मानवेन्द्र राय पर निबन्ध | Essay on Manabendra Ray in Hindi

1. प्रस्तावना:

मानवेन्द्र राय राष्ट्रीय क्रान्तिकारी के रूप में भारतीय राजनीति में अपने महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए चिरस्मरणीय रहेंगे । वे नवमानववाद, उदारवाद, मार्क्सवाद से प्रेरित थे । धर्म को मानव मस्तिष्क के लिए अफीम की तरह मानते थे । अत: उनकी इस धर्म सम्बन्धी अनास्था को व उनके मानवतावादी मूल्यों को यद्यपि तत्कालीन समय में स्वीकारा नहीं गया, तथापि उनके विचार कई मायनों में प्रेरणास्त्रोत बने रहेंगे ।

2. जीवन परिचय:

मानवेन्द्र राय का जन्म सन् 1888 में बंगाल के अरबालिया गांव में हुआ था । उनका जन्म नाम नरेन्द्र भट्टाचार्य था । एक भूमिगत क्रान्तिकारी के रूप में अपने जीवन की शुरुआत करते हुए बंग-भंग आन्दोलन 1905 में अपनी महती भूमिका निभायी । वे भारत, जर्मनी क्रान्तिकारी षड्यन्त्र के सूत्रधार थे । 1907 में कलकत्ता के पास चिंगरीपोड़ा रेलवे स्टेशन डकैती के राजनीतिक अपराधी घोषित किये गये ।

भारत में क्रान्तिकारी आन्दोलन के लिए शस्त्र जुटाने जर्मनी भेजे गये । वहां से अंग्रेज गुप्तचरों से बचते-बचाते चीन, जापान व अमेरिका पहुंचे । यहां लाला लाजपतराय से आर्थिक सहायता प्राप्त कर एक अमेरिकन महिला एवलिन से विवाह किया । वे भारत को जर्मनी से सहायता लेकर स्वतन्त्र कराना चाहते थे । गुप्तचरों ने उन्हें ढूंढ़कर गिरफ्तार कर लिया ।

जमानत से छूटते ही वे मैक्सिको पहुंचे । वहां एक विचारक, लेखक तथा साम्यवादी नेता के रूप में नया जीवन प्रारम्भ किया । वहां से रूस चले गये । रूस में वे लेनिन के अन्तरंग शिष्य और प्रशंसक बन गये । उनकी निर्भीकता और योग्यता से प्रभावित होकर लेनिन ने उन्हें अफगानिस्तान में रूस का राजूदत बनाना चाहा । रूस में रहकर वे लेनिन के दो महान शिष्य-टाटस्की और स्टालिन से अपनी घनिष्ठता बनाने में सफल रहे । यहां रहकर एशिया के साम्यवादी नेता के रूप में प्रतिष्ठत हो गये ।

1922 में बर्लिन में रहकर भारत की स्वतन्त्रता हेतु पुन: प्रयासरत हो गये । गांधीजी के विचारों से उनकी सहमति नहीं बन पायी । अत: राजनीति में न चाहकर भी उन्हें कांग्रेस से अलग होना पड़ा । कांग्रेस की एक शाखा वे जर्मनी में स्थापित करना चाहते थे ।

उनके साम्यवादी विचारों के कारण 1930 में भारत लौटते ही उन्हें 6 वर्षों के लिए जेल भेज दिया गया । जेल में उन्होंने ”फिलोसोफिकल कोन्सीक्वेंसेज आफ माडर्न साइन्स” नामक 9 खण्डों का ग्रंथ लिखा । 1936 में जेल से रिहा होकर कांग्रेस के सदस्य बन गये । नेहरू तथा सुभाष से उनका विशेष सम्बन्ध रहा । उनके सामाजिक तथा आर्थिक कार्यक्रम को गांधीजी के विचारों से भिन्न मानते हुए अस्वीकार कर दिया गया ।

1940 में राय ने रेडिकल डैमोक्रेटिक दल की स्थापना की । द्वितीय महायुद्ध के समय फासीवाद का जमकर विरोध किया । 1942 के कांग्रेस के भारत छोड़ो आन्दोलन को उन्होंने फासीवाद तथा अदूरदर्शिता की संज्ञा दी । कुछ आलोचक उन्हें राष्ट्र विरोधी ब्रिटिश समर्थक कहकर आरोपित करते रहे । राय ने श्रमिकों तथा किसानों के लिए इण्डियन फेडरेशन ऑफ लेबर का संगठन किया ।

ADVERTISEMENTS:

श्रमिकों और किसानों की मुक्ति के बिना समाज की मुक्ति नहीं हो सकती, यह कहकर एक नया सामाजिक पुनर्निर्माण सम्बन्धी दर्शन रखा, जिसे उग्रमानववाद और नवमानववाद की संज्ञा दी गयी । 1948 में उन्होंने दलगत राजनीति से दूर रहकर स्वतन्त्र लेखन, चिन्तन किया । इण्डियन रिनेसां इंस्टीट्‌यूट देहरादून में कार्य साधना करते हुए 25 जनवरी 1954 को अपनी अन्तिम सांस ली ।

3. उनके विचार:

ADVERTISEMENTS:

एक तरफ तो वे कट्टर मार्क्सवादी थे, तो दूसरी ओर मार्क्सवाद का विरोध करते हुए उन्होंने नवमानववाद की स्थापना की । उनका विचार था कि- ”अच्छा व्यक्ति अच्छे समाज की रचना कर सकता है । व्यक्ति समाज का आधार है ।” पूंजीवाद को सभी बुराइयों की जड़ मानते थे ।

राज्य केवल साधन है, साध्य नहीं, ये उनके विचार थे । राष्ट्रवाद को फासीवाद का प्रेरक मानते हुए वे उसके कट्टर आलोचक थे । कुछ समय पश्चात् उन्हें साम्यवादी विचारधारा से इसीलिए चिढ़ हो गयी; क्योंकि साम्यवादी अन्तर्राष्ट्रीयवाद का प्रचार करते हुए व्यवहार में राष्ट्रवादी थे ।

उनका राजनैतिक दर्शन वैज्ञानिक सिद्धान्त पर आधारित था । वे धार्मिक आडम्बरों में अविश्वास रखते थे । भौतिकतावादी विचारों के वे समर्थक थे । कुछ अर्थों में वे यथार्थवादी भौतिकता से प्रेरित थे । समाजवाद में उनका विश्वास था । आर्थिक विकेन्द्रीयकरण के साथ-साथ वे मानव स्वतन्त्रता के समर्थक थे । गुट निरपेक्षतावादी नीति को उन्होंने श्रेष्ठ माना ।

4. उपसंहार:

श्री मानवेन्द्रनाथ राय नवमानववाद को सर्वश्रेष्ठ मानते थे, जिसके द्वारा मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता बन सकता है, ऐसा उनका विचार था । इस वाद में न तो राष्ट्रवाद की भावना का समावेश है और न ही रंगभेद का । उन्होंने विचारों में मानव की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को सर्वोपरि माना है । श्री राय की इस मान्यता के समर्थक और आलोचक दोनों ही थे, किन्तु उनका यह नवमानवतावादी दर्शन अपना विशिष्ट स्थान रखता है ।

Home››Personalities››