भारतीय भिखारी पर अनुच्छेद | Paragraph on Indian Beggars in Hindi
प्रस्तावना:
भारत भिखारियों की शरण-स्थली है । संसार के किसी भी देश में भिखारियों की इतनी बड़ी सज्जा नहीं है, जितनी भारत में है । इसका कारण यह है कि भारत मे लोगों ने भीख मांगना एक धंधा बना लिया है ।
बहुत-से लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी से भिख मांगने का काम करते आए हैं । वे जन्म से भिखारी होते हैं और अपने पेशे को नहीं छोड़ना चाहते । भीख मांग कर बड़ी आसानी से उनका गुजारा चल जाता है ।
कपड़े और रूपरग:
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भिखारी अनिवार्य रूप से इस गा के कपड़े पहनते हैं कि उन्हें देखकर स्वाभाविक रूप से दिया आ जाये । वे चिथड़े लपेटते हैं । कुछ भिखारी केवल लँगोटी लपेटे देखे जा सकते हैं । वे जगह-जगह भीख मांगने जाते हैं । उनके हाथ में एक कटोरा होता है और बगल में एक थैला लटका होता है । भीख मे मिले पैरने वे कटोरे मे रखते हैं और आटा रोटी आदि खाने की वस्तुयें थैले मे डाल लेते हैं ।
वे कभी-कभी लोगों के पीछे पड़ जाते हैं और बिना कुछ लिए पीछा नहीं छोड़ते । बार-बार दुत्कारे जाने पर भी वे नहीं हटते । सच पूछिए तो सारी शर्म और हया छोड़कर ही वे भिखारी का पेशा अपनाते हैं । कुछ भिखारी साधु का भेष बनाकर भीख मांगते है । वे सारे बदन में राख लपेट लेते हैं । माथे पर तिलक लगाते हैं और गेरुवे वस्त्र पहन कर भीख मांगने निकलते है ।
कटोरे के स्थान पर उनके हाथ में साधारणतया एक कमण्डल होता है । उनके सिर पर मोटी-मोटी जटा-जूट लटकती रहती है और भगवान के नाम पर वे भीख मागते हैं । तीर्थ स्थानों और मन्दिरों के आस-पास ऐसे बहुत-से भिखारी सहज ही दिखाई देते हैं ।
कुछ भिखारी वास्तव में अपंग, अगहीन, अंधे, दरिद्र, रोगी अथवा अति वृद्ध और लाचार भी होते हैं । ऐसे भिखारी दया के पात्र होते हैं । उनकी हमें अवश्य सहायता करनी चाहिए । लेकिन यह भी देखने मे आता है कि कुछ पेशेवर भिखारी लोगों की दया और सहानुभूति पाने के लिए अपंगता और लाचारी का स्वांग भी भरते हैं ।
वे भीख कैसे मांगते हैं ?
भिखारी यह अच्छी तरह जानता है कि वह लोगों मे अपने प्रति दया और करुणा कैसे पैदा करे । इसके लिए वे भीख मागने के तरह-तरह के तरीके काम मे लाते हैं । यदि वह साधु के वेश में है तो तरह-तरह के नाटक करता है । आपके माथे पर तिलक लगाकर वह आपको आशीर्वाद देकर आपकी मगल कामना करेगा और भगवान के नाम पर कुछ -देने का अनुरोध करेगा ।
ऐसे भिखारी स्त्रियों को बडी आसानी से ठग लेते हैं । कभी-कभी वे बाँसुरी, खजरी क्या किसी अन्य वाद्य को बजाकर भजन गाकर भीख मांगते हैं । यदि उसकी आवाज सुरीली हो, तो वह बहुत-से लोगो को आकर्षित करके काफी पैसा भीख में पा लेता है ।
कुछ भिखारी एक कपड़ा बिछाकर शहर में सडकों के किनारे बैठ जाते है और आने-जाने वाले का ध्यान आकर्षित करके उनकी करुणा को जगाने का प्रयत्न करते है । कुछ महिलायें मैले-कुचैले कपडों में छोटे-से बच्चे को लपेटकर उसे रुलाती हैं और भूखा बताकर उसके नाम पर भीख मांगती हैं ।
भारत में भिखारियों की अधिक सख्या के कारण:
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भारत में भिखारियों की इतनी अधिक संख्या होने का मुख्य कारण यह है कि भारत के लोग धार्मिक प्रवृत्ति के हैं । हिन्दुओं को पुनर्त्नन्म में विश्वास होता है । वे मानते हैं कि यदि वे निर्धनों और लाचारों की सहायता करने का नेक काम करेंगे, तो भगवान् प्रसन्न होकर उनका कल्याण करेंगे और अगले जन्म में वे अधिक सुखी होंगे ।
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मुसलमान भी यह मानते हैं कि यदि वे अपने साथी व्यक्तियों की सहायता करेंगे, तो खुदा उन्हे जन्नत (स्वर्ग) भेजेगा । इस तरह भारत के अधिकांश लोग दानशील होते हैं । भारतवासियों की दानशीलता से भीख मांगने को बढ़ावा मिलता है । भीख द्वारा लोगों को बिना कोई परिश्रम या कड़ी मेहनत किए आसानी से उतना पैसा और खाने का सामान मिल जाता है, जो दिनभर मजदूरी करने के बाद भी नहीं मिल पाता ।
इसलिए जो लोग शरम-हया छोड़कर अपमान और उपेक्षा को महत्व नहीं देते, वे भिखारी का पेशा अपना लेते हैं । इसके अलावा भारतमें अन्धे, अपंग, अपाहिज और बेसहारा लोगों के लिए कोई व्यवस्था नहीं है । अत: ऐसे लोग मजबूर होकर भीख मांगकर पेट भरते हैं ।
साधारण भिखारियों के अलावा भारत में बहुत-से फकीर और साधु हैं । सच्चे फकीर और साधु बड़े विद्वान्, धर्मात्मा और नेक होते हैं । ईश्वर की भक्ति के लिए वे संसार का त्याग कर देते हैं और केवल भिक्षा के सहारे जीवित रहते हैं । ऐसे फकीर और साधु केवल उतनी ही भिक्षा लेते हैं जो उनके उस दिन के पेट भरने के लिये पर्याप्त होती है ।
उपसंहार:
भिखारी कोई उपयोगी काम नहीं करते । वे राष्ट्र के पर्याप्त श्रम और उद्यम को व्यर्थ में नष्ट करते हैं । उनरने मिलों और कारखानो में मेहनत-मजदूरी का काम लिया जा सकता है । ऐसा होने पर वे उपयोगी काम में लग जायेंगे और राष्ट्र का उत्पादन बढ़ेगा । हमें स्वस्थ भिखारियों को दान नहीं देना चाहिए ।
उन्हे भिक्षा देने के बजाए इस बात के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए कि वे कोई उपयोगी काम करें । अपंगों और अपाहिजों के लिए सरकार और समाज-सेवी सस्थाओं को आगे आकर ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि उन्हें भीख न मांगनी पड़े ।