56. सह-शिक्षा पर अनुच्छेद | Paragraph on Co-Education in Hindi

प्रस्तावना:

एक ही समय में, एक संस्था के अधीन और एक ही छत के नीचे लड़के और लड़कियों को एक साथ शिक्षा देना सह-शिक्षा कहलाता है ।

भारत में हाल के कुछ वर्षों के पूर्व ही सह-शिक्षा का प्रचलन प्रारम्भ हुआ है । धार्मिक नेता और रूढ़िवादी विचारधारा के लोग आज भी सह-शिक्षा के पक्ष में नहीं हैं । यही तक कि स्थ्य से कुछ अति रूढिवादी रित्रयों की अलग शिक्षा तक के विराधी हैं ।

वे नहीं चाहते कि स्त्रियों को पुरुषों के समान आजादी और बराबरी का दर्जा मिले । धीरे-धीरे समय बदल रहा है । आज स्त्री शिक्षा के हिमायतियों की संख्या बहुत बढ़ गई है । बहुत-से लोग सह-शिक्षा तक का समर्थन करते हैं ।

भारत में सह-शिक्षा:

ADVERTISEMENTS:

सह-शिक्षा भारत के लिए अनोखी चीज नहीं है । प्राचीनकाल में जब भारत की मातृभाषा संस्कृत थी और आश्रम शिक्षा के केन्द्र थे, सह-शिक्षा का आम प्रचलन था ।

हिन्दू धर्म अर्थों, प्राचीन लेखों और लोक-कथओं में ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जो स्पष्ट करते हैं कि उन दिनो सह-शिक्षा का प्रचलन था । भारत में मुगल साम्राज्य के स्थापना के पूर्व तक इस प्रथा का सूत्रपात हो गया और इसके साथ सह-शिक्षा की बात तो कौन करे, स्त्री शिक्षा पर ही रोक लग गई ।

पश्चिम में सह-शिक्षा:

यूरोप में सह-शिक्षा को प्रारंभ वर्तमान शताब्दी में ही हुआ है । कुछ सामय पहले तक इंग्लैण्ड के कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयों में महिलायें प्रवेश नहीं पा सकती थीं । लेकिन प्रथम विश्व-युद्ध के युरोप और अमेरीका मे सह-शिक्षा की धूम मच गई । यही तक कि आज अमरीका के स्कूलों और कालेजों में महिलाओं की संख्या पुरुषों से कहीं अधिक है ।

सह-शिक्षा के पक्ष में तर्क:

राह-शिक्षा के संबंध में सबसे बड़ा तर्क यह दिया जाता है कि ऐसा करने से लड़के और लड़कियों की अलग-अलग शिक्षा की व्यवस्था पर होने वाला दुहरा व्यय बच जाता है । जहाँ एक ही स्कूल से काम चल जाता है, दूसरे रकूल पर होने वाले खर्च की जरूरत नहीं होती ।

सच ही है कि भारत जैसे विकासशील देश के लिए जरूरी है कि वह दुहरे खर्च से बचे और साथ ही स्त्रियों की शिक्षा की व्यवस्था भी हो जाये, जिसकी भारत को बहुत जरूरत है । दूसरा तर्क यह है कि सह-शिक्षा के माध्यम से बालक और बालिकाये एक्) दूसरे को भली-भाँति समझ लेते हैं ।

उनके बीच ऐसी समझ पैदा हो जाती है जो आगे चलकर पति और पत्नी के बीच आदर्श संबंध स्थापित करने में मदद करती है । सह-शिक्षा के द्वारा ही पुरुषों और स्त्रियों के बीच सहज अलगाव की भावना दूर होगी और पुरुष वर्ग की स्त्रियों के विरुद्ध गुण्डागर्दी और छेड़छाड़ की घटनाओ में कमी आयेगी ।

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इस तरह समाज में स्त्रियों और पुरुषों के बीच अधिकाधिक बराबरी के सम्बन्ध स्थापित होने को बढ़ावा मिलेगा । जब उन्हें जीवन भर साथ रहना ही है, तो वे उसकी आदत डालना पहले से ही क्यों न सीख लें ।

सहशिक्षा के विरोध में तर्क:

सह-शिक्षा के विस्तार में तेजी के विरुद्ध पश्चिम में भी तेजी आवाजें उठाई गई हैं । एक अमरीकन शिक्षाविद् का सह-शिक्षा के संबंध में मत है कि ”यदि चारों ओर स्त्रियों हों, तो पुरुष अध्ययन में ध्यान नहीं लगा सकता ।” सह-शिक्षा के विरोध में कहा जाता है कि जिन स्कूलों में सह-शिक्षा है, प्राय: वहाँ अनुशासनहीनता देखने में आती है ।

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इससे लडकों और लड़कियों का पढ़ाई से ध्यान उचटता है । उनके बीच यौन आकर्षण होना स्वाभाविक ही है । इसके कारण अक्सर पढ़ाई परे रह जाती है और एक-दूसरे को रिझाने और मौज-मरती में समय नष्ट होता है ।

इससे फैशन परस्ती और फिजूलखर्ची को भी बढ़ावा मिलता है । कभी-कभी अध्यापकों पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है । वे भी पढ़ाने के काम पर पूरा ध्यान नहीं दे पाते ।

उपसंहार:

सह-शिक्षा के पक्ष और विपक्ष के विचारों को ध्यान में रखते हुए हमें चाहिए दिन भारत में हम एक मध्य मार्ग अपनायें । छोटे लड़कों और लड़कियों के लिए प्राइमरी शिक्षा अनिवार्य रूप से साथ-साथ दी जानी चाहिए । मिडिल रत्तर की अर्थात् छ: सात और आठ कक्षाओं की शिक्षा के भी अधिकतर सह-शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए ।

इससे 12-13 वर्ष की आयु तक के बच्चों के बीच अच्छी आपसी समझ पैदा हो चुकेगी । सेकेण्ड्री कक्षाओं की पढ़ाई की व्यवस्था अनिवार्य रूप से लडके और लड़कियों में यौन आकर्षण का उदय होता है । कुछ बड़ी उस होने पर उनमें समझ आ जाती है ।

अत: उच्च शिक्षा के लिए सह-शिक्षा ठीक रहेगी । हाँ, व्यवसायिक शिक्षा की अलग-अलग व्यवस्था करनी पड़ेगी, क्योंकि अधिकांश लड़के और लड़कियाँ भिन्न व्यवसाय अपनाते हैं ।

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