अकबर महान पर निबन्ध | Essay on Akbar the Great in Hindi
1. प्रस्तावना:
मुगल सम्राटों में अकबर सबसे अधिक महान् शासक था । हजार वर्ष में जितने शासक हुए, उनमें वह महानतम था । शूरता और साहस में उसकी तुलना यूनान के सिकन्दर महान्, फ्रांस के नेपोलियन बोनापार्ट से, तो महत्त्वाकांक्षा में चन्द्रगुप्त मौर्य और शासन-सुधार व जनकल्याण में सम्राट अशोक की तरह, तो राजनीति में स्पेन के फिलिप द्वितीय और फ्रांस के लुई चौदहवें से की जा सकती है ।
एक शासक के रूप में उनकी बड़ी सफलता यह थी कि उन्होंने भिन्न-भिन्न जातियों, राज्यों को एकसूत्र में बांध दिया था । वह एक साहसी सैनिक, वीर योद्धा, सफल सेनानायक, महान् योद्धा, प्रजावत्सल शासक, कलाप्रेमी, साहित्यानुरागी, उदार, सहिष्णु, धार्मिक शासक थे । उनके शासनकाल में प्रजा सुख और शान्ति से जीवन व्यतीत कर रही थी ।
2. अकबर का जीवन वृत्त:
अकबर का पूरा नाम जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर था । उनका जन्म 15 अक्तूबर 1542 को अमरकोट के किले में हुआ था । अकबर की माता का नाम हमीदाबानू बेगम तथा पिता का नाम हुमायूं था । अकबर का बचपन बहुत ही कठिनाइयों में बीता । जब हुमायूं का देहान्त हुआ, तब अकबर राजधानी दिल्ली में नहीं थे ।
परिस्थितियों की गम्भीरता को देखकर बैरमखां ने शोक सभा के पश्चात् मात्र 13 वर्ष की अवस्था में 14 फरवरी सन् 1556 को उनका राज्याभिषेक कर उन्हें मुगल सम्राट घोषित कर दिया था । साम्राज्य में विद्रोह की सम्भावना को देखते हुए हुमायूं की मृत्यु की खबर को 17 दिनों तक गुप्त ही रखा गया था । बैरमखां को ”वकील ए सल्तनत” {प्रधानमन्त्री} बनाया गया ।
14 फरवरी 1556 को राज्यसिंहासन पर आसीन होते ही अकबर को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा । पंजाब, दिल्ली और आगरा तक उनका राज्य सीमित था, तथापि उसकी सुरक्षा आवश्यक थी । उनके पास संगठित सेना का अभाव था । प्राकृतिक विपदाएं सामने थीं । राजपूतों तथा उनके प्रतिद्वन्द्वियों का विद्रोह सामने था । विश्वासघाती सम्बन्धियों का होना, अकबर का अवस्यक होना, उचित प्रशासनिक व्यवस्था का न होना यह समस्याएं थीं ।
अकबर का यह सौभाग्य था कि उन्हें बैरमखां जैसा योग्य, अनुभवी व ईमानदार संरक्षक मिला, जिसके सहयोग से उन्होंने सर्वप्रथम अपने विरोधी शाहअबुल माली को बन्दी बनाया । पानीपत के द्वितीय युद्ध {1556} में हेमू को पराजित किया । काबुल को सुलेमान मिर्जा के घेरे से मुक्त कराया । अफगानी आदिल सूर को युद्ध में हराना था ।
1560 के बाद उन्होंने मालवा पर विजय, अफगानों पर विजय, जौनपुर के सामन्त खानजमां पर विजय, मेड़ता पर विजय, गोंड़वाना, चित्तौड़, रणथंभौर, कालिंजर, मारवाड़, बीकानेर, गुजरात, बिहार, बंगाल, मेवाड़ पर विजय के साथ सीमावर्ती उत्तर पश्चिमी प्रान्त कंधार, काबुल, बलूचिस्तान पर आक्रमण करके भारत की सीमा को सुरक्षित कर लिया । 1562 को अकबर का विवाह जोधाबाई से हुआ, जिससे उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसे सलीम उर्फ ”जहांगीर” नाम दिया गया ।
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अपनी दक्षिण नीति के तहत उन्होंने अहमदनगर व असीरगढ़ के किले पर भी अधिकार कर लिया । अपनी राजपूत नीति के तहत उन्होंने बड़ी दूरदर्शिता से मुगल साम्राज्य को स्थायित्व प्रदान करने के लिए राजपूतों से मधुर सम्बन्ध बनाये । अपने पराक्रम से कुछ का दमन किया, किसी से विवाह सम्बन्ध कायम किये ।
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राजपूत राजाओं को अभयदान, धार्मिक स्वतन्त्रता, प्रशासन में राजपूतों का सहयोग, उनके दुर्गों पर आधिकार कर जागीर प्रदान करना, उनकी शक्ति का प्रयोग अपने हित में करना, विद्रोही राजपूतों के विरुद्ध अभियान छेड़ा, जिसके कारण अकबर को अपनी इस नीति का बहुत व्यापक लाभ हुआ । अकबर की धार्मिक नीति के तहत उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता की नीति का पालन किया ।
अकबर ने सल्तनतकाली नीति के तहत इस्लाम की कट्टर नीतियों का पालन नहीं किया और न ही हिन्दुओं पर अत्याचार ही किये । प्रत्येक धर्म के लोगों को पूजा स्थलों का निर्माण व पूजा करने की छूट प्रदान की । ”सुलह ए कुल” की नीति पर चलने हेतु जनता को प्रेरित किया । हिन्दू और मुसलमानों की एकता को बनाये रखने के लिए ”दीन ए इलाही” नामक धर्म की स्थापना की ।
सभी धर्म के लोगों को उन्नति के समान अवसर देते हुए किसी भी पद पर आसीन करने हेतु मार्ग खुले रखे । राजपूतों को उच्च पद दिये । उन्होंने सैनिक और असैनिक सेवाओं में भी हिन्दुओं की नियुक्ति की । अकबर ने ”जजिया कर” व ”यात्री कर” हटाकर धार्मिक स्वतन्त्रता का उदाहरण प्रस्तुत किया ।
हिन्दुओं, सूफियों व जैन मुनियों सभी को सम्मान दिया । सामाजिक सुधार की दृष्टि से उन्होंने हिन्दू और मुस्लिम दोनों के बीच की घृणा को समाप्त करने का पुनीत कार्य किया । उनके सामाजिक सुधार की दृष्टि से उन्होंने बाल विवाह, कन्या वध, गोवध, सती प्रथा, बहुपत्नी प्रथा, पशु बलि, मद्यपान, वेश्यावृति पर रोक लगा दी । अकबर ने वेश्यावृत्ति रोकने के लिए उनके लिए एक अलग नगर बसाया, जिसका नाम ”शैतानपुर” रखा । उस हेतु एक दारोगा नियुक्त किया ।
हिन्दुओं के त्योहार रक्षाबन्धन, दीपावली, होली, दशहरा आदि को ”नौरोज” की तरह मनाने पर बल दिया तथा शिवरात्रि को शबेबरात की तरह मनाने पर बल दिया । उन्होंने हिन्दुओं के रीति-रिवाज, खानपान आदि को भी सहिष्णुतापूर्वक अपनाया ।
मुसलमानों की मदरसे और मकतबों की तरह हिन्दुओं के लिए भी पाठशालाओं का निर्माण करवाया । संस्कृत के विद्यालय भी खोले । अकबर ने अबुलफजल फैजी की सहायता से संस्कृत के वेदों, रामायण, महाभारत का अरबी व फारसी में अनुवाद करवाया ।
अकबर एक कलाप्रेमी सम्राट थे । उन्होंने स्थापत्य कला, चित्रकला, संगीतकला आदि को प्रोत्साहित किया । इसमें हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही शैलियों का सुन्दर समन्वय करवाया । हिन्दू स्थापत्य शैली के अनुसार छत, छज्जे, कलश, दीवार आदि में नक्काशियां कर भवन निर्माण में प्रयोग करवाया ।
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मुस्लिम शैली की मेहराबें, झरोखे, मीनारें, गुम्बद का सम्मिश्रण कर नवीन शैली के भवन बनाये, जिसमें फतेहपुर सीकरी, दीवाने खास, जोधाबाई का महल, पंचमहल, आगरे का किला बनवाया । ईरानी चित्रकला के साथ-साथ हिन्दू शैली के चित्रों को भी स्थान दिया ।
अकबर के दरबार के नौ रत्नों में शेख फैजी, अबुलफजल, मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी, बीरबल, राजा टोडरमल, अब्दुल रहीम खानखाना, मानसिंह, तानसेन जैसी साहित्यकार, विद्वान्, संगीतज्ञ शोभा बढ़ाते थे । उनके दरबार में हिन्दू व मुसलमानों की संगीत कलाओं का अनूठा समन्वय था । तानसेन, रामदास, बैजू बावरा आदि हिन्दू संगीतज्ञों की मण्डली सम्मानजनक स्थान पाते थे ।
उन्होंने मुस्लिम पद्धति के सिक्कों के साथ-साथ राम-सीता अभिप्राय के सिक्के भी चलाये । अकबर ने अपने साम्राज्य की आर्थिक नीति में एकता और सुधार लाने के लिए एक समान कर, एक समान राजस्व प्रणाली स्थापित की । उद्योग, व्यापार, व्यवसाय, कृषि हेतु हिन्दू और मुस्लिम को समान अधिकार, समान सुविधाएं व स्वतन्त्रता प्रदान की । अकबर उस समय के इतने धनी सम्राट थे कि उनकी वार्षिक आय तीन सौ करोड़ आंकी गयी थी ।
4. उपसंहार:
यह स्पष्ट होता है कि अकबर ही उस समय भारत के एकमात्र ऐसे सम्राट थे, जिन्होंने राष्ट्रीय हित को राज्य की नीति का आधार बनाया । हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों के लोगों को राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक अधिकार देकर अपने शासन को सुसंगठित, सुव्यवस्थित बनाया ।
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इस तरह वह एक महत्त्वाकांक्षी सम्राट, निरंकुश, न्यायप्रिय, प्रजावत्सल, धर्मनिरपेक्ष, उदार, सहिष्णु, योग्य, कुशल शासक व युग प्रतिनिधि सम्राट थे । अपनी शानदार उपलब्दियों के कारण उनकी गणना राष्ट्रीय शासक के रूप में की जाती है ।