विनोबा भावे पर अनुच्छेद | Paragraph on Vinoba Bhave in Hindi

1. प्रस्तावना:

महाराष्ट्र भूमि अपने उन महान विचारकों, समाजसुधारकों, सन्तों के कारण जानी जाती है, जिन्होंने अपने कार्यों, विचारों एवं जीवन दर्शन से अपने देश को नहीं, अपितु विश्व को भी नयी प्रेरणा व विचारशक्ति दी है । ऐसे ही सन्त, समाज- सुधारक, राजनीतिज्ञ, शैक्षिक दर्शन के लिए जाने जाते हैं- सन्त विनोबा भावे ।

2. जन्म परिचय:

विनोबा भावे का जन्म 11 सितम्बर 1895 का महाराष्ट्र के कुलावा जिले में गगोड़ा ग्राम में एक सदाचारी ब्राह्मण परिवार में हुआ था । उनका मूल नाम विनायक नरहरि भावे था । उनके पिता पण्डित श्री नरहर शभूराव बड़ौदा राज्य में टैक्सटाइल इंजीनियर थे ।

उनकी माता रूक्मिणी देवी अत्यन्त धर्मपरायण महिला थीं । ब्राह्मण परिवार होने के कारण उनका परिवार धर्म ग्रन्थों के प्रति गहरी निष्ठा रखता था । साथ ही धार्मिक विधि-विधान का भी नियमित पालन होता रहता था ।

बाल्यकाल से विनोबा को प्राकृतिक परिवेश से अत्यन्त प्रेम था । देशभक्ति की प्रेरणा उन्हें अपने चाचा गोपाल भावे से मिली । कुशाग्र बुद्धि विनोबा ने 8 वर्ष की अवस्था में सभी धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन पूरा कर लिया था । 10 वर्ष की अवस्था में उपनयन के साथ ब्रह्मचर्य का संकल्प ले लिया ।

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25 मार्च 1916 को इंटरमीडियट करने के पश्चात् वे अहमदाबाद स्थित गांधीजी के आश्रम में पहुंचे । वहां से कुछ समय पश्चात् सूरत, उत्तरप्रदेश पहुंचकर भिक्षुक की तरह जीवन बिताया । 1920 में वर्धा आश्रम के संचालन का कार्य उन्होंने अपने कन्धों पर ले लिया । गांधीजी की तरह सत्य, अहिंसा तथा सत्याग्रह के माध्यम से अंग्रेज विरोधी आन्दोलनों का नेतृत्व किया । नागपुर में झण्डा सत्याग्रह कर सजा काटी ।

1940 में प्रथम सत्याग्रही के रूप में विनोबा ने अपना भाषण पवनार में दिया । 9 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आन्दोलन के सिलसिले में जेल चले गये । 9 जुलाई 1945 को जेल से रिहा होकर पवनार आश्रम का भार पुन: अपने कन्धों पर ले लिया । 15 अगस्त को आजादी मिलते ही बंगाल में दीन-दुखियों के कष्ट निवारण के लिए निकल पड़े ।

उन्होंने सत्याग्रह पर विश्वास रखते हुए सर्वोदय समाज की स्थापना की । 7 मार्च 1951 में पैदल यात्रा करते हुए भूदान आन्दोलन की शुराआत की । नरगोड़ा के पोचमपल्ली गांव में 13 अप्रैल 1951 को भूमिहीन हरिजनों की पुकार सुनी । वहां के जमींदार रामचन्द्र रेड्डी ने 100 एकड़ जमीन देकर विनोबा के भूदान यज्ञ की शुराआत की । इस तरह उन्होंने भूदान के लिए कई क्षेत्रों की पदयात्रा की ।

1960 में चम्बल के डाकुओं का आत्मसमर्पण करवाया । 1974 को अखिल भारतीय स्त्री सम्मेलन में भाग लेते हुए स्त्री शक्ति के महत्त्व का लोगों को ज्ञान कराया । 25 दिसम्बर 1974 को मौन व्रत धारण किया, साथ ही गौवध के विरोध में अनशन शुरू किया । अनशन के दौरान उनकी तबीअत बिगड़ते देखकर मोरारजी देसाई ने पशु संवर्धन को केन्द्रीय सूची में शामिल किया ।

गांधी के सच्चे अनुयायी, मद्य निषेध तथा सामाजिक बुराइयों के लिए निरन्तर संघर्ष करते हुए अपने भूदान आन्दोलन को जारी रखा । पवनार आश्रम में रहते हुए 15 नवम्बर 1982 में अपने शरीर का त्याग कर दिया । विनोबाजी मैग्सेसे पुरस्कार (1958) तथा 1983 के भारत रत्न से सम्मानित भी हुए हैं । उन्होंने ‘मैत्री’ तथा महाराष्ट्र धर्म नामक पत्रिका का सम्पादन भी किया था ।

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3. विनोबाजी का जीवन दर्शन:

विनोबाजी ने धर्म को आध्यात्म से अलग माना । वे आध्यात्म को व्यावहारिक व निरपेक्ष मानते थे । उनका विचार था कि- ”विज्ञान के युग में धर्म नहीं टिकेगा, परन्तु आध्यात्मिकता जरूर टिकेगी ।” उन्होंने आध्यात्मिकता को मानवता से जोड़ा । विनोबाजी का सर्वोदय दर्शन गांधीजी के सिद्धान्तों पर आधारित था । सर्वोदय का शाब्दिक अर्थ-सबका उदय, सभी व्यक्तियों का विकास है ।

रस्किन की पुस्तक अन दू दी लास्ट का गुजराती में अनुवाद करते हुए उन्होंने उसमें सर्वोदय दर्शन को सभी प्राणियों की भलाई के लिए परिभाषित किया है । आर्थिक समानता हेतु उन्होंने कुटीर उद्योग-धन्धों के साथ-साथ प्रत्येक गांव को आत्मनिर्भर बनाने पर बल दिया था । सैकड़ों-हजारों बीघे जमीन के मालिक भूमिहीनों को कुछ भूमि दान में दे दें. तो सर्वोदय आन्दोलन से मनुष्य का उत्थान होगा ।

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गांधीजी की तरह उनका सत्याग्रह दर्शन था । वे अहिंसा को भी महत्त्व देते थे । मन में हिंसक और अहिंसक दोनों प्रवृतियां होती हैं । अत: मनुष्य को अहिंसा का पालन करना चाहिए । जनतन्त्र शासन प्रणाली को सर्वश्रेष्ठ मानते हुए वे उसे भ्रष्टाचार, जातिवाद, साम्प्रदायवाद से दूर ही रखना चाहते थे । वे स्वतन्त्रता, समानता तथा लोककल्याणकारी, निष्पक्ष लोकतन्त्र को मानते थे । शासक को जनता का सेवक व लोकतन्त्र का सन्तरी होना चाहिए ।

4. विनोबाजी के शैक्षिक विचार:

विनोबाजी ने शिक्षा को एक आन्तरिक प्रक्रिया माना है, बाह्य ज्ञान नहीं । वे शिक्षा का उद्देश्य बालक को उत्तम संस्कार देने के साथ-साथ शरीर, मन, आत्मा का विकास मानते थे । सामाजिक विकास सभी व्यक्तियों का विकास, आर्थिक स्वावलम्बन का विकास, जीवन जीने की कला का विकास, आध्यात्मिक विकास उनके शैक्षिक उद्देश्य थे ।

बालक के पाठ्यक्रम में सामाजिकता के विकास तथा वर्धा शिक्षा योजना के पाठ्यक्रम को महत्त्व दिया । क्रियात्मक विधि, श्रुत विधि, विश्रामसहित शिक्षण, भ्रमण विधि को श्रेष्ठ शिक्षण विधि माना । स्त्रियों की शिक्षा पर उन्होंने विशेष बल दिया ।

5. उपसंहार:

भूदान यज्ञ वास्तव में अहिंसा क्रान्ति का ही दूसरा नाम है । प्रत्येक भूमिहीन परिवारों को 5-5 एकड़ भूमि दान करवाने का उनका जो लक्ष्य था, उसमें उन्होंने 25 लाख 15 हजार 101 एकड़ भूमि 2 लाख 36 हजार 22 दाताओं से प्राप्त की ।

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यह उनकी महानतम उपलब्धि और समाज को एक बड़ी देन है । वे गांधीजी के सच्चे उत्तराधिकारी थे । विनोबाजी ने रामराज्य का स्वप्न देखा था, जिसमें भूदान, ग्रामदान, सम्पत्तिदान तथा मानव सेवा का आदर्श सम्मिलित था ।

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