भारत में तस्करी पर अनुच्छेद | Paragraph on Smuggling in India in Hindi
प्रस्तावना:
तस्करी का अर्थ चोरी-छिपे गैर-कानूनी ढंग से विदेशी माल को अपने देश में लाना या यही से अन्य देशो को ले जाना है । देश से वर्जित सामग्री अथवा किन्हीं अन्य वस्तुओं को चोरी-छिपे विदेशों मे ले जाकर बेचना भी तस्करी के अन्तर्गत आता है । ऐशो-आराम और विलासिता या शौक की वस्तुओं के आयात पर रोक लगने से भारत में तस्करी को बहुत बढ़ावा मिला है और इसने देश की अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया है ।
तस्करी कैसे की जाती है:
भारत में कई प्रकार से तस्करी की जाती है । तस्करों के बड़े-बड़े अड्डे हैं, जिनका संपर्क देश के बड़े-बड़े अधिकारियों और नेताओं से हैं । इनके अनेक एजेन्ट होते हैं, जो मालिकों के लिए काम करते हैं । ये अनेक कामों के बहाने से विदेशों की यात्रा करते हैं, और छुपाकर सोना, हीरा आदि की बड़ी मात्रा अपने साथ ले आते है ।
इनमें और पुरुष दोनों ही काम करते है । वे अपने बदन के भीतर तक बहुत-सा सोना छिपा लेते हैं । विदेशों में भुगतान करने के लिए ये लोग तरह-तरह का माल इसी प्रकार चोरी से बाहर ले जाते हैं । इनमे चांदी, चांदी के सिक्के और दुर्लभ कलाकृतियाँ मुख्य हैं ।
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विदेशी व्यापार में हेरा-फेरी के जरिए भी तस्करी की जाती है, जैसे देश से बाहर निर्यात की जा रही वस्तुओं की कम कीमत और कम मात्रा दिखाकर विदेशो में अतिरिक्त विदेशी मुद्रा प्राप्त कर ली जाती है और उससे तस्करी होती है या विदेशों से आयात की जाने वाली वस्तुओं की कम कीमत या मात्रा दिखाकर अधिक माल आयात कर लिया जाता है ।
विदेशों में रहने वाले भारतीय देश मे अपने नाते-रिश्तेदारों आदि के पास काफी धन भेजते हैं । तस्करों के एजेन्ट विदेशी मुद्रा को तस्करी के काम लगाते हैं । अफीम, चरस, हीरोइन, स्मैक आदि नशीले पदार्थों की विदेशों में तस्करी करके बड़ी विदेशी मुद्रा कमाकर उसे तस्करी के काम लगाते हैं ।
तस्करी का आकार:
भारत में बहुत बड़े पैमाने पर तस्करी होती है । विदेशी सामान से लदे बड़े-बड़े जहाज देश के किसी अनजान तट से कुछ दूर लाये जाते है और वहीं से नावों आदि में माल लाद कर तटों पर उतार दिया जाता है और वहाँ से देश के कोने-कोने में पह सामान पहुँच जाता है ।
विदेशी कपड़ा, घडियां, ट्रांजिस्टर, टेप रिकॉर्डटर, टी॰वी॰ सैट, वीडियो कैसेट, वी॰सी॰आर॰ लाइटर जैसी वस्तुयें देश के कोने-कोने में खुली बिकती देखी जा सकती है । देश की राजधानी और मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई जैसे महानगरों में तो तस्करी का माल बेचने वाले बाजार ही अलग हैं । सीमावर्ती राज्यों में भी तस्करी का माल बहुतायत से मिलता है ।
तस्करी का देश की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
तस्करों ने भारत की समूची अर्थव्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया है । उनके पास इतनी विशाल धनराशि एकत्र हो गई है, जिसका सरकार के पास तक कोई सही अनुमान नहीं है । उन्होंने देश में एक समानान्तर अर्थव्यवस्था कायम रख रखी है, जिससे देश की आजादी तक को संकट पैदा हो सकता है ।
तस्कर सरकार को किसी प्रकार का आयात कर दिये बिना देश में माल ले आते हैं । वे अपनी आमदनी पर भी कोई कर नहीं देते । विदेशी माल देश में बने माल की तुलना में अधिक आकर्षक. टिकाऊ व सस्ता होता है । आयात कर न दिये जाने से तस्कर उसे सरकारी सूत्रों से आयातित माल की तुलना में बहुत सस्ता बेच सकते है ।
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इन कारणों से ऐसे माल की माँग बहुत होती है । सरकार को इससे बहुत घाटा होता है, जिसे पूरा करने के लिए अतिरिक्त कर लगाने पड़ते हैं । तस्करी का माल बाजार में छा जाने से देश के उद्योग-धंधों को बडा धक्का पहुंचता है । देश में बनी वस्तुओ की माँग घट जाती है और नए उद्योग पनप नहीं पाते ।
तस्करी पर अंकुश लगाने के लिए किए गए उपाय:
भारत सरकार ने देश में तस्करी पर अकुश लगाने के अनेक उपाय किए हैं । तस्करों के विरुद्ध अतिरिक सुरक्षा कानून का प्रयोग होने लगा है, जिसके अधीन तस्करी के सन्देह पर बिना मुकदमा चलाये ही उन्हें एक वर्ष तक कैद मे रखा जा सकता है ।
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तस्करों को पकड़ने के लिए विशेष तटरक्षक दल का गठन किया गया है, जो देश की लम्बी समुद्री सीमा की दिन-रात चौकसी करते हैं । विशेष सतर्कता दल बनाये गए हैं, जो अक्सर छापे डालकर तस्करी का बहुत-सा माल पकडते हैं ।
तस्करी के माल को पकड़वाने मे जनता के सहयोग को पाने के लिए सरकार ने इनाम की राशि में काफी वृद्धि कर दी है । आज किसी की सूचना पर पकड़े गए तस्करी के माल की 20 प्रतिशत धनराशि उसे इनाम के रूप में दी जाती है ।
उपायों की कारगरता:
इतने उपायों के बाद भी देश में तस्करी में कोई विशेष कमी नहीं दिखाई देती । आज भी हर जगह तस्करी का माल खुले बाजारों और मुख्य सड़कों के किनारे धडल्ले से बिकता है । बड़े पुलिस थानों और यही तक कि ससद भवन से कुछ ही दूर तस्करी के माल को खुला बिकते देखकर बडा आश्चर्य होता है ।
उपसंहार:
हम सभी यह जानते हैं कि तस्करी बहुत बुरी चीज है, लेकिन देश में विदेशी माल की तडक-भड़क की जो ललक है उसके कारण सभी उस माल को खरीद कर कुछ-न-कुछ बढावा देते हैं । जब तक जनता में तस्करी के माल को खरीदने की ललक कम नहीं होगी’ तस्करी पर अंकुश लगाना संभव नहीं है ।
अत:
देश में ही अच्छी किस्म की वस्तुओं का उत्पादन करके उनकी कीमतों को विदेशी वस्तुओं के स्तर पर लाकर ही तस्करी रोकी जा सकती है । जनता में राष्ट्रीय भावना की जागृति और विदेशी माल के प्रति प्यार इस दिशा में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है ।