पहाड़ियों की पैदल सैर पर अनुच्छेद | Paragraph on A Walking Trip in the Hills in Hindi
प्रस्तावना:
मेरी हैसियत किसी पहाडी स्थान पर जाने की नहीं है । मेरे मन में बहुत दिनों से पहाडों की सैर की लालसा थी । सौभाग्य से पिछले वर्ष मुझे एक सुनहरा मौका मिल गया । मेरे भाई टिकट कलक्टर हैं ।
कुछ दिन पहले उनकी बदली शिमला स्टेशन पर हो गई । उन्होंने गर्मियों की छुट्टियों में शिमला आने को कहा । मैं उनके निमन्त्रण पर खुशी से नाच उठा ।
तैयारी:
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मैंने यात्रा की आवश्यक तैयारी की । मैंने अपने सभी गरम कपड़े, पुस्तकें तथा अन्य कपड़े एक बक्से में रख लिए । अपने दोस्त से मैंने एक बरसाती भी माँग ली क्योकि मुझे पता लगा कि शिमला में अवसर पानी बरस जाता है । मैं अपना सामान लेकर नियत समय पर स्टेशन पहुच गया ।
रेल-यात्रा:
मैं कालका मेल पर सवार होकर कालका पहुँचा । वही से शिमला के लिए गाडी बदलनी पड़ती है । अगली गाडी से मैं शिमला के लिए रवाना हुआ । कालका से कुछ आगे बढ़ते ही गाड़ी पहाडियों पर चढ़ने लगी । गाड़ी से पहाड़ के अनुपम दृश्य दिखाई देने लगे ।
मार्ग में कई सुरंगे पडीं । सुरंगो के भीतर से गाड़ी गुजरते देख मैं रोमांचित हो उठा । पहाड़ी दृशयों को देख-देखकर में आत्मविभोर हो रहा था । शाम को हमारी गाड़ी शिमला में अकेले ही रह रहे थे । शाम को उन्होंने हल्का खाना बनाया और हम दोनों खाना खाकर सो गए । भाई साहब को अगले ही दिन सुबह अपनी ड्यूटी पर जाना था । वे दूसरे दिन शाम तक लौटने वाले थे ।
चीड़ के घने उपवन में भ्रमण:
भाई साहब के ड्यूटी पर जाने के बाद मैंने गरम कपड़े पहने और बरसाती लेकर घूमने निकल पड़ा । लगभग आधा किलोमीटर चलने के बाद मैं चीड के पेडों के घने उपवन में पहुँच गया । चीड़ की पतली नुकीली पत्तियों से चट्टाने ढकी थीं ।
उन पर बहुत सभल कर चलना पड रहा था, क्योंकि थोडी-सी असावधानी से पैर फिसल सकता था । पेडों से बड़ी मस्त सुगंध आ रही थी । मैं लम्बी-लम्बी सारने लेकर उसे अपने शरीर में समेट लेना चाहता था । मन करता था कि काश वहीं एक कुटिया होती और मैं उसी में जीवन बिता देता ।
प्रकृति की गोद में रात बिताना:
कुछ देर तक उस मस्त गंध का आनन्द लेकर मैं आगे बढ़ता गया । पहाडों का नजारा देखते-देखते मैं आगे बढ़ता चला गया । पगडंडी सांप की तरह टेडी-मेढ़ी थी । मुझे कुछ थकान लगने लगी । लेकिन वहाँ रुकने का कोई सुविधाजनक स्थान न था । कुछ देर के बाद मैं एक पठार के निकट पहुंच गया । यह चीड़ के पेडों से भरा हुआ था ।
यही पुन: मुझे वही सुगंध मिली । मैं अपने साथ कुछ खाने का सामान और पानी की बोतल लिए हुए था । उसी को खाकर थोड़ा पानी पीकर मैं चीड़ की पत्तियों पर ही विश्राम करने लेट गया । रात भी होने लगी थी । ठंडी हवा के झोकों और मस्त बयार ने मुझे जल्दी ही सुला दिया । मैंने भी भगवान् का नाम लेकर वहीं रात बिताने का फैसला कर लिया ।
अगले दिन की सैर:
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सुबह चिड़ियों की चहचहाहट से मेरी आखे खुली व मुझे फिर कुछ भूख लगने लगी । अब मेरे पास खाने को कुछ नहीं था । अत: मैंने इधर-उधर नजर डाली । कुछ ही दूरी पर मुझे एक गांव दिखा । मैं उसी ओर चल पडा । गांव वालों ने मुझे थोड़ा-सा भात और सब्जी खाने को दी ।
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कुछ देर आराम करके मैं अगले गाँव की ओर चल पड़ा । मैं गांव से कुछ ही दूर था कि आसमान काले-काले बादलों से भर गया और भारी वर्षा होने लगी । वर्षा इतनी तेज थी कि मेरी बरसाती कुछ काम न आई और मैं एकदम ऊपर से नीचे तक पानी से तर हो गया ।
वर्षा थमने पर मैं गीले ही कपड़ों में फिर आगे बढ़ने लगा । जब मैं गांव पहुँचा, तो सर्दी से कांप रहा था । वहीं मुझे एक सज्जन पुरुषा मिले । मुझे सर्दी में ठिठुरते देख और अजनबी समझ कर उन्होंने मुझसे मेरा परिचय जानना चाहा ।
सारी दास्तान सुनकर उन्हें मुझे पर दया आ गई और वे मुझे अपने घर ले गए । उन्होंने मुझे गरमा-गरम चाय पिलाई और सूखे कपड़े बदले और चाय पीकर मेरी जान-में-जान आई । उन्होंने कमरे में अंगीठी लाकर रख दी । मैंने अपने कपड़े सूखने के फैला दिए । उन्होंने मुझे रात को भोजन भी दिया ।
उपसंहार:
अगले दिन सुबह उठने पर मुझे कुछ बुखार हो गया था । उन सज्जन ने मुझे एक दिन और ठहरने को कहा । दोपहर तक मेरा बुखार और भी बढ़ गया । उन्होंने मुझे गरमा-गरम काढ़ा दिया । अब मुझे भाई की ओर से डर लगने लगा । मैं घर में कोई सूचना छोड़कर नहीं आया था ।
अत: दूसरे दिन बुखार कम होने पर मैंने शिमला लौटने की इच्छा जाहिर की । उन सज्जन ने मुझे एक खच्चर पर मुख्य सड़क तक पहुंचाया, जहाँ से बस में सवार होकर में शिमला पहुँचा । घर पहुँचने पर मेंने भाई को बडा चिंतित पाया । वे मुझ पर बहुत बिगडे और अगली ही गाडी से उन्होंने मुझे शिमला से वापस भेज दिया ।