पण्डित रविशंकर पर निबन्ध | Essay on Pandit Ravi Shankar in Hindi
1. प्रस्तावना:
‘सितार के जादूगर’ पण्डित रविशंकर ने वाद्य-संगीत को जिन ऊंचाइयों तक पहुंचाया है, इस दृष्टि से ये अद्वितीय कलाकार हैं । इनके वाद्य-संगीत की शास्त्रीय एवं शालीन संगीत शैली के कारण ये पहचाने जाते हैं । सितार के तारों पर इनकी उंगलियां जब फिरती हैं, तो उसमें से स्वर की ऐसी लहरियां फूट पड़ती हैं, जो भारतीय शास्त्रीय रागों का तान छेड़ देती हैं । अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सितार को ख्याति दिलाने में इनका बहुत बड़ा योगदान है ।
2. जन्म परिचय एवं योगदान:
पण्डित रविशंकर का जन्म 1920 में बनारस में हुआ था । इनके बड़े भाई उदयशंकर सुप्रसिद्ध नर्तक थे । उदयशंकर ने भी भारतीय शास्त्रीय नृत्य पद्धति को विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाया । प्रारम्भिक दिनों में ये अपने बड़े भाई की नृत्य मण्डली के साथ नृत्य प्रदर्शन करते घूमा करते थे, परन्तु कुछ समय बाद इन्होंने नृत्य छोड़कर अपनी मौलिक पहचान सितार वादन के क्षेत्र में बनायी ।
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सितार वादन की शिक्षा इन्होंने अलाउद्दीन खां साहब से ली । सितार की शिक्षा लेने के बाद इन्होंने जिस स्वरलिपि पद्धति का विकास किया, उस ओर किसी का ध्यान नहीं गया था । हिन्दुस्तानी संगीत को रविशंकर ने रागों के मामले में बड़ा समृद्ध बनाया । इन्होंने ”परमेश्वरी”, ”कामेश्वरी”, ”मंगेश्वरी”, ”जोगेश्वरी”, ”वैरागीतोड़ी”, ”कौशिकतोड़ी”, ”मोहनकौंस”, ”रसिया”, ”मनमंजरी”, ”पंचम”, ”नटभैरव” उघदि नये राग बनाये ।
आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से इनका सितार वादन हर दिन किसी-न-किसी कार्यक्रम के बाद प्रसारित होता रहता है । ”सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा” इस गीत का सृजन इन्होंने मात्र 25 वर्ष की अवस्था में किया । इन्होंने कई फिल्मों के लिए संगीत कम्पोजिंग का कार्य भी किया ।
पण्डित रविशंकर की बेटी अनुष्का शंकर भी अपने पिता के पद्चिन्हों पर चलना चाहती है । देश ही नहीं, अपितु विदेशियों को भी इन्होंने अपने सितार वादन से मन्त्रमुग्ध किया है । इनके शिष्य देशी ही नहीं, विदेशी भी हैं ।
3. उपसंहार:
बीसवीं सदी के महान् संगीतकार व सितार वादक पण्डित रविशंकार ने भारतीय वाद्य संगीत को एक नया आयाम दिया । अमेरिका के सुप्रसिद्ध वायलिन वादक येहुदी मेन्युहिन के साथ जुगलबंदियों में विश्व-भर का इन्होंने दौरा किया ।
उस्ताद अल्लारक्खा के साथ भी इन्होंने जुगलबन्दी की । रविशंकर ने पश्चिमी संगीत को भारतीय संगीत के साथ जोड़कर एक नया रास्ता खोला है । विश्व-भर की अनेक संस्थाओं से इन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधियां तथा ”भारत रत्न” से सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ है ।