जवाहर लाल नेहरू की जीवनी | Biography of Jawaharlal Nehru in Hindi

1. प्रस्तावना:

पण्डित जवाहरलाल नेहरू बहुमुखी प्रतिभाशाली व्यक्ति थे । वे एक कुशल राष्ट्रनायक, राजनीतिज्ञ, उच्चकोटि के लेखक, महान विचारक, उच्चकोटि के वक्ता एवं प्रभावी आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे । वे भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री थे । उन्हें नये भारत का निर्माता भी कहा जाता है ।

वे लोकतन्त्र एवं धर्मनिरपेक्षता के आधार स्तम्भ थे । भारत के सुखद भविष्य के लिए उनकी मिश्रित अर्थव्यवस्था, पंचवर्षीय योजना तथा पंचशील के सिद्धान्त महत्त्वपूर्ण देन थी । उन्होंने विश्व को तटस्थ राष्ट्रों का एक संघ दिया । उन्हें महात्मा गांधी का सच्चा उत्तराधिकारी माना जाता था ।

2. प्रारम्भिक जीवन:

पण्डित जवाहरलाल नेहरूजी का जन्म इलाहाबाद के आनन्द भवन में 14 नवम्बर 1889 को हुआ था । उनके पिता मोतीलाल नेहरू एक सुप्रसिद्ध वकील थे । उनकी माता स्वरूपरानी देवी एक विदुषी महिला थीं । दिल्ली में नहर के निकट रहने के कारण उनका परिवार नेहरू कहलाया । उनका पालन-पोषण एक राजकुमार की तरह हुआ ।

सन् 1904 में मोतीलाल नेहरू ने अपने इस पुत्र को मुक्त वातावरण में शिक्षा देने के लिए इंग्लैण्ड भेजने का संकल्प लिया । वहां उन्हें हैरो कॉलेज में भर्ती करा दिया गया । सन् 1907 में पण्डित नेहरू ने एंट्रेंस की परीक्षा उत्तीर्ण की और ट्रिनिटी केम्ब्रिज कॉलेज में प्रवेश ले लिया । वहां से बी०ए० ऑनर्स किया । उनसे प्रसन्न होकर उन्हें एम०ए० की डिग्री ऐसे ही प्रदान कर दी गयी ।

सन् 1912 में उन्होंने इनर टेम्पुल से वार एट लॉं की डिग्री प्राप्त की । इसके बाद भारत लौट आये । उनका विवाह कौल परिवार की कन्या कमला से हुआ था । कमला नेहरू की तीन सन्तानों में से एक इन्दिरा ही बच गयीं ।

जवाहरलाल नेहरूजी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से अपने पिता मोतीलाल के साथ वकालत शुरू की । सन् 1921 में सक्रिय राजनीति में आने के बाद वे राष्ट्र सेवा के लिए पूर्णत: समर्पित हुए । 1918 में कांग्रेस महासमिति के सदस्य चुने गये ।

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1927 में वे सोवियत सरकार के आमन्त्रण पर रूस गये । सन् 1928 में लखनऊ में साइमन कमीशन के विरुद्ध प्रदर्शन किया । 1929 में वे कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में अध्यक्ष निर्वाचित हुए और उन्होंने भारत की पूर्ण स्वतन्त्रता का शंखनाद किया । 1932 में इलाहाबाद नगरपालिका के सर्वसम्मत अध्यक्ष चुने गये ।

वे भारतीय ट्रेड यूनियन नागपुर अधिवेशन के अध्यक्ष रहे । नमक सत्याग्रह तथा सविनय अवज्ञा आन्दोलन में उनकी भूमिका अग्रणी रही । 1936 में 2 बार कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए । 1939 में चीन की यात्रा की । क्रिप्स आयोग के आगमन में सन् 1942 में उन्होंने समझौता वार्ता में भाग लिया ।

भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के बाद 1945 में शिमला सम्मेलन में भाग लिया । भारत के लिए संविधान निर्मात्री सभा का लक्ष्य निर्धारक प्रस्ताव उन्हीं के द्वारा 30 दिसम्बर 1946 को प्रस्तुत किया गया । भारत के संविधान निर्माण में उनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण रही ।

3. उनके कार्य:

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नेहरूजी ने अपने जीवन में इन महत्त्वपूर्ण कार्यों के साथ-साथ जो पुस्तकें लिखी हैं, उनमें प्रमुख हैं- सोवियत रक्षा, लेटर्स फ्रार्म फादर टू हिज डॉटर, विदइ इण्डिया, द डिस्कवरी ऑफ इण्डिया, चायना स्पेन एण्ड दी वार, लेटर्स टू हिज सिस्टर्स, विजित टू अमेरिका ।

इनके अतिरिक्त उनके भाषणों के संग्रह बिफोर एण्ड आफ्टर इण्डिपेण्डेंस हैं, जिसके 8 खण्ड हैं, जो उनके व्यक्तित्व को प्रतिबिम्बित करते हैं । 27 मई 1964 को उनका देहावसान हो गया । सुप्रसिद्ध भौतिकशास्त्री अलबर्ट आइंस्टीन ने जवाहरलाल नेहरू को आने वाले कल का प्रधानमन्त्री कहा था । नेहरूजी विश्वशान्ति के पुजारी थे ।

4. नेहरूजी के विभिन्न विचार:

नेहरूजी के आर्थिक विचारों में आर्थिक नियोजन का विशेष महत्त्व है । उन्होंने पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से आवश्यकताओं के अनुरूप देश का विकास किया । उन्होंने उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया । नेहरूजी ने लोककल्याणकारी राज्य की स्थापना की ।

नेहरूजी के राजनीतिक विचारों में अहिंसावादी विचार गांधीजी से प्रभावित थे । वे नैतिकता पर आधारित लोकतन्त्र पर विचार करते थे । वे उसी सरकार को अच्छा समझते थे, जिसका शासनकाल अल्प समय का हो । लघु एवं कुटीर उद्योगों के साथ-साथ वे औद्योगिक रूप से विकसित राष्ट्रों के समर्थक थे ।

वे अन्तर्राष्ट्रीयता के समर्थक थे । उनके धार्मिक विचारों में कर्मकाण्डों का विरोध अधिक झलकता है । वे पाश्चात्य दर्शन से अधिक प्रभावित थे । उनके सामाजिक विचारों में लोकतन्त्रात्मक समाजवाद का रूप झलकता है । नेहरूजी धर्मनिरपेक्षतावाद पर आधारित राष्ट्रवाद के पक्षधर थे । उग्र राष्ट्रवाद के विरोधी थे ।

5. विश्वशान्ति और नेहरूजी:

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नेहरूजी विश्वशान्ति के पुजारी थे । वे एक व्यावहारिक राजनीतिज्ञ थे । अत: उन्होंने उन कारणों को खोजने का सदैव प्रयास किया, जो युद्धों को जन्म देते है । विश्वशान्ति के लिए उनके द्वारा किये गये प्रयास सर्वविदित हैं ।

6. नेहरूजी की विदेश नीति:

नेहरूजी की गुटनिरपेक्षतावादी नीति विश्व प्रसिद्ध रही है । उनकी तटस्थ गुटनिरपेक्षतावादी नीति को आज भी स्वीकारा जाता है । नेहरूजी ने पंचशील सिद्धान्तों को समप्रभुता व अन्तर्राष्ट्रीय सौहार्द्र के लिए आवश्यक माना है । एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र की प्रादेशिकता, अखण्डता एवं सम्प्रभुता का आदर करे ।

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राष्ट्र के आन्तरिक मामलों में अहस्तक्षेप, अनाक्रमण, समानता एवं पारस्परिक लाभ, शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व एवं आर्थिक सहयोग इनके पंचशील सिद्धान्तों में शामिल थे । उनके पंचशील सिद्धान्तों को बहुत-से राष्ट्रों ने अपना समर्थन दिया । नेहरूजी की विदेश नीति की आलोचना भी हुई । इसी विदेश नीति के तहत 1962 में चीनी आक्रमण से उन्हें काफी आघात पहुंचा ।

7. उपसंहार:

पण्डित जवाहरलाल नेहरू भारत के ही नहीं, अपितु विश्व के महान् नेता थे । उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है । औद्योगीकरण को बढ़ावा देकर उन्होंने भारत को विश्व के विकासशील व समृद्ध राष्ट्रों की श्रेणी में ला खड़ा किया । लोकतन्त्र एवं धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्तों को उन्होंने सदैव महत्त्व दिया ।

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