फिरोजशाह मेहता पर निबंध | Essay on Pherozeshah Mehta in Hindi

1. प्रस्तावना:

भारतीय राजनीति में उदारवादी नेताओं की सूची में दादाभाई नौरोजी के बाद फिरोजशाह मेहता का नाम महत्त्वपूर्ण माना जाता है । यद्यपि स्वतन्त्रता आन्दोलन में उनका योगदान प्रत्यक्ष न होकर परोक्ष रूप से था, तथापि उसे उल्लेखनीय माना जा सकता है ।

2. जन्म परिचय:

फिरोजशाह मेहता का जन्म 4 अगस्त 1845 को बम्बई के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था । एलीफेस्टन कॉलेज बम्बई से 1864 में स्नातक तथा स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण कर वे 1865 में वकालत करने इंग्लैण्ड चले गये । वहां कार्लाइल, रस्किन, मिल जैसे पाश्चात्य विचारकों के विचारों से प्रभावित हुए । भारतीय उदारवादी राजनीतिज्ञों में वे दादाभाई नौरोजी के उत्तराधिकारी कहे जा सकते हैं ।

वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण कर उन्होंने बम्बई में ही वकालत शुरू कर दी । वे ईस्ट इण्डिया एसोसिएशन शाखा बम्बई के सचिव थे । 1872 में बम्बई नगर निगम के सदस्य बनने के साथ ही मेयर भी चुने गये । इस पद पर रहते हुए जनता के लिए किये गये उनके कार्यों के लिए वे सदैव याद रहेंगे । ब्रिटिश सरकार की दमनपूर्ण नीतियों का जीवन-भर विरोध करते रहे । ऐसे कर्मठ, पारसी देशभक्त का इन्तकाल 70 वर्ष की आयु में 5 नवम्बर 1915 में हो गया ।

3. स्वतन्त्रता आन्दोलन में उनका योगदान व बिचार:

ADVERTISEMENTS:

अन्य उदारवादी नेताओं की तरह फिरोजशाह मेहता भी ब्रिटिश शासन को दैवीय विधान मानते थे । ब्रिटिश शासन में अटूट आस्था रखते थे । ब्रिटिश शासन की न्यायप्रियता और बुद्धिमत्ता पर कई बार उन्होंने अपनी आस्था भी जतायी । वे मानते थे कि ब्रिटिश के हाथों भारत का भविष्य सुरक्षित है । शिक्षा में भी वे अंग्रेजी पद्धति की शिक्षा में विश्वास रखते थे ।

21 जनवरी 1883 को उन्होंने बम्बई प्रेसीडेंसी एसोसिएशन की स्थापना की तथा इसके माध्यम से सभाओं, प्रस्तावों द्वारा राजनैतिक चेतना उत्पन्न की । 1890 में कलकत्ता अधिवेशन में वे कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये । 1892 में केन्द्रीय परिषद के सदस्य चुने गये । उनका विचार था कि ”ब्रिटिश शासन का विरोध करने पर कांग्रेस के अस्तित्व को खतरा उत्पन्न हो सकता है ।” अत: वे अपनी उदारवादी सोच के साथ हिंसात्मक जुलूस आदि को अवैध ठहराकर स्वतन्त्रता पाना चाहते थे ।

राष्ट्रहित में उग्रवाद को वे खतरनाक मानते थे । आर्म्स एक्ट, प्रेस एक्ट का कड़ा विरोध करते हुए उन्होंने किसानों का सदा ही पक्ष लिया । नगरपालिकाओं में स्वायत्त स्वशासन की उन्होंने वकालत की । भारतीयों को सामाजिक व राजनीतिक विचारों का ज्ञान कराने के लिए शिक्षा के प्रसार पर उन्होंने सदा ही जोर दिया । उनका यह विश्वास था कि कोई भी शासन जनता के हितों की अवहेलना करके बहुत दिनों तक साम्राज्य नहीं चला सकता ।

वे पशु वध व पशु बलि के कट्टर विरोधी थे । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों से वे सहमत थे । बम्बई से उन्होंने बाम्बे क्रॉनिकल का प्रकाशन प्रारम्भ किया, जिसके माध्यम से भारतीयों को अपने अधिकारों के लिए शान्ति और अहिंसात्मक तरीके से संधर्ष करने की प्रेरणा दी ।

4. उपसंहार:

फिरोजशाह मेहता पारसी धर्म के होते हुए भी सभी धर्मों के प्रति समान आदरभाव रखते थे । उनके बारे में रदरफोर्ट ने कहा था- ”यदि वे इंग्लैण्ड में पैदा होते, तो वहां के प्रधानमन्त्री बन जाते ।” उनके राजनीतिक प्रयत्नों के लिए देश उन्हें स्मरण रखेगा ।

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