महात्मा गांधी पर अनुच्छेद | Paragraph on Mahatma Gandhi in Hindi

प्रस्तावना:

भारत का बच्चा-बच्चा तक महात्मा गांधी का नाम जानता है और उनकी जय-जयकार करता है । वह भारत की एक महान् विभूति ही नहीं, वरन् विश्व की महानतम विभूतियों में गिने जाते है । भारत उन्हें राष्ट्रपिता मानता है । हम उन्हें आदर और श्रद्धा से बापू पुकारते हैं । उनका पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गांधी था ।

उनके माता-पिता तथा शिक्षा:

महात्मा गांधी का जन्म गुजरात राज्य के काठियावाड़ प्रदेश में स्थित पोरबन्दर शहर में 2 अक्टूबर, 1869 ई॰ को हुआ था । उनके पिता राजकोट रियासत के दीवान के । उनकी माता बड़ी सज्जन और धार्मिक विचारों वाली महिला थी । उन्होंने बचपन से ही गांधी को धार्मिक कथायें सुना-सुना कर उन्हें सात्विक प्रवृति बना दिया था ।

सात वर्ष की आयु में उन्हे स्कूल भेजा गया । स्कूल की पढ़ाई में वे औसत दर्जे के विद्यार्थी रहे । लेकिन वे अपना कक्षा मे ठीक समय पर नियमित रूप से पहुंचते थे और पाठ को मन लगाकर पढ़ते थे । मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद वै कॉलेज में पढ़े और बाद में कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गये ।

लन्दन में उनकी मुलाकात श्रीमती एनी बिरनेन्त से हुई और उनकी प्रेरणा से गांधी जी ने टाल्सटॉय के साहित्य को पढ़ा । टाल्सटॉय के विचारों ने उन्हें बड़ा प्रभावित किया । 1891 ई॰ में उन्होंने कानून की डिग्री प्राप्त कर ली ।

वकील के रूप में:

अपनी पढ़ाई पूरी करके वे भारत लौटे । उन्हें अपनी माँ से बड़ा प्यार था और अपनी मां की मृत्यु के समाचार से उन्हें बड़ा धक्का लगा लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने बम्बई जाकर वकालत शुरू कर दी । वहां उनकी वकालत ठीक से नहीं चली । वे राजकोट लौट आए और वहा वकालत जमाने को कोशिश करने लगे । उनकी वकालत न चलने का मुख्य कारण यह था कि वे झूठे मुकदमे स्वीकार नहीं करते थे ।

दक्षिण अफ्रीका में उनके कार्य:

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कुछ समय के बाद सौभाग्य से उन्हें एक बड़ा भारतीय व्यापारी मिला, जिसका दक्षिण अफ्रीका में बड़ा कारोबार था । उसे अपनी किसी उलझे मुकदमे में दक्षिण अफ्रीका में एक अच्छे वकील की जरूरत थी । उसने गांधी जी काफी बड़ी फीस देकर इस काम को करने को तैयार कर लिया । उसने गाँधी जी को दक्षिण अफ्रीका बुला लिया ।

दक्षिण अफ्रीका पहुंच कर उन्होंने भारत मूल के लोगो को बड़ी दयनीय अवस्था में देखा । उन्होंने उनकी दशा सुधारने का फैसला कर लिया और भारतीयों को उनके अधिकारों का बोध कराया । उन्होने उनमे जागृति लाकर उन्हें संगठित किया ।

उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के लिए जिस कांग्रेस की स्थापना की, आज भी वह वहां की प्रमुख पार्टी है । गांधी जी और उनके साथियों को कैद करके सजायें दी गई, लेकिन उन्होने अपनी लड़ाई नहीं छोड़ी ।

1914 ई॰ में इण्डियन रिलीफ एक्ट नामक कानून पास हो जाने के बाद वही के बाद भारतीय मूल के लोगों की स्थिति में काफी सुधार हो गया ।

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भारत में उनके कार्य:

दक्षिण अफ्रीका के आन्दोलन में सफलता के बाद गाधी जी भारत लौट आए । वे कांग्रेस पार्टी के सदस्य बन गए । उन्होंने पार्टी में नई जान डारन दी और आजादी के आन्दोलन को नई शिक्षा दी । शीघ्र ही वे उसके नेता बन गए ।

उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने अहिंसा का मार्ग अपनाया और ब्रिटिश सरक के काले कानूनों का असहयोग आन्दोलनों के द्वारा जोरदार विरोध किया । उन्होंने रौलेट एक्ट तथा दूसरे काले कानूनों का डट कर विरोध किया ।

इसके साथ ही उन्होंने काग्रेस पार्टी के सामने-समाज सुधार और हिन्दू-मुस्लिम एकता जैसे रचनात्मक कार्यो को सुझाया । छुआछूत के खिलाफ उन्होंने जोरदार आवाज उठाई और अछूतो को ‘हरिजन’ जैसा आदरणीय सबोधन दिया । हिन्दू-मुस्लिम एकता की रक्षा पर तो

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उन्होने अपनी जान तक दे दी । ब्रिटिश सरकार ने स्वतन्त्रता आन्दोलन को दबाने का भरसक प्रयास किया । कई बार उन्होने गाँधी जी तथा अन्य भारतीय नेताओं को पकड कर जेल में डाल दिया । लेकिन उन्होंने भारत को स्वतन्त्रता दिलवा दी । 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ ।

उनकी हत्या:

गांधी जी की अकस्मात हत्या कर दी गई । एक पागल नौजवान ने उन्हें प्रार्थना-सभा में गोलियो से भून दिया । वह गांधी जी के विचारों का घोर विरोधी था । उनकी हत्या 30 जनवरी, 1948 को हुई ।

उनका चरित्र:

गांधी जी बड़ी धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे । वे सच्चाई का स्वयं पालन करते थे और सभी को सच्ची राह पर चलने की सलाह देते थे । वे बड़ा सादा जीवन बिताते थे । वे निर्धन, बेसहारों और बीमारों का बड़ा ख्याल रखते थे । उनका व्यक्तित्व अनोखा था । उन्होंने सदैव सत्य और अहिंसा का मार्ग अपनाया ।

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उन्होंने अहिंसा के माध्यम से भारत को आजादी दिलाकर दुनिया को चकित कर दिया । वे एक महान् संत थे । वे शान्ति के पुजारी थे । उन्होंने अछूतों और पिछड़ी जातियों के लोगों को समाज में सम्मान दिलाने के लिए बहुत कार्य किया ।

उपसंहार:

गाँधी जी महान् पुरुष थे । वे आदर्श गुरु, श्रेष्ठ वक्ता महान् विचारक और कर्मठ व्यक्ति थे । उन्हें समूचे विश्व में सदैव बड़े आदर से याद किया जाएगा । आज भी विश्व को उनके विचारों की आवश्यकता है । सत्य और अहिंसा के उनके बताए मार्ग पर चल कर राष्ट्रों के बीच मन-मुटाव समाप्त होकर जन साधारण का कल्याण हो सकता है ।

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