युवा असन्तोष एवं आन्दोलन पर अनुच्छेद | Paragraph on Youth Discontent and Agitation in Hindi
प्रस्तावना:
हमारे देश में भाषा, धर्म, जाति, वंश, लिंग, आयु आदि को लेकर अनेक रूढियाँ, अन्धविश्वास एवं भेदभाव विद्यमान है । ऐसी विसंगतियाँ हमारे देश एवं समाज को खोखला करती है । युवाओं की रूढिबद्ध छवि यह है कि वे उग्रवादी, विद्रोही, क्रान्तिकारी, विवेकहीन, अपरिपक्व एव रूढिवादी होते हैं । परन्तु यह सही नहीं है ।
जब सामाजिक व्यवस्था में व्याप्त विरोधाभास, राजनीति मे उत्पन्न भ्रष्टाचार, आर्थिक असमानताओं के कारण सभी व्यक्तियों मे देश एवं समाज के प्रति मोह भंग हो जाता है एवं वह किसी न किसी रूप में विद्रोही हो जाता है तो युवाओ से ही यह आशा की जाये कि वे पारम्परिक नैतिक मूल्यों एव आदर्शों के अनुसार चलें जब वे देखते हैं कि समाज की प्रत्येक संस्था चाहे कह शैक्षणिक हो, राजनीतिक, सामाजिक अथवा आर्थिक हो उनकी कथनी और करनी में चौडी खाई है तो उनमें असन्तोष उत्पन्न होता है और यही असन्तोष उत्तेजनापूर्ण आन्दोलनो मे परिवर्तित हो जाता है ।
युवा असन्तोष एवं आन्दोलन:
असन्तोष का अर्थ है अशान्त स्थिति । यह अशान्त स्थिति चाहे किसी भी क्षेत्र में हो, यह वास्तव में मोहभंग और नाराजगी की स्थिति होती है । युवा असंतोष समाज में युवाओं द्वारा सामूहिक कुण्ठा की अभिव्यक्ति हो छात्रों में व्याप्त असन्तोष ही छात्र आन्दोलन का कारण बनते हैं ।
युवा असन्तोष तीन रुपों में देखा जा सकता है- युवाओं में असन्तोष, युवाओं के कारण अशान्ति, देश में सामाजिक अशान्ति एवं उसका युवाओं पर प्रभाव । वास्तव मे असन्तोष अन्याय के प्रति धृणा की अभिव्यक्ति है । वस्तुत छात्र आन्दोलन एके ऐसा व्यवहार है जिसका उद्देश्य किसी को भी हानि अथवा चोट पहुँचाना नहीं होता, बल्कि यह एक सामाजिक विरोध है ।
युवा असन्तोष एवं आन्दोलन के कई रूप है, प्रदर्शन, नारेबाजी, हड़ताल, भूख-हड़ताल, रास्ता रोको, घेराव, परीक्षा का बहिष्कार, आदि छात्र आन्दोलन हिंसक एवं अहिसक दोनों ही तरह के हो सकते हैं । छात्र असन्तोष अथवा आन्दोलन के कई रूप है- प्रथम प्रत्यचकारी उत्तेजनापूर्ण आन्दोलन, युवा छात्र सत्तारूढ़ व्यक्तियों के साथ बैठकर अपनी समस्याओं पर उनके साथ चर्चा कर उनकी प्रतिक्रियाओं को परिवर्तित करने का प्रयास करते हैं और अपने दृष्टिकोण पर उनकी सहमति के लिए दबाव डालते हैं ।
यह कम महत्त्वपूर्ण विषयों जैसे-परीक्षा की तिथि को आगे बढ़ाने से लेकर महत्त्वपूर्ण विषयों जैसे शैक्षिक समितियों में प्रतिनिधित्व देना, विद्यार्थियों को निर्णयात्मक प्रक्रियाओं के साथ सम्बद्ध करना दोनो होता है । दूसरा प्रकार है विरोधात्मक उत्तेजनापूर्ण आन्दोलन । इसका मुख्य उद्देश्य सत्तारूढ व्यक्तियों को अपने दायरे मे रखना होता है ।
उदाहरण के- लिए विद्यार्थियों द्वारा विश्वविद्यालय के उत्तरपुस्तिका के पुनर्मूल्याकन पर घटा कर अंक देने के निर्णय के विकड किया गया आन्दोलन । तीसरा, स्वरूप है क्रान्तिकारी उत्तेजनापूर्ण आन्दोलन इसका उद्देश्य शैक्षणिक एवं सामाजिक व्यवस्था में व्यापक स्तरीय परिवर्तन लाना होता हे जैसे- विद्यार्थियो द्वारा अधिकारियों को बाध्य किया जाना कि उन्हे अनुतीर्ण न कर आगे को कक्षाओं में बढ़ा दिया जाए ।
युवा आन्दोलनों के कारण:
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विद्यार्थियों के उतेजनापूर्ण आन्दोलनो के अनेक कारण हैं जैसे शुल्क कम करना, छात्रवृत्ति बढ़ाना जैसे आर्थिक कारण, प्रवेश परीक्षा एवं अध्यापन के भालू प्रतिमानों मे परिवर्तन की माँग, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयो में ठीक से काम नहीं होना विद्यार्थियों और अध्यापकों के बीच टकराव के सबध, अपर्याप्त सुविधाएं, जैसे-छात्रावासों की कमी, उनमें दिए जाने वाले खराब भोजन, पेयजल की सुविधाओं का अभाव तथा युवा नेताओं का राजनीतिज्ञ द्वारा भडकाया जाना ।
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प्राय: वे युवक ही इन आन्दोलनों में भाग लेते हैं जो अप्रसन्न है कुण्ठित है, जिनके जीवन मे धन और पूर्ति का अभाव होता है एवं जो अपने लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर पाते है । अवसरसे का अभाव, बेरोजगारी, जाति पर आधोरित आरक्षण, असन्तोष एवं आन्दोलन को जन्म देते हैं ।
युवा असन्तोष एवं आन्दोलन को दूर करने के उपाय:
युवा उत्तेजना को नियंत्रित करना अति आवश्यक है । इसके लिए माता-पिता, शैक्षणिक सस्थाओं, राजनीतिकों नेताओं और प्रशासन व्यवस्था आदि सबका सहयोग आवश्यक है जिससे उनके अन्दर आशा, विश्वास, उत्साह, साहस, जागृति, आपसी प्रेम-सहयोग आदि की भावना पैदा ‘हो सके’ । उनके जोश एवं उत्साह को नियंत्रित करने के लिए उनका मार्गदर्शन करना, अति आवश्यक है ।
प्रत्येक शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थाओं में छात्रों के साथ अध्यापकों, शैक्षणिक प्रशासकों का सहरनम्बध होना चाहिए जिससे युवा छात्र छात्राओं की शिकायतों की पहचान कर उनका समाधान किया जा सके । राजनीतिक दलो में छात्रों के राजनीति में भाग लेने के लिए एक विचारे सहिता पर सहमति होनी चाहिए ।
उपसंहार:
निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि युवा शक्ति को जो अभी तक उपेक्षित रही है उचित नेतृत्व एवं मार्गदर्शन द्वारा विकासात्मक कार्यों, सामाजिक एवं राजनैतिक अन्याय एवं शोषण को दूर करने के लिए और राष्ट्रीय सामूहिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए लगाया जाये । युवाओं में परस्पर सहयोग, सदभावना, सहिष्णुता, आदर प्रेम, नैतिक मूल्यों एवं आदर्शो को पैदा करने की आवश्यकता है ।