ग्राम पंचायत पर अनुच्छेद | Paragraph on The Village Panchayat in Hindi
प्रस्तावना:
स्वतंत्र भारत के सविधान में पचायतों के निर्माण की व्यवस्था की गई है । अधिकाश राज्यों ने अपने ग्राम पचायत ऐक्टों में आवश्यक संशोधन करके उन्हें सविधान की व्यवस्थाओं के अनुकूल बना लिया है । ग्राम पंचायतों को व्यापक अधिकार सौंपे गए है । उन्हें स्थानीय स्व-शासन की एक सक्रिय और महत्वपूर्ण इकाई बनाने के लिए उनके कामो में बहुत विस्तार किया गया है ।
पंचायतों के अलग नियम:
प्रत्येक राज्य में पंचायतों के गठन और उनके कार्यों तथा उन पर नियत्रण रखने के लिए अलग-अलग कानून बनाये गए हैं । इन्हें हम पचायतों के नियम कह सकते हैं । सभी राज्यों में गाँव के प्रत्येक वयस्क निवासी को मिलाकर एक ग्राम सभा बनती है । ग्राम सभा के सदस्य अपनी कार्यकारिणी के सदस्यों का चुनाव करते हैं ।
ये चुने हुए सदस्य पच कहलाते हैं । सभी पचों को मिलाकर ग्राम पंचायत बनती है, जो गांव के सभी स्थानीय मामलों की देखभाल करती है । इसे ग्राम सभा की कार्यकारिणी समिति कहा जा सकता है । भारत के अधिकाश गांवो में ग्राम पचायतों का गठन किया जा चुका है ।
पंचायत के कार्य:
ग्राम पंचायत के कार्यों को मुख्य रूप से दो भागो में बाँटा जा सकता है- अनिवार्य कार्य और ऐच्छिक कार्य । सभी राज्यों में पंचायुतों के ये अनिवार्य और ऐच्छिक कार्य एक जैसे नहीं हैं । अधिकांशतया सभी राज्यों में पीने के पानी की व्यवस्था, स्थानीय सड़कों और मार्गों का निर्माण और रख-रखाव, जल की निकासी का प्रबन्ध, बांधों का निर्माण, कुँओ उत्नैर तालाबों का निर्माण और रख-रखाव तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों की व्यवस्था पंचायतों के अनिवार्य कार्य हैं ।
इसके अलावा प्रकाश का प्रबन्ध, मेलों और बाजारो की व्यवस्था और नियत्रण भी पंचायतें ही करती है । पशुओं के लिए चरागाह की व्यवस्था, वाहनों के ठहरने का स्थान, कसाई-घर, सफाई की व्यवस्था आदि भी इनके अनिवार्य कार्य हैं । साथ ही इन्हें गाँव में पैदा होने वाले बच्चे तथा मृत्यु होने वाले व्यक्तियों के पंजीकरण का काम भी सौंपा गया है । पंचायतों के ऐच्छिक कार्यों के अन्तर्गत कुछ ऐसे कार्य आते हैं, जो ग्रामीण जनता के कल्याण कार्य हैं, लेकिन पंचायतें स्वेच्छा से इन्हें अपने हाथ में ले सकती हैं ।
ऐसे कार्यो में पढ़ाई की व्यवस्था के लिए स्कूल, स्वारस्य सुधार के लिए डिस्पेन्सरी आदि खोलना, सार्वजनिक वाचनालय और पुस्तकालयों की व्यवस्था, खेल के मैदानों की व्यवस्था, पेड़ लगाने कार्य, स्नानघरों तथा पशुओं के लिए शेडों का निर्माण, पशुओं की चिकित्सा की व्यवस्था आदि अनेक कार्य सम्मिलित हैं ।
आमदनी के साधन:
पंचायतों की आमदनी के साधन मौटे तौर पर दो भागों में बाँटे जा सकते हैं-स्वयं जमा किये करो आदि से आय तथा सरकार द्वारा प्रदान किया गया धन, प्रत्येख पचायत गृहकर और सफाई-कर लगाती हैं और जनता से वसूल करती है ।
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गॉव के कूडा-करकट, गोबर तथा मृत पशुओं की लाशों आदि की बिक्री से प्राप्त आमदनी भी पंचायतों के पास आती है । जिला प्रशासन द्वारा किये गए जुर्माने, कोर्ट फीस हरजाने के रूप में प्राप्त राशि आदि पंचायतों को प्रतिवर्ष अनुदान देती हैं ।
पंचायतों की त्रुटियाँ:
ADVERTISEMENTS:
अधिकांश ग्राम पंचायतें जातिवाद का अखाड़ा बनी हुई हैं । पुराने जमींदार और जागीरदार अपने प्रभाव के बल पर पंच बनकर जनता पर मनमानी करते है । धन का सही उपयोग नहीं हो पाता और बहुत-से कार्य यों ही पड़े रह जाते हैं । पंचायतों की आमदनी भी बहुत कम होती है । इतने व्यापक कार्यों को सही ढंग से पूरा करने के लिए बहुत अधिक धन की आवश्यकता होती है ।
उपसंहार:
गांवों में जागृति लाकर सही और कर्मठ व्यक्तियों के पचायत में आए बिना इसमें सही सुधार लाया जा सकता है । ग्रामवासियों को उनके कर्त्तव्यों और अधिकारों की सही जानकारी दिलाने के लिए व्यापक प्रचार कार्य की आवश्यकता है । साथ ही उनमें शिक्षा का प्रसार भी आवश्यक है, तभी वे जातिवाद की संकीर्णता से ऊपर उठकर सही व्यक्तियों चुनाव कर सकेंगे ।
इसके अलावा पंचायतों के लिए निश्चित आमदनी की व्यवस्था भी जरूरी है । बहुत-सी पंचायतें धन की कमी के कारण चाहते हुए भी अपने कर्त्तव्य पूरे नहीं निभा पातीं अत: पंचायतों द्वारा सहकारी खेती, सहकारी दुग्ध उत्पादक तथा अन्य गतिविधियो को हाथ में लेने की इजाजत देनी चाहिए और इनके लाभ का कुछ अश पचायत को मिलाना चाहिए ।
इसके अलावा राज्य सरकारें कमीशन पर मालगुजारी वसूल करने का काम भी पंचायतों को सौंप सकती हैं । इससे सरकार के खर्चे में कमी भी आयेगी और पंचायतों की आमदनी भी बढ़ जायेगी । आवश्यकता के अनुसार अलग-अलग पंचायतों को एक-एक मुश्त कुछ धन भी प्रदान किया जा सकता है । जिससे इमारतों, सड़कों, कुओं आदि के निर्माण का कार्य किया जा सके ।