एडोल्फ हिटलर पर निबन्ध | Essay on Adolf Hitler in Hindi

1. प्रस्तावना:

हिटलर का नाम जर्मनी के इतिहास में ही नहीं, विश्व के इतिहास में अजर-अमर रहेगा । जर्मनी को शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में स्थापित करने का सम्पूर्ण श्रेय हिटलर को जाता है ।

जर्मनी के स्वाभिमान की रक्षा के लिए हिटलर का उत्कर्ष हुआ था । हिटलर का जीवन कठिनाइयों और करुण कहानियों से भरा पड़ा था । उसने कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करते हुए समस्त विश्व के सामने यह आदर्श रखा था कि कठिन-से-कठिन कार्य भी परिश्रम, साहस और दृढ़संकल्प से पूर्ण हो सकते हैं । वह एक कुशल वक्ता, बुद्धिमान राजनीतिज्ञ था ।

जनता ने उस पर विश्वास करके नाजीवाद का समर्थन किया था । नाजीवाद के द्वारा हिटलर ने जर्मनी के अस्तित्व की रक्षा की थी । जर्मनी के आर्थिक विघटन, अपमानजनक वर्साई की सन्धि की शर्तें तथा रूसी क्रान्ति का प्रभाव जर्मनी में हिटलर के उत्कर्ष का कारण बनी ।

2. जीवन वृत्त एवं उपलब्धियां:

हिटलर का जन्म 20 अप्रैल 1889 को आस्ट्रिया में हुआ था । उसके बाल्यकाल में ही उसके पिता का देहान्त हो गया था । आर्थिक दशा ठीक न होने के कारण उसकी शिक्षा-दीक्षा का भी प्रबन्ध न हो सका । गृह निर्माण कला में रुचि होने के कारण उसने आर्ट स्कूल में प्रवेश लेना चाहा । प्रवेश परीक्षा में असफल होने के कारण उसे निराश होना पड़ा । मजदूरी करके पेट पालना उसके जीवन का अंग बन गया था । मजदूरी से जब उसकी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति न हो सकी, तो वह म्यूनिख में आ गया ।

1914 में सम्पूर्ण विश्व में सैनिकों को कुछ अत्यधिक वेतन और सुविधाएं प्राप्त होती थीं, अत: वह जर्मनी की सेना में भरती हो गया । धीरे-धीरे वह सार्जेन्ट के पद तक पहुंच गया । युद्ध के दौरान जब वह घायल हो गया और उसे वीरता का पदक मिला, तो जर्मन अधिकारियों की दृष्टि उस पर पड़ी । उन्होंने उसे आयरन फ्रांस की उपाधि प्रदान की ।

युद्ध के उपरान्त उसने सरकार के प्रति एक विद्रोह में भाग लिया था, जिसके कारण उसे 5 वर्ष के कारावास का दण्ड मिला था । किन्तु कुछ ही दिनों में उसे रिहा कर दिया गया । कारागार से मुक्ति के पश्चात् हिटलर ने एक दल बनाने का प्रयास किया ।

इटली में मुसोलिनी ने जो योजनाएं बनाई थीं, हिटलर ने उनका अनुकरण किया और अपने दल का नाम ”राष्ट्रीय समाजवादी दल” अथवा ”नाजी दल” रखा । भारतीय स्वस्तिक चिह्न को अपने दल का प्रतीक बनाया । मुसोलिनी की तरह उसने सैनिक आधार पर अपने दल का संगठन किया । स्थान-स्थान पर नाजी दल की शाखाए खोली ।

नाममात्र का सदस्यता शुल्क लगाकर पूरी कमीज पर काले स्वस्तिक का चिह्न अंकित कर उसे पहनना अनिवार्य किया । तूफानी सेना और सुरक्षा दल बनाकर 26 जिलों में बांटा गया । इसके अधीनस्थ कई सेलो में धीरे-धीरे व्यापारी, मध्यमवर्गीय, बुद्धिजीवी, सैनिक, पूंजीपति, विद्यार्थी आदि सम्मिलित हो गये । इस प्रकार देश की मनोवृत्ति का प्रतीक बन गयी ।

हिटलर को जर्मनी के प्रति अपार प्रेम था । मजदूरी करते समय भी वह अपने देश के भविष्य और उसकी उन्नति के बारे में सोचा करता था । वह जर्मनी के अपमान का प्रतिशोध लेने के साथ-साथ उसकी सीमा का विस्तार कर उसकी एकता व संगठन शक्ति को बढ़ाना चाहता था ।

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उसने नाजी दल के माध्यम से नवीन शक्ति का उदय कर जनता के साथ मिलकर जो सिद्धान्त बनाये, उसमें वर्साय की सन्धि को रद्द करना, एक बृहत् जर्मनी साम्राज्य की स्थापना करना, जर्मनी के खोये हुए उपनिवेशों को प्राप्त करना, वर्साय की सन्धि में जर्मनी की सैनिक शक्ति पर लगे प्रतिबन्धों को समाप्त करना, यहूदियों को देश से निर्वासित करना, इनको निर्वासित करने के लिए खुलेआम विरोध प्रदर्शन करना, राष्ट्रीयता की भावना का प्रचार-प्रसार करना, राष्ट्रविरोधी पत्र-पत्रिकाओं पर प्रतिबन्ध लगाना, साम्यवाद का नाश करना, वर्साय की सन्धि में मित्र-राष्ट्रों को हर्जाने के रूप में दी जाने वाली धनराशि को जर्मनी की उन्नति में लगाना, जर्मनी के सम्मान की रक्षा करना, देश में सशक्त केन्द्रीय सत्ता स्थापित करना था ।

हिटलर ने अपनी सेना को 2 वर्गों में विभाजित कर दिया था । ”पिपुल्स आब्जरवर्स” नामक समाचार-पत्र द्वारा नाजीवाद का प्रचार-प्रसार किया था । हिटलर के प्रभावशाली और ओजपूर्ण भाषणों की वजह से जर्मनी की जनता उसकी ओर खींची चली गयी । ओजस्वी भाषणों के कारण उसे कठोर कारावास भी भुगतना पड़ा था । उसके साथियों को भी बन्दीगृह की यातनाएं सहनी पड़ी थीं ।

जेलयात्रा के बाद जनता हिटलर को ही अपना नेता मानने लगी थी । जेलयात्रा के दौरान हिटलर ने ”मेरा संघर्ष” नामक पुस्तक लिखी, जिसमें उसने विस्तारपूर्वक अपने विचारों, आदर्शों और उद्देश्यों का वर्णन किया । वह कट्टर राष्ट्रवादी था । जनता ने उसकी पुस्तक के साथ-साथ जेल से आने पर उसका बहुत स्वागत किया ।

1930 में जर्मनी की आर्थिक स्थिति अत्यन्त ही खराब थी । हिटलर ने जनता की बेकारी को दूर करने का संकल्प लिया । आर्थिक संकट का लाभ उठाकर उसने सरकार के विरुद्ध लोकसभा में अपनी नीतियों के कारण भारी बहुमत प्राप्त किया । उसके स्वस्तिक को सरकारी चिह्न घोषित कर दिया गया । 1933 में उसने लोकसभा के समस्त अधिकार अपने हाथ में ले लिये और मन्त्रिमण्डल को भंग कर दिया ।

नाजी दल के सदस्यों की बड़े-बड़े पदों पर नियुक्ति कर दी गयी । पुराने लोगों को अपदस्थ करके उनके अधिकार छीन लिये गये । 1934 में राष्ट्रपति हिडनबर्ग के मरने के बाद उसने राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री के पद को एक में ही सम्मिलित कर लिया और दोनों ही संयुक्त प्रधान राष्ट्रनायक बन गया । लोकतन्त्र का अन्त करके एकछत्र शासक बन गया ।

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लोकतन्त्र का अन्त करके वह जर्मनी की आर्थिक उन्नति करने के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जर्मनी को पुन: प्रतिष्ठा प्राप्त कराना चाहता था । सर्वप्रथम उसने लोकतन्त्र शासन का दमन कर उसके सारे अधिकार छीन लिये ।

संविधान की धाराओं को निलम्बित कर उसने भाषण तथा प्रकाशन की स्वतन्त्रता समाप्त कर दी । सरकार का विरोध करने वाले समाचार-पत्रों के प्रकाशन पर रोक लगा दी । लेखक, पत्रकार, नेताओं की सम्पत्ति कर जब्त कर उनकी नागरिकता रद्द कर जेल में उन्हें अनिश्चित काल के लिए बन्द करवा दिया ।

यद्यपि जर्मनी की पूरी आबादी एक प्रतिशत ही थी, तथापि राजनीति, कला, व्यवसाय तथा अन्य क्षेत्रों में अग्रणी रहने वाले यहूदियों से जर्मनी की जनता ईर्ष्या करती थी । हिटलर भी यहूदियों का कट्टर शत्रु था । ऐसे में उसने जनता की इस भावना का लाभ उठाकर यहूदियों की सारी स्वतन्त्रता छीन ली । उन पर इतने अत्याचार किये कि उन्हें अपना घर-बार छोड़कर भागना पड़ा ।

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उसने यहूदियों को अनार्य कहकर उन्हें सरकारी नौकरियों से निकाला दिया । अध्यापक, वैज्ञानिक, डॉक्टर जैसे बुद्धिजीवियों को पकड़कर जेल में डाल दिया । हिटलर ने स्कूल के पाठ्‌यक्रम में नाजीवादी विचारधारा का पाठ्‌यक्रम लागू कर दिया । इस तरह शिक्षा की व्यवस्था पर सरकार का पूरा नियन्त्रण हो गया ।

विद्यालयों का पूरा काम देश के नौजवानों को राष्ट्रीय समाजवादी सेवा के लिए तैयार करना था, नस्लवाद की शिक्षा को उसने कूट-कूटकर विद्यार्थियों में भरना चाहा । धार्मिक संस्थाओं पर नियन्त्रण रखते हुए उसने चर्च को राज्य के पूर्णत: अधीन कर लिया । कैथोलिकों पर नाजियों ने अत्याचार किये ।

जर्मन जनता की प्रमुख समस्या आर्थिक थी । अत: हिटलर देश की आर्थिक दशा को सुधारना चाहता था । उसने लेबर फ्रंट खोलकर पूंजी और श्रम का सामंजस्य, वाणिज्य, व्यवसाय और उद्योग सम्बन्धी संस्थाओं को खोला । धरना, हड़ताल, सामूहिक सहयोग को अवैध घोषित किया । कल-कारखाने, सार्वजनिक निर्माण के कार्य किये, जिससे लाखों लोगों को रोजगार मिला । विदेशों से नयी-नयी मशीनें मंगवाकर औद्योगिक उत्पादन को दुगुना किया ।

उसने सभी प्रकार के उद्योगों को बढ़ावा दिया । पूंजीपतियों के मुनाफे को नियन्त्रित कर दिया । कृषि के साथ-साथ उसने देशी और विदेशी दोनों ही प्रकार के व्यापार को बढ़ावा दिया । हिटलर ने अपनी आज्ञाओं का पालन करने के लिए सशस्त्र पुलिस-विभाग की स्थापना की । वह बड़ी ही क्रूरता के साथ सरकार विरोधी लोगों का दमन करता था ।

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उसने गैस्टापो नामक गुप्तचर व्यवस्था का ऐसा जाल बिछा रखा था कि लोग उसके नाम से ही कांपा करते थे । कोई भी विभाग नाजीवाद के प्रभाव से मुक्त नहीं था । हिटलर ने समय की मांग के अनुरूप सशक्त विदेशी नीति को अपनाया । उसने जर्मनी के सम्मान की रक्षा के लिए राष्ट्रसंघ की सदस्यता से सम्बन्ध समाप्त किये ।

उसने जर्मनी द्वारा दी जाने वाली क्षतिपूर्ति का विरोध किया । निःशस्त्रीकरण का विरोध करते हुए जर्मनी में विस्फोटक पदार्थों के कारखाने खोले । वर्साय की सन्धि का विरोध किया । पूर्व प्रदेशों पर अपना पुन: अधिकार कर लिया । चेकोस्लोवाकिया को अपने राज्य में मिला लिया ।

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रूस से सन्धि के बाद भी पोलैण्ड पर आक्रमण कर 23 अगस्त 1939 को पुन: सन्धि कर ली, जिसके अन्तर्गत रूस, जर्मनी को खाद्यान्न, पेट्रोल और युद्ध सामग्री देगा, जिसके बदले में उसने बाल्टिक सागर को मुक्त कर दिया । हिटलर ने आस्ट्रिया को जर्मनी में मिला लिया ।

3. उपसंहार:

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हिटलर अपने राष्ट्र जर्मनी से अत्यधिक प्रेम करता था । वर्साय की सन्धि को वह अपने देश का कलंक व अपमान मानता था । इस अपमान और कलंक को धोने के लिए उसने जर्मनी में तानाशाही शासन व्यवस्था स्थापित की । वर्साय की सन्धि की धज्जियां उड़ाकर उसने अपने राष्ट्र के अपमान का न केवल बदला लिया, अपितु उसे एक शक्तिशाली राष्ट्र भी बना दिया ।

हिटलर जर्मनी को विश्व की धुरी बनाने के कार्य को दैवीय इच्छा मानता था । वह इसे अपना धर्म समझता था । अपने इस ध्येय पर उसे पूर्ण विश्वास था । एक सुदृढ़ विदेश नीति अपनाकर उसने जर्मनी के सम्मान और आर्थिक दशा में सुधार लाया । यह उसकी सफल गृहनीति थी । सुसंगठित सेना के आधार पर उसने जर्मनी में कई राष्ट्रों का विलय करवाया ।

इस प्रकार एडोल्फ हिटलर सचमुच में एक महान् देशभक्त था । उसने जो कुछ भी किया, अपने देश के हित में किया । इसके लिए उसने अपनी नीतियों की आलोचना की भी परवाह नहीं की । अपने उद्देश्य में वह पूर्णत: सफल रहा ।

जिस तरह एक तानाशाह के अति का अन्त होता है, ठीक उसी तरह हिटलर को भी अपनी घोर तानाशाही नीतियों की वजह से भागते फिरना पड़ा । इस तरह 30 अप्रैल 1945 को हिटलर और उसकी प्रेमिका इवा ने आत्महत्या कर ली थी ।

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