List of 25 popular Hindi Nibandhs for School and College students!
Contents:
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यदि मैं देश का नेता होता पर निबन्ध | Essay on If I were A Leader of the Country in Hindi
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यदि मैं सैनिक होता पर निबन्ध | Essay on If I were A Soldier in Hindi
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मेरे सपनों का भारत पर निबन्ध | Essay on India of My Dream in Hindi
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जब मेरी लाटरी निकली पर निबन्ध |Essay on When I got the Lottery in Hindi.
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जब मुझ पर मुसीबत आई पर निबन्ध | Essay on When I Faced A Dangerous Situation in Hindi
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मेरा प्रिय नेता पर निबन्ध | Essay on My Favorite Leader in Hindi
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जब मैंने पॉकेटमार को पकड़ा पर निबन्ध | Essay on When I Caught a Pick Pocket in Hindi
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जब पिताजी को गुस्सा आया पर निबन्ध | Essay on When Father got Angry in Hindi
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ADVERTISEMENTS:
मेरे जीवन की एक मजेदार घटना पर निबन्ध | Essay on An Interesting Event of my Life in Hindi
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इस तरह मनाया गया मेरा जन्मदिन पर निबन्ध | Essay on In this way I Celebrate My Birthday in Hindi
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ऐसे बिताया मैंने ग्रीष्मावकाश पर निबन्ध | Essay on In this way I Spent My Summer Vacation Hindi
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मेरी पहली रेल यात्रा पर निबन्ध | Essay on My First Journey by Train in Hindi
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मेरी पसंद का भोजन पर निबन्ध | Essay on The Food I Like in Hindi
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मेरा प्रिय विषय पर निबन्ध | Essay on My Favourite Topic in Hindi
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वर्षा का एक दिन पर निबन्ध | Essay on A Rainy Day in Hindi
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भारतीय किसान पर निबन्ध | Essay on The Indian Farmer in Hindi
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फेरीवाला पर निबन्ध | Essay on The Street Hawker in Hindi
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ADVERTISEMENTS:
डाकिया (पोस्टमेन) पर निबन्ध | Essay on The Post Man in Hindi
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चिकित्सक या डॉक्टर पर निबन्ध | Essay on The Doctor in Hindi
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सिपाही पर निबन्ध | Essay on The Soldier in Hindi
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अध्यापक (शिक्षक) पर निबन्ध | Essay on The Teacher in Hindi
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ADVERTISEMENTS:
आदर्श नागरिक पर निबन्ध | Essay on Ideal Citizen in Hindi
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श्रमिक या मजदूर पर निबन्ध | Essay on The Labour in Hindi
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रिकशावाला पर निबन्ध | Essay on The Rickshaw Puller in Hindi
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मदारी पर निबन्ध | Essay on The Juggler in Hindi
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 1
यदि मैं देश का नेता होता पर निबन्ध | Essay on If I were A Leader of the Country in Hindi
ADVERTISEMENTS:
किसी भी देश का नेता होना बड़े गौरव की बात होती है । नेताजी को सर्वत्र सम्मान प्राप्त होता है क्योंकि देश रूपी नैया को किनारे पर लगाने में व पकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है ।
साधारण व्यक्ति कितनी ही बुद्धिमानी की बात क्यों न करे, उसकी कोई नहीं सुनता परंतु नेताजी की साधारण बातों को भी लोग बड़े गौर से सुनते हैं । उनकी हर तरफ जय-जयकार होती है । नेताजी जिस रास्ते से गुजरते हैं, वह रास्ता खाली करा लिया जाता है । वे समय पर अपना कार्य पूरा कर सकें, इसके लिए बहुत से लोगों को अपना कीमती समय नष्ट करता पड़ता है ।
यदि मैं देश का नेता होता तो मुझे भी ट्रेफिक जाम जैसी समस्याओं का सामना न करना पड़ता । मेरे आस-पास हर समय लोगों की भीड़ लगी होती । परंतु मुझे चाटुकार लोग पसंद नहीं मैं केवल सुलझे हुए दिमाग के व्यक्तियों को ही अपना सहयोगी बनाता ।
ADVERTISEMENTS:
मैं अपने दल से ऐसे लोगों को निकाल बाहर करता जो अपराधी चरित्र के हैं अथवा जो केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए ही राजनीति में आए हैं । मैं महात्मा गाँधी की तरह अपने साथ केवल सेवावृत्ति वाले लोगों को ही रखता । मैं जवाहर जैसा ‘लाल’ ढूँढता, राजेंद्र जैसा ‘देशरत्न’ खोजता और पटेल जैसे ‘लौह पुरुष’ की तलाश करता ।
यदि मैं देश का नेता होता तो लोगों से खोखले वादे नहीं करता उन्हें देश की वास्तविक स्थिति से अवगत कराता । उन्हें श्रम का सम्मान करने की शिक्षा देदा और यह बताता कि यदि देश को आगे बढ़ाना है तो प्रत्येक व्यक्ति को इस कार्य में योगदान देना होगा ।
देश का पुनरूत्थान एक ऐसा यज्ञ है जिसमें सभी नागरिकों को थोड़ी-थोड़ी आहुति देनी होती है । यदि मैं नेता होता तो भ्रष्टाचार अशिक्षा बेकारी जनसंख्या वृद्धि: आदि समस्याओं पर गंभीरतापूर्वक ध्यान देता । मैं बच्चों से मजदूरी कराने के गलत रिवाज को समाप्त कर सभी बच्चों को विद्यालय की चौखट तक पहुँचाता ।
मैं देश में खेलों के विकास के लिए खेल विद्यालय तथा खेल विश्वविद्यालय की स्थापना करता ताकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्द्धाओं में भारत, जर्मनी, चीन, अमेरिका, ब्रिटेन आदि देशों की श्रेणी में पहुँचे । यदि मैं नेता होता तो चुनावों में अपने दल की ओर से केवल ऐसे लोगों को टिकट देता जो जनता की सेवा करने में सक्षम हैं । मैं सरकारी खर्चे पर चुनाव हों इसके लिए कानून बनवाता ।
मैं चुनावों में धाँधली न हो, इसके लिए प्रयास करता । चुनावों के पश्चात् सरकार गठन करते समय मैं इसका ध्यान रखता कि किसी चिकित्सक को ही स्वास्थ्य मंत्री किसी शिक्षक को ही शिक्षा मंत्री तथा किसी भूतपूर्व खिलाड़ी को ही खेल मंत्री बनाया जाए । यदि मैं देश का नेता होता तो अपने किसी भ्रष्ट मंत्री को बचाने के लिए बेकार के तर्कों का सहारा न लेता ।
यदि मैं देश का नेता होता तो मेरा देश विश्व का एक अग्रणी राष्ट्र बन जाता । गाँवों की खुशहाली लौट आती । मैं वृक्षारोपण के कार्यक्रम चलाकर प्रदूषण फैलाने वाले खतरनाक उद्योगों को बंदकर तथा सार्वजनिक स्थानों की सफाई पर अधिक ध्यान देकर देश के पर्यावरण को खुशनुमा बना देता ।
मैं आर्थिक समानता लाने तथा सामाजिक रूप से पिछड़े हुए लोगों को मुख्य धारा में लाने के लिए हर संभव प्रयत्न करता । मैं एक आदर्श नेता बनने के लिए अपने निजी स्वार्थों को बलिदान कर देता । एक नेता के रूप में मैं सदैव प्रयत्न करता कि देश के नागरिकों को शिकायत करने का कोई मौका न मिले । मैं राष्ट्र के गौरव उसकी प्राचीन संस्क्रति उसकी महान परंपराओं का सम्मान करता ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 2
यदि मैं सैनिक होता पर निबन्ध | Essay on If I were A Soldier in Hindi
प्रत्येक राष्ट्र अपने महान सेनानियों पर गर्व करता है । राष्ट्र की सुरक्षा उसके सैनिक ही करते हैं । सैनिकों की वीरता साहस और बलिदान की सर्वत्र सराहना होती है ।
सरकार उन्हें पदक देकर सम्मानित करती है राष्ट्र उनका ऋणी होता है । सैनिक आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्र की रक्षा के लिए मृत्यु का वरण कर लेता है इस कार्य में वह तनिक भी नहीं झिझकता । जब युद्ध आरभ होता है तो सैनिक शत्रु सेना पर एक खूँखार शेर की तरह हमला कर देते हैं ।
“वीर भोग्या वसुंधरा” अर्थात् पृथ्वी का सुख केवल वीर ही भोग सकते हैं । सैनिक सचमुच वीर होते हैं क्योंकि वे जब तक जीवित रहते हैं अपना सिर उठाकर जीते हैं । यदि मैं सैनिक होता तो वीर सैनिकों में अपना नाम भी दर्ज कराता । मैं राष्ट्र की आन बान और शान के लिए जीता और इस गीत को सगर्व गुनगुनाता –
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है जोर, कितना बाजुए कातिल में है ।
शत्रुओं की बाजू कितनी भी ताकतवर क्यों न हो वीर सैनिक उसे मरोड़ ही डालता है । वह कभी लक्ष्मीबाई का रूप धारण करता है तो कभी शिवाजी का, कभी वह भगत सिंह बनकर फाँसी पर चढ़ जाता है तो कभी चंद्रशेखर आजाद बनकर शत्रु की गोली से मरने की अपेक्षा अपने आपको ही गोली मार लेता है ।
यदि मैं सैनिक होता तो महाराणा प्रताप की तरह घास की रोटी खाना पसद करता परंतु किसी की अधीनता स्वीकार न करता । मैं शत्रु सेना पर तथा उनके प्रमुख ठिकानों पर प्रक्षेपास्त्रों से अचूक प्रहार करता उनकी रणनीति को विफल कर देता ।
यदि मैं सैनिक होता तो आज शायद मैं सीमा पर तैनात होता । मैं घुसपैठियों को चिड़िया की आँख समझकर अर्जुन की तरह निशाने पर ही वार करता । यदि शत्रु सैनिक मुझे बंदी बनाकर भी ले जाते तो मैं उनके सब अत्याचार सहता परंतु अपना मुँह न खोलता ।
अपने देश के किसी खुफिया राज को बताने की अपेक्षा मैं मर जाना अधिक पसद करता क्योंकि शहीदों के बारे में ये विचार व्यक्त किए गए हैं –
”शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशाँ होगा ।”
वीर सैनिक कभी भी मरते नहीं, जहाँ उनकी चिताएँ जलती हैं, वहाँ मेले लगा करते हैं । राष्ट्र अपने शहीदों को कभी नहीं भुला पाता । जब भी बच्चे हँसते हैं, जब भी कोई फूल खिलता है, जब भी मयूर वन में नृत्य करते हैं, इन सब बातों के पीछे शहीद सैनिकों का महान योगदान होता है ।
वीर सैनिक मरकर जब स्वर्ग पहुँचता है और वहाँ से जब वह अपने राष्ट्र की खुशहाली देखता है तो उसे असीम प्रसन्नता होती है । यदि मैं एक सैनिक होता तो इन अमर सेनानियों की किताब के सुनहरे पन्नों में अपना नाम भी लिखा जाता ।
एक सैनिक के रूप में मैं रेगिस्तान को भी हरा-भरा उद्यान समझता, बरफीली चोटियों को श्वेत चादर समझकर उस पर लेट जाता, साथी सैनिकों को अपना सब कुछ समझकर उनको स्नेह देता । कभी गीत गुनगुनाकर तो कभी चुटकुले सुनाकर उनका मनोरंजन करता ताकि उन्हें घर की याद न सताए । जब कभी मैं अपने गाँव लौटकर आता तो अपने मित्रों के साथ सैनिक जीवन की मधुर यादें बाँटता ।
सैनिक सेवा से मुक्त होने के बाद मैं अपने गाँव के उत्थान के लिए कार्य करता । परंतु इससे पहले ही यदि मैं शहीद हो जाता तो सब लोग मुझे राष्ट्र का एक सच्चा सपूत मानकर मुझे याद करते । राष्ट्र को मेरे ऊपर गर्व होता । यदि मैं एक सैनिक होता तो माता-पिता तथा अध्यापक को मुझ पर गर्व होता ।
आनेवाली पीढ़ियों के लिए मैं एक आदर्श होता । सबसे बढ़कर मुझे आत्म-संतुष्टि प्राप्त होती कि मैं एक महान राष्ट्र का सैनिक हूँ । मेरी दिनचर्या नियमित होती मैं समय का सदुपयोग करना सीखता । एक सैनिक के रूप में मुझे अपनी वीरता साहस और परिश्रम को प्रदर्शित करने का सुनहरा अवसर प्राप्त होता ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 3
मेरे सपनों का भारत पर निबन्ध | Essay on India of My Dream in Hindi
भारत हमारी मातृभूमि है । जननी और जन्मभूमि के बारे में कहा गया है कि यह स्वर्ग से बढ्कर होती है । जब तक हम जीवित रहते हैं, जन्मभूमि के उत्थान एवं विकास की बातें सोचते रहते हैं ।
जो ऐसा नहीं सोचते वे देशभक्त कहलाने के योग्य नहीं हैं । उनके लिए मातृभूमि भूमि मात्र होती है कोई तीर्थ या आनंददायी स्थान नहीं । क्या वे अपने राष्ट्र की उन्नति का सपना देख सकते हैं ? भारत एक महान राष्ट्र है, यद्यपि आज हमारी स्थिति कई मामलों में विश्व में अच्छी नहीं कही जा सकती । आज का भारत अशिक्षा. बेकारी निर्धनता आदि के दुश्चक्र से निकलने के लिए आतुर है ।
परंतु भ्रष्टाचार दहेज प्रथा अंधानुकरण जैसे कई रोग राष्ट्र को दीमक की तरह खोखला कर रहे हैं । देश में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है जो अपने ही लोगों का शोषण करने में विश्वास रखते हैं । ऐसे लोग अपने कार्यो से राष्ट्र को अवनति की ओर धकेल रहे हैं ।
आज चारों और अराजकता दिखाई दे रही है फिर भी हम दुनिया के विशालतम लोकतंत्र का नागरिक होने का दंभ भर रहे हैं । मेरे सपने का भारत कुछ ऐसा है कि जिसके लक्षण आज कहीं भी दिखाई नहीं दे रहे हैं । भारत मेरा सपना है, मेरा तीर्थ है, मेरी मंजिल है । मैं ऐसे भारत की कल्पना करता हूँ जिसके निवासियों में आपसी सौहार्द की भावना हो ।
कहीं भी चोरी-डाका न पड़े, ट्रेनें न लूटी जाएँ भाई-भाई की हत्या न करे । धर्म और जाति के बड़प्पन के आधार पर दंगे-फसाद न हों, किसी अबला नारी की इज्जत न लूटी जाए । भारत के नागरिक सिगरेट बीड़ी शराब गाँजा अफीम आदि नशे से दूर रहें तथा अधिकांश नागरिकों का स्वास्थ्य अच्छा हो ।
हमारा कोई भाई उग्रवादी अथवा आतंकवादी न बने, सभी परिश्रम करके खाना सीखें, भारत के लोग छुटभैये नेताओं की चमचागिरी न करें तथा केवल सच्चे राष्ट्र सेवक को ही सम्मान मिले । मेरे सपनों का भारत एक खुशहाल भारत है । यहाँ के किसानों, मजदूरों, रिकशा चालकों, लोहारों, बढ़हियों, मोचियों, शिक्षकों, इंजीनियरों आदि सभी को समान दृष्टि से देखा जाएगा ।
कार्य के आधार पर किसी को छोटा या बड़ा न समझा जाएगा । किसी की झोपड़ी को तोड़कर उस पर महल बनाने का साहस कोई न कर सकेगा । सभी शिक्षित हों, सबके हाथों में काम हो, सबके वस्त्र साफ-सुथरे हों, किसी के घर के सामने कूड़े का ढेर न हो ।
ये सब कार्य भले ही छोटे हों परंतु ऐसे ही कार्यों से राष्ट्र की पहचान होती है । भारत इक्कीसवीं सदी में पहुँच गया है परंतु अधिकांश नागरिकों के घर में शौचालय तक नहीं है । कुछ लोग बहुत सुखी-संपन्न हैं तो कुछ लोग इतने दरिद्र कि भ्रम हो जाए कि यह आदमी भी है या नहीं । हमारे संमाज के अनेक व्यक्तियों का रहन-सहन आज भी पशुतुल्य ही है ।
सिर से पाँव तक गंदा, हाथों में लाठी और भीख का कटोरा, शरीर में इतनी शक्ति नहीं कि मक्खियों को भी भगा सके । क्या ऐसे नागरिकों के होते हुए भारत कभी महान राष्ट्र बन सकता है ! मेरे सपने का भारत कुछ-कुछ ऐसा है जिसका सपना कभी गाँधी और नेहरू जैसे नेताओं ने देखा था ।
एक ऐसे महान भारत का सपना जिसे कभी राम, कृष्ण, बुद्ध और महावीर ने देखा था । भारत को ऐसे लोगों ने विश्व का अग्रदूत बना दिया था । आज हम भारतवासी इनके आदर्शों को भूलकर पश्चिमी संस्कृति की विकृतियों की नकल कर रहे हैं ।
मेरे सपने के भारत में सभी नागरिक चारित्रवान् होंगे वे ऐसा कोई कार्य नहीँ करेंगे जिससे राष्ट्र का मस्तक नीचा हो । मेरे सपने का भारत विज्ञान और तकनीक की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक उन्नत होगा । यहाँ के लोग सभी धर्मों को समान रूप से आदर देंगे, कोई किसी की उन्नति में रुकावट नहीं डालेगा ।
भारत का वातावरण प्रदूषण से मुक्त होगा । यहाँ की सभी नारियाँ शिक्षित होंगी । लडुकों के जन्म पर तो खुशी परंतु लड़की के जन्म पर दु:ख मनाने का विभेदपूर्ण सिलसिला समाप्त होगा । हमारी जनसंख्या अपेक्षाकृत छोटी होगी ताकि सभी लोग सुख से रह सकें । कुल मिलाकर भारत एक ऐसा राष्ट्र होगा जिस पर हम सभी गर्व कर सकें ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 4
जब मेरी लाटरी निकली पर निबन्ध |Essay on When I got the Lottery in Hindi
लाटरी के टिकट खरीदने का शौक मुझे कभी नहीं रहा है परंतु एक बार मित्र के बार-बार आग्रह पर मैंने मणिपुर स्टेट की लाटरी का एक टिकट खरीद लिया । मेरे मित्र ने एक साथ तीन टिकट खरीद लिए थे । उसे कुछ न कुछ प्राप्त होने की उम्मीद थी, परंतु मेरा तो लाटरी में विश्वास ही नहीं था ।
इसीलिए मैंने कोई उम्मीद नहीं पाली थी । बस यों ही टिकट जेब में रख लिया था । दो दिन बाद मित्र ने फोन पर मुझे सूचना दी कि मेरे नंबर की लाटरी निकली है और पुरस्कार के रूप में मुझे पाँच लाख रुपए प्राप्त होने वाले हैं । मैंने टिकट सँभाला और तेजी से भागते हुए मित्र के घर पहुँचा ।
अखबार में मैंने जब खुद नंबर मिलाया तो देखा सचमुच मेरी लाटरी निकल आई है । मेरी खुशी का ठिकाना न था खुशी के मारे मैं दौड़कर घर आ गया । माँ को यह खुशखबरी दी तो उन्हें सहज विश्वास नहीं हुआ । जब उन्हें सारी बातों की जानकारी हुई तो वे भी काफी खुश हो गईं ।
शाम को जब पिताजी आए तो उन्हें भी यह खुशखबरी दी गई । परंतु पिताजी अधिक खुश नहीं हुए क्योंकि वे इस तरह अकस्मात् धन प्राप्ति के विरुद्ध थे । मैं अगले दिन मित्र के साथ लाटरी एजेंट के पास गया और टिकट दिखाकर उससे रुपए लिए ।
चूँकि यह लाटरी मुझे मित्र के कारण मिली थी अत: पिताजी की सहमति से मैंने एक लाख रुपए मित्र को दे दिए । शेष धन को पिताजी ने मेरे बैंक में जमा कर दिया । पिताजी ने भविष्य में लाटरी का टिकट न खरीदने की हिदायत दी । उनका कहना था कि बिना परिश्रम के धन मिलने पर किसी भी व्यक्ति को सच्चे सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती ।
वे लाटरी को एक गलत प्रथा मानते हैं । उन्होंने कहा कि लाटरी एक तरह का जुआ ही है जिसका लाभ बहुत थोड़े से लोगों को मिलता है लेकिन बहुतों को हानि उठानी पड़ती है । उन्होंने उदाहरण देकर कहा कि जुए के कारण ही महाभारत का युद्ध हुआ था ।
अत: हमें लाटरी जुआ और सट्टेबाजी से हमेशा दूर रहना चाहिए । इस तरह लाटरी मिलने पर जो खुशी हुई थी वह अधिक समय तक टिक न सकी । मौज-मस्ती और सैर-सपाटे के सारे सपने जो मैंने लाटरी प्राप्त होने पर देखे थे वे अधूरे रह गए । अब जबकि मेरा जोश ठडा पड़ चुका है मैं सोचता हूँ कि पिताजी ने ठीक ही कहा था ।
मनुष्य को धन की प्राप्ति के लिए श्रम करना चाहिए । मेहनत की कमाई में जो सुख है वह बिना मेहनत के प्राप्त धन में नहीं हो सकता । रही रुपए उड़ाकर मौज-मस्ती की बात तो यह ‘चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात’ वाली कहावत सिद्ध होती । जबकि बैंक में जमा धनराशि आगे मेरी पढ़ाई के काम में आ सकती है ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 5
जब मुझ पर मुसीबत आई पर निबन्ध | Essay on When I Faced A Dangerous Situation in Hindi
जीवन सुख और दु:ख का मिला-जुला रूप है । जब हमें सुख प्राप्त होता है तब हमें अच्छा लगता है परंतु दु ख झेलना बड़ा भारी पड़ता है । दु:ख के दिन काटे नहीं कटते जबकि सुख के दिन किस तरह बीत जाते हैं इसका पता नहीं चलता ।
चूंकि दु:ख या सुख का मिलना ईश्वर के हाथ में है अत: इंसान को चाहिए कि वह उन्हें समान समझकर हर स्थिति में सतुष्ट रहे । परंतु यह कहना जितना सरल है इसका पालन करना उतना ही कठिन । एक बार मैं ऐसी मुसीबत में फँस गया कि जिसे याद कर आज भी मेरा दिल दहल जाता है ।
मैं छात्रावास में पढ़ता था जो कि शहर से दूर एक रमणीक स्थान में स्थित है । छात्रावास और विद्यालय की दूरी लगभग दो सौ मीटर है । मैंने प्रात: आठ बजे अपना स्कूल बैग उठाया और विद्यालय की ओर चल पड़ा । संयोग से उस दिन मैं अकेला ही था मेरे साथी विद्यालय जा चुके थे ।
अभी मैंने आधा रास्ता ही तय किया था कि अचानक एक कार मेरे सामने आई और रुक गई । कार से दो व्यक्ति उतरे और लपककर मेरे पास आए । उन्होंने रिवाल्वर दिखाकर मुझे डराया-धमकाया और अपनी कार में खींच लिया । फिर वे मुझे किसी अज्ञात स्थान की ओर ले चले ।
यह घटना इतनी तेजी से घटी कि मेरी समझ में कुछ नहीं आया । मैंने चीखकर शोर मचाना चाहा परंतु उनमें से एक ने मेरा मुँह दबा दिया । मेरी चीख मुँह में ही दब कर रह गई । थोड़ी देर में वे कार से उतरे । उन्होंने मुझे भी उतरने का आदेश दिया ।
मैं तो भय से काँप रहा था परंतु क्या करता झट उनके आदेश का पालन किया । वे मुझे एक मकान के अंदर ले गए और मुझे एक अँधेरी-सी कोठरी में बंद कर दिया । मेरी समझ में आ गया कि मेरा अपहरण कर लिया गया है । उन लोगों ने मोबाइल से मेरे घर का नंबर मिलाया और मेरे पिताजी से मुझे छोड़ने के बदले में दस लाख रुपए की माँग की ।
मैंने सुना कि वे मेरे पिताजी को धमकी दे रहे थे कि यदि उन्हें रुपए नहीं मिले और यदि उन्होंने पुलिस को इस घटना की सूचना दे दी तो वे मुझे मार डालेंगे । यह सुनकर तो मेरे होशो-हवास गुम हो गए । मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई । उस समय मैंने ईश्वर को सच्चे मन से याद किया और उनसे प्रार्थना की कि वे मेरी रक्षा करें ।
बच्चों के अपहरण की घटना मैंने एक-दो बार सुनी थी । एक दिन मैंने टेलीविजन पर अपहरण का एक वाकया देखा था जिसमें दिखाया गया था कि कुछ लोगों ने धन के लालच में एक बच्चे का अपहरण कर लिया और रुपया न मिलने पर उसकी जान ले ली ।
उस घटना का चित्र मेरी आँखों के सामने सजीव हो उठा । मैं डरकर बार-बार ईश्वर से प्रार्थना करने लगा । उन लोगों ने कोठरी में दो दिनों तक मुझे बंद रखा । परंतु वे समय पर मुझे भोजन दे देते थे । पहले तो मैंने खाना खाने से इंकार कर दिया परंतु अधिक भूख लगी तो मुझे खाना पड़ा । तीसरे दिन अचानक गोली चलने की आवाज आई ।
आधे घंटे तक रुक-रुककर गोली-बारी होती रही । फिर मेरा दरवाजा खुला । मेरे सामने पुलिस वाले थे । उनके पीछे मेरे पिताजी थे । पिताजी को देखकर मैं जोर-जोर से रोने लगा । उन्होंने मुझे सीने से लगाकर मुझे ढाढस बँधाया । मेरी जान में जान आई ।
मैंने देखा, बाहर वाले कमरे में उन दो व्यक्तियों की लाशें पड़ी हैं जिन्होंने मेरा अपहरण किया था । यह सारा दृश्य आतंकित कर देने वाला था । थोड़ी देर बाद मुझे घर लाया गया । माँ और दीदी मुझे देखकर रोने लगीं । परंतु मुझे सकुशल देखकर सब मन ही मन राहत की साँस ले रहे थे ।
इस घटना को बीते कई वर्ष हो गए हैं परंतु मैं आज भी मुसीबत के उन दिनों को यादकर सिहर उठता हूँ । मैं सोचता हूँ कि आखिर समाज के कुछ लोग क्यों इतने बेरहम होते हैं कि वे बच्चों का अपहरण डकैती आदि घृणित कार्य करते हैं । हर बुरे कार्य का अंजाम प्राय: बुरा होता है ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 6
मेरा प्रिय नेता पर निबन्ध | Essay on My Favourite Leader in Hindi
आधुनिक भारत के नेताओं में श्री अटल बिहारी वाजपेयी मुझे सबसे प्रिय हैं । वे भारत के आम नागरिकों के प्रेरणा स्त्रोत एवं सर्वप्रिय नेता हैं ।
उनके व्यक्तित्व में चुंबकीय शक्ति है उनकी वाणी बड़ी प्रवाहमयी है । वे जब बोलते हैं तो सुनने वाला संवेदनशील हो उठता है । उनमें भारत जैसे एक महान देश का नेतृत्व करने के सारे गुण हैं । वे भारत माता के एक सच्चे सपूत हैं ।
अटल जी ने अपने देशवासियों का ही नहीं अपितु विश्व के नेताओं का भी दिल जीता है । उनके गुणों की कद्र उनके विरोधी भी करते हैं । उन्होंने हमेशा सच्ची बात कही है उन्होंने यदा-कदा अपनी पार्टी की गलत नीतियों का भी विरोध किया है ।
अटल जी को भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी से अपार प्रेम है । उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में अपना भाषण कई बार हिंदी में पढ़कर यह सिद्ध कर दिया है । आज तक अन्य किसी भी भारतीय नेता ने महासभा में अपना भाषण हिंदी में नहीं दिया ।
वाजपेयी जी ने भारत की सेवा के उद्देश्य से जीवन भर अविवाहित रहने का फैसला लिया । इस रूप में उन्हें आधुनिक भारत का भीष्म पितामह कहा जा सकता है । भीष्म पितामह की तरह उन्होंने भी एक प्रण लिया है- वह प्रण है एक दिन भारत को महान राष्ट्र बनाने का ।
इस कार्य में उन्होंने कभी सत्ता में रहकर तो कभी सत्ता से बाहर रहकर अपना योगदान दिया है । एक उदारवादी नेता के रूप में सभी उनका सम्मान करते हैं । अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म सन् 1924 में क्रिसमस के दिन यानि 25 दिसंबर को हुआ था । इनके पिताजी श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी एक अध्यापक थे । इनकी माता का नाम श्रीमती कृष्णा देवी था । अटल जी की शिक्षा-दीक्षा मध्य प्रदेश में हुई ।
इन्होंने लक्ष्मीबाई कॉलेज ग्वालियर से बी.ए.पास किया तथा कानपुर के डी.ए.वी. कॉलेज से एम.ए. की उपाधि प्राप्त की । अटल जी अपने विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे । इन्होंने ‘भारत छोड़ो’ आदोलन में भाग लिया था तथा जेल भी गए थे ।
अटल जी को साहित्य से गहरा लगाव रहा है । इन्होंने समय-समय पर युगधर्म, पांचजन्य, स्वदेश दैनिक, वीर अर्जुन नामक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया । इनके कविता प्रेम को भला कौन नहीं जानता । ‘मेरी इक्यावन कविताएँ’ इनकी प्रसिद्ध रचना है ।
सन् 1956 में वे पहली बार लोक सभा के सदस्य चुने गए । इसके बाद कई बार उन्होंने चुनाव लड़ा और विजयी रहे । आपातकाल के बाद जब चुनाव हुआ तो जनता पार्टी की सरकार बनी । अटल जी ने मोरारजी भाई के मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री का पद सँभाला ।
पहली बार वे सन् 1996 ई. में प्रधानमंत्री बने । तेरह दिन बाद उन्होंने त्यागपत्र दे दिया । फिर 1998 में वे भारत के प्रधानमंत्री बने । इस बार तेरह महीने उनकी सरकार रही । पुन: चुनाव हुआ और तीसरी बार उन्होंने प्रधानमंत्री का पद सँभाला ।
उन्होंने मिली-जुली सरकार को स्थायी बनाकर अपनी नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन किया । उन्होंने अपने शासन काल में परमाणु परीक्षण किए और भारत को परमाणु शक्ति-संपन्न देश बनाया । उनके नेतृत्व में देश ने विकास की कई मंजिलें तय कीं ।
सन् 2004 के आम चुनावों में अपने गठबंधन की पराजय के बाद उन्होंने प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दिया । परतु इस उम्र में भी वे राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं । अटल बिहारी देश के राजनीतिक गुरु हैं वे जनप्रिय नेता हैं । राष्ट्र को अपने इस महान नेता पर गर्व है ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 7
जब मैंने पॉकेटमार को पकड़ा पर निबन्ध | Essay on When I Caught a Pick Pocket in Hindi
पिछले साल मैं अपनी माँ और बड़े भाई के साथ नानाजी के यहाँ जा रहा था । मौसी की शादी थी । हम लोग पूरी तैयारी के साथ शादी में शामिल होने जा रहे थे । हम लोग रिकशे में बैठे और रिकशेवाले को बस स्टॉप पर चलने के लिए कहा ।
बस स्टॉप पर काफी भीड़ थी । सभी लोग अपनी-अपनी धुन में थे । बस वाले आवाज दे-देकर यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे । हमने अपने गंतव्य की ओर जाने वाली बस पकड़ी । बस में भी काफी भीड़ थी । हमारी टिकट पर सीट नंबर लिखा था इसलिए हम अपनी सीट पर बैठने के लिए बढ़े ।
माँ और भाई बैठ चुके थे, मैं भी बैठने वाला था कि मुझे अनुभव हुआ कि किसी ने मेरी पॉकेट में हाथ डाला है । मैंने पॉकेट में हाथ डाला तो पर्स गायब था । मुड़कर देखा तो एक आदमी जल्दी से बस से उतरने की चेष्टा कर रहा था । मैं चिल्लाया-देखो यह पॉकेटमार मेरा पर्स उड़ाकर भाग रहा है । सभी यात्री चौकन्ने हो गए परंतु किसी ने भी उसे नहीं पकड़ा । मैंने उसका पीछा किया ।
अभी वह बस से उतरने ही वाला था कि मैंने उसे दबोच लिया । वह मेरे साथ हाथापाई पर उतर आया । तब अन्य लोगों ने भी उसे घेरे में ले लिया । उसकी तलाशी ली गई तो उसके पास मेरा पर्स मिला । पॉकेटमार ने कहा यह पर्स मेरा है ।
परंतु पर्स में मेरा नाम एवं पता दर्ज था । उसमें मेरा एक फोटो भी था इसलिए उसकी कलई खुल गई । लोगों ने उसकी जमकर धुनाई की । इतने में मेरे भाई ने बीच-बचाव किया तथा लोगों को उसे मारने से रोका ।
मेरे बड़े भाई यह नहीं चाहते थे कि उस पॉकेटमार की अधिक पिटाई हो । उन्होंने वहीं थोड़ी दूर खड़े एक पुलिसवाले को पुकारा और पॉकेटमार को उसके हवाले कर दिया । मुझे आश्चर्य हुआ कि इतना हंगामा होने पर भी पुलिसवाला चुपचाप क्यों खड़ा रहा ।
मैंने सोचा, हो सकता है पॉकेटमार और पुलिसवाले में मिलीभगत हो । जो भी हो पुलिसवाले ने पॉकेटमार को पकड़ा और उसे लेकर थाने की ओर जाने लगा । शायद जनता के दबाव में आकर उसे अपना कर्त्तव्य निभाना पड़ा ।
इसके बाद क्या हुआ, हमें नहीं मालूम । मेरा खयाल है थाने में ले जाकर उसकी पूछताछ की गई होगी । हो सकता है कुछ ले-देकर उसे छोड़ दिया गया हो अथवा यह भी हो सकता है कि उसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया हो ।
हम लोगों के पास इतना समय नहीं था कि उसके साथ क्या हुआ इसका पता लगाया जाए । मुझे खुशी हो रही थी कि मैंने अपना पर्स बचा लिया था और पॉकेटमार को पकड़कर उसे कानून के हवाले कर दिया था । बस के अन्य यात्री मुझे प्रशंसा भरी निगाहों से देख रहे थे ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 8
जब पिताजी को गुस्सा आया पर निबन्ध | Essay on When Father got Angry in Hindi
मेरे पिताजी एक व्यापारी हैं । शहर के प्रमुख बाजार में हमारी सिले-सिलाए (रेडीमेड) वस्त्रों की एक दुकान है । पिताजी प्रतिदिन सुबह आठ बजे दुकान के लिए निकलते हैं तथा रात साढ़े नौ बजे वापस लौटते हैं ।
त्योहारों तथा शादी-ब्याह के समय में दुकान पर अधिक भीड़ रहती है । इस समय मेरा विद्यालय भी बंद रहता है अत: मैं भी दुकान पर चला जाता हूँ । मेरे दुकान पर रहने से पिताजी को ग्राहकों से निबटने में मदद मिलती है ।
दशहरे का त्योहार चल रहा था । दुकान में खासी भीड़ थी । ग्राहक मोल-भाव कर कपड़े खरीद रहे थे । पिताजी मैं और हमारे दो नौकर ग्राहकों को निबटाने में लगे हुए थे । इसी समय पिताजी को कुछ काम याद आया । वे दुकान मुझे सँभालने के लिए कहकर कहीं चले गए ।
थोड़ी देर में एक आदमी दुकान पर आया और मेरी तरफ एक पैकेट बढ़ाते हुए उसने कहा- इसे मैं कल खरीद कर ले गया था परंतु हमें नहीं चाहिए वापस ले लो । मैंने पैकेट खोलकर देखा उसमें एक लेडीज सूट था ।
मैंने बिना कुछ सोचे-विचारे वह पैकेट रख लिया तथा उसके बताए मूल्य के अनुसार उसे सात सौ रुपए लौटा दिया । इसके बाद वह आदमी चला गया । थोड़ी देर में पिताजी लौट आए । उन्होंने वह सूट देखकर पूछा यह क्या है ? मैंने उन्हें जो घटना घटी थी उसकी सही-सही जानकारी दे दी ।
पिताजी ने सूट को ध्यान से देखा और पाया कि यह हमारे दुकान का नहीं है । इसके बाद उनका पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया । उनकी आँखें क्रोधवश लाल हो गईं । उन्होंने आव देखा न ताव मुझे दो तमाचे उस्तई समय जड़ दिए ।
बोले क्या तुम्हें इतनी भी समझ नहीं कि दुकानदारी कैसे की जाए ? तुम्हें यह जानकारी होनी चाहिए थी कि यह सूट हमारे दुकान का नहीं है । और यदि जानकारी नहीं थी तो नौकर से पूछ तो सकते थे अथवा मेरे आने तक इंतजार कर सकते थे ।
मेरी तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई । जोश में मैं होश खो बैठा था जिसके कारण इतना नुकसान हुआ । पिटाई खाकर मैं रोने लगा । इस ममय दुकान में कई ग्राहक थे वे सब हमारा तमाशा देख रहे थे । एक ने कहा बच्चा है अभी समझ नहीं है धीरे-धीरे समझ जाएगा । पिताजी का गुस्सा धीरे-धीरे शांत पड़ गया ।
परंतु मेरी हालत अब भी पतली थी । मेरे मुँह से आवाज ही नहीं निकल पा रही थी । मेरी अजीब सी हालत देखकर पिताजी ने मुझे घर भेज दिया । रात में जब पिताजी लौटे तो मैं खाना खाकर सोने जा रहा था । उन्होंने मुझे बुलाकर अपने पास बिठाया और प्यार से बोले- जो हुआ सो हुआ आगे से सावधान रहना । इस दुनिया में सभी लोग भले नहीं होते कुछ लोग बेईमान झूठे और धोखेबाज भी होते हैं ।
ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिए । वह सूट अधिक से अधिक तीन सौ रुपए का होगा परंतु चालाकी से उसने सात सौ रुपया वसूल लिया । मुझे पिताजी के गुस्से का कारण समझ में आ गया था । मैंने उनसे माफी माँगी । उन्होंने मुझे माफ कर दिया । मैंने निश्चय किया कि आगे मैं कोई ऐसी भूल न करूँगा जिससे पिताजी को गुस्सा आ जाए ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 9
मेरे जीवन की एक मजेदार घटना पर निबन्ध | Essay on An Interesting Event of my Life in Hindi
हमारे जीवन में कभी-कभी ऐसी घटना भी घट जाती है जो असामान्य प्रकृति की होती है । इन पर सहज विश्वास करना कठिन होता है । परंतु जो सच है उसे झुठलाया भी तो नहीं जा सकता ।
जो घटना अस्त्रों के सामने घटित होती है उस पर विश्वास करना ही पड़ता है । मेरे साथ भी ऐसी एक घटना घटी थी । मेरे पड़ोस में एक बाबा जी आए हुए थे । वे पड़ोसी के घर कोई पूजा-अनुष्ठान कराने आए थे । आस-पड़ोस के अनेक लोग इस अवसर पर गए थे । पूजा समाप्त हुई सब ने प्रसाद खाया और अपने-अपने घर लौट गए ।
शाम के समय बाबा जी मेरे घर आए । शिष्टाचार के नाते हमने उन्हें प्रणाम किया । उन्हें घर के मेहमान खाने में सोफे पर बिठाया गया । उन्हें चाय पिलाई गई फिर नाश्ता कराया गया । पिताजी उनसे बातें करने लगे और मैं छत पर खेलने चला गया ।
थोड़ी देर बाद पिताजी ने मुझे पुकारा । मैं उनके पास गया तो बाबा जी ने प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरा । मेरा नाम पूछा मेरी पढ़ाई-लिखाई के बारे में कुछ बातें कीं । फिर बाबा जी ने पूछा क्या तुम लट्टू खाओगे ? मैंने हामी भर दी । तब उन्होंने पूछा कि कहाँ का ललट्टू खाओगे- कोलकाता का, मुंबई का या बनारस का ? मैंने यों ही कह दिया बनारस का ।
इसके बाद बाबा जी मुझे गिन में ले गए । उन्होंने गिन से एक चुटकी धूल उठाई और मेरे दाहिने हाथ में रख दिया । इसके बाद उन्होंने कहा, मुट्ठी बंद करो और कमरे में चले जाओ । मैंने ऐसा ही किया । कमरे में जाकर मुट्ठी खोली तो हाथ में सचमुच एक लट्टू था । मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा । मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि धूल लट्टू में किस प्रकार परिवर्तित हो
गया । मै दौड़कर पिताजी के पास गया, उन्हें लट्टू दिखाया । बाबा जी भी वहीं थे । उन्होंने कहा, घबराओ नहीं, तुम्हारे हाथ में सचमुच बनारस का लट्टू है । इसे खाओ । मैंने लड्डु खाया, जो बहुत स्वादिष्ट था । थोड़ी देर बाद बाबा जी चले गए । उनके जाने के बाद मैंने पिताजी से पूछा ”यह कैसे हुआ ?” परंतु वे भी कोई तर्कपूर्ण उत्तर न दे सके । इसके बाद मैंने कई मित्रों से इस घटना की चर्चा की, फिर भी कोई नतीजा न निकला ।
उस मजेदार घटना को घटित हुए कई वर्ष बीत चुके हैं परंतु आज भी मैं उसे भूल नहीं पाया हूँ । वैसा स्वादिष्ट लट्टू फिर कभी खाने को नहीं मिला है । क्या वह सचमुच लड्डू था अथवा मेरी आँखों का धोखा ! वे बाबा जी यदि फिर से मिल जाऐँ तो अवश्य ही उनसे पूछूँगा ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 10
इस तरह मनाया गया मेरा जन्मदिन पर निबन्ध | Essay on In this way I Celebrate My Birthday in Hindi
किसी भी व्यक्ति का जन्मदिन बहुत महत्त्वपूर्ण दिन होता है । यह दिन किसी त्योहार से कम नहीं होता । मित्र परिवार के लोग तथा सगे-संबंधी आते हैं तथा जन्मदिन की बधाई देते हैं ।
जन्मदिन पर व्यक्ति को उपहार स्वरूप भी कुछ दिया जाता है । दिन भर खुशी और चहल-पहल का माहौल बना रहता है । मेरे घर में मेरा जन्मदिन बड़े ही उत्साह से मनाया जाता रहा है । 25 दिसंबर के दिन यानि क्रिसमस के दिन मेरा जन्म हुआ था ।
अतएव मैं कह सकता हूँ कि क्रिसमस के बहाने पूरी दुनिया में मेरा जन्मदिन पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । मेरे घर में बड़ा-सा केक बनाया जाता है मोमबत्तियाँ जलती हैं घर को आकर्षक ढंग से सजाया जाता है । बिजली की झिलमिल रोशनी मधुर गीत-संगीत और तालियों की गड़गड़ाहट के बीच केक काटा जाता है ।
मित्र सगे-संबंधी मुझे ढेर सारी बधाइयाँ देते हैं । सभी मेरे लिए कुछ उपहार लाते हैं । माँ और बाबूजी को प्रणाम कर मैं उनसे आशीर्वाद लेता हूँ । फिर खाना-पीना होता है । परंतु मेरा पिछला जन्मदिन इन सामान्य अनुभवों से कुछ हटकर था । इसका कारण था मेरे शहर में आई भयंकर बाद जिसने लगभग सौ लोगों की जान ले ली थी ।
अनेक लोगों का घर धराशायी हो गया था जिसके कारण वे बेघर और बेसहारा हो गए थे । मेरे घर में भी बाद का पानी घुस आया था हालाकिं अधिक क्षति नहीं हुई थी । परंतु मेरे शहर का जन-जीवन अभी भी असामान्य था । संपत्ति का भारी नुकसान हुआ था अनेक व्यक्ति अस्थाई शरण-स्थलों में रहने के लिए विवश थे ।
बाढ़ का पानी हटने के बाद महामारी फैल गई जिसके कारण कई मौतें हुईं । शहर भर में गंदगी कीचड़ और बदबू फैली हुई थी । ऐसी स्थिति में मेरे पिताजी ने मेरा जन्मदिन कुछ अलग ढंग से मनाने का निर्णय लिया । सुबह से लेकर दोपहर तक मेरे घर के सभी सदस्यों ने पूरे महल्ले की सफाई की ।
इस नेक कार्य में हमें महल्ले के अन्य लोगों का भी सहयोग प्राप्त हुआ । पिताजी एक दिन पहले ही कहीं से डी.डी.टी. पाउडर ले आए थे । इसका स्थान-स्थान पर छिड़काव किया गया । गंदे गड्ढों में हमने सूखी मिट्टी डाली बड़े गड्ढों में कुछ पैट्रोल छिड़का ।
इस बीच हलवाई ने पूरी और सब्जियाँ तैयार कर रखी थीं । दोपहर बाद हमने स्नान किया और तैयार होकर हम कार में बैठ गए । हमने पूरी और सब्जियाँ साथ में ले लीं । हम वहाँ गए जहाँ लोगों के लिए अस्थाई शिविर लगे थे । हमने वहाँ बाढ़ पीड़ितों को भोजन कराया ।
लोग काफी भूखे थे, सबने संतुष्टिपूर्वक खाना खाया । भूखे, असहाय और प्राकृतिक विपत्ति के मारे लोगों की मदद करके हमें बहुत खुशी हुई । शाम तक हम लोग घर लौट आए । हम लोग काफी थक गए थे । हमने अड़ोस-पड़ोस के कुछ लोगों के साथ बैठकर गरम पूरी और सब्जियाँ खाईं । फिर हम लोग सो गए ।
इस तरह मेरा पिछला जन्मदिन कुछ अलग अंदाज में मनाया गया । मैं समझता हूँ परिस्थिति के अनुकूल यह बहुत उचित था । चाहे जन्मदिन के बहाने ही सही हमने कुछ अच्छे कार्य किए । यह जन्मदिन मुझे लंबे समय तक याद रहेगा ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 11
ऐसे बिताया मैंने ग्रीष्मावकाश पर निबन्ध | Essay on In this way I Spent My Summer Vacation Hindi
हमारे देश में गरमी की छुट्टियाँ घूमने-फिरने अथवा पर्यटन की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण होती हैं । देश की राजधानी दिल्ली में तो लगभग दो महीने तक ग्रीष्मावकाश होता है ।
ऐसे में सैर-सपाटे के लिए एक पखवाड़े का समय निकालना अधिक कठिन नहीं होता । इस वर्ष ग्रीष्मावकाश के आरंभिक दिनों में मैंने कक्षा की नई पुस्तकों का गंभीर अध्ययन किया । पिछले सत्र में मुझे गणित में सबसे कम अंक प्राप्त हुए थे, अत: मैंने इस विषय पर अधिक ध्यान दिया ।
मैंने इसके सूत्रों को याद किया, सभी अभ्यास प्रश्न बना डाले । प्रश्नों को हल करने में मेरी बड़ी बहन ने भरपूर मदद की । इस प्रकार ग्रीष्मावकाश का आधा समय पाठ्य-पुस्तकों से गहन साक्षात्कार में बीत गया । इस बीच एक दिन पिताजी ने मुझे एक ऐसी सूचना दी जिससे मेरी प्रसन्नता का कोई ठिकाना न रहा ।
उन्होंने दिल्ली की भीषण गरमी से निजात पाने के लिए दो जून को हिमाचल प्रदेश के भ्रमण पर निकलने का कार्यक्रम बनाया था । भारत के पहाड़ी राज्यों में हिमाचल प्रदेश का विशेष स्थान है । हमारा पहला पड़ाव शिमला था तथा दूसरा पड़ाव डलहौजी । हम लोग दो जून को दिल्ली हवाई अड्डे पर गए और इंडियन एयरलाइंस के विमान से शिमला पहुँचे ।
शिमला हवाई अड्डे से हम लोग ‘हिमलैंड वेस्ट’ होटल पहुँचे । हवाई टिकट तथा होटल में कमरे का आरक्षण पहले से करा लिया गया था । हमने शिमला में लगभग दस दिन बिताए । यहाँ हमने गेयटी थियेटर, हिमालय पक्षिशाला, वायसराय लॉज हिमाचल राज्य संग्रहालय आदि स्थानों का भ्रमण किया ।
शाम के समय हम लोग माल रोड़ पर घूमने जाते थे । यहाँ घूमने का मजा ही कुछ और है । माल रोड़ के निकट स्थित पक्षीशाला पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है । यहाँ भारत एवं विश्व की दुर्लभ पक्षियों की प्रजातियाँ देखने को मिलती हैं । वायसराय लॉज शिमला का सबसे सुंदर भवन है ।
इस भवन का वास्तुशिल्प अनूठा है । वायसराय लॉज के निकट स्थित संग्रहालय अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता है । दुर्लभ मूर्तियाँ, पांडुलिपियाँ, कढ़ाई और हाथ के बने सामानों का संग्रह यहाँ का आकर्षण है । शिमला प्रवास के दौरान हमने जाखू हिल, कैनेडी हाउस, क्राइस्ट चर्च आदि प्रसिद्ध स्थानों को देखा ।
हमारा अगला पड़ाव डलहौजी था । हिमालय की गोद में बसा डलहौजी हिमाचल प्रदेश का एक खूबसूरत पर्वतीय स्थल है । दूर-दूर तक बरफ से ढकी ऊँची-ऊँची चोटियाँ चीड़ और देवदार के पेड़ों से युक्त वन और कलकल कर बहते झरने डलहौजी की सुंदरता में चार चाँद लगा देते हैं ।
लार्ड डलहौजी के नाम पर इसका नामकरण किया गया था । अंगरेजों को यह स्थान इतना अच्छा लगा कि उन्होंने इस स्थान का विकास एक पर्यटन स्थल के रूप में किया था । डलहौजी में बहुत से दर्शनीय स्थान हैं । यहाँ स्थित डायना कुंड से शहर का सुंदर दृश्य दिखाई देता है । इस स्थान से आस-पास के पहाड़ बिलकुल बौने दिखाई देते हैं । हम लोगों ने डायना कुंड के अलावा पंजपुला, सतधारा, कालाटोप तथा जंदरी घाट आदि स्थानों में जाकर सैर-सपाटे का भरपूर आनंद उठाया ।
डलहौजी शहर से हमारे देश के अमर स्वतंत्रता सेनानियों का भी नाम जुड़ा हुआ है । सुभाष चंद्र बोस, सरदार अजीत सिंह तथा गुरु रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने जीवन के कुछ दिन डलहौजी में बिताए थे । पंजपुला में भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह की समाधि बनी हुई है ।
डलहौजी में आठ दिन बिताने के पश्चात् हम लोग सड़क मार्ग से धर्मशाला पहुँचे । यहाँ से दिल्ली तक नियमित हवाई उडानें होती हैं । हमलोग धर्मशाला से दिल्ली लौट आए । दिल्ली में अभी भी काफी गरमी थी । थोड़े दिनों बाद हमारा विद्यालय खुल गया और हमारा दैनिक कार्यक्रम आरंभ हो गया । मैंने ग्रीष्मावकाश की सुनहरी यादों को अपने मित्रों के साथ बाँटा ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 12
मेरी पहली रेल यात्रा पर निबन्ध | Essay on My First Journey by Train in Hindi
मैं जिस शहर में रहता हूँ वहाँ रेलमार्ग नहीं है । यदि किसी को रेलयात्रा करनी होती है तो वह पहले सड़क मार्ग से निकटतम रेलवे स्टेशन जाता है । जब मेरी उम्र बारह वर्ष की थी, उस समय मुझे प्रथम रेल यात्रा का सुअवसर प्राप्त हुआ । मेरी बुआ सपरिवार लखनऊ में रहती हैं ।
बुआ के लड़के की शादी में शामिल होने के लिए हमें रेलमार्ग से लखनऊ जाना था । एक तो शादी के घर में जाने की खुशी, फिर प्रथम रेल यात्रा का अवसर; मैं अति उत्साहित था । मैं पिताजी और माँ के साथ सर्वप्रथम बस से पटना पहुँचा । पटना के रेलवे स्टेशन पर हम लोग समय पर पहुँच गए ।
श्रमजीवी एक्सप्रेस नौ बजकर बीस मिनट पर पटना से चलती है । हमारा पूर्व आरक्षण था, इसलिए हमलोग निश्चित थे । रेलवे स्टेशन के बाहर काफी चहल-पहल थी । लोग बड़ी संख्या में अपने सामान के साथ स्टेशन से बाहर आ रहे थे । मैं हैरत में था तो पिताजी ने मेरी स्थिति भाँपकर मुझे कहा अभी-अभी कोई ट्रेन आई होगी ये लोग उसी से उतरे होंगे ।
रेलवे प्लेटफॉर्म पर पहुँचा तो यहाँ भी बहुत भीड़-भाड़ थी । बहुत से यात्री अपने सामानों के साथ प्लेटफॉर्म पर खड़े थे । प्लेटफॉर्म पर बुक स्टॉल नाश्ते आदि के स्टॉल तथा खिलौने के स्टॉल लगे थे । कुछ लोग प्लेटफॉर्म पर घूम-घूमकर फल खिलौने चेन हाथ पंखा मूँगफली आदि बेच रहे थे । मैं बड़ी ही उत्सुकता के साथ रेलवे प्लेटफॉर्म के इस दृश्य को देख रहा था ।
इतने में धड़-धड़ करती हुई एक रेलगाड़ी प्लेटफॉर्म पर आई । गाड़ी पर ‘श्रमजीवी एक्सप्रेस’ लिखा था । हम लोग इस पर चढ़ने के लिए बड़े । हमें जिस डब्बे में चढ़ना था, उसमें चढ़ने वालों को धक्का-मुक्की करते देख मेरा मन विचलित हो उठा ।
मैं सोचने लगा, आरक्षित डब्बे में चढ़ना इतना कठिन क्यों है । परंतु गेट पर लगी भीड़ जल्दी ही हट गई । हम लोग आराम से चढ़कर अपनी निर्धारित सीट पर बैठ गए । थोड़ी ही देर में इंजन की सीटी हुई और गाड़ी खुल गई । शुरू के पाँच मिनट हमारी टेरन मद गति से चली परंतु शीघ्र ही उसने रफ्तार पकड़ ली ।
मैं खिड़की के पास बैठकर गाड़ी से बाहर का दृश्य देखने लगा । मुझे दूर स्थित पेड़-पौधे, मकान आदि चलते हुए दिखाई देने लगे । मैंने जिज्ञासा की तो पिताजी ने समझाया, पेड़, घर आदि अपनी जगह खड़े हैं, सिर्फ हमारी गाड़ी चल रही है ।
कुछ देर में मेरा ध्यान गाड़ी के अदर के दृश्य की ओर गया । गाड़ी पर समय-समय पर चाय वाले मूँगफली वाले, समोसे वाले, पूरी-सब्जी वाले, हरे चने वाले, शीतल पेय वाले, ठंडे पानी की बोतल वाले आदि कितने ही व्यक्ति अपनी टोकरी, खोमचे, बाल्टी आदि के साथ आने लगे ।
ये लोग बड़ी विचित्र आवाजें लगा कर यात्रियों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर रहे थे । मैंने मूँगफली खाई तथा माँ एवं पिताजी ने गरम चाय का आनंद लिया । हमारी ट्रेन विभिन्न स्टेशनों पर रुकती फिर सीटी के साथ चल पड़ती थी । एक दो बार काला कोट पहने टिकट चैकर आए तथा इन्होंने प्रत्येक यात्रियों का टिकट चैक किया । कुछ यात्री साधारण श्रेणी का टिकट लेकर आरक्षित श्रेणी के डब्बे में चढ़ गए थे । टिकट चैकर ने इनसे जुर्माना वसूल किया ।
मैंने इस रेल यात्रा का खूब आनंद उठाया । जब भी हमारी ट्रेन किसी स्टेशन पर अधिक देर रुकती मैं पिताजी के साथ ट्रेन से उतर कर स्टेशन का दृश्य देखता था । हमारी ट्रेन के कुछ यात्री उतरकर खाने-पीने का सामान खरीदते थे, तो कुछ पानी की बोतल लिए नल के पास भागते थे ।
रात होने पर हमने ट्रेन में ही खाना खाया । फिर हम लोग अपनी-अपनी सीट पर सो गए । निर्धारित समय पर हमारी ट्रेन लखनऊ पहुँची । लोगों ने अपने बिस्तर, सामान आदि सँभाले और ट्रेन से उतर गए । अनेक कुली गाड़ी की ओर झपट रहे थे । पिताजी ने एक कुली को सामान पकड़ा दिया ।
कुली के पीछे-पीछे हम लोग भी स्टेशन से बाहर आ गए । फिर हमने ऑटो रिकशा पकड़ा और बुआजी के घर पहुँच गए । मेरी प्रथम रेलयात्रा कई दृष्टि से रोचक एव रोमांचक थी । भारतीय रेलें हमारे देश की यातायात-व्यवस्था के लिए कितनी महत्त्वपूर्ण हैं, मुझे इसकी जानकारी हो चुकी थी । प्रतिदिन एक आस्टेरलिया को ढोने वाली भारतीय रेलें देश की धड़कन हैं ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 13
मेरी पसंद का भोजन पर निबन्ध | Essay on The Food I Like in Hindi
हम लोग अपने भोजन में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को शामिल करते हैं । हमारे देश के विभिन्न भागों में इतने विविध प्रकार के भोजन तैयार किए जाते हैं कि इनकी गिनती सरल नहीं । भारतीय भोजन पूरी दुनिया में सबसे स्वादिष्ट और पौष्टिक माने जाते हैं ।
भोजन के मामले में एक बात महत्वपूर्ण है कि सभी लोगों की पसंद अलग-अलग होती है । एक कहावत भी है कि कपड़ा वैसा ही पहनना चाहिए जिसे दूसरे पसंद करते हों और भोजन वैसा ही करना चाहिए जो अपनी पसद का हो ।
यदि भोजन की थाली में व्यक्ति की पसद का खाना परोसा गया हो तो इस भोजन का आनंद कई गुणा बढ़ जाता है । भोजन में कुछ चीजें मुझे विशेष रूप से पसंद हैं । मुझे चावल के साथ आलू-गोभी की सब्जी मिल जाए तो बड़ा मजा आता है ।
वैसे मुझे रोटी भी पसंद है पर रोटी के साथ यदि बेसन की कड़ी मिल जाए तो मेरी खुशी बढ़ जाती है । फलों में मुझे सबसे अधिक सेब और अगर पसंद है । इसके अलावा खट्टे-मीठे बेर भी मुझे दूर से ही आकर्षित करते हैं । मुझे मांसाहार पसंद नहीं इसलिए मैं शाकाहारी हूँ ।
मुझे शाकाहारी भोजन में भी अधिक तला-भुना भोजन पसंद नहीं है । पापड़ अचार आदि से मैं यथासंभव दूर ही रहता हूँ पर पापड़ यदि साबूदाने का हो और अचार यदि नींबू का हो तो मुँह से लार टपकने लगती है । वैसे भी गरमी के दिनों में ठंडे मीठे पानी में नींबू का रस डालकर पीना बड़ा ही मजेदार लगता है ।
भोजन के साथ सलाद मुझे विशेष तौर पर पसंद है । गाजर टमाटर बंदगोभी मूली खीरा प्याज आदि का सलाद भोजन के जायके को तो बढ़ाता ही है, पाचन क्रिया की दृष्टि से भी सलाद का बहुत महत्त्व है । जहाँ तक सब्जियों की बात है, सभी हरी सब्जियाँ आम तौर पर अच्छी लगती हैं ।
करेला, गोभी, आलू और पालक मेरी पसद की सब्जियाँ हैं । हरी मिर्च भी मैं बड़े मजे से खाता हूँ परंतु अधिक नहीं । भोजन में यदि दूध, दही, देशी घी इत्यादि शामिल न हो तो यह पूर्ण नहीं माना जा सकता । मैं दूध की बनिस्पत दही अधिक पसंद करता हूँ । दही की लस्सी मेरी खास कमजोरी है ।
मिठाइयाँ मुझे अधिक पसद नहीं हैं परंतु रसगुल्ले को देखते ही मेरा मन डाँवाडोल हो जाता है । कृष्णजी माखनचोर थे परंतु मेरे घर में मुझे रसगुल्ला चोर कहा जाता है । यदि भूख हो तो मैं एक ही समय में आधा किग्रा. रसगुल्ला खा सकता हूँ ।
इस प्रकार मेरी पसंद का भोजन आम भारतीय भोजन का ही हिस्सा है । मुझे उम्मीद है कि आजीवन मुझे मेरी पसंद का भोजन प्राप्त होता रहेगा । मैं अपनी माँ का बहुत आभारी हूँ जो भोजन पकाते समय प्राय मेरी पसद का ध्यान रखती हैं ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 14
मेरा प्रिय विषय पर निबन्ध | Essay on My Favourite Topic in Hindi
गणित मेरा सबसे प्रिय विषय है । कुछ लोग इसे नीरस विषय मानते हैं परंतु मैं ऐसा नहीं मानता । गणित विषय में मेरी इतनी रुचि है कि मेरी पढ़ाई-लिखाई का लगभग आधा समय गणित की भेंट चढ़ जाता है। यदि अन्य विषयों को पड़ने की बाध्यता नहीं होती तो शायद मेरा पूरा अध्ययन ही इस विषय पर केंद्रित हो जाता ।
गणित की कई बातें मुझे बड़ी अच्छी लगती हैं । एक तो यह कि इसमें मूल अंक 0 से 9 तक ही हैं परंतु पूरा गणित इन्हीं दस अंकों पर आधारित है । इनमें सबसे रोचक बात यह है कि आज पूरी दुनिया में जिस दाशमिक प्रणाली के अंकों का प्रयोग हो रहा है वह भारत की ही देन है ।
शून्य का आविष्कार भारत में हुआ, फिर इसका प्रयोग अरब देशों में होने लगा । बाद में यह ज्ञान पश्चिमी देशों तक पहुँचा । गणित का दूसरा आकर्षण यह है कि इसके सवालों को हल करने में जिन सूत्रों का प्रयोग किया जाता है वे बहुत अधिक नहीं हैं ।
बस यदि सूत्रों का पता हो ये कंठस्थ हों तो कठिन से कठिन सवाल भी आसानी से हल किए जा सकते हैं । गणित विषय के अध्ययन की यह खूबी है कि इसे पढ़ते समय मन बड़ा एकाग्र हो जाता है । मन जरा भी विचलित हुआ कि जोड़, घटाव, गुणा, भाग आदि क्रियाओं में कहीं भी गलती हो सकती है ।
एक छोटी सी गलती के कारण पूरा हल ही गलत हो सकता है । गणित ही एकमात्र ऐसा विषय है जिसमें विद्यार्थी शत-प्रतिशत अंक प्राप्त कर सकता है । यदि प्रश्न का हल सही होता है तो पूरे अंक मिलते हैं और यदि हल गलत हो जाता है तो शून्य के अतिरिक्त और कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता ।
गणित में जोड़, घटाव, गुणा तथा भाग इन चार मूलभूत क्रियाओं का बड़ा महत्त्व है क्योंकि पूरा का पूरा गणित इन्हीं चार क्रियाओं पर निर्भर है । ऊँची कक्षाओं में भी इनका महत्त्व कम नहीं होता । गणित एक ऐसा विषय है जो विज्ञान और कला दोनों है । इसकी पढ़ाई के लिए विज्ञान का विद्यार्थी होना आवश्यक नहीं है । कला संकाय के छात्र भी गणित को एक वैकल्पिक विषय के रूप में चुन सकते है ।
गणित की इन्हीं विशेषताओं के कारण यह मेरा प्रिय विषय है । जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं जिसमें इस विषय के ज्ञान का उपयोग न होता हो । यहाँ तक कि दूधवाला, नाई और सब्जीवाला भी कुछ न कुछ जोड़-खटाव करना अवश्य जानता है ।
यदि गणित न होता तो विज्ञान का विकास न हुआ होता, आधुनिक वैज्ञानिक आविष्कार न हुए होते, मनुष्य चंद्रमा की यात्रा न कर पाता । गणित की व्यापक उपयोगिता मुझे इस विषय की ओर बहुत आकर्षित करती है ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 15
वर्षा का एक दिन पर निबन्ध | Essay on A Rainy Day in Hindi
वर्षा ऋतु बहुत आनंददायी होती है । धरती पर नए-नए घास उग आते हैं, पेड़-पौधे हरे-भरे हो जाते हैं । फसलों की हरियाली से किसानों का हृदय उत्साहित होने लगता है ।
सामान्य जन भी भीषण गरमी से मुक्ति पाकर आनंद से भर उठते हैं । मयूरों का नृत्य वन की शोभा में चार चाँद लगा देता है । मुझे वर्षा का एक दिन अब भी याद है । यह एक प्रलयकारी दिन था । सुबह से ही जोरदार वर्षा हो रही थी । परंतु मुझे विद्यालय जाना था । परीक्षाएँ चल रही थीं अत: की कर लेने की गुंजाइश ही नहीं थी ।
स्कूल बस पकड़ने के लिए छाता लेकर निकला तो देखा गलियों में काफी पानी भरा हुआ है । जूते उतारे जुराबें खोलीं पैंट को मोड़कर ऊपर चढ़ाया, तब कहीं बस आने की निर्धारित जगह पहुँच पाया । लेकिन इतनी सी यात्रा में ही मैं भीग गया था क्योंकि आड़ी-तिरछी बौछारों के प्रहार को मेरा छोटा छाता झेल न पाया । बस पर चढ़ा तो कुछ राहत मिली ।
परीक्षा भवन में लेखनी नहीं चल रही थी क्योंकि भीगने के कारण शरीर में कँपकँपी हो रही थी । बीच-बीच में छीके आ रही थीं । किसी तरह पेपर पूरे हुए । अब घर जाने की बारी थी । बस में बैठकर घर पहुँच तो गया परंतु बस स्टॉप से घर तक पहुँचने के कम में मैं फिर से भीग गया । वर्षा जरा थमती फिर से शुरू हो जाती । सड़कों पर भी पानी बह रहा था, गलियों की हालत तो और भी बुरी थी ।
अधिकतर व्यक्ति छाता लेकर या बरसाती पहन कर चल रहे थे । जब कोई वाहन गुजरता, पैदल यात्रियों को कीचड़ के छींटे लग जाते थे । घर आकर कपड़े बदले । ठंड लग रही थी इसलिए सितंबर महीने में ही कंबल ओढ़ना पड़ा । वर्षा जारी थी, मेढक जोर-जोर से टर्रा रहे थे, झींगुर असमय ही शोर करने लगे थे । बिजली गड़-गड़ कर रही थी जिसका शोर बड़ा डरावना था । अचानक पड़ोस में शोरगुल होने लगा ।
मैं दौड़कर छत पर गया कि देखूँ माजरा क्या है ! लोग इकट्ठे होकर चिल्ला रहे थे – नदी का तटबंध टूट गया है, बाढ़ का पानी किसी भी क्षण शहर में प्रवेश कर सकता है । इस भयंकर बरसात में सभी लोग बाढ़ से बचने के लिए अपनी-अपनी छत पर जमा हो गए । जिनके घर में पक्की छत नहीं थी वे पड़ोसी की छत पर चले गए । चारों ओर अफरातफरी मच गई ।
परंतु बाढ़ नहीं आई । थोड़ी देर में पता चला, तटबंध टूटने की खबर अफवाह के अतिरिक्त और कुछ नहीं थी । बहुत से लोग वर्षा में नाहक भीग गए । घर-आँगन में पूरा पानी भर आया था । इससे जल का निकास अवरुद्ध हो गया था । मैंने नाली का कचरा हटाकर पानी निकलने के मार्ग की सफाई की । मौसम को देखते हुए माँ ने गरमागरम पकौड़े तल दिए । हमने पकौड़ों का आनंद उठाया ।
शाम हो आई परंतु इद्र देवता कुपित ही रहे । घर में सब्जी नहीं थी परंतु घर से बाहर निकलने का साहस किसी में नहीं था । जनजीवन थम सा गया था । पूरी रात इंद्रदेव रुक-रुक कर बरसते रहे । मैं लेटे-लेटे मोटी-मोटी बौछारों का मजा लेता रहा । सुबह उठा तो देखा आसमान साफ है । सूर्य देवता प्रकट हो चुके हैं । पेड़-पौधों में नवजीवन आ गया था । वर्षा का यह एक दिन बहुत ही रोमांचकारी था ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 16
भारतीय किसान पर निबन्ध | Essay on The Indian Farmer in Hindi
भारत गाँवों का देश है । अधिकतर भारतीय गाँवों या कस्बों में रहते हैं । यहाँ के लोगों का मुख्य पेशा खेती-बारी है । जो लोग खेती-बाड़ी करते हैं उन्हें किसान कहा जाता है । भारतीय किसान देश के लोगों का अन्नदाता है ।
वह कठोर श्रम कर अनाज, फल, सब्जियाँ आदि उत्पन्न करता है । इस तरह वह देश के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है । किसान प्रात: उठकर अपने खेतों की ओर चल देता है । हल-बैल या ट्रैक्टर उसके प्रिय साथी हैं । इनकी मदद से वह खेत जोतता है उसमें बीज बोता है । बीज से पौधे निकलते हैं जिसकी वह विभिन्न प्रकार से देख-भाल करता है ।
खेतों में खाद डालता है तथा उनकी समय-समय पर सिंचाई करता है । फसलों से खर-पतवार निकालता है तथा इन्हें विभिन्न रोगों से बचाने के लिए कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करता है । किसानों का नाश्ता तथा दोपहर का भोजन प्राय: खेतों पर ही होता है । शाम को वह थका-माँदा घर लौटता है । इस समय वह अपने परिवार के साथ रहता है । रात में वह जल्दी खाना खाकर जल्दी सो जाता है ।
किसान खेतों में लहलहाती फसलों को देखकर बहुत आनंदित होता है । जब फसल पक जाती है तब उसे काटकर वह खलिहानों में लाता है । यहाँ मशीनों से फसलों से अनाज निकाला जाता है । वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति अनाज एवं अन्य फसलों को बेचकर पूरा करता है ।
फसलों से प्राप्त धन से वह उन्नत बीज, रासायनिक खाद, कीटनाशक दवाइयाँ तथा कृषि उपकरण खरीदता है । वह फिर से नई फसल की तैयारी में जुट जाता है । खेती को वह धर्म मानकर हानि-लाभ की अधिक चिंता नहीं करता है ।
भारतीय किसानों को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है । बाढ़, सूखा, ओला, आँधी-तूफान, चक्रवात आदि प्राकृतिक विपदाएँ उसके कार्य में बाधाएँ खड़ी करती रहती हैं । कई बार फसलें बर्बाद हो जाती हैं । इस नुकसान की भरपाई के लिए उसे बैंकों अथवा साहूकारों से कर्ज लेना पड़ता है । किसानों को सिंचाई के लिए बिजली की कमी का भी सामना करना पड़ता है । फिर भी उसके उत्साह में कमी नहीं आती ।
पूरे वर्ष वह खेतों में काम करके देश के निवासियों के लिए भोजन की सामग्री का प्रबंध करता है । कभी-कभी किसानों को उनकी उपज का बहुत कम मूल्य मिलता है । किसानों को अपनी उपजों को बाजार तक पहुँचाने में भी कठिनाई का सामना करना पड़ता है । फिर भी वह संतुष्ट रहता है ।
हमारे किसान बहुत सामान्य जीवन जीते हैं । उसका पहनावा, खान-पान बहुत साधारण होता है । वह चावल, रोटी, हरी सब्जी, दूध और छाछ खाता है । कुछ किसान सपन्न होते हैं क्योंकि इनके पास अधिक कृषि भूमि होती है ।
बहुत से किसान गरीब हैं क्योंकि इनके पास कृषि योग्य भूमि का अभाव है । गरीब किसान कच्चे मकानों में रूखा-सूखा खाकर रहते हैं । भारतीय किसान प्रकृति के निकट रहकर उसका खूब आनंद उठाते हैं । इस कारण वे कम बीमार पड़ते हैं ।
भारतीय किसानों की अधिक से अधिक मदद की जानी चाहिए ताकि वे देश के लिए अधिक उत्पादन कर सकें । इन्हें बीज खाद, बिजली पंपसेट हैक्टर आदि खरीदने के लिए भरपूर आर्थिक सहायता उपलब्ध करानी चाहिए ।
सिंचाई सुविधाओं का विस्तार कर फसल बीमा योजना लागू कर, बाढ़, सूखा आदि आपदाओं को रोककर हम इनकी मदद कर सकते हैं । किसानों की मदद के लिए हमारी सरकार यथासंभव प्रयास कर रही है ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 17
फेरीवाला पर निबन्ध | Essay on The Street Hawker in Hindi
फेरीवाला या स्ट्रीट हॉकर हमारे देश का एक जाना-पहचाना नाम है । यह नगरों, शहरों, कस्बों, गाँवों में भ्रमण करते हुए विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ बेचता है । यह साइकिल ठेला अथवा बिना सवारी के पैदल ही घूमता है और लोगों को उनकी जरूरत का सामान उनके घर पर ही उपलब्ध कराता है ।
फल सब्जियाँ तथा खाने-पीने की विभिन्न वस्तुओं को लिए यह द्वार-द्वार गली-महल्लों में जाता है तथा आवाज देकर गृहणियों तथा बच्चों को अपनी ओर आकर्षित करता है । उसकी पुकार सुनकर लोग उसके पास आते हैं और अपनी जरूरत की वस्तुएँ खरीदते हैं । इस प्रकार प्राप्त मुनाफे से वह अपना तथा अपने परिवार का पालन-पोषण करता है ।
कुछ फेरीवाले बरतन और कपड़े बेचते हैं । लोग इनके पास से घरेलू जरूरत का बरतन और कपड़ा खरीदते हैं । बरतन के बदले धन दिया जा सकता है अथवा पुराना अनुपयोगी बरतन । ये लोग पुराना टूटा-फूटा प्लास्टिक का सामान भी खरीदते हैं तथा बदले में न
या सामान देते हैं ।
इसी तरह कपड़ेवाला कंबल चादर तकिए का कवर टेबल का कपड़ा तथा पहनने का सूट आदि बेचता है । कुछ लोग इन फेरीवालों से खूब मोल-तोल करते हैं तो कुछ लोग काफी मोल-तोल कर भी इनसे कुछ नहीं खरीदते हैं ।
इस तरह फेरीवाले को बहुत परेशानी उठानी पड़ती है । मोल-तोल के कारण उसे आमदनी भी कम होती है । फेरीवाला हमेशा प्रकृति की विषमताओं के मध्य अपना कार्य करता है । गरमियों में जब लोग घर से निकलना पसंद नहीं करते वह पसीने से भीगकर जनसेवा का कार्य करता है ।
लोगों को ठंडा नींबू-पानी, पुदीने का शरबत आदि पिलाता है । गरमी हो या शीतलहरी, तेज हवाएँ चल रही हों अथवा वर्षा हो रही हो बिना रुके बिना थके अपना कार्य करता रहता है । अपनी चलती-फिरती दुकान लेकर गली-गली घूमता फेरीवाला बच्चों को बहुत लुभाता है । अंडा, चाट, पकोड़े, समोसे, मूँगफली, पाव-भाजी, छोले-भटूरे, कुल्फी आदि बेचनेवालों के पास बच्चों की भीड़ लगी रहती है ।
स्कूलों में मध्यावकाश तथा छुट्टियों के समय बच्चे खाने-पीने की वस्तुओं पर टूट पड़ते हैं । कुछ फेरीवाले बच्चों को घटिया वस्तुएँ खिलाकर इनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते हैं । फेरीवाला सुबह से शाम तक परिश्रम कर के भी अधिक कमाई नहीं कर पाता है । ये लोग अपने परिवार के साथ गंदी बस्तियों में रहते हैं तथा निम्न स्तर का जीवन जीते हैं ।
हमारे देश में जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ फेरीवालों की संख्या भी बढ़ रही है । गाँवों के लोग शहरों में आकर अन्य कोई रोजगार न पाकर फेरी का धंधा करने लगते हैं । श्रम करके खाना कोई इनसे सीखे । हमें इनके श्रम का उचित सम्मान करना चाहिए । हमें इनके साथ बुरा बर्ताव नहीं करना चाहिए ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 18
डाकिया (पोस्टमेन) पर निबन्ध | Essay on The Post Man in Hindi
डाकिया हमारे समाज का एक सेवक है । इसका कार्य लोगों के घरों तक पत्र मनीआर्डर पार्सल आदि वितरित करना है । डाकिया नगरों कस्बों तथा गाँवों के निवासियों को उनका संदेश पहुँचाता है ।
डाकिया सामान्यतया खाकी पोशाक पहनता है तथा साइकिल या पैदल चलकर गलियों-महल्लों में जाता है । इसके पास एक थैला होता है जिसमें वह पत्र पार्सल आदि रखता है । हम सभी डाकिए के आने का स्वागत करते हैं क्योंकि यह हमारे लिए जरूरी सूचनाएँ अथवा सामग्री लाता है ।
गाँव के कुछ लोग अपने संबंधियों द्वारा मनीआर्डर के माध्यम से भेजे गए धन पर निर्भर होते हैं । डाकिया इन्हें मनीआर्डर की रकम देकर बहुत खुश होता है । डाकिया डाकघर का एक व्यस्त कर्मचारी होता है । विभिन्न स्थानों से आए पत्रों की छँटनी करना तथा एक-एक घर जाकर इन्हें बाँटना एक कठिन कार्य है ।
कई छोटे शहरों तथा कस्बों में बिजली टेलीफोन आदि के बिल पहुँचाना भी डाकिए का ही दायित्व होता है । यह मौसम की परवाह नहीं करता है क्योंकि पूरे वर्ष इसे कार्य करना पड़ता है । भयंकर लू में अंधी-तूफान और बरसात में नदी-नालों तथा बीहड़ क्षेत्रों से गुजरता हुआ यह अपना कर्त्तव्य निभाता है ।
ग्रामीण क्षेत्रों में एक डाकिए पर ही कई गाँवों तक पत्र आदि पहुँचाने का दायित्व होता है । शहरों के डाकघरों में कई डाकिए काम करते हैं जिनके कार्यक्षेत्र बँटे होते हैं । आजकल निजी डाकिए भी कोरियर कंपनियों द्वारा बहाल किए गए हैं ।
इन्हें सामान्यत ‘कोरियर वाला’ कहा जाता है । इनकी सेवाएँ प्राय: शहरों में उपलब्ध हैं गाँवों में तो आज भी डाक विभाग के डाकिए ही संदेशवाहक का कार्य कर रहे हैं । कोरियर सेवा की एक विशेषता यह है कि इसके कर्मचारी विभिन्न कार्यालयों से संपर्क कर खुद पत्र आदि इकट्ठा भी करते हैं ।
डाकिया एक ऐसा जनसेवक है जिसके दायित्व तो बहुत हैं परंतु वेतन बहुत कम । कम वेतन और भले होने के बावजूद यह अपना कार्य पूरी इमानदारी से करता है । त्योहारों के अवसर पर जबकि सभी लोग छुट्टियाँ मनाते हैं डाकिया काम करता रहता है । एक डाकिया जीवन भर डाकिया ही बना रहता है, इसे प्राय: कम ही विभागीय प्रोन्नति दी जाती है ।
हमें डाकिए की त्याग-भावना और सेवा-भावना को समझ कर इनके साथ अच्छा बर्ताव करना चाहिए । इन्हें सम्मान की दृष्टि से देखना चाहिए । जिस प्रकार डाकिया विनम्र होकर तथा खुशी-खुशी हमारी सेवा करता है उसी प्रकार आम लोगों को भी इनके साथ विनम्र एवं सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करना चाहिए ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 19
चिकित्सक या डॉक्टर पर निबन्ध | Essay on The Doctor in Hindi
चिकित्सक को भगवान का दूसरा रूप कहा जाता है । ये बीमार व्यक्तियों का इलाज कर उन्हें स्वस्थ बनाते हैं । चिकित्सक विषम स्थितियों में लोगों के प्राण बचाता है ।
दुर्घटना आदि स्थितियों में चिकित्सक विपदाग्रस्त लोगों का शीघ्र उपचार करता है । इस तरह चिकित्सक अपने कार्यों से समाज के सदस्यों की भरपूर मदद करता है । आधुनिक युग में चिकित्सा विज्ञान काफी उन्नति कर चुका है । आधुनिक चिकित्सा सेवाओं का लाभ उठाकर हम लोग कई प्रकार की घातक बीमारियों से अपना बचाव कर सकते हैं ।
तपेदिक, मलेरिया, पोलियो, खसरा आदि बीमारियों से बचाव के टीके उपलब्ध हैं । चिकित्सक इन टीकों को लगाकर हमारी रक्षा करता है । वे हमें बीमारियों से बचाने के लिए आधुनिक चिकित्सा यंत्रों का प्रयोग करते हैं । चिकित्सक की सलाह मानकर हम स्वस्थ रह सकते हैं ।
चिकित्सक बहुत परिश्रमी होते हैं । वे अपना अधिकतर समय रोगियों की जाँच एवं देखभाल में लगाते हैं । इन्हें आराम करने तथा छुट्टियाँ मनाने का बहुत कम अवसर प्राप्त होता है । अधिकतर चिकित्सक बीमार व्यक्तियों से अच्छा बर्ताव करते हैं तथा उनकी समस्याओं को सहानुभूतिपूर्वक सुनते हैं । अच्छे व्यवहार और उचित इलाज से बीमार व्यक्ति शीघ्र स्वस्थ हो जाता है ।
अति गंभीर दशा वाले व्यक्तियों का इलाज चिकित्सक की लगातार निगरानी में किया जाता है । इनके लिए अस्पतालों में आपातकालीन कक्ष बने होते हैं । चिकित्सक समाज का एक सम्मानित व्यक्ति होता है । अपना कार्य बिना किसी भेदभाव के करना इनका मुख्य कर्त्तव्य होता है । चिकित्सक की दृष्टि में अमीर-गरीब सभी प्रकार के व्यक्तियों की जान की बराबर कीमत होती है । चिकित्सक अपराधी व्यक्ति की चिकित्सा भी पूरे मनोयोग से करता है । इस तरह वह समाज का सच्चा सेवक है ।
कई चिकित्सकों को सरकार नियुक्त करती है । ये चिकित्सक सरकार से वेतन पाते हैं तथा आम जनता को स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करते हैं । इनमें से कुछ चिकित्सक मरीजों की सेवा भली-भांति नहीं करते हैं जो कि उचित नहीं है ।
कई चिकित्सक चिकित्सा के नाम पर लोगों से मोटी फीस वसूल करते हैं अथवा गरीब और लाचार मरीजों के साथ भेदभाव करते हैं । यह उचित कार्य नहीं है । इससे चिकित्सक के पेशे का अपमान होता है । परंतु हर्ष का विषय है कि अधिकांश चिकित्सक सभी प्रकार के मरीजों की सेवा करना अपना कर्त्तव्य समझते हैं ।
चिकित्सक दु:खी एवं बीमार व्यक्तियों का मित्र होता है । वह निराश व्यक्तियों के जीवन में आशा भर देता है । वह लोगों को स्वस्थ बनाकर उनका जीवन खुशियों से परिपूर्ण करता है । एक स्वस्थ व्यक्ति ही देश एवं समाज की अच्छी सेवा कर सकता है । इस तरह चिकित्सक देश के विकास में अपना अमूल्य योगदान देता है ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 20
सिपाही पर निबन्ध | Essay on The Soldier in Hindi
सिपाही हमारे बीच एक जाना-पहचाना नाम और चेहरा है । काँधे पर बंदूक या हाथ में साधारण डंडा लेकर चलने वाला यह आदमी समाज का प्रहरी कहलाता है । यह कानून तोड़नेवालों का दुश्मन तथा सभ्य नागरिकों का मित्र होता है ।
अपनी विशेष प्रकार की वरदी में इसे दूर से ही पहचाना जा सकता है । सिपाही थाने या पुलिस चौकी में नियुक्त होते हैं । इनका कार्य चोर-उचक्कों पॉकेटमारों तथा दंगा-फसाद करने वालों को पकड़कर कानून के हवाले करना है । सिपाही मेलों सभाओं तथा अन्य भीड़-भाड़ वाले स्थानों में भी देखे जा सकते हैं ।
कुछ सिपाही रात्रिकाल में पहरा देते हैं । ये हमारे जान-माल की सुरक्षा करते हैं । समाज में होने वाले अपराधों को रोकना इनकी मुख्य जिम्मेदारी होती है । सिपाही अति महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों को निजी सुरक्षा भी प्रदान करते हैं । एक सिपाही का स्वस्थ एवं तगड़ा होना आवश्यक होता है ।
सिपाही को हर समय मुस्तैद रहना पड़ता है । सुरक्षाकर्मियों की थोड़ी सी लापरवाही के कारण कोई बड़ा हादसा हो सकता है । कभी-कभी सिपाहियों को डकैतों खूँखार अपराधियों एव आतंकवादियों का सामना करना पड़ता है जिसमें उनकी जान तक चली जाती है । सिपाही अपनी जान पर खेलकर समाज के दुश्मनों से हमारी सुरक्षा करता है ।
रात हो या दिन उसे हर समय अपने उच्च अधिकारियों के आदेश का पालन करना पड़ता है । कुछ सिपाही यातायात व्यवस्था सँभालते हैं । शहरों में सभी प्रमुख चौराहों पर सिपाहियों को सफेद वरदी तथा सिर पर टोपी पहने देखा जा सकता है । इनके पास सीटी होती है जिसे बजाकर तथा हाथों के इशारों से ये वाहनों को रुकने या चलने का संकेत देते हैं ।
यदि कोई व्यक्ति यातायात के नियमों को तोड़ता है तो उस पर जुर्माना किया जाता है । बड़े शहरों में स्वचालित ट्रैफिक व्यवस्था होती है परंतु यहाँ भी यातायात पुलिस किसी भी स्थिति से निबटने के लिए तैनात रहती है । सिपाही समाज में शांति स्थापित करने का भरसक प्रयास करता है ।
हमें इस नेक कार्य में उनका सहयोग करना चाहिए । कानून का पालन कर हम लोग उनके कार्य को आसान बना सकते हैं । अपराधियों को शरण न देकर तथा उनके छिपने के स्थान का पता बताकर हमें सिपाहियों को सहयोग देना चाहिए । यदि कहीं कोई लावारिस वस्तु पड़ी हो तो इसकी सूचना तुरंत पुलिस को देनी चाहिए ।
यह वस्तु बम हो सकती है । सिपाही बम को निष्क्रिय कर अनेक व्यक्तियों की जान बचा सकते हैं । कभी-कभी भीड़ अनियंत्रित हो जाती है । लोग जाति-पाँति और धर्म के नाम पर आपस में लड़ने लगते हैं । असामाजिक तत्व भीड़ में शामिल होकर वाहनों, घरों अथवा अन्य सार्वजनिक स्थानों में तोड़-फोड़ करते हैं आग लगा देते हैं ।
ऐसे में सिपाहियों को बल प्रयोग करना पड़ता है । वह डंडे चलाता है, अश्रु गैस छोड़ता है तथा उसे कभी-कभी गोली भी चलानी पड़ती है । ऐसी स्थिति नहीं आए इसके लिए समाज के सभी सदस्यों को प्रयास करना चाहिए । किसी गलत घटना तथा अन्याय के खिलाफ लोगों को शांतिपूर्ण प्रदर्शन करना चाहिए । यद्यपि सिपाही श्रम तो बहुत करता है तथा अपनी जान पर खेलकर आम जनता को सुरक्षा प्रदान करता है परंतु उसे वेतन कम मिलता है ।
कम वेतन में ही उसे अपने परिवार का भरण-पोषण करना पड़ता है । उसे उचित वेतन तथा अन्य सुविधाएँ मिलनी चाहिए । खतरनाक अपराधियों से लड़ने के लिए उसे अच्छे हथियार एवं उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए । इसी स्थिति में वह राष्ट्र की अच्छी सेवा कर सकता है ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 21
अध्यापक (शिक्षक) पर निबन्ध | Essay on The Teacher in Hindi
अध्यापक समाज का एक सम्मानित व्यक्ति होता है । इन पर बच्चों को शिक्षित कर उन्हें सुयोग्य नागरिक बनाने का दायित्व होता है । मनुष्य का सबसे बड़ा धन उसका ज्ञान होता है जिसे बढ़ाने में अध्यापक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । ज्ञानवान और शिक्षित व्यक्ति देश के कर्णधार कहलाते हैं ।
एक सुयोग्य अध्यापक अपने कर्त्तव्य के प्रति हमेशा जागरूक रहता है । वे छात्रों को शिक्षित और अनुशासित करने में किसी प्रकार की कोताही नहीं करते हैं । बच्चों को वे उनके कर्त्तव्यों से परिचित कराते हैं तथा सच्चाई के मार्ग पर निडरतापूर्वक चलने की प्रेरणा देते हैं ।
उनका प्रयास होता है कि बच्चों में विषय-वस्तु के अच्छे ज्ञान के अतिरिक्त व्यवहारिक ज्ञान भी हो । बच्चों के अंदर मित्रता सहयोग, साहस, धैर्य, क्षमाशीलता आदि मानवीय गुणों का विकास हो, इसके लिए वे सतत् प्रयत्नशील रहते हैं ।
अध्यापकों को एक साथ ही कई प्रकार के विद्यार्थियों को शिक्षित करना होता है । कुछ छात्र मानसिक रूप से कुशाग्र तो कुछ मंद बुद्धि के होते हैं । अध्यापक एक ओर तो तेज बुद्धि के छात्रों की प्रशंसा करते हैं तथा दूसरी तरफ मंद बुद्धि के छात्रों को विषय वस्तु को अच्छी तरह समझाकर उन्हें हीन भावना से निकालने का प्रयास करते हैं ।
वे सभी को आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करते हैं । जिस प्रकार जौहरी सोने को तपाकर उसमें और निखार लाता है उसी प्रकार एक अध्यापक भी अपने छात्रों को विभिन्न प्रकार से शिक्षित कर उनमें आत्मविश्वास जगाते हैं । व्यायाम, खेल-कूद, सामूहिक वाद-विवाद, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि के लिए कार्यशालाएँ आयोजित कर वे छात्रों को मानसिक शारीरिक एवं बौद्धिक रूप से स्वस्थ व परिपक्व बनाते हैं ।
कुछ अध्यापक अपना कर्त्तव्य ठीक तरीके से नहीं निभाते हैं । वे पढ़ाने-लिखाने की अपेक्षा अपने सहयोगियों से गपशप एवं अन्य निजी गतिविधियों पर अधिक ध्यान देते हैं । ऐसे अध्यापकों को समाज में उचित सम्मान नहीं दिया जाता ।
छात्र भी प्राय: इनकी अवहेलना करते देखे जाते हैं । इसके विपरीत सुयोग्य अध्यापकों को सर्वत्र सम्मान प्राप्त होता है । राष्ट्र निर्माण में ऐसे आदर्श अध्यापकों का बहुत योगदान होता है । यही कारण है कि हमारे देश में अध्यापकों एवं गुरुओं को ईश्वर के समान पूजनीय माना जाता है ।
शिक्षकों अथवा गुरुओं को सदैव आदर की दृष्टि से देखा जाना चाहिए । वर्तमान युग में शिक्षकों को पूरा सम्मान नहीं दिया जाता जो कि अनुचित है । हालांकि इसके लिए शिक्षक कुछ हद तक स्वयं जिम्मेदार हैं । शिक्षकों को अपना दायित्व अच्छी तरह निभाना चाहिए क्योंकि बच्चों का भविष्य उनके हाथों में ही है । अध्यापकों वे; सम्मान में हम लोग प्रत्येक वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 22
आदर्श नागरिक पर निबन्ध | Essay on Ideal Citizen in Hindi
आदर्श नागरिक किसी भी देश अथवा समाज की आधारशिला एक सशक्त इकाई होते हैं । ये देश के सेवक तथा उसके निर्माता भी होते हैं । अन्य नागरिक इनका अनुसरण कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं ।
एक आदर्श नागरिक अपने नैतिक सामाजिक धार्मिक एवं राष्ट्रीय दायित्वों का निर्वहन पूरी निष्ठा और तन्मयता से करता है । वह दलितों और शोषितों का सहायक तथा कानून के रक्षकों का मित्र होता है । वह सदा अच्छे लोगों का साथ देता है तथा बुरे कार्यों से हमेशा दूर रहता है ।
एक आदर्श नागरिक श्रम का सम्मान करता है । वह स्वावलंबी होता है तथा दूसरे लोगों को स्वावलंबी बनाने में उनकी मदद करता है । वह अपने अधिकारों से कहीं अधिक अपने कर्त्तव्यों के प्रति सचेष्ट रहता है । वह अपने कार्यों से दूसरों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाता है तथा यथासंभव सामाजिक बुराइयों को दूर करने का प्रयत्न करता है ।
राष्ट्र की उन्नति के प्रत्येक कार्य में उसका योगदान सराहना के योग्य होता है । इस प्रकार एक आदर्श नागरिक में कई प्रकार के गुण होते हैं जिसके कारण देश और समाज उसका आभारी होता है । मानवीय गुणों की अवहेलना कर कोई भी व्यक्ति आदर्श नागरिक होने का दर्जा नहीं पा सकता है ।
चरित्रहीनता किसी भी व्यक्ति को पतन के गर्त में ले जाती है । ऐसा व्यक्ति राष्ट्र का किसी भी प्रकार से कल्याण नहीं कर सकता । इसी प्रकार निजी स्वार्थो की पूर्ति मैं ही लगे रहकर कोई व्यक्ति आदर्श नागरिक नहीं बन सकता । आदर्श नागरिक मातृभूमि के रक्षार्थ अपने जीवन का बलिदान देने के लिए सदैव प्रस्तुत रहता है ।
देश और समाज के रीति-रिवाजों कानूनों तथा अच्छी प्रथाओं के पालन में वह हमेशा तत्पर रहता है । उसके हृदय में देशवासियों के कल्याण के लिए कुछ करने की दृढ़ इच्छाशक्ति होती है । वह देश के वीरों, शहीदों, संत-महात्माओं तथा समाज-सुधारकों के प्रति कृतज्ञ रहकर ईमानदारी से अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करने में विश्वास रखता है ।
सुयोग्य नागरिक बनने के लिए हमें अपने राष्ट्र की समस्याओं के प्रति सचेष्ट होना चाहिए । हमें प्रदूषण नियंत्रण के उपायों देश के बहुमूल्य संसाधनों तथा अन्य पर्यावरणीय समस्याओं पर अधिक ध्यान देना चाहिए । अपने पर्यावरण को साफ-सुथरा रखना एक आदर्श नागरिक का परम कर्त्तव्य होना चाहिए ।
ऐसे व्यक्ति जो राष्ट्र को अपने कार्यो से बदनाम करते हैं अथवा किसी प्रकार क्षति पहुँचाते हैं उनका सहयोग न देकर तथा उनके गलत कार्यों को रोककर हम एक आदर्श नागरिक होने का दायित्व निभा सकते हैं । राष्ट्र की हर प्रकार से सुरक्षा करना एक आदर्श नागरिक का अनिवार्य गुण है ।
एक आदर्श नागरिक राष्ट्र की एकता के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता है । वह अपने पड़ोसियों एव सहयोगियों के साथ अच्छा बर्ताव करता है । वह समाज विरोधी लोगों का कतई साथ न देकर समाज में भाईचारा शांति एवं सुव्यवस्था कायम करने की चेष्टा करता है ।
जाति और धर्म के नाम पर नागरिकों के बीच वैमनस्य फैलाने की प्रत्येक चाल को वह विफल कर दता है । बाढ़, भूकंप, चक्रवात, आगजनी जैसी आपदाओं के समय वह राष्ट्र के एक सजग प्रहरी होने का दायित्व निभाता है ।
वह प्रभावित लोगों की तन-मन-धन से मदद करने के लिए आगे आता है । एक आदर्श नागरिक जहाँ राष्ट्र की उन्नति के लिए प्रयत्न करता है वहीं वह अपने पारिवारिक कर्त्तव्यों का निर्वाह भी पूरी ईमानदारी के साथ करता है । वह सिद्धांतों के साथ समझौता न करने वाला राष्ट्र का सम्मान बढ़ाने वाला तथा सबके साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करने वाला होता है ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 23
श्रमिक या मजदूर पर निबन्ध | Essay on The Labour in Hindi
शारीरिक श्रम करके अथवा मजदूरी करके अपनी जीविका चलाने वालों को मजदूर या श्रमिक कहा जाता है । हमारे देश में ऐसे लोगों की एक बड़ी संख्या है जिनके परिवार का भरण-पोषण उनके द्वारा किए गए दैनिक श्रम पर निर्भर है ।
ऐसे मजदूर खेत-खलिहानों में, कारखानों में, भवन निर्माण कार्यों में तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कार्य करते हैं । खेतों में काम करने वाले मजदूरों को खेतिहर श्रमिक तथा विभिन्न उद्योगों में काम करने वाले मजदूरों को औद्योगिक श्रमिक कहा जाता है । श्रमिक चाहे किसी भी क्षेत्र का हो, वह कठिन शारीरिक श्रम करके देश के विकास में अपना अमूल्य योगदान देता है ।
श्रमिकों को प्राय: बहुत कम दैनिक मजदूरी पर काम करना पड़ता है । साठ से नब्बे रुपए प्रतिदिन के हिसाब से पाकर ही वह संतुष्ट हो जाता है । उसे कोई की नहीं मिलती, जिस दिन काम नहीं कर पाता है, उस दिन उसे यह धन भी नहीं मिल पाता ।
बीमार पड़ने पर अथवा किसी अन्य मुसीबत के समय उसे कहीं से भी मदद नहीं मिल पाती है । हालाकि मासिक वेतन पाने वाले संगठित क्षेत्र के श्रमिकों की दशा आम मजदूरों से कहीं अच्छी होती है । अधिकतर मजदूर प्राय: विपरीत दशाओं में कार्य करते हैं । इन्हें खाने के लिए न तो अच्छा भोजन मिल पाता है और न ही पहनने के लिए अच्छा वस्त्र । भयंकर गरमी, अंधी-तूफान, वर्षा, शीतलहरी आदि स्थितियों में भी श्रमिक बड़े उत्साह से कार्य करते हैं ।
खून-पसीना एक करने वाले श्रमिकों को कई बार अपने मालिक की घुड़कियों का भी सामना करना पड़ता है । इन्हें तरह-तरह से अपमानित किया जाता है । श्रमिकों को समाज में उचित सम्मान नहीं मिल पाता है क्योंकि बहुत से लोग श्रम करके जीने वाले को ओछी नजर से देखते हैं । हमें श्रम का महत्त्व समझकर श्रमिकों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए ।
प्रत्येक निर्माण कार्य में श्रमिकों का योगदान होता है । खेतिहर मजदूर अपने श्रम से विभिन्न प्रकार की खाद्य तथा अखाद्य सामग्री के उत्पादन में किसानों की मदद करते हैं । भवनों एवं इमारतों का निर्माण मजदूरों के योगदान के बिना नहीं हो सकता । चाकलेट खिलौना ईंट सड़क पुल कागज दियासलाई गुब्बारा अगरबत्ती मोमबत्ती आदि विभिन्न वस्तुओं को बनाने में मजदूरों का श्रम लगता है ।
औद्योगिक क्षेत्र में तो श्रमिकों के बिना कोई कार्य बिलकुल नहीं हो सकता । इस प्रकार श्रमिक राष्ट्र की रीढ़ की हड्डी होते हैं । श्रमिकों को कई प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध कराकर हम इनके जीवन को थोड़ा आसान बना सकते हैं । इन्हें इनके काम की उचित मजदूरी मिलनी चाहिए ताकि ये अपने परिवार का जीवन निर्वाह ठीक तरीके से कर सकें ।
इनके काम के घंटे निर्धारित होने चाहिए । इन्हें स्वास्थ्य बीमा वृद्धावस्था पेंशन जैसी सामाजिक सुरक्षा का लाभ मिलना चाहिए । असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को वर्ष में कम से कम तीन सौ दिन काम उनके निवास स्थान के समीप ही मिले इसके लिए शासन की ओर से प्रयत्न होना चाहिए ।
इन्हें घर शौचालय आदि बनाने में आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जानी चाहिए । इनके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का उचित प्रबंध होना चाहिए । श्रमिकों की खुशहाली राष्ट्र की उन्नति के लिए बहुत आवश्यक है ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 24
रिकशावाला पर निबन्ध | Essay on The Rickshaw Puller in Hindi
रिकशावाला एक ऐसा नाम है जिसके बारे में हम सभी परिचित हैं । साधारणतया मैले-कुचैले वस्त्रों को पहने हर नुक्कड़ और चौराहों बस अट्टे तथा रेलवे स्टेशनों के बाहर अपने रिकशे के साथ खड़ा यह इंसान लोगों को उनके गंतव्य तक पहुँचा कर ही दम लेता है ।
इसे ढूँढ़ने के लिए आपको कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है, आप कहीं भी हों, यह आपकी सेवा के लिए प्रस्तुत है । यह आपकी वस्तुओं को ही नहीं आपको भी ढोता है । इसका एक ही नाम है – रिकशावाला । रिकशे की सवारी के लिए अधिक धन व्यय नहीं करना होता है, परंतु है यह बहुत उपयोगी सवारी । पहले जो काम ताँगा करता था, उसका स्थान अब रिकशे ने ले लिया है ।
आप बाजार में हैं, आपको अपना थैला भारी लग रहा है, बस रिकशे की गद्देदार सीट पर बैठिए और पहुँच जाइए घर तक । बीच में थोड़ी देर रुकना भी पड़े तो कोई हर्ज नहीं, रिकशेवाले को कहिए, वह झट से ब्रेक लगा देता है । किसी को घर से बस अड्डा जाना हो तो रिकशा तैयार है । रिकशावाला चद रुपए लेकर लोगों की मुश्किल आसान बना देता है ।
गरमियों की तपती दोपहरी में जबकि सड़क पर खाली हाथ चलना भी दूभर हो जाता है, रिकशेवाला अपने रिकशे में आपको बिठाकर स्वयं को धन्य समझता है । ग्राहक उसका भगवान है जिसके लिए वह हर समय पसीना बहाने के लिए तैयार रहता है । सड़क कैसी भी हो । रास्ता कितना ही ऊबड़-खाबड़ क्यों नहो, उसके पाँव नहीं थकते ।
चढ़ावदार मार्ग पर वह रिकशे से उतरकर हाथ से रिकशा खींचने लगता है, हाँफता चलता है परंतु उफ नहीं करता । उसे अपनी चिंता नहीं, सवार को हिचकोले न लगें, इसका वह सदैव ध्यान रखता है । रिकशेवाला हमारे समाज का एक निर्धन व्यक्ति है । दिन भर की मेहनत के बाद भी उसे गुजारे लायक पर्याप्त धन प्राप्त नहीं होता है ।
कठोर शारीरिक श्रम करने के बाद भी उसे भरपेट भोजन नहीं मिल पाता है । बहुत से रिकशेवाले किराए पर रिकशा लेकर चलाते हैं और रिकशे के मालिक को अपनी गाड़ी कमाई का एक हिस्सा भेंट कर देते हैं । कुछ लोग रिकशेवाले के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करते हैं ।
अपने गंतव्य तक पहुँचकर उसे कम पारिश्रमिक देते हैं । उसके प्रतिरोध करने पर उसे दुत्कार दिया जाता है । हमें रिकशेवाले के साथ इस प्रकार का दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए । हमें उसके साथ सहृदयता के साथ पेश आना चाहिए । यही उसके जीतोड़ श्रम का उचित सम्मान होगा ।
Hindi Nibandh for School Students (Essay) # 25
मदारी पर निबन्ध | Essay on The Juggler in Hindi
मदारी आम लोगों का मनोरंजन कर अपनी जीविका चलाते हैं । मदारियों के खेल गाँवों शहरों कस्बों आदि सभी स्थानों में होते हैं । मेले तथा भीड़-भाड़ वाले स्थानों में इन्हें देखा जा सकता है ।
ग्रामीण क्षेत्रों के हाट-बाजारों में ये तरह-तरह के करतब दिखाकर स्थानीय लोगों को हलका-फुलका मनोरंजन प्रदान करते हैं । वर्तमान युग में जबकि मनोरंजन के अन्य साधन उपलब्ध हैं मदारियों की सख्या निरंतर घटती जा रही है । महानगरों में इनके दर्शन दुर्लभ हैं परतु छोटे शहरों तथा गाँवों में मदारियों के करतब आज भी लोकप्रिय हैं ।
मदारी एक छोटी सी खुली जगह में अपना खेल दिखा सकता है । दर्शकों की भीड़ उसके चारों ओर गोलाकार रूप में खड़ी रहती है । उसकी आवाज वेशभूषा तथा लोगों को लुभाने का उसका ढंग सब कुछ विचित्र होता है । उसके साथ एक लड़का भी होता है जो उसके इशारों पर काम करता है ।
वह प्राय: पाजामा-कुरता अथवा धोती-कुरता पहने होता है तथा उसके सिर पर बड़ी पगड़ी होती है । कानों में कुंडल, कलाई पर कड़ा तथा अंगुलियों में अंगूठी पहने वह विचित्र-सा प्राणी लगता है । उसके पास एक थैला होता है जिसमें वह मैली-सी काली चादर ताश की गड्डियाँ तथा अन्य आवश्यक वस्तुएँ रखता है ।
वह डमरू, ढोल, बाँसुरी, बीन जैसे किसी न किसी वाद्य यंत्र को अवश्य रखता है । इन्हें बजाकर वह भीड़ एकत्रित करता है । मदारी की आवाज बुलंद होती है । वह हँसमुख तथा आत्मविश्वास से परिपूर्ण होता है । खेल के दौरान वह अपने हाव-भाव, चुटकुले तथा मजाकिया बातचीत से लोगों को हँसने के लिए बाध्य कर देता है ।
मदारी बड़ा हाजिरजवाब होता है जिससे दर्शकों की रुचि उसमें बनी रहती है । मदारी के पास दिखाने के लिए कई प्रकार के खेल होते हैं । ताश के विभिन्न प्रकार के खेल कई गेंदों या टोपियों को हवा में एक साथ लहराने के खेल आदि उसके प्रिय खल हैं ।
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दर्शकों में से किसी की अंगूठी या घड़ी लेकर उन्हें लोगों के सामने ही गायब कर देना उसके लिए बड़ा सहज होता है । बाद में वह इन वस्तुओं को दर्शकों को लौटा भी देता है । अपनी हाथ की सफाई से वह अपने साथ के लड़के के ऊपर टोकरी या कपड़ा रखकर उसे गायब भी कर देता है ।
लड़के के ऊपर टोकरी रखकर उस पर छुरा चला देता है । छुरा खून से सना देखकर और लड़के की चीख सुनकर लोग सकते में आ जाते हैं । परंतु जब टोकरी हटाई जाती है तो वहाँ कोई नहीं होता । थोड़ी देर में लड़का भीड़ में से निकलकर मदारी के पास आ जाता है ।
तब दर्शक खुश होकर जोर से ताली बजाने लगते हैं । इसी समय मदारी लोगों के पास जाकर अपने खेल की फीस वसूल करता है । दर्शक रुपया – दो रुपया देकर उसे संतुष्ट करते हैं । कुछ मदारी भालू या बंदर का नाच दिखाकर लोगों का मनबहलाव करते हैं । इधर मदारी डमरू बजाता है उधर बंदर या भालू नाचने लगता है ।
भालू अपने पिछले पैरों पर खड़े होकर लोगों का अभिवादन करता है । मदारी बंदर और बंदरिया की शादी कराकर लोगों को खूब हँसाता हे । आजकल बंदर, भालू और साँपों का खेल दिखाने वाले मदारी और सँपेरों पर कानूनन प्रतिबंध लगा दिया है । अत: उनके खेल बहुत कम हो गए हैं ।
खेल-तमाशा दिखाकर अपना पेट भरने वाले मदारियों की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर होती है । वह लोगों को हँसाता है उनके सामने स्वयं भी हँसता है परंतु संध्याकाल जब वह घर लौटता है तो उसकी मुस्कान गायब हो जाती है । अपने झोपड़ीनुमा घर में वह अत्यंत निर्धनतापूर्वक जीवन व्यतीत करता है ।