दीनदयाल उपाध्याय पर निबंध | Essay on Deendayal Upadhyaya in Hindi
1. प्रस्तावना:
पण्डित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्र के सजग प्रहरी व सच्चे राष्ट्र भक्त के रूप में भारतवासियों के प्रेरणास्त्रोत रहे हैं । राष्ट्र की सेवा में सदैव तत्पर रहने वाले दीनदयालजी का यही उद्देश्य था कि वे अपने राष्ट्र भारत को सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक क्षेत्रों में बुलंदियों तक पहुंचा देख सकें ।
2. जीवन परिचय:
पण्डित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म जयपुर के ग्राम धनकिया में 25 सितम्बर 1916 को हुआ था । उनके पिता भगवतीप्रसाद उपाध्याय स्टेशन मास्टर थे । बचपन में ही माता और पिता का देहावसान हो जाने पर उनके मामा राधारमण शुक्ल ने ही उनका लालन-पालन किया । उनकी मेधावी प्रतिभा शक्ति का परिचय तब हुआ, जब उन्होंने अजमेर बोर्ड से मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान लेकर उत्तीर्ण की ।
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पिलानी राजस्थान से इंटरमीडियट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में तथा कानपुर के सनातन धर्म कॉलेज से प्रथम श्रेणी में बी०ए०, आगरा के सेंट जोन्स कॉलेज से एम०ए० की परीक्षा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण करके अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया । विद्यार्थी जीवन में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से प्रभावित होकर उसमें शामिल होने का निर्णय ले लिया । लखीमपुर से जिला प्रचारक के रूप में 1942 में पद भार लेकर आजीवन उन्हीं के सिद्धान्तों पर चलते रहे ।
देश व समाज के लिए कार्य करते हुए 11 फरवरी 1968 को मुगलसराय स्टेशन पर उनका पार्थिव शरीर रहस्यमय परिस्थितियों में प्राप्त हुआ । उनके नश्वर शरीर को देखकर भारतवासियों का सच्चा हृदय रो पड़ा । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सभी सदस्यों और नेताओं के लिए यह घटना किसी आघात से कम नहीं थी ।
3. उनका राजनीतिक जीवन:
पण्डित दीनदयाल उपाध्याय एक ऐसी राजनीतिक विचारधारा के सूत्रधार एवं समर्थक थे, जिसमें राष्ट्रभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी थी । राजनीति में कथनी और करनी में अन्तर न रखने वाले इस महापुरुष ने भारतीय संस्कृति के प्रति अपनी गहरी आस्था बनाये रखी । हिन्दुत्ववादी चेतना को वे भारतीयता का प्राण समझते थे ।
4. उनके महत्वपूर्ण कार्य:
दीनदयालजी एक राजनीतिक विचारक होने के साथ-साथ श्रेष्ठ साहित्यकार, अनुवादक व पत्रकार भी थे । उनकी लिखी पुस्तकों में सम्राट चन्द्रगुप्त, भारतीय अर्थनीति एक दिशा, जगदगुरू शंकराचार्य विशिष्ट हैं । उन्होंने ”पांचजन्य” तथा मासिक ”राष्ट्रधर्म”, ”दैनिक स्वदेश” पत्रिकाओं का सम्पादन भी कुशलतापूर्वक किया । 21 अक्टूबर 1951 में भारतीय जनसंघ की दिल्ली में स्थापना होने के पीछे उनका नेतृत्व प्रमुख था । भारतीय जनसंघ की कई सभाओं और अधिवेशनों में वे महामन्त्री और अध्यक्ष भी रहे ।
5. उपसंहार:
पण्डित दीनदयाल उपाध्यायजी राष्ट्रनिर्माण के कुशल शिल्पियों में से एक रहे हैं । व्यक्तिगत जीवन तथा राजनीति में भी सिद्धान्त और व्यवहार में समानता रखने वाले इस महान् भारतीय को काफी विरोधों का सामना करना पड़ा । किन्तु राष्ट्रभक्ति ही जिनका ध्येय हो, ऐसे महापुरुष को भला कौन उनके उद्देश्यों से डिगा सकता है ।