भारत में ग्रामीण जीवन पर अनुच्छेद | Paragraph on Life in an Indian Village in Hindi

प्रस्तावना:

भारत एक कृषि प्रधान देश है । यही की अधिकाश आबादी गाँवो में रहती है । गाँव के अधिकतर लोग धरती पर खेती करके अपनी आजीविका चलाते हैं, वे प्रतिदिन प्रातःकाल जल्दी उठकर खेतों में चले जाते हैं और अधेरा होने तक दिन भर कड़ी धूप, सर्दी या वर्षा की परवाह किए बिना खुले में कड़ी मेहनत करते है । हल चलाने, खेतों की मिट्टी ठीक करने, बीज बोने, खरपतवार हटाने, सिंचाई करने और फसल काटने में ही उनका अधिकांश समय लग जाता है ।

सरल और सीधा-सादा जीवन:

भारत के ग्रामीण बडा सीधा-सादा और सरल जीवन बिताते हैं । वे आमतौर से कच्चे मकानों में रहते है, जिन पर खपरैल और फूँस की छतें होती है । उनमें प्रकाश्ना हवा आने-जाने के लिए खिडकियों और रोशनदान प्राय: नहीं होते । किसान खुल और शुद्ध वायु में सांस लेते हैं और सादा भोजन खाते हैं, जिससे उनका स्वास्थय ठीक रहता है और वे बलवान होते है ।

उनके परिवार कर्मठता और आपसी सहयोग का बडा सुन्दर उदाहरण पेश करतें है । ग्रामीण महिलायें घर का समूचा काम करने के अलावा अपने पतियों की खेती के कामों में भी मदद करती हैं । अक्सर छोटे-छोटे बच्चे भी अपने मां-बाप के कामों में भरपूर योगदान देते हैं । समूचे परिवार को मिल-जुलकर काम करते देख बड़ी प्रसन्नता होती है ।

ग्रामीण जीवन का आनन्द:

उपर्युक्त कथन का यह अर्थ नहीं है कि गांववासी हर समय केवल काम में ही लगे रहते है और मनोरंजन के लिए उनके पास कोई समय नहीं होता । खेती का काम मौसमी होता है । साल में तीन महीने तक खेत में करने को कुछ नहीं रहता ।

यह समय उनके आराम और आनन्द का समय होता है । इसके अलावा फसल काटते समय वे मिल-जुलकर गाते-नाचते और खुशियाँ मनाते हैं । खेतों में जब काम नहीं होता, तो आपस में मिलकर वे तरह-तरह के लोकनृत्यों में भाग लेते है । दैनिक जीवन में भी वे आनन्द के क्षण निकाल ही लेते है ।

दोपहर में पेडों की छाया में बैठे वे हुक्का गुड़गुड़ाते हैं या बीड़ी पीने का आनन्द लेते हैं । शाम को वे चौपाल पर इकट्‌ठे होकर एक-दूसरे के सुख-दुःख का हाल जानते हैं और हंसते-गाते लौटकर सो जाते हैं । उन्हें जीवन में कोई विशेष चिन्ता नहीं सताती ।

ग्रामीण जीवन की बुराइयां:

ग्रामीण जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप वही व्याप्त निरक्षरता है । अनपढ़ होने के कारण वे चालाक लोगों के कहने में आसानी से आ जाते है और अपना नुकसान कर बैठते हैं । वे अनेक रूढियों के शिकार रहते हैं । उनके अन्धविश्वास का लाभ अनेक ओझा, सयाने और पण्डित उठाते है । उनमें बाल-विवाह की प्रथा व्यापक रूप से फैली हुई है, जिसके कारण अनेक सामाजिक बुराइयाँ पैदा होती हैं ।

ADVERTISEMENTS:

ग्रामीणों के बीच विवाह, जन्म, मृत्यु जैसे सामाजिक अवसरों पर अपनी सामर्थ्य से बढ़कर खर्च करने की प्रथा है । इसके फलस्वरूप वे कर्ज़ के बोझ से दबे रहते हैं । गांवों में छोटी-छोटी बातों को लेकर अक्सर लड़ाई-झगड़े होते हैं और जरा-जरा सी बात पर लाठियाँ निकल आती हैं ।

ADVERTISEMENTS:

कत्ल और खून जैसी वारदातें तो आम बाते हैं । भूमि सबंधी झगडों में लम्बी मुकदमेबाजी चलती है, जिसमें, उनकी गाढ़ी कमाई का एक बड़ा हिस्सा व्यर्थ से बरबाद हो जाता है । बहुत-से ग्रामीण शराब, गांजा, भांग, चरस जैसे नशीले पदार्थों के आदी हो जाते हैं ।

उपसंहार:

गांवों के लोग प्राकृतिक वातावरण में रहने से रचरथ तो होते हैं, पर उनके पास धन नहीं होता । वे बलवान तो होते हैं, लेकिन उनमें सभ्यता और सहनशीलता की बडी कमी होती है । वे बड़ी सीधे, सरल और भोले-भाले होते है । चालाकी और मक्कारी उनमे नाममात्र को भी नहीं होती । वे ईश्वर की सता पर पूरा विश्वास करते है और उसके भय से पाप से दूर रहते हैं । अक्सर वे रूढ़िवादी और अधविश्वासी होते हैं ।

वे अपने रीति-रिवाजों और परम्पराओं पर जान छिड़कते हैं । उनमें जात-पात का विचार कूट-कूट कर भरा हुआ होता है । समग्र रूप में ग्रामीण बडे सज्जन होते हैं । उनमें शिक्षा का प्रसार करके उनकी सभी बुराइयों आसानी से दूर की जा सकती हैं और ऐसा होने पर ग्रामीण जीवन स्वर्ग के समान बन जायेगा ।

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