फुटबाल की आत्मकथा पर अनुच्छेद | Paragraph on An Autobiography of a Football in Hindi
प्रस्तावना:
बच्चों ! तुम मुझे लात से मारकर बड़े प्रसन्न मन से खेल रहे हो । अरे ! तुम इधर-उधर क्या देख रहे हो । मैं तुम्हारी प्यारी फुटबाल हूँ । तुम मुझे पटकते हो, लात मारते हो, इधर से उधर धक्का देते हो, फिर भी मैं तुम्हारा मनोरंजन करती हूँ । आओ बच्चों, आज मैं तुम्हें अपनी कहानी सुनाऊँ ।
मेरा जन्म:
मेरा जन्म दक्षिण अमरीका के ब्राजील के जंगलों में हुआ था । मेरे मां-बाप रबड़ के पौधे के नाम से जाने जाते हैं । लोग मेरे मां-बाप के पेट (तने) में छेद कर देते हैं और उसके नीचे बाल्टी लटका देते हैं । धीरे-धीरे उनके बदन से खून टपकने लगता है ।
जब बाल्टी भर जाती है, तो उस खून को बड़े-कड़ाहों में औटाया जाता है । जब वह खून गाढ़ा होने लगता है, तो उसे सूखने के लिए फैला दिया जाता है । अब मैं एक चादर के रूप में सूख जाता हूँ । इसे रबड़ की चादर कहा जाता है । यही मेरा आदिम रूप है ।
रूपान्तरण और नामकरण:
मेरे चादर के आदिम रूप को छोटे-छोटे टुकडों में काटा गया और उन्हे जोड़कर गोल आकार दे दिया गया । मेरे एक सिर पर नली लगा दी गई । मेरा आकार एक मजबूत गुबारे जैसा हो गया । मेरे इस रूप को फुटबाल का ब्लैडर कहा गया । हवा भरने के एक पम्प के जरिए बच्चों ने मुझ में नली से हवा भर दी और नली को क[स्गृकर बांध दिया ।
मैं इस रूप में बहुत हल्का था । बहुत वर्षा तक बच्चे मेरे साथ इसी रूप में खेलते रहे । जब कभी मैं किसी नुकीली चीज से टकरा जाता, तो मेरा पेट फट जाता और बच्चे बड़े दुःखी होते । अत कुछ दिनों के बाद लोगों ने मुझ पर चमड़े का एक खोल चढ़ा दिया । खोल में एक बड़ा छेद करके मुझे उसके अदर डाल दिया जाता ।
मेरी नली खोल से बाहर रखी गई । इस नली से हवा भरके नली का मुहॅ बद करके उसे भी खोल के अदर डालकर खोल का मुँह चमड़े के फीते से बांध दिया जाता । अब मैं काफी शक्तिशाली हो गया । यही मेरा वर्तमान रूप है । अब मुझे फुटबाल के नाम से पुकारा जाने लगा ।
विश्व-भ्रमण:
ADVERTISEMENTS:
कुछ दिनों तक मैं ब्राजील के लोगों का ही मन बहलाती रही लेकिन धीरे-धीरे मैं विश्व के अनेक देशों मे पहुंच गयी । मुझे जितनी जोर से किक लगाई जाती, उतनी ही ऊँची मैं हवा में उछालती और फिर धरती पर गिरकर उछालती ओउएर गिरती रहती हूं जब तक मेरी सारी शक्ति नष्ट नहीं हो जाती । आज मैं संसार में लगभग सभी देशों के मन-बहलाव का एक प्रमुख साधन हूँ ।
मुझसे खेलने के नियम:
कुछ समय तक मुझे यों ही उछाल-उछाल कर खेला जाता रहा । अत में मेरा महत्त्व बढ़ते देख लोगों ने मुझसे खेलने के विशेष नियम बना लिए । एक विशेष लम्बाई-चौड़ाई के मैदान में दो दलों के बीच मुझसे खेला जाने लगा ।
ADVERTISEMENTS:
अब हर दल में ग्यारह खिलाडी मिलकर मुझे खेलते हैं । मैदान के दोनो सिरों पर दो खम्भे गाड़कर एक जाली लगा दी जाने लगी, जिसे गोल कहते है । मैदान के खिलाडी मुझ पर पैर या सिर से किक लगा सकते हैं । हाथ से छू जाने पर फाउल गिना जाता है । हर टीम का केवल एक-एक खिलाड़ी मुझे हाथ से छू सकता है ।
उस खिलाड़ी को गोल-कीपर कहते हैं । मेरे खेल के निश्चित नियमों के बन जाने के बाद विश्व के अनेक देशों के बीच मुझे लेकर मैच खेले जाने लगे और हार-जीत पर बड़े-बड़े दाँव लगने लगे । आज मुझे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है । इस खेल को मेरे ही नाम पर फुटबाल खेल कहा जाता है ।
उपसंहार:
मेरे ही रूप-रंग की कुछ और बाल भी बन गई हैं । इन्हे हाथों से खेला जाता है । इन खेलों को वालीबाल और बास्केट बाल कहते हैं । इन खेलों में मेरे समरूप साथी पैरों की ठीकरे नहीं खाते, बल्कि हाथो में खेलते हैं । मैं बड़ी प्रसन्न हूँ कि विश्व में मैं इतने अधिक लोगों का मनोरंजन करती हूँ ।