सहकारी समितियाँ पर अनुच्छेद | Paragraph on The Co-operative Society in Hindi

प्रस्तावना:

‘सहकारिता’ का आशय आपस में मिल-जुलकर एक-दूसरे की सहायता करना है । इस प्रकार सहकारी समितियाँ वे संस्थायें हैं, जो सदस्यों की आपसी सहायता के लिये बनाई जाती हैं । सहकारिता आन्दोलन मुख्य रूप से गरीबों का आन्दोलन है । निर्धनों की भलाई के लिये इसे चलाया गया है ।

भारत में सहकारिता की आवश्यकता:

भारत की लगभग 80 प्रतिशत जनता गाँवों में रहती है, जिनका मुख्य पेशा खेती है । भारत के किसान बड़े गरीब है । वे हमेशा कर्ज़ में डूबे रहते हैं और महाजनों तथा साहूकारों की दया पर निर्भर रहते हैं । वे महाजनों से कर्ज लिये बिना न तो अपनी खेती का काम ही ठीक से कर पग्ते हैं और न अतिरिक्त खर्च का भार उठा पाते हैं ।

गाँव के महाजन और साहुकार इनसे मनमाना ब्याज वसूल करते है । एक बार कर्ज मे फरन जाने के बाद वे पीढ़ी-दर-पीढ़ी कर्ज नहीं चुका पाते और उनके चंगुल में फंसे रहते है । इस बुराई को दूर करने के लिये तथा निर्धन किसानों की सहायता के लिये आज से लगभग अस्सी वर्ष पूर्व सहकारी ऋण संरथाओं के रूप में सहकारिता आन्दोलन का सूत्रपात हुआ था ।

उपयोगिता:

मुख्य रूप से कर्ज की व्यवरथा के लिये प्रारंभ की गई सहकारी संस्थाओं ने आज अनेक रूप ले लिए हैं । देश में अनेक सहकारी संस्थायें हैं जिनके करोडों व्यक्ति सदस्य हैं । ऋण का प्रबन्ध करने वाली सहकारी संस्थायें अपने सदस्यों को उचित ब्याज पर धन उपलब्ध कराती हैं ।

सहकारी विपणन संस्थायें अपने सदस्यों को उचित मूल्यों पर मण्डियों में बेचती हैं, जिससे वे बिचौलिये के शोषण से बच जाते है । सहकारी दुग्धशालायें गावों से दूध इकट्‌ठा करके शहरों में बेचने का काम करती हैं और सदस्यो को उनके दूध की उचित कीमत दिलाती हैं ।

सहकारी भण्डार लोगों को उचित मूल्य पर ठीक किस्म की वस्तु, प्रदान करके उनकी बचत करते हैं और व्यापारियों द्वारा मनमानी कीमत वसूलने पर अंकुश लगाती हैं । इसी प्रकार सहकारी आवास समितियां लोगों को सस्ते मकान उपलब्ध कराते हैं । आज जीवन के लगभग हर क्षेत्र में सहकारी सस्थायें अपने सदस्यों के कल्याण में लगी हुई हैं ।

लाभ:

सहकारिता आन्दोलन ने ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है । इन समितियों के सदस्यों के बीच भाईचारे की भावना और मिल-जुलकर काम करने की प्रवृति पैदा होती है और अन्तत: लोगों में सच्चे लोकतंत्र की भावना का संचार होता है ।

ADVERTISEMENTS:

सहकारी विपणन संस्थाओं ने अनेक किसानों को महाजनो और साहूकारों के चँगुल से निकालने में मदद दी है और बिचौलियों के शोषण से रक्षा की है । इन समितियों के द्वारा किसानों में बचत करने और आपस में मिल-जुलकर समस्या का सामना करने की आदत डाली गई है ।

सहकारी खेती:

ADVERTISEMENTS:

भारत में बहुत-से किसानों की जोत आवश्यकता से कम है । इतनी कम भूमि पर भली-भांति खेती नहीं की जा सकती । आधुनिक किस्म के यंत्रों तथा उन्नत खेती के साधनों का प्रयोग छोटे-छोटे खेतों में नहीं हो सकता । सहकारी कृषि समितियां इस क्षेत्र में बड़ी उपयोगी हो सकती है । इन संस्थाओं के सभी सदस्य मिल-जुलकर खेती करते है और उपज को भूमि के अनुपात से बाँट लेते है ।

ऐसा करने पर हर किसान को निजी प्रयास से की गई खेती की तुलना में अधिकु उपज मिल जाती है । भारत में सहकारी खेती की अभी शुरूआत ही हुई है । इसे बढ़ावा देकर किसानों की आर्थिक दशा में सुधार तो होगा ही, साथ-साथ देश का उत्पादन भी बढ़ेगा ।

उपसंहार:

सहकारी संस्थाओं की इतनी उरायोगिताहएँ तथा लाभों के होते हुए भी देश में इनकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है । कुछ संस्थाये काफी समय से बड़ा उपयोगी काम सुचारु रूप से चला रही है, लेकिन अनेक ऐसी संस्थायें भी हैं, जिनके सदस्य स्वार्थ के वशीभूत होकर गोलमाल कर देते हैं ।

सहकारी क्का सस्थाओं के पास धन की कमी के कारण वे गांवों से महाजनों और साहूकारों का उन्तुलन करने में असमर्थ रही हैं । समिति का प्रत्येक सदस्य इनमें सक्रिय रूप से भाग लेकर और जागरूक रहकर इन्हें सफल बना सकता है । देश का भविष्य बहुत-कुछ सहकारी संस्थाओं की सफलता पर निर्भर करता है ।

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