महाराणा प्रताप पर अनुच्छेद | Paragraph on Maharana Pratap in Hindi

प्रस्तावना:

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भारत में मुगलकाल के इतिहास में महाराणा प्रताप और शिवाजी के नाम स्वर्णाक्षरों में लिखे गए हैं । भारत के इन दोनों महान् सपूतों को देश और धर्म से बड़ा प्यार था । इन दोनों ने ही हिन्दू धर्म को मुसलमानों के अत्याचार से मुक्त कराने का जी-जान से प्रयत्न किया । जब तक हिन्दू और हिन्दू धर्म जीवित है, इन सपूतों को बड़े आदर के साथ स्मरण किया जायेगा ।

अकबर और चित्तौड़:

राणा प्रताप का जन्म अपनी वीरता के लिए विख्यात सिसोदिया राजपूत परिवार में हुआ । उनके पिता उदय सिंह बड़े चरित्रवान शासक थे । बहुत से राजपूत राजाओं ने डरकर अपनी पुत्रियों का विवाह अकबर से कर दिया था । लेकिन उदय सिंह ने ऐसा करने से साफ इंकार कर दिया था । इसलिए शक्तिशाली अकबर से संघर्ष बचाने की दृष्टि से उन्होंने चित्तौड़ छोड़ दिया था ।

हल्दी घाटी का प्रसिद्ध युद्ध:

राणा प्रताप ने चित्तौड़ वापस लेने का संकल्प कर लिया । हल्दी घाटी नामक स्थान पर मुगलों से उनका घोर युद्ध हुआ । मुगलों की विशाल सेना ने प्रसिद्ध सेनापति राजा मानसिह और युवराज सलीम की अध्यक्षता में महाराणा प्रताप और उनके वीर सैनिकों का मुकाबला किया ।

राणा और उसकी सेना ने बड़ी बहादुरी से युद्ध किया । लेकिन अन्त मे मुगलों की विशाल सेना के सामने टिक न सके और उन्हे युद्ध-क्षेत्र छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा ।

राणा की यातनायें:

राणा प्रताप ने चित्तौड़ को मुगलों से आजाद कराने का संकल्प ले रखा था, लेकिन मजबूर होकर उन्हें अपनी रानी और बच्चों के साथ राजमहल से भागने पर मजबूर होना पड़ा । अकबर की सेना की तेज निगाहों से बचते हुए वे जंगल-जंगल भटकते रहे । वे जंगली फल-फूल खाकर अपना गुजारा करते थे । कभी-कभी कई दिनों तक लगातार उन्हें भूखे तक रहना पड़ता था ।

एक बड़ी दर्दनाक कहानी है, जिससे उनकी यातनाओं और कष्टों का पता लगता है । एक बार छोटी राजकुमारी भूख रने व्याकुल होकर बिलख रही थी । घर में उसे खिलाने को कुछ भी नहीं था ! हताश होकर रानी ने घास और जंगली कंदमूल से कुछ रोटियाँ पकाई ।

तब तक रोते-रोते राजकुमारी सो गई थी । अत: उन्होंने कुछ रोटियां खाकर एक रोटी बचाकर नन्हीं राजकुमारी के लिए रख दी । जब वह जागी और हाथ में रोटी लेकर जैसे ही उसने खाना शुरू किया, एक जंगली बिलाव झपटकर बालिका के हाथ से रोटी छीन कर भाग गया । घर में और रोटी नहीं थी ।

बालिका फिर जोर-जोर से रोने लगी । इस घटना ने राणा के बहादुर हृदय को भी पिघला दिया और वे भी अपनी मजबूरी पर फूट-फूट कर रो पड़े ।

भामाशाह की सहायता:

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इस भुखमरी ने उनकी हिम्मत तोड़ दी और उन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकार करने की दृष्टि से उन्हें एक पत्र भेजने का निर्णय किया । लेकिन ऐसा करने के ठीक पहले उनके पुराने मंत्री और मित्र भामाशाह ने उन्हें जंगल से ढूंढ निकाला और उनके चरणो में अपनी अपार धम्म-सम्पदा अर्पित करके उन्हे नई सेना तैयार करने की प्रेरणा दी ।

उन्होंने धन स्वीकार कर थोड़े ही समय में एक बड़ी सेना पुन: खड़ी कर ली । उसने अकबर के कई किलों पर पुन: कब्जा कर लिया और कई बस्तियों उनसे छीन ली चित्तौड़ पर कन्या न कर सका ।

उनकी प्रतिज्ञा:

चित्तौड़ पर कब्जा करने में असफल होने के बाद उन्होंने प्रतिज्ञा की कि जब तक वे चित्तौड़ पर पुन कब्जा नहीं करेंगे, तब तक बिना बिस्तर की खाट पर या घास-फूस पर सोयेंगे । आज तक उनके वंशज, उनकी इस प्रतिज्ञा के नाम पर अपने बिस्तरो पर घास-फूस के तिनके रख लेते हैं ।

राजपूतों में एक वर्ग ऐसा भी है जो घूमक्ष जीवन बिताता है । ये लोग अपना स्थायी घर नहीं बनाते । भारत की आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में बडे समारोहपूर्वक चित्तौड़-विजय उत्सव मनाया और बहुत-से घूमलू परिवारों ने चित्तौड़ को अपना स्थायी घर बनाया ।

उपसंहार भारत माता को राणा प्रताप जैसे सपूतो पर सदा गर्व रहेगा जिन्होंने मरते दम तक अकबर जैसे महान् शक्तिशाली सम्राट् के सामने घुटने नहीं टेके । बड़े धैर्य से उन्होंने अनेक कष्ट उठाए लेकिन अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की । वह सच्चा देशंभक्त था ।

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