दीनबंधु एंड्रयूज पर निबंध | Essay on Deenbandhu Andrews in Hindi
1. प्रस्तावना:
दीनबन्धु एण्ड्रूज सच्चे अर्थों में गरीब, दुखी और बेसहारा तथा दुर्दशाग्रस्त लोगों के सच्चे मित्र, अर्थात् दीनबन्धु थे । असहाय भारतीयों के लिए त्याग करने वाले इस विदेशी महान् आत्मा को भारत श्रद्धा से नमन करता है । असहाय भारतीयों के लिए किये गये उनके कार्य सचमुच ही महान् थे ।
2. उनके कार्य एवं बिचार:
श्री एण्ड्रूज का जन्म 1872 को इंग्लैण्ड के एक सामान्य परिवार में हुआ था । आर्थिक स्थिति के साधारण रहने पर अध्ययन के क्षेत्र में उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा । यह एक चमत्कार ही था कि पता नहीं एण्ड्रूज ने अपनी माता से कहा- ”मां मैं हिन्दुस्तान जाऊंगा ।” मां ने उसे समझाया- बेटा! हिन्दुस्तानी चावल अधिक खाते हैं, तो एण्ड्रूज ने भी चावल खाना शुरू कर दिया । यहीं से हिन्दुस्तान के प्रति उनका प्रेमभाव जाग उठा था ।
23 वर्ष की अवस्था में कॉलेज की पढ़ाई समाप्त कर पादरी बनने की चाह उनके मन में जागी । इस दौरान उन्होंने कई अपराधियों के जीवन में सुधार लाया । 20 मार्च न 1904 को वे बम्बई बन्दरगाह आ पहुंचे । अपनी मिशनरी के कार्य के सिलसिले में वे दिल्ली रुक गये । यहां सेंट स्टीफेंस कॉलेज में अध्यापन कार्य करने लगे । अंग्रेजों ने उन्हें यह सलाह दी कि वे भारतवासियों के प्रति दया का विचार अपने मन में गलती से न आने दें ।
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इस पर एण्ड्रूज ने उन्हें ईसा मसीह के मानव धर्म की याद दिलायी । इसी मानव धर्म का पालन करते हुए उन्होंने फिजी और मारीशस में काम करने वाले बन्धुआ कुली भारतीयों को वहां के ओवरसियर के अमानवीय अत्याचारों से मुक्त करवाया । स्त्रियों के साथ पुरुषों पर वहां किये जाने वाले लोमहर्षक अत्याचार को देखकर वे उन्हें गोरे लोगों से आजाद करके भारत ले आये ।
इस कार्य के लिए उन्हें भारत में सम्मान, तो अंग्रेजों द्वारा घोर अपमान व उपेक्षा मिली । भारतीयों ने रोलेट एक्ट का विरोध जाहिर किया, तो अंग्रेजों ने उसके बदले में जालियांवाला बाग हत्याकाण्ड रच डाला, जिसमें हजारों निर्दोष स्त्री-पुरुष, बूढ़ों तथा बच्चों को जनरल डायर ने गोलियों से भून डाला था ।
इस हत्याकाण्ड पर दीनबन्धु ने भारतवासियों से हार्दिक क्षमा मांगी । पंजाब की धरती पर पहुंचकर उन्होंने पीड़ितों की सेवा की । शान्तिनिकेतन में रहते हुए उन्होंने सद्ज्ञान संवर्धन व सेवा-साधना में अपने आपको लगाये रखा । वे दीन-दुखियों और असहायों की सेवा को ही ईश्वर की सेवा मानते थे ।
भावुक इतने अधिक थे कि पशु-पक्षियों व कीड़े-मकोड़ों के प्रति भी उनके मन में अपार दर्द था । एक बार बचपन में चिड़िया के नीचे गिरे अण्डों को घर तो ले आये, किन्तु चिड़िया के दर्द को समझकर उसे घोंसले में रख आये । कष्ट पीड़ितों के लिए वे अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे ।
3. उपसंहार:
दीनबन्धु एण्ड्रूज सच्चे अर्थों में महामानव थे । भारत के लिए किये गये उनके कार्य यह बताते हैं कि मानव सेवा का भाव जिनमें होता है, उनके लिए देश, जाति, धर्म का भेद कोई मायने नहीं रखता है । वे इन सबसे परे ईश्वरीय गुणों से विभूषित सच्चे अर्थों में एक महान् मानव सेवक थे । दीन-दुखियों के मसीहा थे ।