नौका-यात्रा पर अनुच्छेद | Paragraph on A Boat-Trip in Hindi
प्रस्तावना:
पिछली गर्मी छुट्टियां हमने बड़ी शान से बिताई । इस अवधि में मैने कई नगर व शहर देखे । नए-नए लोगों से मुलाकात की और मित्रता कायम की तथा अनेक अनुपम दृश्यों का आनन्द उठाया ।
इसी बीच गंगा पर नौका विहार करने का अवसर भी मिला । मेरा यह अनुभव एकदम अनूठा था । मैं इसे जीवनभर न भूल पाऊँगा । इस यात्रा की याद से ही मन बड़ा प्रफुल्लित हो उठता है ।
नौका यात्रा:
हम तीन मित्र इलाहाबाद की यात्रा पर गये हुये थे । एक दिन हम लोगों ने फैसला किया कि हम लोग बनारस की यात्रा नाव से करें । हमने यात्रा का प्रबन्ध पहले से ही कर लिया और अगले दिन खूब सवेरे हम नौका-यात्रा पर निकले पड़े । कुछ देर में ही हमारी नाव पवित्र गंगा की धार पर चल निकली ।
धारा के बहाव की दिशा में हमारी नाव को जाना था । उस समय हवा भी उसी दिशा में चल रही थी । बिना पतवार चलाये ही नौका तेजी से मंजिल पर चल रही थी । मल्लाह पतवार ऊपर किए आराम से गप्पें लड़ा रहे थे । वे बीड़ी पीकर धुँआ उड़ाते और हंसते जा रहे थे । ठंडी-ठंडी हवा हमें मस्त बना रही थी । कुछ ही देर में हमारे दो साथी नाव में ही सो गए ।
प्राकृतिक दृश्य:
मैं प्रकृति के दृश्यों को देखने का इतना उत्सुक था कि मेरी ऑख नहीं लगी । मैं नदी के दोनों तटों की ओर बारी-बारी से देखता । कभी सामने देखता तो कभी पीछे । समूचा दृश्य मुझे मन्त्र-मुग्ध किए हुए था । नदी के एक ओर थोड़ी-थोड़ी दूर पर पक्के घाट बने थे ।
यही अनेक पुरुष, रित्रयी और बच्चे स्नान कर रहे थे । कुछ दूर पर मुझे धोबी घाट दिखाई दिया । दस-बारह धोबी घुटनों तक पानी मे खड़े कपड़े पछाड़ रहे थे । जगह-जगह बालू में कुछ बच्चे भी खेलते दिखे । और आगे बढ़ने पर मुझे मटके लिए कुछ औरतें दिखाई दीं । वे नदी के किनारे पानी भरने आई थीं । नदी के दूसरी ओर मुझे खेत दिखाई दे रहे थे । जिनमें कृषक अपना-अपना काम कर रहे थे ।
यात्रा का आनन्द:
अब तक दोपहर हो गई थी । नदी के दूसरे तट के मैदानो में मुझे कुछ पशु चरते हुए दिखाई दिए । इस समय सूरज तपने लगा था और गरमी पड़ने लगी थी । हम लोगों ने नाव पर परदा लगवा लिया । दूर पेडो की छाया में हमें कुछ बछडे और गडरिये बैठे दिखाई दिए ।
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हमारी नाव धीरे-धीरे अपनी मंजिल की ओर बढती जा रही थी । इस समय चारों ओर सन्नाटा था । इसी बीच मुझे पानी में पड़ती सूरज की छाया दिखी । लम्बी चमकदार धारी-सी छाया देख मुझे बड़ा आनन्द आया । सूरज की किरणों से नदी का जल एकदम सुनहरा हो गया था, मानो प्रकृति ने उस पर सोने का पत्तर चढा दिया हो ।
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आसमान लाल हो रहा था । शाम का दृश्य भी बड़ा सुहावना था । खेतो से लौटते कृषकों बैलों तथा चारागाह से लौटते पशु दिखाई दे रहे थे । कुछ लोग नदी में तैर रहे थे । अब रात हो गई । रात में नदी एकदम शान्त थी और दोनों किनारों पर भी पूर्ण निस्तब्धता छाई हुई थी ।
दूर टिमटिमाती रोशनी और नदी के जल में उसकी छाया बड़ा कौतुहलपूर्ण दृश्य उपस्थित कर रही थी । आसमान में चाँद चमकने लगा । चांदनी रात में नदी तट और भी सुहावना लग रहा था ।
इतने में दूर नदी किनारे हमें कुछ लपटे दिखाई दी । नजदीक जाने पर समझ में आया कि वही किसी की चिता जल रही है । जलती चिता को देखकर मेरा आनन्द एकदम गायब हो गया और मैं मौत के बारे में सोचने लगा । ऐसा सोचते-सोचते ही मेरी आंख लग गई और हम सभी सो गए ।
उपसंहार:
हमें बड़ी गहरी नींद आई । एकाएक मल्लाहों की आवाज ने हमें जगा दिया । वे कह रहे थे कि बनारस आ गया है । हम हड़बड़ा कर उठे । हमे बनारस के घाट दिखने लगे थे । सवेरा हो रहा था । हमारी नाव एक घाट पर लगी और हम लोग नाव से उतर पड़े ।