सायंकालीन सैर पर अनुच्छेद | Paragraph on An Evening Walk in Hindi

प्रस्तावना:

हर आदमी भली-भाति जानता है कि टहलना एक बड़ी उपयोगी और सुखद कसरत है । इससे शरीर स्वस्थ रहता है और बदन में रकूर्ति आती है । गरमी के दिनों में शाम की सैर के आनन्द से कौन वंचित रहना चाहेगा ?

शाम से पूर्व दिन का वर्णन:

उस दिन बड़ी गरमी थी । सारा दिन बुरी तरह से तपता रहा । हम लोगों ने समूचा दिन बड़ी बैचेनी से गुजरा । सूरज आग उगल रहा था । तेज धूप में आँखें चौंधिया जाती थीं ।

जमीन भट्टी की भाति तप गई थी । बरामदे में को पैर जमीन पर पैर रखते ही ऐसा लगा, जैसे पैरो में छाले पड़ गए हों । पखों से गरम हवा निकल रही थी । पसीना सूखने का नाम नहीं लेता था । हम सभी दिन छिपने और शाम होने की बडी बेसब्री से प्रतीक्षा करते रहे ।

सूरज ढ़लते ही हम कमरे से बाहर निकले । अब मौसम बड़ा सुहावना हो चला था । मैंने और मेरे भाई ने फौरन ही इस सुहावने मौसम मै बाहर निकल कर कुछ देर टहल आने का निर्णय किया और घर से बाहर निकल पड़े ।

सैर के दौरान आनन्द:

घर से बाहर निकलते ही हमें अपना मित्र पास की एक चाय की दुकान पर दिखा । उसने हमें आवाज देकर बुला लिया । उसने अपने लिए चाय का ऑर्डर दे रखा था । हमारे पहुँचते ही उसने हम लोगों के लिए भी चाय बनवाई । हम तीनो चाय पीकर बाहर निकले । जब मैंने सैर की बात बताई, तो वह भी हमारे साथ चल पड़ा ।

हम लोग टहलते हुए शहर की भीड़भाड़ से भरी सड़कों को पीछे छोड़ शहर से बाहर निकल आए । अब हम खाली सड़क पर आ गए, जहाँ कोई शोर-शराबा नहीं था । धीरे-धीरे टहलते हुए लगभग आधा घटे में साबरमती के तट पर जा पहुँचे । यही ठंडी-ठंडी मद बयार चल रही थी । बदन में हवा लगते ही हम तरोताजा हो गए ।

नदी में पानी कम था । बहता हुआ जल बडा सुन्दर लग रहा था । पानी में हल्की-हल्की लहरें उठ रही थीं । जल की कल-कल ध्वनि मधुर संगीत-सी लग रही थी । हम लोग नदी के किनारे टहलने लगे । एक उचित स्थान देखकर हम लोग नदी के तट पर बैठ गए और जूते उतार कर नदी में पैर डाल दिए ।

ADVERTISEMENTS:

बहते पानी में पैरों को ऊपर-नीचे करने लगे । जल की शीतलता से हमारा समूवा शरीर रोमांचित हो गया । पैरों के साथ लहरों के टकराने की ध्वनि हमें आहलादित कर रही थी । इस समय सूरज पश्चिम में अरस हो रहा था ।

ADVERTISEMENTS:

वह लाल-लाल तपा हुआ गोला जैसा लग रहा था । धीरे-धीरे पहाड़ियों और वृक्षों के पीछे सूरज अस्त हो रहा था । नदी के जल में उसकी लाली एक अजीब-सी रहस्यमयता दिखा रही थी । ऐसा लग रहा था कि नदी का निनाद स्पूर्य का मृत्यु गीत गा रहा हो ।

हम लोग जल से पैर निकालकर अपने जूते पहनकर फिर आगे टहलने लगे । कुछ दूरी पर हम लड़कों का एक झुण्ड दिखाई दिया । वे नदी तट की बालू में गा रहे थें । कुछ लोग ट्रक-दूसरे पर बालू उछालकर खेल रहै थे । सभी खूब उछल कूद मचा कर आनन्दित हो रहे शे । एक तरफ कुछ लडकियाँ बालू के घरौंदे बना रही थीं । सभी दिन की गरमी को भुलाकर शीतल शाम का आनन्द लै रहे थे ।

लौटते समय रात्रि की छटा:

अब आसमान में तारे दिखाई को लगे । ऐसा लग रहा था कि आकाश रूपी छत पर हजारों दीपक लटक रहे हो । चन्द्रमा अपनी समूची छटा से आसमान पर दिखाई देने लगा । चिडियों के झुण्ड अपने घोसलों की ओर तेजी से लौटते दिखाई दे रहे थे । हम अभी तक टहलने से नहीं थके थे । मन ऐसा कर रहा था कि टहलते-टहलते हम सब साबरमती के मुहाने तक जा पहुंचे । इतने में मेरा भाई पुकार उठा कि वह थक गया है ।

उपसंहार:

हम फौरन ही वापरा लौट पड़े । चूँकि मेरा भाई बहुत थक गया था और हम दोनों को भी अब कुछ थकान महसूस होने लगी थी, इसलिए हम लोग नदी तट से निकट की सड़क पर आ गए और वही से एक रिका तेकर घर पहुँच गए । खाना खाकर हम फौरन लेट गए और शीघ्र ही गहरी निद्रा में सो गए ।

Home››Paragraphs››