मैक्सिम गोर्की पर निबंध | Essay on Maxim Gorky in Hindi
1. प्रस्तावना:
मैक्सिम गोर्की का रूसी साहित्य में वही स्थान है, जो भारतीय कथा साहित्य में प्रेमचन्द का है । गोर्की ने अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रेमचन्द की तरह तत्कालीन सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक व्यवस्था पर अपनी लेखनी चलाते हुए जन जागृति लाने का महत्त्वपूर्ण प्रयास किया ।
गोर्की के सुधारवादी लेखन के कारण उन्हें पग-पग पर जार द्वारा आतंक और अपमान का सामना करना पड़ा, किन्तु जनता के प्रबल विरोध के कारण जार, गोर्की का कुछ नहीं बिगाड़ पाया । टॉल्सटाय ने उन्हें ”प्रजा का सच्चा पुत्र कहकर सम्बोधित किया ।”
2. जीवन वृत्त:
मैक्सिम गोर्की का जन्म 28 मार्च 1888 को हुआ था । गोर्की के पिता पियैश्कोव मैक्सिम बहुत ही स्वाभिमानी, सदाचारी, स्पष्टवादी व्यक्ति थे । गोर्की के पिता को किसी भी प्रकार का दुव्यर्सन नहीं था, इससे गोर्की के मामा उनके पिता से बहुत ईर्ष्या और द्वेष रखते थे । जन्म के 4 वर्ष बाद ही गोर्की के पिता जब इस संसार को छोड़कर चले गये, तो गोर्की के जीवन में कठिनाइयों का दौर प्रारम्भ हो गया । उनके प्यारे पिता की छाया दूर होने के बाद वह अपनी नानी के पास रह गये ।
उनके मामा बहुत ही क्रोधी और बदमाश व्यक्ति थे । वह अपने भांजे गोर्की को लात-घूसों से मारता-पीटता था । गोर्की के नाना बहुत गरीब थे, लेकिन वे एक अनुशासित व्यक्ति थे । गोर्की की नानी बड़ी ममतामयी और करुणा की मूर्ति थीं ।
नाना और नानी ने गोर्की को हमेशा जीवन के यथार्थ से परिचित करवाया । उनकी पढ़ाई पाठशाला में न होकर घर पर ही होती रही । गोर्की की मां उन्हें असहाय छोड़कर दूसरे व्यक्ति के साथ घर बसाकर चली गयीं । गोर्की बुरी तरह से टूट चुके थे ।
इधर आश्रयदाता नाना के कारखाने में अचानक आग लगने की वजह से बची-खुची सम्पत्ति भी स्वाहा हो गयी । इससे गोर्की और अधिक टूट गये थे । उनकी बूढ़ी नानी के हृदय में गोर्की के प्रति अपार स्नेह था । नाना पेट की खातिर घर छोड़कर बाहर के गांव में कभी मोची, तो कभी माली, तो कभी कुली का काम करने लगे । गोर्की ने अपनी नानी से कहा कि वह भी उन पर बोझ नहीं बनना चाहता है ।
अत: वह ओल्गा जाकर मेहनत-मजदूरी करने लगे । स्टीमरों में माल ढोने का काम उन्हें मिल गया । उसके बाद होटलों में तश्तरियां धोते थे । स्टीमर में रसोइये का काम भी करने लगे । गोर्की ने अपने जीवन में बहुत कुछ कड़वे अनुभव प्राप्त किये । लोग दुष्कर्म करके भी अपराध बोध से ग्रसित नहीं होते । यह बात उन्हें बहुत सालती रहती थी ।
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इसी दौरान उनका परिचय स्मिडरी नामक रसोइये से हुआ, जिसने गोर्की को शिक्षा के साथ-साथ जीवन के अनुभवों की ऐसी शिक्षा दी कि उनकी बुद्धि उस अल्पावस्था में विकसित और परिपक्व हो गयी । उन्होंने स्टीमर में काम करते हुए यह पाया कि वहां के कर्मचारी अत्यधिक हैं । भ्रष्ट कर्मचारी गोर्की की ईमानदारी से चिढ़ा करते थे ।
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एक बार तो गोर्की को ही अपने षड़यन्त्र में फंसाकर उन लोगों ने नौकरी से निकलवा दिया । ईमानदारी और मानवीय मूल्यों की ऐसा सजा पाकर गोर्की बहुत दुखी थे । वह परिस्थितियों के आगे घुटने नहीं टेकना चाहते थे । व्यवस्था के विद्रोह के विरुद्ध उन्होंने लिखना शुरू कर दिया ।
उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में ”मदर” सर्वश्रेष्ठ है, जिसमें उनके जीवन की परिस्थितियों के संघर्ष को बड़ी ही वास्तविकता के साथ प्रस्तुत किया है । उन्होंने अपनी रचनाओं में जार के साम्राज्य का वर्णन करते हुए लिखा था कि- ”इस देश में अच्छे और भले काम करना अपराध है ।
यहां तो शासन के पदों पर वे ही लोग आसीन हैं, जो किसानों के मुंह से रोटी का निवाला तक छीन ले जाते हैं । राजा ऐसे हैं, जो हत्यारे को सेनापति और सेनापति को हत्यारा बनाने में प्रसन्न होते हैं ।” गोर्की का साहित्य जनवादी साहित्य था, जिसमें आम आदमी, गरीब, मध्यमवर्गीय लोगों के संघर्षों एवं पीड़ा का यथार्थ वर्णन मिलता है ।
3. उपसंहार:
गोर्की ने अपने जीवन में जो कुछ भी भोगा था, उस कटु यथार्थ ने उन्हें सामाजिक व्यवस्था के प्रति विद्रोही बना दिया था । वे ईमानदार आदमी के साथ होने वाले अत्याचार को देखकर कराह उठते थे । उनका कहना था कि शासक को हमेशा प्रजाहितैषी होना चाहिए । शासक को केवल शासक बनकर नहीं, अपितु जनता का सेवक बनकर सोचना चाहिए । जो भी हो, उनकी रचनाओं ने उस समय जनक्रान्ति लाने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी ।