प्रस्तावना:
मैंने बहुत-से भारतीय किरसे सुने व पढें हैं । मेरे बाबा बड़ी अच्छी भारतीय लोक कथायें तथा किस्से सुनाया करते थे । उनके सुनाने का ढुग बड़ा रोचक और प्रभावशाली था । इन सबमें जो किस्सा मुझे सबसे अच्छा लगा, वह मैं यही सुना रहा हू ।
किस्से का काल:
यह किस्सा लगभग तीन सौ वर्ष पुराना है, जब भारत में अकबर महान् का राज्य था । वह गुजरात विजय करना चाहता था । एक विशाल सेना लेकर वह स्वय गुजरात पर आक्रमण करने चला ।
एक मुगल नवाब ने अपने महान सेनानी पुत्र अबारन खा को एक छोटी-सी सैन्य टुकड़ी के साथ अकबर की सहायता को भेजा ।
अबास खा रोहिणी नदी के किनारे एक स्थान पर पहुँचा, तो उसने डाकुओं के एक दल को देखा । डाकू एक हिन्दू लड़की को घेरे खड़े थे । अबास खा की सेना को आते देखकर डाकू भाग खड़े हुए । उन्होंने उस लड़की को वहीं छोड़ दिया ।
लड़की कौन थी ?
उस लड़की का नाम तुलसीबाई था । ससुराल वाले उसका गौना करा कर उसे मायके से पति के घर ले जा रहे थे । डाकुओं ने इस दल पर आक्रमण कर दिया । डाकुओं को हथियारों से सुसज्जित देख सभी लोग उस लड़की को अकेला पालकी में छोड़ भाग खड़े हुए । डाकुओं ने लड़की को पालकी से बाहर खींच लिया ।
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लड़की बड़े कीमती यस और आभूषण पहने हुए थी । डाकू उसके वस और आभूषण खींचने लगे । इतने में अबार खां की सेना आते देख डाकू तो भाग खड़े हुए और वह लड़की वहीं बैठी ऑसू बहाती रही ।
अब्बास खाँ ने लड़की को इसी अवस्था में देखा ।
लड़की के ऑसू देख अबास खां को बड़ी दया आई । उसने उसे पुन: पालकी में बैठा दिया, लेकिन लड़की का सौन्दर्य और यौवन देख वह उस पर मर मिटा । लडकी भी अब्बास खा के प्रति आकर्षित हुई, क्योकि वह बहादुर योद्धा और दिलकश जवान था उसने उसे डाकुओं से बचाया था ।
लड़की को पति के पास पहुंचा दिया:
अबास खां यदि चाहता तो लड़की को अपने साथ उठा ले जा सकता था, लेकिन उसने एक विवाहिता के प्रति ऐसा अन्याय नहीं किया । अब तक उरपके दल के लोग छिपने के स्थान से निकल बाहर आ गए और अबास खां ने उस लड़की को हवाले कर दिया ।
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अबास खां ने अपने कुछ सैनिक सुरक्षा के लिए उसके साथ भेज दिए और उन लोगों ने लड़की को उसके पति के घर पहुँचा दिया और पुन: अबास खां आ मिले । अब वह अपनी सैन्य टुकड़ी लेकर अकबर से जा मिला और गुजरात विजय में उसकी सहायता की ।
तुलसीबाई का दुर्भाग्य:
तुलसीबाई का पति दुबला-पतला और रोगी था । उसे काफी समय से बुखार आ रहा था । अपने गौने के एक वर्ष के भीतर ही वह मर गया । तुलसीबाई विधवा हो गई । उसे पति की चिता के साथ सती होने के लिए विवश किया गया ।
उसे बड़े सुन्दर वस्त्रों और आभूषणों से सजा कर पति की अर्थी के साथ श्मशान घाट ले जाया गया । अर्थी के साथ परिवार के अन्य सदस्यों तथा रिश्तेदारों से घिरी तुलसीबाई विवश होकर श्मशान घाट की ओर बढ़ रही थी ।
तुलसीबाई और अब्बास खां की पुन: भेंट:
तुलसीबाई के सौभाग्य से उसी समय अबास खां गुजरात विजय के बाद लौट रहा था । जब उसने श्मशान घाट पर अर्थी के साथ लोगों से घिरी सुन्दर सुसज्जित नारी को देखा, तो वह फौरन ताड गया कि वही क्या होने वाला था ।
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वह नजदीक आया, तो देखा कि अर्थी के पास संगार किए जो लड़की खड़ी थी, वह तुलसीबाई थी । उसे लड़की को इस हाल में देखकर बड़ा दुःख हुआ । उसने समझ लिया कि तुलसीबाई विधवा हो चुकी है और अर्थी उसके पति की है । उसने अर्थी के साथ आए लोगो को चेतावनी दी कि सी की मर्जी के बिना उसे मृत पति के साथ जलाना कानूनन जुर्म है ।
लेकिन किसी ने उस चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया । उन्होंने अबास खां को चिंता के निकट नहीं आने दिया । साथ ही उन्होंने उसे धमकी भी दी कि यदि उसने हिन्दुओं के धार्मिक अनुष्ठान में विधन डाला, तो वे ताकत का प्रयोग करेंगे ।
अब्बास खां का तुलसीबाई से विवाह:
अब्रास खा ने उन लोगों की धमकी का कोई ख्याल नहीं किया और बडे साहस से अपना घोड़ा तुलसीबाई के निकट ले आया और बड़ी फुर्ती से उसे उठा कर अपने घोड़े पर अपने पीछा बैठा लिया । लोग जब तक संभल पाते, उसने घोडे को ऐड लगाई और घोडा दोनों को लिए देखते-देखते आँख से ओझल हो गया ।
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सभी लोग हाथ मलते रह गए । वह तुलसीबाई क । लिए अपने दुर्ग की ओर बढ़ चला । दो राजपूत बहादुरों ने उसका पीछा किया । उसने उन्हें मार कर अपने दुर्ग में प्रवेश किया । दुर्ग में पहुंचकर दोनों ने विवाह कर लिया ।
उपसंहार:
अब्बास खाँ और तुलसीबाई का विवाह बड़ा शुभ सिद्ध हुआ । अब्बास खा सम्राट् अकबर का अधिकाधिक कृपाभाजक बनता गया । कुछ समय बाद अकबर ने उसे अपना प्रधान सेनापति बना दिया । वे दोनों जीवनभर एक-दूसरे को प्यार करते रहे ।