मेरे बचपन के अनुभव पर अनुच्छेद | Paragraph on My Childhood Memories in Hindi

प्रस्तावना:

बचपन के दिन कितने सुहावने थे ? बचपन में मुझे सारा संसार उल्लासमय और आनन्ददायक लगता था । चिंता की कोई बात नहीं थी । जब कभी मैं चिल्ला पड़ता, कोई-न-कोई मुझे गोद में उठाकर पुचकार लेता । मैं किसी-न-किसी की गोद में होता था ।

मेरा जन्म बड़े अमीर और समृद्ध परिवार में नहीं हुआ था । इसलिए मेरी माँ ही सदा मेरी देखभाल किया करती थी । मुझे किसी नौकर या नर्स के सहारे नहीं छोड़ा गया ।

मेरा स्कूल, मेरे मित्र और अध्यापक:

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जब मैं छ: वर्ष का हुआ तो मुझे एक छोटे किन्तु अच्छे स्कूल में भर्ती करा दिया गया । जल्दी ही दो-तीन लड़कों से मेरी दोस्ती हो गई । आज तक मुझे बचपन के अपने दोस्तों तथा अध्यापको के चेहरे याद हैं । जब मैं छोटा था, तो मुझे अपने स्कूल के अध्यापक अच्छे नहीं लगते थे क्योंकि कभी-कभी वे मुझे पीट देते थे ।

यह बड़े हर्ष की बात है कि अब पीटने की क्या समाप्त हो गई है । हमें सवेरे ही स्कूल जाना पड़ता था । अन्य अधिकांश बच्चों की ही भांति प्रारभ में मुझे जल्दी उठना और स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता था । मेरी मां बड़े प्यार-दुलार से और कभी-कभी डांट कर उठाती ।

मैं बड़े अनमने ढंग से स्कूल के लिए तैयार होता था । लेकिन जब मैं कुछ बड़ा हुआ और स्कूल में दोस्त बन गए तो पढ़ाई में मेरी रुचि बढ़ गई और मैं बड़ी प्रसन्नता से रकूल जाने लगा ।

मेरी शरारतें, सैर और देर से लौटना:

दोपहर के बाद हम सब बच्चे सड़क पर तरह-तरह के खेल खेलते और आपस में शरारतें और छेड़छाड़ किया करते थे । मैं बचपन में बहुत शरारती और उधमी था । जब मैं पगड़ी लगाये किसी व्यक्ति को सड़क से गुजरता देखता, तो मौका पाते ही पीछे से उसकी पगडी खींच कर भाग जाता ।

वह व्यक्ति गुस्से से गालियाँ देता । एक बार मैंने राह में बैलगाड़ी खड़ी देखी । गाडीवान गाड़ी से उतर कर कुछ काम से थोड़ी दूर चला गया । मैं गाड़ी पर चढ़ गया और बैलों की रस्सियाँ पकड़कर खींच दीं । बैलगाड़ी लेकर भाग पड़े । कुछ दूर निकला था कि गाड़ीवान चिल्लाता हुआ पीछे भागने लगा ।

मैं गाड़ी से कूद गलियों में भाग लिया । उस दिन मुझे बड़ा मजा आया । मैंने जब उस घटना को बड़े गर्व से अपनी मा को सुनाया, तो उन्होंने मुझे बहुत डांटा और ऐसी शरारतें करने से रोका । उन्होंने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि मुझे कोई चोट नहीं आई ।

जब मैं केवल दस वर्ष का था, तो मैं पास के गाँव के एक बड़े तालाब पर दोस्तों के साथ निकल पड़ा । चूंकि हमारा यह कार्यक्रम एकाएक बना और दोपहर तक हमें लौट आना था, इसलिए मैंने अपने घर पर कोई सूचना नहीं दी । दैवयोग से हम लोग रात तक लौट पाये ।

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मेरे मां-बाप बड़े परेशान थे । दोपहर के बाद उन्होंने हर संभव जगह और गलियों में मेरी बड़ी तलाश की, किन्तु मैं नहीं मिला । अंत में वे बड़ी परेशानी की हालत में घर के दरवाजे पर खड़े सोचने लगे कि अब क्या किया जाये ।

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साथ ही वे मेरी राह भी तक रहे थे । इतने में उन्होंने मुझे दूर से आते देख लिया । वे गुरुसे से लाल होकर मेरी ओर लपके और एक हाथ से मेरी दोनों बाँहें पकड़कर मुझे जोर से थप्पड़ मार दिया । मैं रोने लगा । उन्होंने दूसरा हाथ उठाया ही था कि दौड़ती हुई मेरी मां ने आकर पिताजी का उठा हाथ पकड़ लिया ।

मुझे बुरी तरह डांट-फटकार कर छोड़ दिया गया । मेरे पिता बड़े सरल स्वभाव के हैं, लेकिन कभी-कभी वे बड़े कठोर बन जाते हैं लेकिन मां हमेशा मेरे प्रति बड़ी सदय रहतीं हैं । इसीलिए मैं पिता के बजाय मां को अधिक प्यार करता हूँ ।

परेशानियों और चिन्ता का प्रारंभ:

जैसे-जैसे मेरी उम्र बढ़ती गई, मुझे पढ़ाई की चिन्ता होने लगी तथा छोटे-छोटे सांसारिक मामलों में परेशानियाँ आने लगीं । अब मैं हाईस्कूल में पहुंच गया था । मुझे हाईस्कूल की परीक्षा की तैयारी करनी थी । साथ ही पन्द्रह वर्ष के किशोर के रूप में अब बाजार आदि से सामान वगैरह लाने में भी मुझे अपने पिता का हाथ बटाना पड़ता था । सुबह-सुबह सजिनशा लाने का काम तो मेरे जिसे ही था ।

उपसंहार:

बचपन चिन्ताओं से मुका होता है । बच्चे के कंधे पर न कोई जिम्मेदारी होती है और न उसे अपने कर्त्तव्य की परवाह होती है । बच्चे का काम खाना, पीना, सोना और खेलना होता है । रोटी खाते समय या दूध पीते समरा उन्से कभी यह ख्याल नहीं आता कि रोटी कैसे आई है या उसे लाने में कितनी मेहनत करनी पड़ी है ।

केवल धर को कर्ता ही यह जानता है । घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर भी बच्चे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । बच्चा सदैव अज्ञान और निष्कपटता की दुनिया में जीता है । वर्डसवर्थ ने बिल्कुल ठीक कहा है कि हम अपना बचपन स्वर्गिक वातावरण में बिताते हैं । बीते दिनो की मधुर यादें अभी तक मुझे पुलकित कर देती हैं ।

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