महादेव गोविन्द रानाडे पर निबन्ध | Essay on Mahadev Govind Ranade in Hindi
1. प्रस्तावना:
महादेव गोविन्द रानाडे भारतमाता के उन सच्चे सपूतों में से एक हैं, जिन्होंने राजनीतिक दासता से मुक्ति के लिए, सामाजिक उत्थान के लिए तथा आर्थिक प्रगति के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किये । वे सामाजिक सुधारों के प्रवक्ता थे ।
सन् 1842 में नासिक में जन्मे गोविन्द रानाडे ने गुलाम भारत की राजनीतिक स्थिति को नयी दिशा दी । उनके द्वारा संचालित प्रार्थना समाज ने सामाजिक सुधार की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण कार्य किये । उन्होंने दिल्ली के विक्टोरिया सम्मान के दरबार में स्वशासन की मांग की ।
2. उनके राजनीतिक विचार:
महादेव रानाडे एक उदारवादी नेता के साथ-साथ उदारवादी राष्ट्रीयता के पक्षधर थे । उन्होंने राजनीतिक अर्थव्यवस्था के सिद्धान्तों और उनकी तथाकथित, सार्वभौतिक सत्यता का जोरदार विरोध किया । वे मूल रूप से ”स्वतन्त्रता को प्रतिबन्धों का अभाव नहीं है” यह मानते थे । उनके अनुसार राजनीति एक संवैधानिक प्रक्रिया है । अत: जनता को अपने कष्टों के निवारण के लिए सरकार के पास आवेदन देना चाहिए ।
3. उनके सामाजिक सुधार सम्बन्धी कार्य:
रानाडे राष्ट्र की उन्नति के लिए सामाजिक सुधार को आवश्यक मानते थे; क्योंकि राजनीतिक अधिकारों का सही प्रयोग उस समय तक नहीं हो सकता, जब तक सामाजिक ढांचा तर्क तथा न्याय पर आधारित नहीं होता । वे समाज को एक सावयवी संगठन के रूप में स्थान देते थे । इस आधार पर वे सामाजिक जीवन की प्रत्येक इकाई को, मनोवृत्ति को तथा समस्या को एक संगठक के रूप में देखना चाहते थे ।
उन्होंने समाज को विश्व के सम्पर्क में लाने हेतु सामाजिक भेदभाव एवं जातिवाद की बुराई से लड़ने के लिए जरूरी माना । रानाडे का विचार था कि- ”समाज में स्त्रियों को उचित सम्मानपूर्ण एवं मर्यादित स्थान मिलना चाहिए ।” अत: उन्होंने स्त्रियों के साथ अमानवीय व्यवहार, बाल विवाह तथा विधवा विवाह को हेय दृष्टि से देखे जाने वाली प्रथाओं का विरोध किया तथा उन्हें दूर करने हेतु सार्थक प्रयत्न किये ।
रानाडे राष्ट्र की उन्नति के लिए सामाजिक सुधार को आवश्यक मानते थे । उनका कहना था कि- ”तुम उस समय तक अच्छे सामाजिक ढांचे को प्राप्त नहीं कर सकते, जब तक तुम्हारा सामाजिक ढांचा तर्क एवं न्याय पर आधारित नहीं होगा ।”
4. उनके आर्थिक विचार:
रानाडे एक अर्थशास्त्री भी थे । उन्होंने परम्परावादी अर्थशात्रियों की आलोचना की और उन्हें वास्तविक रूप से व्यक्तिवादी बताया । व्यक्ति का हित तब होगा, जब उत्पादन बढ़ेगा, वे ऐसा मानते थे । वे सर्वप्रथम ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने भारतीय अर्थशास्त्र शब्द का प्रयोग किया ।
ADVERTISEMENTS:
वे भारत जैसे निर्धन देश के लिए संरक्षित व्यापार नीति बनाना चाहते थे । वे आर्थिक एवं राजनीतिक समस्याओं का हल अलग-अलग चाहते थे । उन्होंने भारतीय उद्योगों के विनाश का कारण ब्रिटिश सरकार की गलत नीतियों को बताया ।
ADVERTISEMENTS:
निर्धनता, बेरोजगारी, अंग्रेज सरकार की दोषपूर्ण लगान नीति को बताया । इस हेतु उन्होंने जो सुझाव दिये, वे हैं- 1. नये उद्योगों की स्थापना, 2. बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध कराना, 3. जनसंख्या का नियोजन करना, 4. अधिक आबादी वालों को कम आबादी वाले क्षेत्रों में भेजना, 5. ग्रामीण क्षेत्रों के कुटीर उद्योग-धन्धों का विकास करना ।
भारतीय अर्थशास्त्र की निगमन के बदले में ऐतिहासिक प्रणाली को अधिक महत्त्व दिया । उन्होंने भारतीय अर्थशास्त्र की नींव डाली । उनके द्वारा प्रतिपादित आर्थिक विचारों से अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और व्यापारी प्रभावित थे । गोखले एवं गांधी के आर्थिक विचारों को रानाडे ने प्रभावित किया ।
5. उपसंहार:
महादेव गोविन्द रानाडे न केवल एक प्रसिद्ध वकील, अर्थशास्त्री, समाजसुधारक, राष्ट्रप्रेमी, राजनीतिज्ञ थे वरन् बम्बई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी थे । उन्होंने भारतीय अर्थशास्त्र पर निबन्ध नाम से भारत की आर्थिक दशा पर गहन विचार करके एक पुस्तक भी लिखी, जिसमें भारतीय समस्याओं का भारतीय ढंग से अध्ययन कर उसे दूर करने के लिए अमूल्य सुझाव दिये ।