केशव राव बलिराम हेडगेवार पर निबंध | Essay on Keshav Rao Baliram Hedgewar in Hindi
1. प्रस्तावना:
आजादी के संघर्ष में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देने वालों में डॉ० केशवराव बलिराम हेडगेवार का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है ।
हिन्दू जागरण और हिन्दू समाज के संगठनकर्ता के रूप में डॉ० हेडगेवार ने ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ की स्थापना की । देश सेवा और समाज सेवा के उद्देश्यों पर आधारित आज इस संघ के लाखों-करोड़ों स्वयंसेवक हैं, जो देश, काल ओर परिस्थिति के अनुसार अपनी सेवाएं राष्ट्र को दे रहे हैं ।
2. जीवन परिचय एवं देशसेवा में उनका योगदान:
डॉ० हेडगेवार का जन्म सन् 1890 में एक सनातनी ब्राह्मण परिवार में नागपुर में हुआ था । बचपन में ही उनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया था । जब उनकी अवस्था 8 वर्ष की थी, तब उनके स्कूल में रानी विक्टोरिया के राज्याभिषेक के अवसर पर मिठाइयां बांटी जा रही थी । उन्होंने उस मिठाई को कूड़े के ढेर में फेंक दिया । बारह वर्ष की अवस्था में नागपुर के सीताबर्डी किले से अंग्रेजों का झण्डा उतारकर भगवा झण्डा लहराने के लिए किले तक सुरंग खोदने का प्रयास किया ।
कक्षा दसवीं में पढ़ते समय स्कूल के निरीक्षक के सामने ‘वन्देमातरम्’ का घोष करते हुए उनका स्वागत किया, परिणामस्वरूप उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया । इसके पश्चात् यवतमाल की राष्ट्रीय पाठशाला में प्रवेश लेने पर उन्हें ब्रिटिश सरकार ने बन्द करवा दिया । पूना के नेशनल स्कूल में प्रवेश लेकर उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की । कलकत्ता जाकर उन्होंने क्रान्तिकारियों से भेंट कर मध्य भारत में क्रान्तिकारी कार्यों का सूत्रपात किया ।
गांधीजी के नेतृत्व में उन्होंने दो बार सत्याग्रह करके जेल यात्रा की । घोर आर्थिक संकट के बावजूद अविवाहित रहकर देशकार्य के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित किया । हिन्दुओं को संगठित करने हेतु विजयादशमी के दिन सन् 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की । सन् 1940 तक देश का अखण्ड प्रवास कर संघ के कार्यों को गति दी ।
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डॉ० हेडगेवार ने यह स्पष्ट किया कि ”हिन्दुत्व ही राष्ट्रीयत्व है ।” हिन्दुओं ने ही अपने पुरुषार्थ के बल पर इस देश को ‘सोने की चिड़िया’ बनाया । जाति-पांति एवं छुआछूत के भेद का शिकार होकर असंगठित दुर्बल होने के कारण हिन्दू समाज को मुट्ठी भर लुटेरों के हाथों हार खानी पड़ी ।
हमारी मां-बहिनों को घोर अपमान सहना पड़ा और हमें गुलामी का अभिशाप । उन्होंने निर्भीक स्वर में हिन्दू राष्ट्र की घोषणा की । 21 जून 1940 को शरीर छोड़ने से पूर्व श्री गुरुजी को सरसंघ चालक का दायित्व देकर देश और समाज के प्रति अपने कर्तव्य की पूर्ति की ।
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3. उपसंहार:
राष्ट्र को सुदृढ़ बनाने के साथ-साथ हिन्दू समाज को संगठित, अनुशासित एवं शक्तिशाली बनाकर खड़े करना अत्यन्त आवश्यक है । हिन्दू समाज के स्वार्थी जीवन, छुआछूत, ऊंच-नीच की भावना, परस्पर सहयोग की भावना की कमी, स्थानीय नेताओं के संकुचित दृष्टिकोण को वे एक भयंकर बीमारी मानते थे ।
इन सब बुराइयों से दूर होकर देश के प्रत्येक व्यक्ति को चरित्र निर्माण और देश सेवा के लिए संगठित करना ही संघ-शाखा का उद्देश्य है । हिन्दुत्व के साथ-साथ देशाभिमान का स्वप्न लेकर आज देश-भर में इसकी शाखाएं लगती हैं, जिसमें सेवाव्रती लाखों स्वयंसेवक संगठन के कार्य में जुटे हैं ।