चाँदनी रात में सैर पर अनुच्छेद | Paragraph on A Walk in the Moonlight Night in Hindi

प्रस्तावना:

रपूर्य का प्रकाश मनुष्यों, पशुओं और पौधों के जीवन के लिए अत्यावश्यक है । यह स्फूर्तिदायक होता है । लेकिन चन्द्रमा के प्रकाश के साथ सदैव कुछ-न-कुछ रोमांस जुड़ा रहता है । यह बड़ा शीतल और स्नेहिल होता है । चांदनी रातें बड़ी शानदार और मोहक होती हैं । एकान्तप्रिय मनुष्य के लिए तो पूर्णिमा की रात जीवन की सबसे सुखद रात होती है ।

मित्रों के साथ सैर:

मैं अपने एक मित्र के साथ पढ़ाई कर रहा था । रात हो गई थी । हम पढ़ाई समाप्त ही करने वाले थे कि मेरी नजर खिड़की से बाहर आसमान पर पड़ी । आसमान में पूर्ण चद्रमा हमें निहार रहा था । धीरे-धीरे वह आसमान पर ऊपर उठ रहा था । मुझे लगा कि वह मुझे अपने पास बुला रहा है ।

मैंने एकदम पढ़ाई छोड़ दी और अपने मित्र को भी चाँद दिखाया । वह भी चांद देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ । हम दोनों ने किताबें बन्द कर दीं और बाहर जाकर चांदनी में सैर करने का निश्चय किया । हमने सोचा कि रास्ते से हम अपने कुछ और मित्रों को भी साथ ले चलें ।

बाहर निकल कर हम दो मित्रों के घर गए और उन्हें साथ लेकर चाँदनी रात का आनन्द उठाने निकल पड़े । चाद धीरे-धीरे आसमान पर ऊपर चढ़ रहा था । एकाएक मुझे चांद पर एक कविता का साराश याद हो आया । लाख कोशिश करने पर भी मैं कविता की पंक्तियों न याद कर पाया ।

ऐसे ही किसी दृश्य को देखकर कवि ने चांद से पूछा था कि क्या तुम चढ़ान की थकान से पीले पड़ गए हो तुम पृथ्वी को क्यों निहारते हो, आसमान में अकेले क्यों भटकते हो काश ! मैं भी कवि होता अथवा चित्रकार । यदि मैं ऐसा होता तो शब्दों या रंगों में उस अलौकिक चंद्रछटा का ठीक-ठीक वर्णन कर पाता ।

चांदनी में नहाए वृक्ष और मकान:

हम कुछ और आगे बड़े, तो हमें मकानो को छतों पर चांदनी छिटकी दिखी । वृक्ष एकदम शांत थे; ऐसा लग रहा था कि वे ध्यानावस्थित ही । उन पर छिटकी हुई चांदनी देवताओं का आलौकिक प्रभामंडल-सा लग रहा था । अब हम शहर से बाहर निकल आए थे ।

यही एकदम शांति थी । शहर का शोरागुल पीछे छूट चुका था । ताड़ के लम्बे-लम्बे वृक्ष गर्व से सिर ऊँचा किए ध्यान मुद्रा में खड़े हुए लगे । वे मानो रात्रि की सुन्दरता और शांति के प्रहरी हों । दूर से हमें झींगुरों तथा अन्य कीटों की मधुर गुँजन सुनाई दे रही थी ।

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एकाएक हमें आसमान में काले बादल का एक टुकडा दिखाई पड़ा । जल्दी ही वह चाँद के सामने आ गया और चाँद हमारी आखों से ओझल हो गया । शेष आकाश में चाँदनी पूर्ववत् छिटकी हुई थी । हममें से एक सदस्य एकाएक कह उठा कि काले बादल का यह टुकड़ा किसी सुन्दर स्त्री के चेहरे पर काले दाग-सा है ।

चाँदनी रात में नदी का दृश्य:

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हम पेड़ों की छाया और चादनी की आख-मिचौली के बीच चलते रहे । लगभग एक किलोमीटर की सुखद सैर के बाद हम नदी के किनारे जा पहुँचे । रास्तेभर हम हँसी-मजाक करते रहे । कभी-कभी चाद की सुन्दरता पर कुछ कह उठते । नदी का जल छिटकी चादनी के प्रभाव से दूध-सा लग रहा था । नदी धीरे-धीरे बह रही थी ।

उसकी मधुर धुन बड़ी मधुर लग रही थी । मुझे ऐसा लगा कि पानी के स्थान पर नदी में दूध बह रहा है । एक मित्र ने कहा कि नदी दूध मे रनान कर रही है । चारों ओर निस्तब्धता थी । चांदनी सारी धरती को समान रूप से प्रकाशित कर रही थी । मुझे ऐसा लगा कि हम स्वर्ग में बैठे है, जहाँ दूध की नदियाँ बहती हैं ।

उपसहार:

मुझे एक सस्कृत कवि की कविता के एक अश का साराश याद है । ऐसी ही छिटकी हुई चांदनी को लेकर उसने कहा था कि ”चांदनी इतनी सुन्दर और आलौकिक है कि चांदनी को दूध समझ कर बिल्ली जमीन चाटने लगी ।”

हम देर तक नदी तट पर बैठे औलोकिक छटा निहारते रहे । मेरे मित्र ने चाँद और चांदनी पर कुछ कवितायें सुनाई । चांद की सुन्दरता का बखान करते-करते देर रात हम घर लौटे ।

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