राष्ट्रीय सुरक्षा पर अनुच्छेद | Paragraph on National Defence in Hindi

प्रस्तावना:

देश की आजादी प्राप्त कर लेना ही पर्याप्त नहीं होता । हमें उसकी स्वतत्रता बनाए रखने के लिए सतत् जागरूकता की आवश्यकता होती है ।

देश की स्वतंत्रता और अखण्डता को कायम रखने के लिए हमें अपने साधनों से सुरक्षा-व्यवस्था को गठित करना पड़ता है, ताकि हम किसी सकट का सामना करने के लिए सदैय प्रस्तुत रहे । जो देश अपनी रक्षा करने में स्वय समर्थ नहीं होते, उनकी आजादी अधिक दिन तक नहीं टिक सकती । अत: हर रजतंत्र देश के लिए अपनी सुरक्षा व्यवस्था को भली-भाँति कायम रखना अनिवार्य लै ।

भारत को सुरक्षा व्यवस्था की जरूरत:

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भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन के बाद भारत स्वतंत्र हुआ । प्रारंभ से ही पडोसी राष्ट्र भारत के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार करता रहा है । भारत को 1962 में चीन के हमले तथा 1965 और 1971 मैं पाकिस्तानी हमलो का मुकाबला करना पडा है । हमारी अच्छी सुरक्षा-खावस्था के कारण ही हम अपने देश को बचा पाये हैं ।

आज पाकिस्तान नए-नए किस्म के आधुनिक हथियारों को जमा कर रहा है । उसने परमाणु बम बनाने के साधन तक जुटा लिए हैं । जाहिर है कि कभी भी देश को इनका सामना करना पड़ सकता है । ऐसी स्थिति में देश की सुरक्षा व्यवस्था को और भी मजबूत बनाने की बड़ी आवश्यकता है, ताकि हम हर संकट का सफलतापूर्वक मुकाबला कर सके ।

सैनिक शक्ति का गठन:

सुरक्षा-व्यवस्था में सशक्त और प्रशिक्षित सैनिको का बड़ा महत्त्व है । हमें अपना सैन्य बल बढाना चाहिए । हालांकि भारत एक विकासशील देश है और हमारे साधन सीमित हैं, लेकिन देश की सुरक्षा से बढ़कर और कुछ नहीं हो सकता ।

अत: हमें अपने सीमित साधनों को चाहे विकास-कार्यो से हटाकर सेना पर व्यय करना पड़े, तो भी इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती । जब आजादी ही नहीं रहेगी, तो विकास का क्या होगा ?

सैनिकों को उचित प्रशिक्षण:

हमें सैनिकों को पर्याप्त प्रशिक्षण देना चाहिए । उन्हें आधुनिक युद्ध की कलाओं का निरन्तर अभ्यास कराते रहना चाहिए ताकि संकट के समय हम उन्हें सीधे युद्ध क्षेत्र में भेज सके ।

आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण:

आज के वैज्ञानिक युग मे केवल सैन्य शक्ति के बल पर ही युद्ध नहीं लड़े जाते । नए-नए अरव-शस्त्र और सैनिक साज-सजा की आवश्यकता भी पडती है । हमें इस दृष्टि से आत्मनिर्भर होने की बड़ी जरूरत है । युद्ध के दौरान अस्त्रों के लिये हम विदेशों का मुँह नहीं ताक सकते ।

ऐसा करने पर हमे विदेशो को मुंहमांगी कीमत देनी पड़ती है और दूसरे उनका अहसान भी मानना पडता है, जो कभी बहुत महंगा पड़ सकता है । अपने हो देश के अरत्रो को चलाने में सैनिक अभ्यास द्वारा कुशलता प्राप्त कर सकते हैं जबकि विदेशी अरत्रो के सचालन को सीखने मे काफी समय लग सकता है जो संकट के समय बडा महंगा पड़ेगा ।

रक्षा की तीसरी पंक्ति:

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कोई भी देश सेना पर बहुत बडी धनराशि नहीं खर्च कर सकता । स्थायी सेना की कुछ-न-कुछ सीमा तो निर्धारित करनी ही पडड़ेगी । युद्ध के दौरान यह कम पड़ सकती है ।

अत:

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हमें साथ-ही-साथ नवयुवकों को सैन्य प्रशिक्षण देकर रक्षा की सुदृढ़ तीसरी पंक्ति का भी गठन करना चाहिए । स्कूलों और कॉलेजों में एन॰सी॰सी॰ अनिवार्य कर दी जानी चाहिए, ताकि समय पडने पर हमें अतिरिक्त प्रशिक्षित सैनिक मिल सके ।

इसके अलावा युद्ध-भूमि के बाहर भी सैनिकों के लिए अनेक कार्य होते हैं, जैसे रसद की व्यवस्था और उसे मोर्चे तक पहुँचाना, देश के भीतर शांति और व्यवस्था कायम रखना, मोर्चे से घायलों को लाकर उनका उपचार करना आदि । इन सब कामों को यह तीसरा रक्षा पक्ति बड़ी आसानी से कर सकेगी ।

होम गार्डों का गठन:

देश के स्वस्थ नागरिकों को होम गार्डों क प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, जो आक्रमण के समय नागरिक सुरक्षा का कार्य कर सके । हवाई हमलों के दौरान आग पर काबू पाना, जनता को हवाई हमले से बचाव का प्रशिक्षण देना आदि अनेक काम इन होम गार्डों को सौंपे जा सकते हैं ।

उत्पादन में वृद्धि:

केवल रनैन्य शक्ति से ही संपूर्ण सुरक्षा संभव नहीं है । हमें अपने खेतों और कारखानों में उत्पादन बढ़ाना चाहिए और आवश्यक वस्तुओं का पर्याप्त भण्डार हर समय रखना चाहिए । यदि सैनिक युद्ध भूमि में लडता है, तो किसान और मजदूर अपनी मेहनत से उनके हाथ मजबूत करते हैं । हमारे प्रिय प्रधानमत्री लालबहादुर शास्त्री का ‘जय जवान, जय किसान’ नारा यही बताता है ।

उपसंहार:

कठिनाई से मिली आजादी की रक्षा के लिए हमे सदैव तैयार और सजग रहना चाहिए । तभी हम इसे कायम रख सकेंगे ।

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