in Hindi
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पर्वतीय स्थल की यात्रा पर निबन्ध | Essay on Visit to a Hill Station in Hindi
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सिनेमा दर्शन पर निबन्ध | Essay on Watching a Movie in Hindi
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सुबह की सैर पर निबन्ध | Essay on Morning Walk in Hindi
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प्रदर्शनी की सैर पर निबन्ध | Essay on Visit to an Exhibition in Hindi
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एक सरकस शो पर निबन्ध | Sample Essay on A Circus Show in Hindi
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ADVERTISEMENTS:
एक ऐतिहासिक स्थल की यात्रा पर निबन्ध | Essay on Visit to a Historical Place in Hindi
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एक मेले का दृश्य पर निबन्ध | Essay on Scene of a Fair in Hindi
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चिड़ियाघर की सैर पर निबन्ध | Essay for Kids on Visit to A Zoo in Hindi
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हमारे विद्यालय का पुस्तकालय पर निबन्ध | Essay on Our School Library in Hindi
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संग्रहालय की सैर पर निबन्ध | Essay on Visit to a Museum in Hindi
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एक गाँव की यात्रा पर निबन्ध | Essay on Visit to a Village in Hindi
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हमारे प्रधानाध्यापक/प्रचार्य/मुख्याध्यापक पर निबन्ध | Essay on Our Head Master in Hindi
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आदर्श विद्यार्थी पर निबन्ध | Essay for Kids on An Ideal Student in Hindi
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परीक्षा भवन का दृश्य पर निबन्ध | Essay on Scene in An Examination Hall in Hindi
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ADVERTISEMENTS:
हमारा विद्यालय पर निबन्ध | Essay on Our School in Hindi
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चाँदनी रात में सैर पर निबन्ध | Essay on Visit in a Moonlight Night in Hindi
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छात्र और अनुशासन पर निबन्ध | Essay on Student and Discipline in Hindi
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छात्र जीवन पर निबन्ध | Essay on Student Life in Hindi
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ADVERTISEMENTS:
विद्यालय का मध्यावकाश पर निबन्ध | Essay on School During the Recess-Hour in Hindi
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विद्यालय का विदाई समारोह पर निबन्ध | Essay on Farewell Function of School in Hindi
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विद्यालय का वार्षिकोत्सव पर निबन्ध | Essay on Annual Function of Our School in Hindi
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शिक्षक दिवस पर निबन्ध | Essay on Teacher’s Day in Hindi
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ADVERTISEMENTS:
विद्यालय की वार्षिक खेल प्रतियोगिता पर निबन्ध | Essay on Annual Sports in Hindi
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 1
भिखारी अथवा भिक्षक पर निबन्ध | Essay on The Beggar in Hindi
भीख माँगकर अपनी जीविका चलाने वाले भिखारी या भिक्षुक कहे जाते हैं । हमारे देश के सभी भागों में भिखारी द्वार-द्वार भीख माँगते देखे जा सकते हैं । पूजा के स्थानों के बाहर, रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों, फुटपाथों तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों में ये उपस्थित रहते हैं ।
इनका निवास स्थान मंदिरों के निकट फुटपाथ पर या किसी झुग्गी-झोपड़ी में होता है । अनाज रुपया-पैसा कपड़ा पका-पकाया भोजन आदि जो कुछ भी मिलता है उसी से यह अपना भरण-पोषण करता है । सामान्यतया भिखारी निर्बल तथा दीन-हीन होता है ।
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इनमें से कुछ अंधे अपाहिज या विकलांग होते हैं । इनके कपड़े प्राय: मैले-कुचैले और बदबूदार होते हैं । इनकी थकी एवं निस्तेज आँखें तथा करुण पुकार लोगों के मन में दया भाव का सचार करती हैं । इसके हाथ में एक कटोरा होता है जिसे आगे कर वह लोगों से भीख माँगता है ।
कई लोग भीख देने से मना कर देते हैं फिर भी भिखारी बार-बार उनसे माँगता रहता है । कई बार भिखारियों से पीछा छुड़ाना कठिन हो जाता है । भिखारी घरों के दरवाजे पर तब तक आवाज लगाता रहता है जब तक कि कोई उसकी पुकार सुनकर आ नहीं जाता ।
भिक्षा देना और लेना हमारे देश की परंपरा रही है । साधु-संन्यासी बौद्ध भिक्षुक तथा अन्य धार्मिक संप्रदायों के ब्रह्मचारी गाँव-गाँव घूमकर भिक्षा माँगते थे । बदले में ये समाज को उपदेश देकर शिक्षित करने का प्रयास करते थे ।
लोगों को धार्मिक बनाना तथा उन्हें परमार्थ के लिए प्रेरित करना प्राचीन भिक्षुकों का मुख्य उद्देश्य था । वर्तमान समय में भीख माँगना एक अच्छा कार्य नहीं माना जाता है । लोग भिखारियों को अच्छी नजर से नहीं देखते हैं । बहुत से भिखारी तंदुरुस्त होकर भी भीख माँगते हैं । ये लोग जान-बूझकर अपनी शारीरिक दशा को दयनीय बना लेते हैं ताकि इन्हें दया का पात्र समझा जाए ।
वास्तव में ऐसे भिखारी कामचोर होते हैं । भीख माँगना इनकी मजबूरी नहीं होती बल्कि बिना श्रम किए खाने-पीने की इनकी लालसा इन्हें भीख माँगने के लिए प्रेरित करती है । इन्हें भीख देना मानव के श्रम का अपमान करना है ।
कुछ भिखारी साधु-संन्यासी होने का ढोंग रचकर लोगों से रुपया ऐंठते हैं । बदन पर राख लपेटे, लंबा टीका लगाए, गेरुआ चोला पहने, हाथ में कमंडल और चिमटा लिए ये भिखारी महिलाओं को तरह-तरह का प्रलोभन देकर उन्हें ठगते हैं ।
इन्हें आम लोगों की समस्याओं का भली-भांति ज्ञान होता है । इन समस्याओं के समाधान का वचन देकर आशीर्वाद तथा उपदेश देकर धन जमा करने की कला में ये माहिर होते हैं । प्राप्त धन से ये नशाखोरी तथा ऐशोआराम करते हैं ।
इनमें से कुछ बच्चों के अपहरण तथा महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार के भी दोषी होते हैं । लोगों को ऐसे भिखारियों से सावधान रहना चाहिए । वास्तव में भीख माँगने के धंधे को वर्जित कर देना चाहिए । लेकिन यह इतना आसान नहीं है क्योंकि विकलांग कोढ़ी लंगड़े अंधे एवं शारीरिक दृष्टि से अक्षम लोगों के पास भीख माँगने का ही विकल्प बचता है ।
इन्हें समाज या सरकार की ओर से जब तक सहारा नहीं दिया जाता तब तक भीख माँगने का रिवाज जारी रहेगा । ऐसे दीन-हीन भिक्षुकों का चित्रण महाकवि निराला ने बड़े ही मार्मिक शब्दों में किया है –
”पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक चल रहा लकुटिया टेक मुट्ठी भर दाने को भूख मिटाने को पछताता, पथ पर आता ।”
अत: आवश्यक है कि ऐसे भिक्षुकों की मदद की जाए जो अति दीन निर्बल और बेसहारा हैं ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 2
महानगर की यात्रा पर निबन्ध | Essay on Visit to a Metro City in Hindi
महानगर आधुनिक कला, विज्ञान एवं संस्कृति के केंद्र होते हैं । यहाँ दर्शनीय स्थल, संग्रहालय, शिक्षा के संस्थान एवं कार्यालय होते हैं । महानगर वाणिज्यिक गतिविधियों के केंद्र होते हैं ।
यहाँ की अट्टालिकाएँ, आकर्षक बाजार, जीवनोपयोगी आधुनिक सुविधाएँ, कलाकृतियाँ, चौड़ी, सड़कें, व्यस्त चौराहे तथा अन्य दैनिक गतिविधियाँ आगंतुकों को लुभाती हैं । सुपर बाजार में खरीदारी करने का अपना अलग आनंद है । महानगरीय यातायात व्यवस्था भी बड़ी आधुनिक एव व्यस्त होती है ।
प्रशासनिक दृष्टि से भी महानगर बड़े महत्त्वपूर्ण होते हैं । दिल्ली भारत की राजधानी है । यह हमारे देश के चार सबसे बड़े महानगरों में से एक है । मैं अपने परिवार वालों के साथ यहाँ भ्रमण करने आया था । हम लोग अपने निकट के रिश्तेदार के निमंत्रण पर यहाँ आए थे ।
यह किसी महानगर की मेरी प्रथम यात्रा थी । हम लोग नीलांचल एक्सप्रेस से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उतरे । स्टेशन पर जन सैलाब को देखकर मैं अचंभित रह गया । स्टेसन से बाहर निकल कर हमने किराए पर कार ली और अपने गंतव्य की ओर चल पड़े ।
एक दिन हमने विश्राम किया फिर हम लोग दिल्ली भ्रमण पर निकल पड़े । सबसे पहले हम लोग इंडिया गेट पहुँचे । यहाँ का आकर्षण बड़ा ही जबरदस्त था । राष्ट्रपति भवन यहाँ से बिलकुल सामने था । इंडिया गेट के विशाल द्वार को प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की याद में बनवाया गया था ।
उन्हीं की याद में यहाँ अमर जवान ज्योति हर समय जलती रहती है । इंडिया गेट से हमने भारत के राष्ट्रपति के निवास स्थान की आकर्षक बनावट एवं भव्यता को निहारा । अगले दिन हम लोग संसद भवन देखने गए । यहाँ प्रवेश के लिए हमने अनुमति पहचान-पत्र बनवाया था । यह भवन भारतीय लोकतंत्र का एक अभिन्न अंग माना जाता है ।
गोलाकार आकृति के इस भवन को 1927 ई. में अँगरेजों ने बनवाया था । संसद भवन देखकर हम लोग कनॉट प्लेस देखने गए । इसे दिल्ली का दिल कहा जाता है । दिल्ली के मध्य भाग में स्थित यहाँ के बाजार में मनोरंजन एवं खरीदरी की सभी सुविधाएँ मौजूद हैं ।
यहाँ कई बड़े-बड़े कार्यालय, भवन एवं रेस्तराँ हैं । यहाँ के भूमिगत पालिका बाजार में हमने खरीदारी की जिसमें बहुत मजा आया । फिर हमने मनपंसद भोजन का आनंद उठाया । महानगर की यात्रा के अगले पड़ाव में हमने पुराना किला चिड़ियाघर अन्यूघर तथा प्रगति मैदान आदि मनबहलाव के स्थानों की सैर की ।
पुराने किले को सोलहवीं शताब्दी में पहले हुमायूँ और बाद में शेरशाह ने बनवाया था । लाल बलुआ पत्थर से बना यह किला हालाँकि अब खंडहर बन चुका है परंतु यहाँ आकर किले के गौरवशाली अतीत का अनुमान लगाया जा सकता है । किले के पास बनी झील में हमने नौकायन का आनंद उठाया ।
दिल्ली का चिड़ियाघर पुराने किले के पास ही स्थित है । यहाँ हमने विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षियों को देखा । हमने दिल्ली का लाल किला भी देखा । यह किला देश के गौरव एवं स्वतंत्रता का प्रतीक है । मुगल बादशाह शाहजहाँ ने इसे लगभग नौ वर्षों में बनवाया था ।
इस किले के अंदर मोती मस्जिद, दीवान-ए-खास, दीवान-ए-आम, रंगमहल, मुमताज महल आदि भव्य एवं आकर्षक महल हैं । यहाँ एक संग्रहालय भी है जिसमें मुगलकालीन कला वस्तुएँ वस्त्र आभूषण हथियार आदि रखे हैं । लाल किले के निकट जामा मस्जिद है ।
इस मस्जिद की विशाल मीनारें 40 मीटर ऊँची हैं । यहाँ पच्चीस हजार व्यक्ति एक साथ नमाज पढ सकते हैं । दिल्ली यात्रा के दौरान हम राजघाट, शांतिवन, विजयघाट आदि भी देखने गए । राजघाट राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का समाधि स्थल है ।
यात्रा के अगले चरण में हमने कुतुबमीनार, लोटस टेंपल आदि स्थानों का भ्रमण किया । हमने जंतर-मंतर बिड़ला मंदिर राष्ट्रीय संग्रहालय डौल्स म्यूजियम आदि देखे । पूरी यात्रा के दौरान हम लोगों ने मेट्रो रेल से भी यात्रा की जो कि एक अत्याधुनिक रेल सेवा है ।
अनेक स्थानों की स्थानीय यात्रा हमने बस और धी व्हीलर से भी की । पद्रह दिनों के इस महानगरीय सैर-सपाटे के बाद हम लोगों ने वापसी यात्रा आरभ की । इस यात्रा की यादें कभी न भुलाने योग्य हैं ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 3
पर्वतीय स्थल की यात्रा पर निबन्ध | Essay on Visit to a Hill Station in Hindi
पर्वतीय स्थल की यात्रा बहुत मनोहारी होती है । ऊँचे-ऊँचे पर्वत आसमान में बादलों से बातें करते दिखाई देते हैं । पर्वतीय स्थल की हरियाली यहाँ की घटियाँ यहाँ की झीलें एवं नदियाँ शुष्क हृदय वाले व्यक्ति को भी उमंग और उत्साह से भर देते हैं ।
मेरे चचेरे भाई प. बंगाल के एक छोटे से शहर कालिंगपोंग में स्कूल टीचर थे । उन्होंने गरमी की छुट्टियों में यहाँ आने का निमंत्रण दिया तो मेरे मन में पर्वतीय स्थल के भ्रमण को इच्छा बलवती हो गई । छुट्टियाँ होते ही मैंने भाई को फोन कर अपनी यात्रा की सूचना दी तो उन्हें खुशी हुई । मैंने रेलमार्ग से सिलिगुड़ी तक की यात्रा की । वहाँ से कालिंगपोंग जाने के लिए एक सड़क मार्ग था ।
मैंने एक मेटाडोर से कालिंगपोंग जाने का निश्चय किया क्योंकि उस दिन बस वाले हड़ताल पर थे । कुछ किलोमीटर की यात्रा के बाद हिमालय पर्वत शृंखला के पर्वत दिखाई देने लगे । वास्तव में सड़क पर्वतों के मध्य से ही जाती थी । मैं पर्वतीय दृश्य को निहारता हुआ किसी कल्पना लोक में पहुँच गया । दुनिया में ऐसे भी स्थान हैं जहाँ केवल पर्वत ही पर्वत हैं ऐसा पहले मैंने नहीं सोचा था ।
सड़क के एक ओर पर्वत तो दूसरी ओर कई फुट गहरी घाटी । ऐसे में चालक का संतुलन यदि बिगड़ जाए तो वाहन पर सवार लोगों की हड्डी-पसली एक होने से कोई नहीं बचा सकता । अचानक मेटाडोर रुकी । पता चला भूस्थलन के कारण आगे का रास्ता जाम है । परंतु सीमा सड़क संगठन के कर्मियों ने शीघ्र ही मार्ग चालू कर दिया ।
चार घंटे की पर्वतीय यात्रा के बाद मैं कलिंगपोंग पहुँचा । उस छोटे से पहाड़ी शहर की खूबसूरती देखते ही बनती थी । लोगों के घर पहाड़ी ढलानों पर बने थे । शहर में सभी आधुनिक सुविधाएँ थीं । यहाँ मनोहारी प्राकृतिक दृश्यों की भरमार थी । निकट ही तिस्ता नदी बहती थी ।
इस पहाड़ी नदी की चंचल धारा को देखने मैं प्रतिदिन जाता था । पहाड़ों के मध्य हरी-हरी वादियाँ थीं जो बच्चों के लिए खेल का मैदान का कार्य करती थीं । यहाँ के कुछ मकान पक्के परंतु अधिकांश लकड़ी के थे । लकड़ी के बने मकान इतने सुंदर भी हो सकते हैं, इसका अनुभव पहली बार हुआ ।
कालिंगपोंग हस्तशिल्प एवं हथकरघे से बने वस्त्रों के लिए भी प्रसिद्ध है । मैंने हस्तशिल्प की विभिन्न वस्तुओं को देखा । मैं यहाँ स्थित बौद्ध मठ भी देखने गया । सिक्किम के मूल निवासी प्राय: नाटे कद के होते हैं । यहाँ की विशेषता है कि चोरी कहीं नहीं होती कभी भी किसी के घर डाके नहीं पड़ते ।
हिमालय की गोद में प्राय: भोले-भाले और सच्चे लोग निवास करते हैं । इनका हृदय हिमालय की तरह ऊँचा होता है । यहाँ मैं लगभग पद्रह दिनों तक रहा । अधिकांश समय घूमते-फिरते ही बीतता था । इसी यात्रा के दौरान मैं सिक्किम की राजधानी गंगटोक भी घूम आया था । गंगटोक भी एक सुदर पर्वतीय शहर है ।
पर्यटक यहाँ आते ही रहते हैं । जब वापस आने की बारी आई तो मेरा मन उदास हो गया । हिमालय से दूर जाने की इच्छा तो नहीं हो रही थी, परंतु छुट्टियाँ खत्म हो रही थीं । वापसी उसी मार्ग से हुई जिस मार्ग से मैं कालिंगपोंग गया था । यह पर्वतीय यात्रा मैं आज तक नहीं भुला पाया हूँ । अवसर मिलने पर में फिर से किसी अन्य पर्वतीय स्थल की यात्रा करना चाहूँगा ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 4
सिनेमा दर्शन पर निबन्ध | Essay on Watching a Movie in Hindi
सिनेमा आधुनिक युग में मनोरंजन का एक लोकप्रिय साधन है । कुछ हद तक सिनेमा ज्ञानवर्धन का भी साधन है । शिक्षाप्रद, देशभक्तिपूर्ण तथा कला फिल्मों को देखकर हम बहुत कुछ सीख सकते हैं ।
यों तो टेलीविजन, वीडियो प्लेयर आदि के माध्यम सिनेमा देखने का अवसर घर पर भी मिल जाता है परंतु सिनेमाघर में जाकर सिनेमा देखने का मजा ही कुछ और है । पिछले रविवार हमारे घरवालों ने सिनेमा हॉल में जाकर पिक्चर देखने का मन बनाया । हमारे शहर की निर्मला टॉकीज में ‘बार्डर’ फिल्म लगी हुई थी ।
हम लोग मैटनी शो देखने निर्मला टॉकीज पहुँचे । हॉल के अहाते में काफी चहल-पहल थी । कुछ लोग रिकशे से, कुछ कार से तो कुछ ऑटोरिकशा से पिक्चर देखने आए थे । हॉल के बाहर स्कूटर कार, साइकिल आदि का पार्किंग स्थल बना हुआ था ।
टिकट खिड़की पर सिनेमा देखने वालों की लाइन लगी हुई थी । हमने लाइन में खड़े होकर बालकनी का टिकट लिया और फिर हॉल में जाकर निर्धारित सीट पर बैठ गए । इस कार्य में स्थानीय कर्मचारी ने हमारी मदद की । किसी सिनेमा हॉल में सिनेमा देखने का मेरा यह पहला अनुभव था इसलिए मैं उत्साहित हो रहा था ।
जल्दी ही शो शुरू हो गया । बड़े परदे पर सभी दर्शकों की निगाहें गड़ गईं । फिल्म में पहले सैनिकों के पारिवारिक जीवन को दिखाया गया । सैनिकों के जीवन में भी प्यार होता है, वह अपने माता-पिता भाई-बहन आदि रिश्तों से किस तरह का लगाव रखता है फिल्म में इन बातों को बड़े ही सजीव ढंग से दिखाया गया था ।
फिर आरंभ हुआ सन् 1971 का भीषण युद्ध । सैनिकों की छुट्टी रह कर दी गई । वायु सेना थल सेना और जल सेना के जवान अपने-अपने मोर्चे पर जा डटे । विभिन्न सेनाओं की आपसी रणनीति तैयार होने लगी । हमारे सैनिकों में देशभक्ति की कितनी प्रगाढ़ भावना है फिल्मी कलाकारों से इसे बखूबी प्रदर्शित किया ।
लेकिन जब काफी दिनों तक वे घर से दूर रहते हैं तो उन्हें अपने घर-परिवार की भी याद आती है । सभी सैनिक अपने घर से आई चिट्टी या संदेश का कितनी बेसब्री से इंतजार करते हैं, इसे एक फिल्मी गीत के माध्यम से व्यक्त किया गया था । मैं अपलक विभिन्न दृश्यों को देख रहा था । इतने में मध्यांतर का समय हो गया ।
मध्यांतर में हमने शीतल पेय पीने का आनंद उठाया । कुछ लोग मूंगफली, आईसक्रीम, पॉप कार्न आदि खा रहे थे । मध्यांतर के बाद फिल्म पुन: शुरू हो गई । अब युद्ध का दौर आरंभ हुआ । सैनिक दोनों ओर से गोलाबारी करने लगे । सैनिकों के खडे होने के लिए खंदकें पहले से ही बना ली गई थीं ।
दोनों ओर से फायरिंग होने लगी । वीर सैनिकों ने जान की बाजी लगा दी । प्रत्येक भारतीय सैनिक देश की रक्षा के लिए मर-मिटने के लिए तैयार था । कई वीर सैनिक घायल हुए कुछ मारे गए । हमारे बहादुर सैनिकों ने मरते-मरते भी कई दुश्मनों को मार गिराया ।
युद्ध केवल भूमि पर ही नहीं आसमान में भी हो रहा था । हमारी वायु सेना ने दुश्मन के कई प्रमुख ठिकानों को ध्वस्त कर दिया । दुश्मनों के टैंक हमारा कुछ न बिगाड़ सके । अंत में विजय भारतीय सैनिकों की हुई । जवानों ने मोर्चा फतह कर लिया । जीत की इस खुशी के साथ फिल्म पूरी हुई ।
फिल्म समाप्त होते ही हॉल रोशनी से जगमगा उठा । दर्शक अपने मन में देशभक्ति का भाव लिए अपने-अपने गंतव्य की ओर चले गए । रात में जब मैं सोया तो काफी देर तक नींद नहीं आई । फिल्म के कई दृश्य बंद पलकों में घूम रहे थे ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 5
सुबह की सैर पर निबन्ध | Essay on Morning Walk in Hindi
सुबह की सैर बहुत आनंददायी होती है । यदि ग्रीष्म-ऋतु का समय हो तो इस सैर का मजा और भी बढ़ जाता है । प्रात कालीन शीतल वायु का स्पर्श तन और मन को हर्षित कर देता है ।
प्रकृति का दृश्य इस समय बड़ा मनोहारी होता है । बाल अरुण अपनी रश्मियों को बिखेरता हुआ निकलता है तो संपूर्ण जगत आलोकित होने लगता है । मोती समान ओस की बूँदें प्रकृति का शृंगार करती हुई दिखाई देती हैं । चिड़ियों की चहक और फूलों की महक के बीच यदि प्रात: कोई भ्रमण पर निकलता है तो उसे असीम सुख प्राप्त होता है ।
सुबह की सैर स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत लाभकारी होती है । व्यक्ति दिन-भर तरोताजा महसूस करता है । शरीर का आलस्य भाग जाता है, चित्त प्रफुल्लित हो जाता है । मन के बहुत से विकार नष्ट हो जाते हैं व्यक्ति का स्वभाव मधुर होने लगता है । विद्यार्थी अपनी पढ़ाई में अधिक मन लगा सकता है तथा उसकी दिनचर्या नियमित हो जाती है ।
जिन्हें सुबह के सैर की आदत होती है उन्हें सरदी, गरमी, बरसात आदि से कुछ फर्क नहीं पड़ता । वे हर मौसम, हर ऋतु को सैर के लिए अनुकूल पाते हैं । वर्षा हो रही हो तो बरसाती है, छाता है । सरदी पड़ रही हो तो गरम कपड़े हैं; बस कुछ दूर टहलिए और सरदी गायब । वायु में जितनी ताजगी सुबह होती है, इए उतनी पूरे दिन किसी अन्य समय में नहीं होती ।
टहलना हो तो नदी तट पर जाइए बाग-बगीचे में जाइए लता-कुंजों के निकट जाइए । महानगरों में आप पार्क में टहल सकते हैं । यदि कुछ न हो तो सड़कों के किनारे-किनारे भी टहला जा सकता है, गलियों के भी फेरे लगाए जा सकते हैं । समुद्र तट, नदी तट, झील के आस-पास, सरोवरों के किनारे खुले मैदानों में, कहीं भी सैर की जा सकती है ।
गाँवों में तो आप जिधर चाहें, उधर टहल सकते हैं । सुबह की सैर का मजा तब और बढ़ जाता है जब आपकी भेंट अपने परिचित लोगों, सहपाठियों एवं मित्रों से होती है । इनका हाल-चाल पूछा जा सकता है, इधर-उधर की बातें की जा सकती हैं ।
बुजुर्गों से दूआ-सलाम हो जाता है हम उम्र लोगों से ‘गुड मार्निंग’ कहने का यह सबसे अच्छा समय होता है । परंतु अधिक बातें, अधिक गपशप टहलने का आनंद घटा देती हैं अत: किसी अति से बचना चाहिए । प्रात: काल की सैर हमारी दिनचर्या को नियमित कर देती है ।
यदि आप जल्दी उठते हैं तो आपको काम करने के दो-तीन घंटे अतिरिक्त मिल सकते हैं । प्रात काल की गई पढ़ाई-लिखाई का महत्त्व अधिक है क्योंकि इस समय जो भी पढ़ा जाता है, वह अधिक याद रहता है । इस समय दिमाग शांत रहता है अत: विषय-वस्तु को समझने में आसानी होती है । प्रात: सैर के बाद सुबह का जो भी समय बचता है उसमें कई जरूरी कार्य निबटाए जा सकते हैं ।
सुबह की सैर करने वाले ही सही मायनों में प्रकृति से साक्षात्कार करते हैं । सुबह की सैर करते समय ध्यान रखना चाहिए कि हमारी चाल तेज हो । इससे शरीर का व्यायाम हो जाता है, शरीर का रक्त शुद्ध हो जाता है । कहा भी गया है कि टहलना एक अच्छा व्यायाम है । बहुत से लोग सपरिवार प्रात: सैर पर जाते हैं ।
यह एक बहुत अच्छी आदत है । प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में सुबह और शाम के समय टहलना भी एक इलाज है । यह हमें अनेक प्रकार की बीमारियों से बचाता है । यदि शरीर पूर्णतया स्वस्थ हो तो जीने का मजा कई गुणा बढ़ जाता है ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 6
प्रदर्शनी की सैर पर निबन्ध | Essay on Visit to an Exhibition in Hindi
जहाँ अनेक प्रकार की वस्तुएं प्रदर्शित की जाती हैं, उसे प्रदर्शनी कहा जाता है । कलात्मक वस्तुओं की प्रदर्शनी, चित्रकला प्रदर्शनी, कृषि प्रदर्शनी खादी एवं हस्तशिल्प की वस्तुओं की प्रदर्शन आदि विभिन्न प्रकार की प्रदर्शनी को देखना एक तरह का नया अनुभव होता है ।
हमारे देश की राजधानी दिल्ली के प्रगति मैदान में ऐसी कई प्रकार की प्रदर्शनियाँ आयोजित होती ही रहती हैं । अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित प्रदर्शनियों में विभिन्न देशों के लोग भाग लेते हैं । पिछले वर्ष प्रगति मैदान में आयोजित ‘विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी प्रदर्शनी’ देखने का अवसर प्राप्त हुआ ।
मैं अपने पिताजी के साथ रविवार के दिन प्रदर्शनी देखने गया । मुख्य द्वार पर बड़ी भीड़ थी । कुछ लोग टिकटें खरीद रहे थे तो कुछ एक-दूसरे से बातें कर रहे थे । पिताजी ने टिकट खिड़की से दो टिकटें खरीदीं, फिर हम लोग भीतर गए । तीन बड़े-बड़े हॉलों में प्रदर्शनी लगी थी ।
हम लोग चहलकदमी करते हुए पहले हॉल नं॰ तेरह में गए । पूरा हॉल भली-भांति सजा हुआ था । अँदर विभिन्न कंपनियों के स्टॉल लगे थे जिनमें से कई विदेशी कंपनियों के थे । विभिन्न स्टीलों को देखने से ऐसा लग रहा था जैसे यहाँ आधुनिक विज्ञान की पूरी दुनिया ही समा गई हो ।
आधुनिक उपग्रह प्रणाली, सचित्र मोबाइल प्रणाली, आधुनिकतम घरेलू उपकरण, डिजिटल घड़ी, ब्रेल लिपि की पुस्तकें, सुपर कंप्यूटर आदि आधुनिकतम प्रौद्योगिकी का यहाँ प्रदर्शन किया गया था । जापान, चीन, ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी आदि देशों की कंपनियों के स्टीलों पर काफी भीड़ थी ।
विभिन्न कंपनी वाले अपने उत्पादों के प्रचार के लिए बुकलेट तथा पर्चियों बाँट रहे थे । मुझे जहाँ भी बुकलेट, पर्चियों आदि मिले उन्हें मैं सँभालकर रखता गया । एक जापानी कंपनी अपनी एक ऐसी साइकिल का प्रचार कर रही थी जिसमें तीन व्यक्ति आसानी से बैठ सकते थे ।
एक रूसी स्टॉल पर मैंने आधुनिक हेलीकॉप्टर का एक मॉडल देखा जो उड़ भी सकता था तथा कार की तरह जमीन पर चल भी सकता था यानी कि ‘एक पंथ दो काज ।’ हॉल संख्या चौदह में अधिकतर इलैक्ट्रानिक्स वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया था ।
मैंने एक इलैक्ट्रानिक घड़ी खरीदी जो चीन में बनी थी । यह घड़ी समय तो बताती ही थी, साथ-साथ घड़ी के डायल पर कुछ बटनों को दबाकर कई खेल भी खेले जा सकते थे । अर्थात् घड़ी और वीडियो गेम दोनों साथ-साथ थे । इलैक्ट्रानिक्स की इस प्रदर्शनी को देखकर मुझे लगा कि सचमुच हम इलैक्ट्रानिक्स युग में जी रहे हैं । जीवन के हर क्षेत्र में इसका योगदान है ।
हॉल संख्या पंद्रह में आधुनिकतम रक्षा प्रणाली प्रदर्शित की गई थी । जासूसी उपग्रह, राकेट, मिसाइलें, बमवर्षक विमान, बिना पायलेट के विमान, तोपें, मशीनगनें आदि कितने ही रक्षा उत्पाद एवं लड़ाकू यंत्र यहाँ प्रदर्शित किए गए थे । मैंने आधुनिकतम रडार प्रणाली को बारीकी से देखा ।
विभिन्न वस्तुओं की उपयोगिता समझाने में पिता जी ने मेरी मदद की । रक्षा उपकरणों के विभिन्न मॉडलों ने आगंतुकों का मन मोह लिया ।तीनों हॉलों की प्रदर्शनी देखते-देखते हम लोग थक चुके थे । मुझे थकावट के साथ-साथ भूख भी लग रही थी । हमने ‘फास्ट फूड कार्नर’ पर जाकर अपनी भूख मिटाई । फिर हम लोग वहाँ से लौटकर घर चले आए ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 7
एक सरकस शो पर निबन्ध | Essay on A Circus Show in Hindi
सरकस यानि जादूगरी कलाकारी साहस करतब आदि का मिला-जुला रूप । सरकस आधुनिक युग की एक ऐसी कला है जिसका आनंद अछूत होता है । इसलिए जब भी किसी शहर में सरकस वाले आते हैं लोग सपरिवार इसका आनंद उठाते हैं । सरकस की लाइटें यहाँ से छोड़ी गई प्रकाश किरणें आस पड़ोस के क्षेत्रों के निवासियों को आकर्षित करती हैं ।
जब मैं सातवीं कक्षा में पढ़ता था तब पहली बार मुझे सरकस देखने का अवसर प्राप्त हुआ । मेरे शहर के गाँधी मैदान में लगा जैमिनी सरकस मुझे बाहर से ही आकर्षित कर रहा था । मैंने माँ से अपनी इच्छा जाहिर की, वे मुझे की के दिन सरकस दिखाने के लिए राजी हो गई ।
निर्धारित समय पर हम लोग सरकस देखने पहुंचे । सरकस के बाहर गोलगप्पे, समोसे, मूँगफली आदि खाने की वस्तुएँ बेचने वाले खड़े थे । पिताजी ने टिकटें खरीदीं । फिर हम लोग गेटकीपर को टिकट दिखाकर सरकस के बड़े से गोलाकार शामियाने के भीतर चले गए ।
अभी शो आरंभ होने में कुछ देर थी । तब तक सरकस के जोकर अपने विचित्र हाव-भाव से दर्शकों का मनोरंजन कर रहै थे । प्राय: सभी जोकर बौने थे, इनकी आपसी नोंक-झोंक एवं शरारतें दर्शकों को हँसने के लिए बाध्य कर रही थीं ।
फिर सरकस का शो आरंभ हुआ । पहला शो साइकिल चालकों का था जो भाति-भाँति के करतब दिखा रहे थे । एक साइकिल सवार पर कई लोग सवार थे, फिर भी वह मजे से साइकिल चला रहा था । यहाँ हमने एक पहिए वाली साइकिल भी देखी । साइकिल शो के बाद एथलेटिक्स जैसे खेल का दृश्य आरंभ हुआ ।
सरकस के कलाकार शरीर को विभिन्न प्रकार से मोड़कर कलाबाजियाँ खा रहे थे । ऐसा अनोखा करतब करने के लिए सरकस के कलाकारों को लगातार अभ्यास की जरूरत होती होगी । फिर तोते का खेल आरंभ हुआ । तोते ने खिलौना तोप छोड़ा तो दर्शकों की हँसी छूट गई ।
फिर रिंग में हाथी लाया गया । हाथी ने गणेश जी की पूजा की, उनकी मूर्ति के सामने सूँड़ से नारियल फोड़ा । हाथी ने कई अन्य करतब भी दिखाए । इसके बाद एक कलाकार कई सारी टोपियाँ रिंग आदि लेकर आया । वह सभी टोपियों को उछालता था परंतु गिरने किसी भी टोपी को नहीं देता था ।
उसने रिंग घुमा-घुमाकर भी कुछ खेल दिखाए । इसके बाद रस्सी पर डंडा लेकर चलने वाला खेल दिखाया गया । सरकस के कलाकारों में कई युवतियाँ भी थीं । युवतियों ने बैंड की धुनों के बीच सामूहिक नृत्य तथा शारीरिक क्षमता का प्रदर्शन किया । एक लड़की के ऊपर सात अन्य लड़कियाँ चढ़ गईं तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा ।
इसी तरह एक मोटर साइकिल चालक अपने साथ छह अन्य साथी कलाकारों को साथ लिए गोलाकार रूप से मोटर साइकिल चला रहा था । फिर झूलों का प्रसिद्ध खेल दिखाया गया । कलाकार झूला बदल-बदलकर दर्शकों को मंत्र-मुग्ध कर रहे थे । एक जोकर झूला बदलने के चक्कर में धड़ाम से जाल पर गिर पड़ा ।
अंत में लोहे की रिंग में दो शेरों को लाया गया । शेर रिंग मास्टर के निर्देश पर कार्य कर रहे थे । दहाड़ते शेर को देखकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए । इसके बाद सरकस का यह शो समाप्त हो गया । दर्शक अपनी-अपनी सीट से उठकर बाहर चले गए । इस सरकस शो के कई दृश्य आज तक मुझे याद हैं ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 8
एक ऐतिहासिक स्थल की यात्रा पर निबन्ध | Essay on Visit to a Historical Place in Hindi
यमुना नदी के किनारे बसा आगरा अपनी ऐतिहासिक इमारतों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है । आगरे की प्रसिद्धि महान मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में होनी आरंभ हुई ।
अकबर ने 1565 ई. में आगरे के किले का निर्माण शुरू करवाया और उसका नाम अकबराबाद रखा । परंतु किले की अधिकांश इमारतें जहाँगीर और शाहजँहा द्वारा निर्मित कराई गईं । आगरा अनेक ऐतिहासिक धरोहरों को अपने आप में समेटे हुए है । यही कारण है कि देश-विदेश के पर्यटकों की यहाँ पूरे वर्ष भीड़ लगी रहती है ।
ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा करना मेरा शौक रहा है । इसी क्रम में एक बार मैंने आगरे की यात्रा की । आगरा मुगलों की राजधानी थी । मुगलकालीन कला के अनेक नमूने यहाँ उपलब्ध हैं । मेरी यह यात्रा कई मायनों में अछूत और रोमांचक थी ।
मैं पिताजी, माँ एवं बड़े भाई के साथ दिल्ली से आगरे की यात्रा पर गया था । दिल्ली से आगरा अधिक दूर नहीं है, इसलिए हम लोग बस से गए । आगरे में हमने विश्वप्रसिद्ध ताजमहल देखा । ताजमहल आगरा की ही नहीं बल्कि पूरे भारतवर्ष की सबसे खूबसूरत इमारत है ।
इसे मुगल बादशाह शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताज महल की स्मृति में बनवाया था । सफेद संगमरमर से बना ताजमहल मुगल काल की भवन निर्माण कला का बेजोड़ नमूना है । इसे बीस हजार मजदूरों ने लगातार कार्य करके लगभग बाइस वर्षों में तैयार किया था ।
ताजमहल के मुख्य गुंबज की ऊँचाई 183 फुट है । ताजमहल की मुख्य इमारत में गुंबज के नीचे शाहजहाँ और मुमताज महल की कब्रें भी साथ-साथ हैं । ताजमहल की भव्यता को देखकर हम लोग अचंभित रह गए । ताजमहल की सुंदरता देखने आए देशी-विदेशी पर्यटकों की यहाँ काफी भीड़ थी ।
अगले दिन हमने आगरे का किला देखा । आगरे का किला दुनिया के सबसे अच्छे किलों में से एक है । इसका निर्माण मुगल बादशाह अकबर ने 23 वर्ष की उम्र में सन् 1565 में आरंभ करवाया था जो 1573 ई. में पूरा हुआ । लाल बलुआ पत्थर की भव्य दीवारों से घिरा आगरे का किला बहुत ही विशाल है ।
इसके चार प्रमुख द्वार हैं जिनमें से अमर सिंह द्वार ही पर्यटकों के लिए खुला है । इस द्वार पर चमकदार पत्थर जड़े हैं । किले के भीतर जहाँगीर महल की इमारत भी दर्शनीय एव अछूत है । शाहजहाँ ने अपने शासनकाल में मोती मस्जिद और दीवान-ए-खास की इमारत का निर्माण करवाया ।
इस विशाल किले को देखने में लगभग आधे दिन का समय लग गया । किले का शीशमहल मुगल काल की कला का बेजोड़ उदाहरण है । आगरे की ऐतिहासिक यात्रा को पूर्ण कर हम लोग दिल्ली लौट आए । मैंने अपने कैमरे में यहाँ की सुदर यादों को कैद कर लिया था । इन यादों को मैंने अपने एलबम में बहुत सँभालकर रखा है ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 9
एक मेले का दृश्य पर निबन्ध | Essay on Scene of a Fair in Hindi
हमारे देश में मेले बड़े ही लोकप्रिय हैं । अधिकांश मेले पर्व-त्योहारों के अवसर पर आयोजित किए जाते हैं । इनके अलावा व्यापार मेला, पुस्तक मेला कृषि मेला पशु मेला आदि भी बहुत उपयोगी मेले होते हैं । विभिन्न प्रकार के मेलों में भाग लेने से हमारा मनोरंजन और ज्ञानवर्धन होता है । हमें नवीनतम बातों की जानकारी होती है ।
पिछले वर्ष मैं कुंभ का मेला देखने गया । यह मेला प्रत्येक बारह वर्ष में इलाहाबाद में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदी के संगम स्थल पर आयोजित किया जाता है । कुंभ के मेले में लाखों लोग आते हैं तथा सगम पर पवित्र स्नान करते हैं । वैसे भी हमारे देश में गंगा स्नान का बहुत महत्त्व है । लोग विभिन्न अवसरों पर गंगा स्नान करने जाते हैं ।
कुंभ के मेले में भीड़ इतनी थी कि कहीं भी आना-जाना सरल नहीं था । चारों ओर जन-सैलाब उमड़ रहा था । पूरा मेला क्षेत्र दूधिया रोशनी से जगमगा रहा था । भीड़ को नियंत्रित करने के लिए हजारों की संख्या में पुलिस वाले खड़े थे ।
स्थान-स्थान पर रेलिंग तथा बाड़ लगाए गए थे । नदी तट पर लाखों की संख्या में लोग थे । सभी बारी-बारी से पवित्र स्नान कर रहे थे । इस अद्धुत दृश्य को देखने तथा कैद करने देशी-विदेशी पत्रकार, कैमरा मैन, फोटोग्राफर, टी.वी. चैनल वाले आदि आए हुए थे ।
मेले में तरह-तरह की दुकानें थीं । खाने-पीने की दुकानों में खाद्य वस्तुओं को सजाकर रखा गया था । अनेक दुकानों पर रंग-बिरंगे खिलौने घरेलू उपकरण बरतन साज-सज्जा की सामग्रियाँ आदि अनेकानेक वस्तुएँ बिक रही थीं । मेला स्थल पर प्रशासन की ओर से कई प्राथमिक चिकित्सा केंद्र स्थापित किए गए थे ।
बहुत से शौचालय भी बने थे । जगह-जगह पर रही वस्तुओं को फेंकने के डब्बे रखे गए थे । चारों ओर से लाउडस्पीकरों की आवाजें आ रही थीं । कैसेट, सी. डी. बेचने वाले लोक गीतों, फिल्मी गानों आदि को बजाकर लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे ।
जगह-जगह शामियाने लगे थे जिनमें धार्मिक प्रवचन चल रहा था । यहाँ वृद्ध तथा अधेड़ उम्र के लोगों की अच्छी-खासी सख्या थी । कहीं-कहीं गोष्ठियाँ हो रही थीं । मेले में कई तरह के खेल-तमाशे दिखाने वाले भी आए हुए थे । कोई काला जादू दिखा रहा था तो कोई नटों का खेल ।
कई प्रकार के झूले बच्चों तथा बड़ी का मनोरंजन कर रहे थे । सभी व्यक्ति अपनी-अपनी धुन में खोए हुए थे । सब अपनी मस्ती में थे । कुंभ के मेले में गेरुआ वस्त्रधारी साधु-संतों की एक बड़ी जमात थी । यहाँ आकर मुझे आश्चर्य हुआ कि हमारे देश में अभी भी इतने साधु-संत हैं । इनका विचित्र हाव-भाव लोगों को आकर्षित कर रहा था ।
कई साधु-संत टोलियाँ बनाकर भक्ति गीत गा रहे थे । संपूर्ण वातावरण भक्तिमय हो उठा था । यहाँ भिक्षुकों की भी बड़ी संख्या थी जो श्रद्धालुओं के सामने भिक्षा-पात्र फैलाकर भीख माँग रहे थे ।मैंने कुंभ का पवित्र स्नान किया । दिन भर घूम-घूम कर मेले का दृश्य देखता रहा ।
रात्रिकाल में मैंने वहीं पर आयोजित एक कवि सम्मेलन में भाग लेकर इसका आनंद उठाया । इसके बाद रेलवे स्टेशन पर आकर मैं मेला स्पेशल ट्रेन का इंतजार करने लगा । कुभ के मेले की यादें मेरे मन-मस्तिष्क में आज भी विद्यमान हैं । शायद यह पूरी दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला था ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 10
चिड़ियाघर की सैर पर निबन्ध | Essay for Kids on Visit to A Zoo in Hindi
चिड़ियाघर अर्थात् जीव-जंतुओं का एक सजीव संसार । दुर्लभ वन्य पशु-पक्षियों को किसी एक स्थान पर देखना हो तो चिड़ियाघर की सैर कीजिए । यहाँ शेर बाघ चीता अजगर भालू जैसे हिंसक एवं खतरनाक जीवों को अत्यंत निकट से देखा जा सकता है उनकी गतिविधियों का अध्ययन किया जा सकता है ।
यहाँ आकर पता चलता है कि मनुष्यों एवं घरेलू जीव-जंतुओं के संसार से अलग दुनिया में ऐसे जीव-जंतुओं का भी एक अनोखा संसार है जो सामान्यतया हमारी आँखों से ओझल रहता है । इनके बारे में अनेक लोग केवल किताबों में ही पड़ते हैं । टेलीविजन पर भी इनके आश्चर्यजनक संसार को देखा जा सकता है परंतु आँखों से प्रत्यक्ष देखने का आनंद ही कुछ और होता है ।
पिछले दिनों मुझे चिड़ियाघर की सैर का अवसर प्राप्त हुआ । हमारे विद्यालय की ओर से इस सैर का कार्यक्रम तैयार किया गया था । मैंने भी दो सौ रुपए जमा करा कर सैर करने वालों की सूची में अपना नाम लिखवाया । हम लोग बस से चिड़ियाघर पहुँचे ।
हमारे साथ विद्यालय के तीन शिक्षक भी थे । हमने टिकट लिया और चिड़ियाघर में चले गए । अंदर का दृश्य बड़ा ही लुभावना था । मेरा पहला परिचय एक लंगूर से हुआ । वह दाँते निकाल कर खों-खों कर रहा था । कुछ लोग इसके सामने मूँगफली फेंक रहे थे, जिसे उठाकर वह बड़े मजे से खा रहा था ।
दूसरे पिंजड़े में एक विशालकाय अजगर था । इतना बड़ा साँप ! मेरी तो चीख ही निकल गई । मगर वह सुस्त पड़ा था । बच्चे ताली बजाकर, बोल-बोलकर उसे जगा रहे थे, फिर भी कोई असर नहीं । मुझे तो यह कहावत याद आ गई कि:
”अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम । दास मलूका कह गए, सबके दाता राम ।। ”
अगले पड़ाव पर हमारा सामना एक भालू से हुआ । वह काला भालू पिंजड़े में यों ही उछल-कूद कर रहा था । फिर हमने बारी-बारी से मोर, शुतुरमुर्ग, कठफोड़वा, चील, नीलकंठ आदि रंग-बिरंगे पक्षियों को देखा । बहुत से पक्षी तो मेरे लिए नितांत अजनबी थे इन्हें मैं पहली बार देख रहा था ।
चिड़ियाघर में वन्य पशुओं का भी एक बड़ा संसार था । शेर, लोमड़ी, बाघ, चीता, नीलगाय, गैंडा, बारहसिंगा, कंगारू, जंगली सूअर आदि पशु अपनी-अपनी उपस्थिति से दर्शकों का मन मोह रहे थे । मेरी प्रसन्नता का उस समय कोई ठिकाना न रहा जब मैंने चिड़ियाघर के एक बगीचे में हिरनों के समूह को स्वच्छंद रूप से विचरण करते देखा । सभी हिरन चौकड़ी भरते हुए इधर-उधर उछल-कूद कर रहे थे ।
इसी बीच शेर ने लंबी दहाड़ मारी । इस अचानक दहाड़ से हम लोग डर गए । मैं समझ गया कि शेर को ‘वनराज’ क्यों कहा जाता है । वन में कौन-सा ऐसा जंतु होगा जो शेर की दहाड़ सुनकर न काँपता होगा । इस तरह चिड़ियाघर में हमने दो घंटे बिताए ।
फिर शिक्षक महोदय ने हमें यहाँ से निकलकर बस में बैठने के लिए कहा । रास्ते में बस को किसी रेस्टोरेंट के सामने रोककर हमने मजेदार नाश्ता किया । शाम होते-होते चिड़ियाघर की सैर की सुखद यादों के साथ हम लोग अपने-अपने घर चले गए ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 11
हमारे विद्यालय का पुस्तकालय पर निबन्ध | Essay on Our School Library in Hindi
विद्यार्थी और पुस्तकों के मध्य बड़ा गहरा नाता होता है । पुस्तकों से प्रेम का संबंध रखना प्रत्येक विद्यार्थी के लिए अनिवार्य होता है । पुस्तकें ही उसके सच्चे साथी, उसके मार्गदर्शक होते हैं ।
इसीलिए प्राय: सभी उच्च माध्यमिक विद्यालयों में एक पुस्तकालय होता है । पुस्तकालय विद्यार्थियों के लिए बड़े उपयोगी होते हैं । पुस्तकालय हमें अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर उम्मुख करता है । अध्ययन के लिए जिस शात एवं एकांत माहौल की आवश्यकता होती है वह यहाँ अनायास ही प्राप्त हो जाता है ।
हमारे विद्यालय में एक मध्यम आकार का पुस्तकालय है । यहाँ विविध विषयों की उपयोगी पुस्तकें बहुत ही व्यवस्थित ढग से रखी हैं । पुस्तकें रखने के लिए लकड़ी तथा स्टील की अलमारियाँ बनी हुई हैं । हमारे पुस्तकालय का एक अध्यक्ष है जिन्हें लाइब्रेरियन कहा जाता है । इनके अधीन एक अन्य सहयोगी तथा एक चपरासी है ।
चपरासी पुस्तकालय को साफ-सुथरा रखने तथा पुस्तकों को झाड़-फूँक कर सही दशा में रखने का महत्त्वपूर्ण कार्य करता है । दीमक तिलचट्टा आदि कीड़ों से बचाव के लिए समय-समय पर कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता है । हमारे पुस्तकालय में विभिन्न विषयों से संबंधित पुस्तकें हैं ।
यहाँ प्रेमचंद, दिनकर, महाकवि निराला, सुभद्रा कुमारी चौहान, शेक्सपीयर, वर्डत्वर्थ, चेखव, रस्किन, कार्ल मार्क्स आदि देशी-विदेशी प्रसिद्ध साहित्यकारों एवं विचारकों की महत्त्वपूर्ण कृतियाँ उपलब्ध हैं । इनके अतिरिक्त कला, विज्ञान, सभ्यता एवं संस्कृति पुरातत्व आदि विभिन्न विषयों की उपयोगी पुस्तकों का अनूठा संग्रह भी है ।
पाठ्यक्रम की पुस्तकें भी हैं जो विभिन्न कक्षा के निर्धन एवं आरक्षित वर्ग के विद्यार्थियों को मुफ्त दी जाती हैं । पुस्तकालय से पुस्तकें प्राप्त करने के लिए विद्यार्थियों को आत्म परिचय-पत्र दिखाकर एक कार्ड लेना पड़ता है । इस कार्ड में विभिन्न विद्यार्थियों को उपलब्ध कराई गई पुस्तकों का विवरण दर्ज किया जाता है ।
कोई भी विद्यार्थी अधिकतम एक महीने तक किसी पुस्तक को अपने पास रख सकता है । एक बार में केवल दो पुस्तकें उपलब्ध कराई जाती हैं । इन्हें सही दशा में लौटाकर पुन: अन्य पुस्तकें प्राप्त की जा सकती हैं । हमारे विद्यालय का पुस्तकालय छात्र-छात्राओं के लिए बहुत उपयोगी है ।
आधुनिक समय में पुस्तकों का मूल्य निरंतर बढ़ता जा रहा है । अत: सभी पुस्तकों को खरीदकर पढ़ना अधिकांश विद्यार्थियों के लिए संभव नहीं है । पुस्तकालय से हमें नि: शुल्क पुस्तकें उपलब्ध हो जाती हैं । इन्हें पढ़कर हम अपने ज्ञान की वृद्धि करते हैं ।
हमें पुस्तकालय से प्राप्त पुस्तकों को सँभालकर रखना चाहिए । पुस्तकों पर लिखकर इन्हें गंदा नहीं करना चाहिए । पुस्तकों को सही दशा में रखना प्रत्येक विद्यार्थी का कर्त्तव्य है ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 12
संग्रहालय की सैर पर निबन्ध | Essay on Visit to a Museum in Hindi
संग्रहालय अर्थात् वह स्थान जहाँ अनेक प्रकार की कलात्मक वस्तुएं मूर्तियाँ, ऐतिहासिक महत्त्व की वस्तुएँ, प्राचीन वस्त्राभूषण, युद्धास्त्र आदि संग्रह करके रखी जाती हैं ।
किसी विशेष श्रेणी की विभिन्न वस्तुओं को एक स्थान पर देखने के लिए संग्रहालय से अच्छी जगह कोई और नहीं हो सकती । सभी बड़े नगरों में किसी न किसी प्रकार का संग्रहालय अवश्य होता है । संग्रहालय को देखने से हमें क्षेत्र विशेष की नई बातों की जानकारी मिलती है । हमारे ज्ञान का दायरा विस्तृत होता है ।
जनवरी के दूसरे सप्ताह में हमारे विद्यालय की ओर से संग्रहालय दर्शन का एक कार्यक्रम बनाया गया । वाराणसी से छात्र-छात्राओं की टोली सारनाथ पहुँची । सारनाथ वाराणसी से मात्र दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । यह एक प्राचीन बौद्ध स्थल है । सम्राट अशोक ने यहाँ धर्मराजिका स्कूप का निर्माण कराया जिस पर चार शेर बने हुए हैं ।
ये शेर भारत के राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न हैं । हम लोग इस स्कूप को देखकर यहाँ स्थित पुरातत्व विभाग का सग्रहालय देखने पहुँचे । यहाँ विभिन्न वस्तुओं को आकर्षक ढंग से सजा कर रखा गया था । बुद्ध की प्रतिमाएँ प्रदर्शित की गई थीं जिनमें उनके जीवन की झाँकी थी । ऐसा लग रहा था जैसे सग्रहालय में साक्षात बुद्ध विराजमान हैं ।
अपने अनुयायियों को उपदेश देते बुद्ध की प्रतिमा बहुत ही आकर्षक लग रही थी । इनकी शांत एवं गंभीर मुद्राएँ हमें सत्य अहिंसा अपरिग्रह आदि का संदेश देती प्रतीत हो रही थीं । बौद्ध प्रतिमाओं के अलावा सग्रहालय में बुद्ध से संबंधित शिलालेख भी थे ।
इन शिलालेखों को देखकर हमें बौद्ध धर्म की प्रमुख शिक्षाओं की जानकारी मिली । हमारे शिक्षक महोदय ने हमें संग्रहालय में रखी प्रतिमाओं एव शिलालेखों के बारे में भी जानकारी दी । अधिकतर शिलालेख सम्राट अशोक के शासनकाल के थे ।
ध्यान देने योग्य तथ्य है कि सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद शस्त्रों का त्याग कर दिया था । युद्ध में निर्दोष व्यक्तियों की हत्या से द्रवित होकर अशोक ने हिंसा का मार्ग त्यागकर धर्म का मार्ग चुना । विभिन्न स्थानों पर बौद्ध धर्म के शिलालेख लिखवाना अशोक के धर्म प्रचार का एक माध्यम था ।
सारनाथ के संग्रहालय को देखकर हम लोग निकट स्थित रामनगर का किला और यहाँ स्थित संग्रहालय देखने चले गए । मार्ग में हमने गरम समोसे पकौड़े फल बिस्कुट आदि खाए । रामनगर का किला गंगा नदी के तट पर स्थित है ।
यह किला बनारस के राजा का आवासीय महल भी रहा है । किले में एक संग्रहालय है । यहाँ शाही वस्तुएँ रखी गई हैं । पुरानी विंटेज कारें, शाही पालकियाँ तलवारें, पुरानी बंदूकें आदि बहुत सँभालकर रखी गई हैं । इन वस्तुओं के अलावा यहाँ हाथी दाँत की दुर्लभ कलाकृतियाँ प्राचीन घड़ियाँ आदि भी सुरक्षित रखी गई हैं ।
इन प्राचीन साज-सामानों को देखते समय हम लोग शताब्दी पीछे की दुनिया में चले गए । हमने बहुत बारीकी से इन वस्तुओं का निरीक्षण किया । फिर शाम सात बजे तक हम लोग स्कूल बस से वाराणसी लौट आए ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 13
एक गाँव की यात्रा पर निबन्ध | Essay on Visit to a Village in Hindi
भारत की लगभग सत्तर प्रतिशत आबादी गाँवों में बसती है । अत: भारत को गाँवों का देश कहा जाता है । महानगरीय जीवन की भाग-दौड़ के विपरीत यहाँ जीवन में एक ठहराव है, एक शांति है । यहाँ नगरों जैसी चकाचौंध तो नहीं है परंतु प्रकृति की सुंदरता अवश्य है ।
यहाँ खुली धूप है, बाग-बगीचे, पूजा के स्थान, खेत-खलिहान आदि हैं जो ग्रामीण जीवन को खुशहाल बनाने के लिए पर्याप्त हैं । यहाँ की वायु प्रदूषण मुक्त है, यहाँ का जल गरमियों में भी शीतल है । यहाँ पक्षियों का कलरव है, कोयल की मधुर कूक है ।
मैं झारखंड की राजधानी राँची में रहता हूँ । यहाँ हमारा स्थायी निवास-स्थान है परंतु हमलोग गाँव के ही मूल निवागी हैं । पिछली गरमी की की में हम लोग अपने पैतृक गाँव गए । अपने पैतृक गाँव की यात्रा का कार्यक्रम बना तो उसी समय से मेरी उत्सुकता बढ़ गई । यह किसी गाँव की मेरी पहली यात्रा थी ।
हम लोग सड़क मार्ग से अपने गाँव गए । मुझे यह देखकर खुशी हुई कि मेरे गाँव तक पक्की सड़क जाती है । ग्रामीण क्षेत्र में प्रवेश करते ही धान के लहलहाते खेत दिखाई पड़े । कुछ किसान ट्यूब वेल से फसलों की सिंचाई कर रहे थे । कई किसान अपने खेतों की फसलें काट रहे थे । कहीं ट्रैक्टर से खेतों की जुताई चल रही थी । वे रबी फसल लगाने की तैयारी कर रहे थे ।
हमारे गाँव के बाहर एक बड़ा सा तालाब था । तालाब में हंस तैर रहे थे । इस शांत वातावरण में हंसों को तैरते देखना बड़ा ही आनंददायी था । तालाब के निकट गाँव का प्राचीन शिव मंदिर स्थित था । पिताजी ने बताया यहाँ प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के दिन मेला लगता है । हम लोगों ने मंदिर के निकट अपनी गाड़ी खड़ी की तथा जूते-चप्पल आदि उतारकर ईश्वर को नमस्कार किया ।
इसके बाद हम लोग गाँव में स्थित अपने निवास-स्थान की ओर चल पड़े । हमारा पुराना घर रखरखाव के अभाव में काफी गंदा था । हमने यहाँ साफ-सफाई की । गाँव के हमारे सगे-संबंधियों ने हमारा स्वागत किया, हमारे लिए भोजन आदि का प्रबंध किया ।
गाँव के सभी लोग बहुत आत्मीयता से मिले । ऐसी आत्मीयता के दर्शन शहरों में प्राय: दुर्लभ होते हैं । गाँव की इस यात्रा के दौरान मैंने खेत-खलिहानों बाग-बगीचों का खूब चक्कर लगाया । गन्ने चूसे, फलियाँ खाई । मैं ग्रामीण हाट भी गया । यहाँ हरी-ताजी सब्जियों का ढेर लगा था और वह भी सस्ती ।
हाट में सब्जियाँ, अनाज, फल, कपड़े, गुड़ तथा मिठाइयाँ बिक रही थीं । हाट के एक सिरे पर मांस, मछली, मुरगा, कबूतर, अंडे आदि बिक रहे थे । हाट में एक मदारी आया था जो बंदरों को डमरू की ताल पर नचा रहा था । इस ग्रामीण हाट में आस-पास के गाँवों के लोग खरीद-बिक्री के लिए आए थे । मैंने गुड और सब्जियाँ खरीदीं ।
हमारे गाँव में बिजली तो नहीं थी परंतु बिजली के खंभे जरूर गड़े थे । पूछने पर पता चला ये वर्षों से गड़े हैं परंतु विद्युत आपूर्ति शुरू नहीं हुई है । यही कारण था कि सभी लोग रोशनी के लिए लालटेन पर निर्भर थे । कुछ किसानों के घर गोबर गैस संयंत्र थे ।
इनसे प्राप्त गैस से रोशनी की जाती थी तथा खाना पकाया जाता था । कुछ ग्रामीण परिवारों में सौर ऊर्जा का प्रयोग हो रहा था । मेरे गाँव के अधिकतर लोगों का व्यवसाय कृषि था । कुछ लोग कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी करते थे । गाँव में एक प्राथमिक विद्यालय तथा एक स्वास्थ्य केंद्र खुला था ।
पास ही पंचायत भवन बना हुआ था । यहाँ ग्रामीण महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई चटाई बुनने हथकरघे पर वस्त्र तैयार करने आदि का प्रशिक्षण दिया जा रहा था । गाँव में एक सरकारी राशन की दुकान थी जहाँ मिट्टी का तेल गेहूँ आदि रिआयती दर पर मिलता था ।
हमने पूरा एक महीना गाँव में बिताया । ग्रामीण जन-जीवन को देखा, इसका आनंद उठाया । यहाँ अब भी काफी गरीबी थी परंतु आपसी भाईचारा था । मेरी गाँव की यात्रा अविस्मरणीय थी ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 14
हमारे प्रधानाध्यापक/प्रचार्य/मुख्याध्यापक पर निबन्ध | Essay on Our Head Master in Hindi
विद्यालय में कई अध्यापक होते हैं । इनमें से एक प्रधान या मुख्य अध्यापक होते हैं जिन्हें प्रधानाध्यापक या प्राचार्य कहा जाता है । प्रधानाध्यापक विद्यालय की पूरी व्यवस्था सँभालते हैं ।
वे अध्यापकों एवं छात्र-छात्राओं का मार्गदर्शन करते हैं । विद्यालय में होने वाला प्रत्येक कार्य इनकी निगरानी में होता है । प्रधानाध्यापक अपने विद्यालय के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं । विद्यालय की शिक्षा व्यवस्था विद्यालय का अनुशासन तथा अन्य गतिविधियों की संपूर्ण जवाबदेही इन्हीं पर होती है ।
हमारे प्राचार्य का नाम डॉ विकास श्रीवास्तव है । ये अँगरेजी भाषा के विद्वान हैं । इन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से अँगरेजी में एम.ए तथा पी.एच.डी. की हुई है । हमारे प्राचार्य ऊपर से बड़े सख्त परंतु अदर से बड़े दयालु हृदय के हैं । इन्हें अनुशासन बहुत ही प्रिय है ।
विद्यालय परिसर में किसी भी तरह की अव्यवस्था को ये सहन नहीं करते । इनकी एक दहाड़ सुनकर ही विद्यार्थियों में भय व्याप्त हो जाता है । अध्यापकगण भी इनसे सहमे-सहमे से रहते हैं । वे स्वयं विद्यालय समय पर आते हैं तथा अन्य शिक्षकों से भी यही उम्मीद रखते हैं ।
हमारे प्रधानाचार्य बहुत ही परिश्रमी व्यक्ति हैं । अपने कक्ष में खाली बैठे इन्हें कभी किसी ने नहीं देखा । हर एक घंटे के बाद वे राउड लगाते हैं तथा छात्र-छात्राओं की गतिविधियों का ध्यान रखते हैं । विद्यालय में प्रतिदिन प्रार्थना होती है जिसमें विद्यार्थियों एव अन्य शिक्षकों के साथ हमारे प्राचार्य महोदय भी नियमित रूप से भाग लेते हैं ।
विभिन्न अवसरों पर वे विद्यालय के प्रांगण में एकत्रित विद्यार्थियों को संबोधित करते हैं । इनका संबोधन बड़ा ही आकर्षक एवं प्रेरणादायी होता है । यद्यपि हमारे विद्यालय में अध्यापकों की कमी नहीं है फिर भी प्राचार्य महोदय प्रतिदिन दो या तीन कक्षा में जाकर बच्चों को अँगरेजी पढ़ाते हैं ।
पढ़ाते समय वे विषय-वस्तु की तह तक जाते हैं तथा सरल भाषा में इस प्रकार समझाते हैं कि विद्यार्थी के मस्तिष्क में उनकी बताई हुई बात स्थाई रूप से अंकित हो जाती है । हमारे प्राचार्य का सिद्धांत है, पढ़ाई के समय में पढ़ाई तथा खेल के समय में खेल । यदि खेल पीरियड में कोई विद्यार्थी अनुपस्थित रहता है तो वे उसे बाद में बुलाकर उसकी खिंचाई करते हैं ।
अनुशासनहीनता के गंभीर मामलों में उन्हें दोषी विद्यार्थियों को विद्यालय से निष्कासित करने में भी संकोच नहीं होता । हमारे प्रधानाध्यापक निर्धनतम विद्यार्थियों की मदद करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं । निर्धन तथा मेधावी छात्रों को छात्रवृत्ति देते हैं ।
परीक्षा में असफल छात्र-छात्राओं के लिए वे विशेष कक्षाएं आयोजित करवाते हैं । पढ़ाई में पिछड़ रहे छात्रों के अभिभावकों को अपने कक्ष में बुलाकर उन्हें विशेष हिदायत देते हैं । क्रीड़ा भाषण प्रतियोगिता तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से वे विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास का प्रयत्न करते हैं ।
हमारे प्राचार्य एक ईमानदार एव कर्त्तव्यनिष्ठ व्यक्ति हैं । उन्हें अपने विद्यालय तथा अपने विद्यार्थियों से प्रेम है । वे अपने विद्यालय को एक आदर्श विद्यालय के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित हैं । उन्हें देखते ही हमारा सिर श्रद्धा से युक्त होकर झुक जाता है ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 15
आदर्श विद्यार्थी पर निबन्ध | Essay on An Ideal Student in Hindi
बहुत से व्यक्ति अपने जीवन के सभी कालखंडों को आदर्श मानकर जीते हैं । जीवन में यदि आदर्श न हो तो यह भार-स्वरूप हो जाता है । विद्यार्थी जीवन का भी एक आदर्श होता है एक उद्देश्य होता है ।
ज्ञान की प्राप्ति विद्यार्थी जीवन का सर्वोत्तम आदर्श है । आदर्श विद्यार्थी वह है जो हमेशा अपने इस लक्ष्य को ध्यान में रखे । आदर्श विद्यार्थी अपना ध्यान अपनी पढ़ाई-लिखाई पर केंद्रित रखता है । व्यर्थ की बातें, गपशप, मौज-मस्ती दोस्तों के साथ गुलछर्रे उड़ाना आदि क्रियाकलापों से वह हमेशा दूर रहता है ।
वह समय पर उठता है और समय पर सोता है । वह समय पर पढ़ता है तथा समय पर खेलता भी है । उसे अच्छी पुस्तकों से प्रेम होता है, वह हमेशा अपने ज्ञान का विस्तार करना चाहता है । वह गुरुजनों का सम्मान करता है वह माता-पिता का आदर करता है ।
वह गुरुओं एवं बुजुर्गों से ज्ञान एवं अनुभव की बातें सीखने की चेष्टा करता है । विनम्रता और सच्चरित्रता आदर्श विद्यार्थी के गुण हैं । जिसे विद्या की चाह हो उसे विनम्र होना पड़ेगा । जिसे प्यास हो उसे कुएँ के पास जाना पड़ेगा । चारित्रिक गुणों से युक्त व्यक्ति ही आदर्श विद्यार्थी हो सकता है ।
उद्दंडता, घमंड, मिथ्या, गर्व और अहंकार विद्यार्थी को कुमार्ग पर ले जाते हैं । आदर्श विद्यार्थी को सीधा और सच्चा होना चाहिए । उसके दैनिक क्रियाकलाप नियमित होने चाहिए । उसे अति निद्रा और अति भोजन से बचना चाहिए । उसे परिश्रमी एवं अध्ययनशील होना चाहिए । कहा भी गया है कि
‘सुखार्थिन: कुते: विद्या, विद्यार्थिन: कुत: सुखम् ।’
अर्थात् सुख चाहने वाले को विद्या की प्राप्ति नहीं हो सकती तथा विद्या चाहने वालों को सुख कहाँ ! अत: विद्यार्थी को अपने क्षण-क्षण की कीमत समझनी चाहिए । उसे समय का मोल समझना चाहिए । उसे फैशन, शरीर के साज-श्रुंगार, सिनेमा आदि से बचना चाहिए ।
उसे ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के सिद्धांत का पालन करना चाहिए । उसे पठन-पाठन के क्रम में नीति ज्ञान की शिक्षा भी ग्रहण करनी चाहिए । सदाचार और स्वावलंबन आदर्श विद्यार्थी के लिए जरूरी गुण हैं । आदर्श विद्यार्थी को पड़ने-लिखने के अलावा विद्यालय की अन्य गतिविधियों में भी भाग लेना चाहिए ।
नाटक, चित्रकला, प्रतियोगिता, सांस्कृतिक कार्यक्रम, भाषण एवं वाद-विवाद प्रतियोगिता खेल-कूद की प्रतिस्पर्द्धा आदि में शामिल होकर उसे अपने गुणों का विकास करना चाहिए । उसे सामाजिक कार्यो में भी शामिल होना चाहिए । उसे समय-समय पर देशाटन एवं दर्शनीय स्थानों का भ्रमण करना चाहिए । ये सभी कार्य उनके आत्मविश्वास में वृद्धि करते हैं ।
आदर्श विद्यार्थी अपने आदर्श से कभी विचलित नहीं होता है । वह कठिनाइयों का डटकर मुकाबला करता है । वह सहनशील संयमी मिलनसार परिश्रमी एवं कर्त्तव्यपरायण होता है । ये गुण उसके आगामी जीवन की राहों को प्रशस्त करते हैं । वह आगे चलकर राष्ट्र का एक आदर्श नागरिक बन जाता है ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 16
परीक्षा भवन का दृश्य पर निबन्ध | Essay on Scene in An Examination Hall in Hindi
परीक्षा भवन के मुख्यत: दो दृश्य होते हैं । एक परीक्षा भवन के बाहर का दृश्य, दूसरा अंदर का दृश्य । परीक्षा आरभ होने से कुछ समय पूर्व ही परीक्षार्थी परीक्षा भवन के बाहर जमा होने लगते हैं ।
इस समय ऊपरी तौर पर काफी चहल-पहल रहती है परतु भीतर ही भीतर परीक्षार्थियों में परीक्षा का भय व्याप्त रहता है । सभी एक-दूसरे की तैयारी के संबंध में हल्की-फुल्की बातें करते हैं । कौन-कौन से संभावित प्रश्न हैं, इस विषय में थोड़ी चर्चा की जाती है ।
जिन विद्यार्थियों की तैयारी अधिक अच्छी नहीं होती उनके मुखमंडल पर चिंता की रेखाएँ स्पष्ट देखी जा सकती हैं । परीक्षा भवन के बाहर लगे सूचना पट्ट पर सभी विद्यार्थियों का ध्यान रहता है । यहीं से पता चलता है कि किसकी सीट किस हॉल में है ।
परीक्षा आरंभ होने से पूर्व सूचना पट्ट पर भीड़-भड़ाका एक सामान्य दृश्य है । परीक्षार्थी अपना हॉल नंबर ज्ञात कर हॉल की तरफ जाने के लिए उतावले दिखाई देते हैं । परीक्षा भवन के भीतर का दृश्य काफी शांत होता है । सभी अपनी-अपनी सीट पर गंभीर मुद्रा में बैठे दिखाई देते हैं ।
इस बीच परीक्षा निरीक्षक आते हैं तथा परीक्षार्थियों को उत्तर पुस्तिकाएँ बाँटते हैं । सभी परीक्षार्थी उत्तर पुस्तिकाओं में सावधानीपूर्वक अनुक्रमांक, परीक्षा केंद्र, कोड आदि भरने लगते हैं । इस समय परीक्षार्थीगण बड़े तनावग्रस्त होते हैं । क्या पता कौन सा प्रश्न आ जाए ? यदि पढ़े हुए प्रश्नोत्तर न आएँ तब क्या होगा ?
उत्तर पुस्तिका बँट जाने के बाद यदि कोई परीक्षार्थी परीक्षा हॉल में प्रवेश करता है तो उसकी हालत देखने लायक होती है । विलंब होने के कारण वह अत्यधिक घबराहट की स्थिति में होता है । उत्तर पुस्तिका भरते समय पर्यवेक्षक परीक्षार्थियों को कुछ निर्देश देते हैं ।
बोर्ड तथा प्रतियोगिता परीक्षाओं के समय यह निर्देश बहुत आवश्यक होता है । इस निर्देश के अलावा वे परीक्षार्थियों को नकल करने के विरुद्ध चेतावनी देते हैं । वे सभी परीक्षार्थियों को अपने पास परीक्षोपयोगी सामग्री के अलावा कुछ भी न रखने की सलाह देते हैं ।
नकल करते समय पकड़े जाने पर वे परीक्षा से निष्कासन तथा जुर्माने का दंड भुगतने की चेतावनी देते हैं । उनके निर्देश पर बहुत से विद्यार्थी परची या परीक्षा में सहायक अन्य सामग्री पर्यवेक्षक के पास जमा करा देते हैं । दूसरी घंटी बजती है और प्रश्न-पत्र का वितरण होने लगता है ।
सभी परीक्षार्थी सिर झुकाकर प्रश्न-पत्र पढ़ने में तल्लीन हो जाते हैं । परीक्षा भवन में पूरी स्तब्धता छा जाती है । बीच-बीच में किसी के खाँसने तथा पन्ने पलटने की आवाज आती रहती है । परीक्षा का पहला घटा किस तरह गुजर जाता है पता ही नहीं चलता ।
पहला घटा बीत जाने की घंटी बजते ही परीक्षार्थियों की कलम और तेजी से चलने लगती है तथा मस्तिष्क पूरी तरह एकाग्र हो जाता है । परीक्षा में नकल करने वालों की भी कमी नहीं, वे तिरछी नजरों से पर्यवेक्षक को देखते हुए पलक झपकते ही अपनी जेब या जूते आदि में छिपाकर रखी हुई परची निकाल लेते हैं । प्राय: वे पकड़े भी जाते हैं ।
पर्यवेक्षक उसकी उत्तर पुस्तिका छीन लेते हैं अथवा उसे परीक्षा से निष्कासित कर देते हैं । पर्यवेक्षक पर उसके गिड़गिड़ाने का कोई असर नहीं होता । तब उसकी स्थिति बड़ी नाजुक होती है । उसे अपने किए पर पछताना पड़ता है ।
परंतु इसका कोई लाभ नहीं होता । कुछ पर्यवेक्षक विद्यार्थियों के प्रति नरम होते हैं । किसी-किसी को वे केवल चेतावनी देकर छोड़ देते हैं अथवा कुछ देर तक उसकी उत्तर पुस्तिका जब्द कर रख लेते हैं । कुछ परीक्षार्थी इतने ढीठ होते हैं कि परीक्षक की बार-बार की चेतावनी के बावजूद वे अपनी गलत हरकतों से बाज नहीं आते ।
परीक्षा के दौरान वाई परीक्षार्थियों को प्यास लगती है तो वह खड़ा होकर पानी माँगता है । तब चपरासी उसे पानी पिलाता है । जब किसी को शौचालय जाने की इच्छा होती है तो उसे इसकी आज्ञा लेनी पड़ती है । कई विद्यार्थी अतिरिक्त उत्तर पुस्तिकाओं की माँग करते हैं ।
परीक्षा समाप्ति का समय ज्यों-ज्यों करीब आता है परीक्षार्थियों की घबराहट उतनी ही बढ़ती जाती है । कलम की गति और भी तेज हो जाती है । आखिरी घंटी बजने पर पर्यवेक्षक परीक्षार्थियों की सीट पर जाकर उत्तर पुस्तिकाएँ लेने लगते हैं ।
परीक्षार्थियों की कलम जहाँ की तहाँ रुक जाती है । परीक्षा भवन से निकलते समय अधिकांश परीक्षार्थियों के चेहरे पर प्रसन्नता और राहत के भाव देखे जा सकते हैं । परीक्षा ठीक न जाने पर कुछ विद्यार्थियों के मुखमंडल पर मायूसी का भाव भी स्पष्ट देखा जा सकता है ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 17
हमारा विद्यालय पर निबन्ध | Essay on Our School in Hindi
हमारे विद्यालय का नाम राजकीय सह-शिक्षा उच्च माध्यमिक विद्यालय है । यह गोरखपुर में स्थित है । हमारे विद्यालय में कक्षा छह से कक्षा दस तक की पढ़ाई होती है ।
हमारे विद्यालय में लगभग बारह सौ छात्र-छात्राएँ हैं । विद्यालय का भवन आधुनिक ढग का है जिसमें अड़तीस कमरे हैं । हमारे विद्यालय की प्रत्येक कक्षा में दौ या तीन उपविभाग (सैक्सन) हैं । विद्यालय का प्रागण विशाल है जिसमें खड़े होकर हम लोग प्रार्थना करते हैं तथा सामूहिक पी.टी. होती है ।
विद्यालय में पेय जल तथा शौचालय की अच्छी व्यवस्था है । विद्यालय का वातावरण हरा-भरा है, विद्यालय के परिसर में पेड़-पौधे पर्याप्त संख्या में हैं । हमारे विद्यालय में एक बैठकर छात्र-छात्राएँ एवं शिक्षकगण नाश्ता करते हैं समोसा और सैंडविच बड़ा ही स्वादिष्ट होता है ।
हमारे विद्दालय में एक पुस्तकालय भी है । पुस्तकालय में विभिन्न प्रकार की उपयोगी पुस्तकें हैं । साहित्य, विज्ञान, कला, भूगोल, इतिहास आदि विभिन्न विषयों की पुस्तकें यहाँ उपलब्ध हैं । पुस्तकालय से पुस्तकें प्राप्त कर हम लोग अपने घर भी ले जा सकते हैं जिसके लिए छात्र परिचय-पत्र दिखाना होता है ।
हमारे विद्यालय में लगभग चालीस शिक्षक-शिक्षिकाएँ हैं । सभी अध्यापक अनुशासन-प्रिय हैं । हमारे प्राचार्य महोदय बड़े ही योग्य एव विद्वान व्यक्ति हैं । वे विद्यार्थियों की समस्याओं को बहुत ध्यान से सुनते हैं तथा उन्हें हल करने का प्रयास करते हैं ।
इन्हें सदैव ध्यान रहता है कि कभी भी कोई क्लास खाली न रहे । हमारे प्राचार्य महोदय समय के बड़े पाबंद हैं । बीस मिनट से अधिक विलंब से आने पर किसी भी छात्र या छात्रा को विद्यालय में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाती । हमारे विद्यालय में शिक्षा के साथ-साथ चरित्र निर्माण पर भी बहुत जोर दिया जाता है ।
समय-समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रम वाद-विवाद प्रतियोगिता खेल-कूद प्रतियोगिता आदि का आयोजन होता है । हमारे विद्यालय में संगीत शिक्षा भी दी जाती है । विद्यालय में गणतंत्र दिवस स्वतंत्रता दिवस बाल दिवस तथा शिक्षक दिवस बड़े ही उल्लासपूर्ण ढंग से मनाया जाता है ।
विद्यालय में शिक्षकों के अलावा तीन क्लर्क दो माली एव पाँच चपरासी भी हैं । एक गेटकीपर है जो विद्यालय के मुख्य द्वार पर खड़ा रहकर छात्र-छात्राओं की गतिविधियों पर निगरानी रखता है । वह असामाजिक तत्वों को विद्यालय में प्रवेश करने से रोकता है ।
हमारे विद्यालय में कंप्यूटर शिक्षा का विशेष प्रबध है । यह एक अनिवार्य विषय बना दिया गया है । इसके अतिरिक्त विद्यालय में एक विज्ञान प्रयोगशाला भी है जिसमें आधुनिक वैज्ञानिक उपकरण हैं । कुल मिलाकर हमारा विद्यालय एक आदर्श विद्यालय है ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 18
चाँदनी रात में सैर पर निबन्ध | Essay on Visit in a Moonlight Night in Hindi
चंद्रमा के बारे में कहावत है कि ‘चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात’ अर्थात् एक महीने में कुछ ही दिनों की चाँदनी रात का आनंद उठाया जा सकता है । आसमान में यों तो करोड़ों सितारे हैं परंतु एक चंद्रमा अपने प्रभाव से इनकी रोशनी को निष्प्रभावी कर देता है । चंद्रमा की शीतल किरणें पृथ्वीवासियों का मन मोह लेती हैं ।
चाँदनी रात में सैर करने का मजा ही कुछ और है । हर कोई ठगा-सा रह जाता है । धरती रानी सर्वत्र दुग्ध-धवल रूप में दिखाई देती है । सैर करने वालों की आँखें अपने चारों ओर के अस्पष्ट से दृश्य को देखकर प्रफुल्लित हो जाती हैं मन तृप्त हो जाता है ।
चाँदनी रात में खाना खाकर टहलने के लिए जाना बहुत ही शांतिदायक अनुभव है । कृत्रिम रोशनी की आवश्यकता नहीं चंद्रमा ही हमारा मार्गदर्शन करता है । यदि चाँदनी रात में किसी फुलवारी में टहला जाए तो आनंद और भी बढ़ जाता है ।
बेली के फूलों की मादक गंध लिए वायु के मंद-मंद झोंके हमारे मन-प्राणों में एक नई उमंग एक नया उत्साह भर देते हैं । रात्रिकालीन नीरवता चाँदनी के सग घुल-मिल कर बड़ा ही मनमोहक दृश्य उपस्थित करती है । कवि की कल्पना जाग उठती है तथा लेखनी के रूप में इस प्रकार प्रकट होती है:
”चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल-थल में, स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अंबर तल में ।”
चाँदनी पूरे भू-भाग पर, एक सफेद-स्वच्छ चादर की भाँति बिछ जाती है । धरती और आकाश के बीच चाँद एक सेतु का कार्य करता है । चंद्रमा की चंचल किरणें संपूर्ण प्रकृति के साथ खेल खेलती हैं । चंद्रमा ने अपनी किरणों से अंधकार का नाश कर दिया है । नदियों, सरोवरों, झीलों, झरनों और सागर के जल में चाँदनी रात का दृश्य बड़ा मनोहारी होता है ।
प्रकृति ही क्यों, मानव निर्मित कलाकृतियाँ भी चैद्र रश्मियों से नहा उठती हैं । सफेद संगमरमर से निर्मित ताजमहल चाँदनी में जगमगाता हुआ बहुत आकर्षक प्रतीत होता है । पूर्णिमा की रात्रि में इस ऐतिहासिक इमारत की सुदरता को देखने के लिए हजारों पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है । इसे भी तो चाँदनी रात की सैर कहा जा सकता है ।
चाँदनी रात में नौका-विहार करना बहुत आनंददायक होता है । नदी तट का शांत वातावरण मन में एक नया उल्लास उत्पन्न करता है । पूर्णिमा की चाँद को छूने की चेष्टा में सागर में ऊँचे-ऊँचे ज्वार उठने लगते हैं । चाँदनी रात में सागर तट पर सैर करना अज्ञात स्वर्ग को पा लेने जैसा है ।
सागर और नदी तट पर स्थित बालुका राशि रत्नों के समान चमक बिखेरने लगती हैं । कछुए और मगरमच्छ जल से बाहर निकल कर चाँदनी का भरपूर आनंद उठाते हैं । दूर-दूर तक फैला दूधिया प्रकाश मन को आहादित कर देता है । चाँदनी रात में सैर करने वाले भाग्यशाली हैं । प्रकृति प्रेमी ऐसे सुअवसर का भरपूर लाभ उठाते हैं ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 19
छात्र और अनुशासन पर निबन्ध | Essay on Student and Discipline in Hindi
छात्र जीवन में बहुत-सी बातों का महत्व है जिनमें से एक अनुशासन भी है । अनुशासन का अर्थ है, शासन या नियंत्रण को मानना, नियम-कायदे को स्वीकार करना । छात्र यदि अनुशासित हो तो उसकी राहें आसान हो जाती हैं । अनुशासन उसे उसकी मंजिल तक पहुँचा देता है ।
बचपन अनुशासित होना नहीं चाहता उसे अनुशासित करना पड़ता है । बचपन में तरह-तरह के खेल बड़े प्रिय होते हैं पढ़ाई-लिखाई भार स्वरूप लगती है । मन भटकता है, वह उड़ान भरता है । ऐसे में परिवार एव विद्यालय उसे अनुशासन की शिक्षा देते हैं ।
उसकी दैनिक दिनचर्या को नियमबद्ध किया जाता है । आधुनिक युग में तो तीन वर्ष की उम्र से ही बच्चों को विद्यालय भेजा जाने लगा है । क्या यह अति अनुशासन नहीं ? पाँच वर्ष के बच्चों को ही विद्यालय भेजा जाना चाहिए ।
पाँच वर्ष से बीस वर्ष का समय छात्र जीवन का स्वर्णिम काल होता है । इस कालखंड में ग्रहण की गई शिक्षा पूरे उम्र काम आती है । माता-पिता या शिक्षक इसी उम्र में बच्चों के कोरे मस्तिष्क में बहुत कुछ लिख सकते हैं । उसे अनुशासन का पाठ पढ़ा सकते हैं ।
परंतु सभी छात्रों पर शिक्षा-दीक्षा का समान प्रभाव नहीं पड़ता । बहुत से छात्र उद्दंडता असभ्यता एवं लज्जाहीनता का आवरण ओढ़कर परिवार विद्यालय एवं समाज को कलंकित करते हैं । आज के छात्र पहले से कहीं अधिक अनुशासनहीन हैं । वे अभिभावकों का अनादर करते हैं, शिक्षकों की अवहेलना करते हैं ।
छात्र पढ़ने-लिखने के बजाय टेलीविजन से चिपके रहने में खुशी महसूस करते हैं । वे चिड़चिड़े, मतलबी तथा आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं । वे सहपाठियों से झगड़ा एवं मारपीट करते रहते हैं । उन्हें शैशवकाल से ही धूम्रपान का चस्का लग जाता है । वे अपने जेब खर्च के प्रति अधिक सजग हो गए हैं ।
जेब खर्च न मिलने पर उन्हें घर में ही चोरी करनी पड़ रही है । आज के विद्यार्थी सुखार्थी बन गए हैं । उन्हें बाजारू भोजन प्रिय है । उन्हें चरित्र-निर्माण की कोई चिंता नहीं । उन्हें अभिभावकों की सीख बहुत बुरी लगती है । उन्हें होमवर्क करने में आलरूग् का अनुभव होता है ।
देर रात तक जागना तथा सुबह देर से उठना उन्हें प्रिय है । वे घर के कामों में माता-पिता का हाथ नहीं बँटाना चाहते । आधुनिक सुख-सुविधाओं का उपभोग, सैर-सपाटा, फास्ट फूड आदि उनके जीवन के अभिन्न अंग बन चुके हैं ।
फिल्मों के अभिनेता और अभिनेत्रियाँ उनके आदर्श हैं । छात्र जीवन अश्लीलता और असभ्यता का पर्याय बनता जा रहा है । माता-पिता एवं अग्रजों से अभद्र भाषा में बातचीत करना इनकी आदत बनती जा रही है । छात्र-छात्राओं में उग्रता एवं चचलता बढ़ती जा रही है । वह गुरु को श्रद्धा की दृष्टि से नहीं देखता ।
अनुशासनहीनता के कारण विद्यालय का माहौल दूषित होता जा रहा है । छात्र कक्षाओं से अनुपस्थित रहने लगे हैं । विद्यालय परिसर में छात्र नारेबाजी करने लगे हैं, विद्यालय की परीक्षाओं का बहिष्कार करने लगे हैं । वे परीक्षा में नकल करने की कला में प्रवीण हो गए है ।
इन स्थितियों से बचने के लिए आवश्यक है कि दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति को समाप्त किया जाए । विद्यालयों का वातावरण गुरु-शिष्य परपरा के अनुकूल बनाया जाए । ऐसे शिक्षकों की नियुक्ति की जाए जो नीति निपुण एवं चरित्रवान हों । अभिभावकों का भी कर्त्तव्य है कि वे अपने घर के माहौल को अनुशासित करें । वे स्वयं अपने बच्चों के लिए आदर्श बनें ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 20
छात्र जीवन पर निबन्ध | Essay on Student Life in Hindi
पाँच वर्ष की उम्र से लेकर पच्चीस वर्ष तक की उम्र का काल अध्ययन मनन तथा ज्ञानार्जन का काल माना जाता है । आधुनिक युग में रोजगार की अनेक संभावनाओं का जन्म हुआ है । प्रत्येक छात्र जी-तोड़ श्रम कर अच्छे से अच्छा रोजगार पाना चाहता है । आज शिक्षा का यह एकमात्र ध्येय बन पाया है ।
आज छात्रों का जीवन मानसिक यंत्रणा का जीवन बन गया है । आधुनिक शिक्षा पद्धति पुस्तकीय ज्ञान को सर्वाधिक महत्त्व देती है । जो छात्र कुशाग्र बुद्धि के होते हैं, उन्हें ही सफलता मिलती है । छात्रों को
परीक्षाओं का भय सताता रहता है । आज छात्रों का जीवन दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति का शिकार होकर दोषपूर्ण बन गया है ।
छात्र जीवन का मूल उद्देश्य ज्ञानार्जन होना चाहिए । छात्र जीवन किसी भी व्यक्ति के जीवन का स्वर्णिम काल होता है । इसी दौरान वह कुछ बन सकता है कुछ कर दिखा सकता है । यह तप का काल है यह धैर्य और लगन से कार्य करने का समय है ।
छात्र जीवन की सार्थकता इसी में है कि प्रत्येक छात्र अपने भीतर छिपी प्रतिभा का विकास करे । अपने लिए नवीन संभावनाओं के द्वार खोले । अपने छात्र जीवन में व्यक्ति जीवन के तौर-तरीके सीखता है । वह सदाचार की बातें सीखता है ।
वह बातचीत का द्यी एवं आचार सीखता है । वह बुजुर्गों को सम्मान देने का महत्व समझता है तथा जरूरतमंदों की सेवा करने का महत्त्व सीखता है । वह व्यवहारिक जीवन की बातें सीखकर स्वयं को समाज के अनुरूप ढालता है ।
छात्र जीवन का अनुशासन से बड़ा घनिष्ठ संबंध है । अनुशासन उसे चरित्रवान् बनाता है । अनुशासनप्रियता के गुण के आधार पर छात्र अपने जीवन को एक सुखद मोड़ देने में सक्षम हो जाता है । यह गुण उसे बुरी संगति से बचाता है तथा जीवन के अप्रिय पहलुओं से दूर रखता है ।
अनुशासित छात्र विद्यालय में समय पर उपस्थित होता है । वह विद्यालय की विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में भाग लेता है । व्यायाम, खेल-कूद आदि के प्रति सचेष्ट रहकर वह अपने जीवन का बहुआयामी विकास करता है । छात्र जीवन जिज्ञासा का काल है, नई-नई बातें सीखने का काल है ।
जो छात्र उद्दंड होते हैं, शिक्षकों एवं अभिभावकों की शिक्षाओं का अनादर करते हैं वे छात्र-जीवन को उपयोगी नहीं बना पाते । वे अपने भावी जीवन को अंधकारमय बना देते हैं । कई छात्र पढ़ाई को एक बोझ मान बैठते हैं । सिनेमा देखना, टेलीविजन देखना तथा दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करना ही अपना महत्त्वपूर्ण कार्य समझते हैं ।
ऐसे छात्र अपने जीवन की उपयोगिता को नष्ट कर देते हैं । छात्र जीवन असीम संभावनाओं से भरा हुआ होता है । यह आदर्शों को अपनाने तथा इन आदर्शों पर चलकर आत्म-निर्माण करने की अवधि है । छात्र
ही वैज्ञानिक, इंजीनियर, डॉक्टर, समाज-सेवक, सैनिक आदि बनकर मानवता की सेवा करते हैं ।
छात्र देशभक्ति का पाठ पढ़कर आगे चलकर देश की उन्नति में योगदान देते हैं । छात्र की प्रतिभा, उसकी लगन, उसका धैर्य, उसकी नेतृत्व-क्षमता राष्ट्र को उसकी बुलंदियों तक पहुँचाने की सामर्थ्य रखती है ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 21
विद्यालय का मध्यावकाश पर निबन्ध | Essay on School During the Recess-Hour in Hindi
विद्यालय का मध्यावकाश यानि एक ऐसी अवधि जिसका इंतजार प्रत्येक विद्यार्थी करता है । यह एक राहत का समय है पढ़ाई की ऊब मिटाने का समय है । कई घंटे पढ़ लिए बहुत हो गया अब थोड़ा विश्राम चाहिए ।
थोड़ी सी पेट पूजा, थोड़ी सी उछल-कूद । ताजगी आएगी तो फिर से पढ़ाई में ध्यान केंद्रित किया जा सकेगा । टिफिन की घंटी बजी और बच्चे उछल पड़े । स्कूल बैग में किताबें एवं कापियाँ भर लीं । पैंसिल और कलम सँभाल कर रख लिए गए ।
ठंड हो तो खुली धूप का मजा लेने लगे और गरमी हो तो पेड़ की छाँव में चले गए । बैग से लंच बाक्स निकाला और माँ के हाथ के बने पूरी-पराठे का मजा लेने लगे । किसी के लंच बॉक्स में रोटी-सब्जी है तो किसी के बॉक्स में हलवा । किसी ने लंच बॉक्स खोला तो देखा आज केवल तीन चार बिस्किट ही हैं ।
लगता है आज मम्मी कुछ न बना पाई होगी । पर कोई बात नहीं, अपने सहपाठी को बिस्किट का स्वाद चखा कर उसके आलू भरे पराठे का स्वाद चख लिया । किसी की जेब में दो-चार रुपए हैं तो दौड़ पड़े चाट बेचने वाले के पास ।
उसने दोने में नमक-मिर्च-मसाला डालकर चटपटा चाट बना दिया । यदि चाट न खाने का मन हो तो गोलगप्पे वाले के पास चल पड़े । गोलगप्पे खाए और पुदीना मिला हुआ ठडा पानी पीया । किसी ने समोसे तो किसी ने चाऊमीन खाकर मध्यावकाश का आनंद उठाया ।
जिन विद्यालयों में कैंटीन अथवा जलपान गृह की सुविधा उपलब्ध है वहाँ मध्यावकाश का दृश्य देखने लायक होता है । कैंटीन के स्टाफ को साँस लेने की फुरसत नहीं । अनेकों हाथ उसके समक्ष एक साथ बढ़ते दिखाई देते हैं । सभी को भूख लगी है, सभी की जेब में सिक्के खनक रहे हैं, फिर जल्दी क्यों न हो !
पर क्या किया जाए, स्टाफ के तो दो ही हाथ है, सभी बच्चों को निबटाने में कुछ समय तो लगेगा ही । लंच समाप्त हुआ, कुछ खाया-पीया, क्षुधा की तृप्ति हुई । चित्त प्रफुल्लित हो उठा, लगे उछल-कूद करने । किसी को झूला झूलने की फिक्र है तो कोई ऊँचाई से फिसलने का आनंद उठा रहा है ।
सी-साँ झूला ऊपर-नीचे हो रहा है । कोई अपने सहपाठी को दौड़ा रहा है तो कोई सहपाठी के गले में हाथ डालकर घूम रहा है । विद्यालय का प्रांगण सजीव हो उठा है । स्कूल ड्रेस पहने मैदान में बच्चों का समूह विद्यार्थी जीवन का आनंद उठा रहा है ।
ऐसा भी नहीं कि विद्यालय के मध्यावकाश के समय केवल विद्यार्थी ही खुश हैं । मध्यावकाश शिक्षक-शिक्षिकाओं के लिए भी उतना ही उपयोगी होता है । कुछ नाश्ता कर वे भी तरो-ताजा होते हैं । मध्यावकाश के बाद उन्हें भी तो बच्चों को पढ़ाना है ।
बच्चों के बीच सिर खपाते सुस्ती आ गई है, चाय की एक प्याली, एक-दो समोसे उनकी सुस्ती को मिटाने में पूर्णतया समर्थ होते हैं । समय मिला तो साथी शिक्षकों से थोड़ी गप-शप कर ली । उनका हाल-चाल पूछ लिया । स्कूल की घंटी बजी मध्यावकाश का समय खत्म हो गया । विद्यार्थी अपनी-अपनी कक्षा में चले गए ।
खाली लैच बॉक्स स्कूल बैग में फिर से कैद हो गया । बच्चों ने आगामी पीरियड़ की किताबें निकाल लीं । शिक्षक-शिक्षिकाएँ स्टाफ रूप से निकलकर अपनी-अपनी कक्षा में जाने लगे । विद्यालय का वातावरण फिर से शांत और व्यवस्थित हो गया ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 22
विद्यालय का विदाई समारोह पर निबन्ध | Essay on Farewell Function of School in Hindi
हमारे विद्यालय के एक हिंदी शिक्षक का सेवाकाल समाप्त होने जा रहा था । इस अवसर पर विद्यालय की ओर से एक विदाई समारोह का आयोजन होने वाला था । इसकी सूचना दो दिन पूर्व ही सभी विद्यार्थियों को दे दी गई थी ।
अशोक मेहता नामक हमारे शिक्षक महोदय अत्यंत मृदुभाषी हैं । उनके हिंदी पढ़ाने का ढंग बड़ा ही आकर्षक रहा है । कविताओं का सस्वर पाठ करते हुए पढ़ाना उनकी आदत रही है । सभी विद्यार्थी उनका बहुत सम्मान करते हैं ।
उनकी विद्वता का लोहा विद्यालय के सभी शिक्षक मानते हैं । अध्यापन कार्य के अलावा गीत-एवं कविताएँ लिखना उनका प्रिय शौक रहा है । ऐसे महान् शिक्षक महोदय की विदाई की खबर सुनकर हमें दु ख का अनुभव हो रहा था । परंतु शिक्षा विभाग के नियमानुसार उन्हें अवकाश मुक्त तो होना ही था ।
विद्यालय की ओर से उनकी भव्य विदाई की गई । विदाई समारोह के लिए विद्यालय के हॉल को आकर्षक ढंग से सजाया गया था । प्राचार्य महोदय की देखरेख में विदाई समारोह की सभी तैयारियाँ की गई । इसमें विद्यार्थियों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया । हॉल में पोस्टर झड़ियों लगाई गईं तथा मंच को खूबसूरत ढंग से सजाया गया । विभिन्न कक्षा के विद्यार्थियों ने आपस में चंदा इकट्ठा कर शिक्षक महोदय को भेंट करने के लिए कई आकर्षक उपहार खरीदे थे ।
अंत में विदाई की घड़ी आ ही गई । मच पर प्राचार्य महोदय, अन्य शिक्षकगण आमंत्रित अतिथि आदि आकर बैठे । हॉल में बिछी कालीन पर विद्यार्थीगण आकर बैठ गए । मंच पर एक मेज रखा हुआ था जिस पर ताजे फूलों का गुलदस्ता सजाकर रखा गया था । अशोक मेहता जी मेज के ठीक पीछे वाली कुरसी पर शांत एवं गंभीर मुद्रा में बैठे हुए थे ।
विदाई समारोह अपराह्न तीन बजे आरंभ हुआ । सबसे पहले प्राचार्य महोदय उठे । उन्होंने अपने उदार बड़े ही मार्मिक शब्दों में प्रस्तुत किए । उनके विदाई भाषण के दौरान कई बार तालियाँ बजीं । फिर उन्होंने अवकाश प्राप्त शिक्षक के गले में फूलों की एक आकर्षक माला पहनाई ।
इसके बाद दो अन्य शिक्षकों ने भी अपने-अपने शब्दों में अशोक मेहता जी के बारे में अपने विचार प्रकट किए । सभी उनकी नि: स्वार्थ सेवा लगन और परिश्रम का गुणगान कर रहे थे । इसके बाद विद्यार्थियों की बारी आई । मैंने अपनी कक्षा का प्रतिनिधित्व करते हुए विदाई भाषण पड़ा । छात्रों के प्रति शिक्षक महोदय के स्नेह की चर्चा करते हुए मैंने उन्हें एक आदर्श शिक्षक बताया ।
उसके बाद मैंने उनके चरण स्पर्श किए तथा यथास्थान बैठ गया । तत्पश्चात अन्य कक्षाओं के प्रतिनिधि छात्र-छात्राओं ने शिक्षक महोदय को भावभीनी विदाई दी । छात्रों की ओर से उन्हें धोती-कुर्ता शाल स्वेटर जूते आदि भेंट किए गए । सभी शिक्षकों ने अपनी ओर से उन्हें एक कीमती घड़ी भेंट की ।
अंत में प्राचार्य महोदय ने अवकाश प्राप्त शिक्षक महोदय को दो शब्द कहने के लिए आमंत्रित किया । उन्होंने खड़े होकर चिर-परिचित मुद्रा में अपने विचार प्रकट किए । उन्होंने अपने पैंतीस वर्षों के अध्यापन काल को अपने लिए स्वर्णिम काल कहा ।
उन्होंने साथी शिक्षकों के सहयोग एव छात्र-छात्राओं की ओर से मिले आदर और सम्मान की चर्चा की । उन्होंने हमें शिक्षा का मूल उद्देश्य समझाया । वे शिक्षा के गिरते स्तर से चिंतित दिखे । उन्होंने विद्यार्थियों को अपना एक लक्ष्य बनाकर उसके प्रति समर्पित होने की सलाह दी ।
उन्होंने विद्यार्थियों को अपने चरित्र की ओर अधिक ध्यान देने के लिए प्रेरित किया । उन्हें विद्यार्थियों से अलग होने का दुख हो रहा था । अपने उदार व्यक्त करते हुए उनकी आँखें नम हो आई थीं । कई विद्यार्थी भी अपने आँसू रोक नहीं पा रहे थे ।
अपने एक आदर्श शिक्षक को विदाई देना हम सब के लिए भारी पड़ रहा था । विदाई समारोह समाप्त हो गया । शिक्षक महोदय को विदा करने के लिए प्राचार्य महोदय तथा अन्य शिक्षक उनके घर तक गए ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 23
विद्यालय का वार्षिकोत्सव पर निबन्ध | Essay on Annual Function of Our School in Hindi
विद्यालय विद्या का मंदिर होता है । यहाँ होने वाला प्रत्येक आयोजन एक पर्व है, एक पूजा है । किसी भी विद्यालय का वार्षिकोत्सव वहाँ के विद्यार्थियों एवं शिक्षकों के लिए गौरव का दिन होता है । यह विद्यालय की उन्नति का परिचायक है ।
विद्यार्थियों की प्रतिभा के मूल्यांकन का यह सुनहरा अवसर होता है । हमारे विद्यालय का वार्षिकोत्सव प्रत्येक वर्ष 5 नवंबर को आयोजित होता है । हमारे विद्यालय की स्थापना इसी तिथि को हुई थी । वार्षिकोत्सव की तैयारियाँ हफ्तों पूर्व आरंभ हो जाती हैं ।
हमारे प्राचार्य विभिन्न समितियों का गठन करते हैं जो वार्षिकोत्सव को सफल बनाने में अपने-अपने स्तर से प्रयास करती हैं । खेल-प्रतियोगिताएँ पहले ही करा ली जाती हैं । वार्षिकोत्सव के दिन विभिन्न खेल स्पर्द्धाओं के विजेताओं को पुरस्कृत किया जाता है ।
किसी एकांकी नाटक की तैयारी पहले से ही होने लगती है । छात्र-छात्राओं को एकल तथा सामूहिक नृत्य के लिए पूर्व प्रशिक्षण दिया जाता है । सरस्वती वंदना का अभ्यास कराया जाता है । मैच संचालन कौन करेंगे, अतिथियों का स्वागत कैसे हो, पंडाल किस तरह बनाया जाए, आदि तैयारियों का बहुत महत्त्व होता है ।
वार्षिकोत्सव का दिन आया । विद्यालय के प्रांगण में सुबह से ही काफी चहल-पहल थी । मंच को भली-भांति सजाया जा रहा था । प्राचार्य महोदय बार-बार आकर निर्देश दे रहे थे । मुख्य अतिथि के स्वागत वो लिए पुष्प-मालाएँ तैयार की जा रही थीं । सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेने वाले विद्यार्थी एक हॉल में एकत्रित थे ।
कार्यक्रम का आरंभ संध्या पाँच बजे होना था । अतिथिगण और विद्यार्थी साढ़े चार बजे से ही आकर अपना-अपना स्थान ग्रहण कर रहे थे । मंच पर देशभक्ति के गीतों की बुने बज रही थीं । चारों ओर उत्सव और उल्लास का माहौल था ।
समारोह के मुख्य अतिथि शहर के कलक्टर थे । वे ठीक पाँच बजे अपनी कार से उतरे । विद्यालय के एन.सी.सी. के कैडेटों ने उन्हें सलामी दी । उनके स्वागत के लिए लाल कालीन बिछाई गई थी । हमारे प्राचार्य तथा अन्य शिक्षकगणों ने उनकी अगवानी की । एक छात्रा ने उन्हें पुष्प माला पहनाई । इसके बाद मुख्य अतिथि को मंच के नीचे लगी अग्रिम पंक्ति की कुरसी पर बिठाया गया ।
वार्षिकोत्सव का आरंभ सरस्वती वंदना से हुआ । महाकवि निराला रचित ‘वर दे वीणा वादिनी वर दे’ की पंक्तियाँ गूँज उठीं । उसके बाद प्राचार्य महोदय ने मुख्य अतिथि को विद्यार्थियों का उत्साहवर्धन करने के लिए दो शब्द कहने के लिए बुलाया ।
मुख्य अतिथि ने संक्षेप में अपनी बात पूरी की । इसके बाद सामूहिक नृत्य प्रस्तुत किया गया जिसमें केवल छात्राओं ने भाग लिया था । यह नृत्य अत्यत प्रभावशाली था । नृत्य की समाप्ति पर जोरदार तालियाँ बजीं । तत्पश्चात् एकांकी नाटक ‘अशोक का शस्त्र त्याग’ प्रस्तुत किया गया ।
मैंने इस नाटक में सम्राट अशोक की भूमिका निभाई थी । नाटक का प्रस्तुतीकरण इतना बेजोड़ था कि सभागार में लगातार एक मिनट तक तालियाँ बजीं । इसके बाद हरियाणवी शैली में एक लोकनृत्य प्रस्तुत किया गया । लोकनृत्य के बाद कविता पाठ किया गया ।
दो कार्यक्रमों के बीच में मंच संचालक चुटकुले सुनाकर दर्शकों को हँसने के लिए बाध्य कर रहे थे । इस प्रकार गीत-संगीत और स्वस्थ मनोरंजन से भरपूर वार्षिकोत्सव का सांस्कृतिक आयोजन सपन्न हुआ । अत में मच पर मुख्य अतिथि को आमंत्रित किया गया ।
इन्होंने विभिन्न प्रतिस्पर्द्धाओं में प्रथम द्वितीय तथा तृतीय पुरस्कार वितरित कर विद्यार्थियों का उत्साह बढ़ाया । कार्यक्रम का समापन अब होने ही वाला था । प्राचार्य महोदय ने विशिष्ट अतिथि तथा अन्य अतिथियों का धन्यवाद करते हुए कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 24
शिक्षक दिवस पर निबन्ध | Essay on Teacher’s Day in Hindi
हमारे देश में गुरु सदैव पूजनीय रहे हैं । गुरु महान हैं क्योंकि ये वास्तविक अर्थों में राष्ट्र के निर्माता हैं । शिक्षक दिवस शिक्षकों को सम्मानित करने का दिन है यह गुरुओं को गरिमा प्रदान करने वाला दिन है । शिक्षक दिवस पूरे भारतवर्ष में पाँच सितंबर के दिन बहुत ही उत्साह से मनाया जाता है ।
शिक्षक दिवस के दिन समूचा राष्ट्र अपने शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है । देश भर के प्राथमिक माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक राजकीय विद्यालयों में से श्रेष्ठ शिक्षकों का चुनाव कर उन्हें सरकार की ओर से सम्मानित किया जाता है ।
विद्यालय स्तर पर भी विद्यार्थी अपने शिक्षकों के प्रति आभार प्रकट करते हैं उनके सम्मान में कार्यक्रम आयोजित करते हैं । पाँच सितंबर के दिन शिक्षक दिवस मनाने की परंपरा भारत के दिवंगत राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने आरंभ की थी । राष्ट्रपति बनने से पूर्व वे एक शिक्षक थे ।
उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय तथा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया था । वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे थे । डॉ राधाकृष्णन ने सन् 1962 ई. में राष्ट्रपति बनने पर अपना जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का सुझाव दिया था । उसी समय से प्रतिवर्ष यह दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
पाँच सितंबर के दिन विद्यालयों में उत्सव का माहौल रहता है । छात्र-छात्राओं में शिक्षकों को बधाई देने की होड़ सी लगी रहती है । कुछ विद्यालयों में इस दिन वाद-विवाद प्रतियोगिता, भाषण प्रतियोगिता, कविता पाठ, कवि सम्मेलन जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं ।
इन कार्यक्रमों के माध्यम से समाज में शिक्षा के महत्त्व को दर्शाया जाता है । साथ ही साथ समाज को शिक्षित बनाने में शिक्षकों के योगदान का भी स्मरण किया जाता है । भारत के शिक्षा मंत्री राजधानी में शिक्षकों का अभिवादन करते हैं । राष्ट्रपति महोदय आदर्श शिक्षकों को सम्मानित करते हैं ।
वे राष्ट्र निर्माण में अध्यापकों के योगदान की चर्चा करते हैं । राज्यों के शिक्षा मंत्री भी इस दिन शिक्षकों को बधाई देते हैं । शिक्षक विद्यार्थियों के मन में अच्छे संस्कार डालते हैं उन्हें एक सामाजिक प्राणी बनाते हैं । बच्चों का संपूर्ण विकास शिक्षकों के सहयोग के बिना संभव नहीं हो सकता ।
वे केवल विद्यार्थियों को पाठ्य पुस्तकों की शिक्षा ही नहीं देते उन्हें चरित्र के उत्थान का मार्ग भी बताते हैं । इसीलिए तो हमारे धर्मशास्त्रों में आचार्य अथवा शिक्षक को देवतुल्य माना गया है । परतु हमारे देश में जबसे शिक्षा का व्यवसायीकरण हुआ है शिक्षकों की गरिमा में काफी कमी आ गई है ।
वे अध्यापक जो कभी विद्यार्थियों के आदर्श हुआ करते थे । आज स्वयं को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं । उनका सामाजिक सम्मान पहले जैसा नहीं रह गया है । ‘आचार्य देवो भव’ महज एक आदर्श वाक्य बन कर रह गया है । छात्र-छात्राएँ अपने शिक्षकों के समक्ष ही अशोभनीय आचरण करते हैं जो कि अनुचित है ।
विद्यार्थियों को शिक्षकों का आदर करना चाहिए । शिक्षकों का भी यह कर्त्तव्य है कि वे अपने ज्ञान से बच्चों के मन-मस्तिष्क में जो अंधकार व्याप्त है उसे प्रकाशित करें । यही शिक्षक दिवस की सार्थकता और महत्ता है ।
Hindi Nibandh for Children (Essay) # 25
विद्यालय की वार्षिक खेल प्रतियोगिता पर निबन्ध | Essay on Annual Sports in Hindi
शिक्षा का अर्थ केवल पुस्तकीय ज्ञान नहीं है । केवल किताबी कीड़ा बनकर रह जाना संपूर्ण शिक्षा का उद्देश्य नहीं है । खेल-कूद की शिक्षा के बिना प्राप्त शिक्षा आधी-अधूरी मानी जाती है । यही कारण है कि सभी अच्छे विद्यालयों में वार्षिक खेल आयोजित किए जाते हैं ।
हमारे विद्यालय में खेल-कूद की गतिविधियाँ पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ चलती रहती हैं । परंतु वार्षिक खेल प्रतियोगिताओं का विशेष महत्त्व है । इसमें शारीरिक दम-खम की परीक्षा होती है । यह पता चल जाता है कि कौन कितने पानी में है । श्रेष्ठ खिलाड़ियों को पुरस्कार प्राप्त होता है जिससे उसका उत्साहवर्धन होता है ।
हमारे विद्यालय की वार्षिक खेल प्रतियोगिता में हॉकी, कबड्डी, फुटबाल, टेबल, टेनिस, लॉन टेनिस, खो-खो, बैडमिंटन तथा एथलेटिक्स की अनेक खेल गतिविधियाँ शामिल की जाती हैं । ये खेल प्रतियोगिताएँ वार्षिक परीक्षाओं के संपन्न हो जाने के बाद प्रतिवर्ष मार्च महीने में आयोजित होती हैं ।
इस प्रतियोगिताओं के लिए छात्र-छात्राओं का उत्साह देखते ही बनता है । प्रतियोगियों का चयन उनके पूरे वर्ष प्रदर्शन के आधार पर किया जाता है । विभिन्न खेल स्पर्द्धाओं के लिए खिलाड़ियों का चयन विद्यालय की चयन समिति करती है जिसके अध्यक्ष हमारे खेल शिक्षक होते हैं । किसी भी खेल प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए विद्यार्थियों को पहले से ही अपना नाम दर्ज कराना होता है ।
हमारे विद्यालय में एक बड़ा क्रीड़ा मैदान है जहाँ वार्षिक खेल प्रतियोगिताएँ आयोजित होती हैं । इस समय क्रीड़ा मैदान को समतल किया जाता है रंग-बिरंगे कागज की झंडियाँ लगाई जाती हैं । इस प्रकार प्रतियोगिता के दौरान उत्सव का सा समाँ बँध जाता है । खेल प्रतियोगिता का आरंभ और समापन राष्ट्रगान के साथ होता है ।
ADVERTISEMENTS:
विद्यालय के वार्षिक खेल को देखने विद्यार्थियों के अलावा स्थानीय लोग भी आते हैं । सर्वाधिक उत्सुकता एथलेटिक्स की स्पर्द्धाओं को लेकर होती है । लाँग जंप, हाई जंप, पोल वाल्ट, डिस्क थ्रो आदि स्पर्द्धाओं को लेकर खिलाड़ियों एवं दर्शकों का उत्साह देखते ही बनता है ।
जब कोई खिलाड़ी विद्यालय के पिछले रिकार्ड को तोड़ता है तो वह अपने विद्यालय का हीरो बन जाता है । उस खिलाड़ी का सम्मान बढ़ जाता है उसे शाबाशी दी जाती है । हमारे विद्यालय के वार्षिक खेलों के संचालन में शहर के लायंस क्लब का बहुत योगदान होता है ।
लायंस क्लब की ओर से आए प्रशिक्षक एवं निर्णायक (रेफरी) खेल गतिविधियों को अच्छी तरह संचालित करने में सहयोग प्रदान करते हैं । खेल प्रतियोगिताओं की समाप्ति के पश्चात पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन होता है ।
इस अवसर पर जिले के मुख्य शिक्षा अधिकारी को मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया जाता है । वे तालियों की गड़गड़ाहट के बीच सफल प्रतियोगियों को मैडल तथा प्रशस्ति-पत्र भेंट करते हैं । वे सभी खिलाड़ियों को संबोधित भी करते हैं । अत में सभी खिलाड़ियों को जलपान कराया जाता है ।
सभी जलपान का आनद उठाते सुए अपने-अपने निवास स्थान की ओर लौट जाते हैं । बाद में विद्यार्थियों के खेल प्रदर्शन के आधार पर अतर विद्यालय स्तर की खेल प्रतियोगिता के लिए खिलाड़ियों का चयन किया जाता है ।