महान क्रान्तिवीर-मंगलपाण्डे पर निबन्ध | Essay on Mangal Pandey in Hindi
1. प्रस्तावना:
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देश को गुलाम बनाने वाले फिरंगी हमारे देशी पलटनों के माध्यम से जहां देश में राज चला रहे थे, वहीं आसपास के देशों को भी अपनी अधीनता स्वीकार करने पर मजबूर कर रहे थे ।
वे भारतीय पलटनों को देश-विदेश ले जाते थे । उचित भत्ता नहीं देते थे । सन् 1844 से लेकर 1952 तक तो कई पलटनों ने बगावत कर दी थी । इस क्रम में 1952 को एक ऐसी पलटन ने रंगून जाने से मना कर दिया, तो सिक्खों की सेना को भेजा गया ।
लार्ड केनिन ने कानून बना डाला कि ”फिरंगी चाहे जिस पलटन को जहां भी ले जायें ”। इस कानून के द्वारा पलटनों में इतना विद्रोह एवं असन्तोष बढ़ा कि 1857 के आरम्भ में ही देश की हिन्दू-मुस्लिम सभी पलटनें फिरंगियों के खिलाफ खड़ी हो गयीं । यह विद्रोह था, सुअर और गाय की चर्बी लगे कारतूसों के प्रयोग के खिलाफ ।
2. सशस्त्र राष्ट्रीय विद्रोह:
सन् 1857 के आरम्भ में एनफील्ड रायफलें और सुअर तथा गाय की चर्बी लगे कारतूस देशी पलटन को दिये गये । इन कारतूसों को दांतों से पकड़कर रायफल से निकालना पड़ता था । विद्रोह के संगठनकर्ताओं ने उसे हिन्दू-मुसलमान सिपाहियों के धर्म को नष्ट करने वाला ईसाई लोगों का षड्यन्त्र बताया । फिर क्या था? देशी पलटनें फिरंगियों के विरुद्ध खड़ी हो गयीं ।
22 जनवरी 1857 को बैरकपुर (कलकत्ता) के पास की छावनी में सिपाहियों द्वारा गुप्त रूप से आग लगा दी गयी । धीरे-धीरे यह घटना एक चिंगारी से आग का रूप लेती हुई, समूचे उत्तर भारत में फैल गयी । 22 फरवरी को पश्चिम बंगाल की पलटनों ने इन चर्बी वाले कारतूसों का उपयोग करने से मना कर दिया था ।
3. क्रान्तिवीर मंगलपाण्डे का विद्रोह:
मंगलपाण्डे ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ बैरकपुर स्थित 34वीं देशी पलटन का एक सिपाही था । यह पलटन पहले ही 19वीं पलटन के अपमान से काफी क्षुब्ध थी । मंगलपाण्डे ने देश के नेताओं से इस विषय पर विचार मांगे, किन्तु हमारे देश के तत्कालीन नेताओं ने समय का उपयुक्त इन्तजार करने को कहा । उग्रपन्थी मंगलपाण्डे इस घटना से बेहद तिलमिलाये थे । यद्यपि यह धार्मिक कारण था, तथापि शाकाहारी वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले मंगलपाण्डे ने धार्मिक कारणों से इसका विरोध किया ।
24 मार्च 1857 को परेड के समय मंगलपाण्डे ने बन्दूक में गोली भरी और सिपाहियों का आवाहन अंग्रेजों पर गोली चलाने के लिए कर दिया । सार्जेन्ट मेजर ह्यूजसन ने मंगलपाण्डे को तत्काल गिरफ्तार करने का आदेश देशी पलटनों को दिया । सबने यह आदेश मानने से इनकार कर दिया । इसी बीच मंगलपाण्डे की रायफल से निकली गोली ने सार्जेन्ट मेजर ह्यूजसन का काम तमाम कर दिया ।
इसी समय लैफ्टिनेन्ट बो घोड़े पर चढ़कर वहां आया । मंगलपाण्डे ने उसका भी काम तमाम करना चाहा, लेकिन बो ने पिस्तौल चलायी । मंगलपाण्डे ने तलवार के वार से उसे मौत के घाट उतार दिया । तीसरे गोरे ने मंगलपाण्डे को जैसे ही मारना चाहा, एक सिपाही ने बन्दूक के कुंदे से उसका भेजा बाहर निकाल दिया और गरजकर कहा- ”खबरदार! किसी ने मंगलपाण्डे को हाथ लगाया ।”
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तत्काल ही वहां कर्नल व्हीलर आ पहुंचा । उसने सिपाहियों को मंगलपाण्डे को गिरफ्तार कर मारने का हुक्म दिया । सिपाहियों ने इससे इनकार कर दिया । यह देखकर अंग्रेज व्हीलर भागकर अंग्रेज सैनिकों को लेकर आया । अंग्रेजों की गोली से मरने की बजाय मंगलपाण्डे ने अपने ही सीने में गोली दाग ली और वे घायल होकर गिर पड़े । फौजी अदालत में उन पर मुकदमा चला ।
फिरंगियों ने मंगलपाण्डे को यातना दे-देकर अन्य षड्यन्त्रकारियों के नाम जानने चाहे, किन्तु उन्होंने किसी का नाम नहीं बताया । 8 अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी दे दी गयी । उस समय सारे बैरकपुर में कोई जल्लाद नहीं मिला, तो कलकत्ता से जल्लाद मंगाया गया । इस तरह इस बहादुर युवा क्रान्तिकारी के जीवन का अन्त हो गया ।
इसके बाद से विद्रोहियों को अंग्रेज ‘पाण्डे’ कहने लगे और विद्रोही सेना को पाण्डे सेना कहकर सम्बोधित करते थे । इस घटना के बाद 24 अप्रैल 1857 को 34 पलटन तोड़ दी गयीं । उसके सूबेदार पर गुप्त सभाएं करने का आरोप लगाकर मृत्युदण्ड दे दिया गया । इस तरह अंग्रेज पलटनों को तोड़ते गये । बंगाल में अंग्रेजी सेना कमजोर पड़ गयी ।
4. उपसंहार:
सन् 1857 को बैरकपुर की छावनी से मंगलपाण्डे ने विद्रोह की जो शुरुआत की, वह पूरे भारत में फैल गयी । पलटनों ने सभी अंग्रेज छावनियों में आग लगा दी । दानापुर, इलाहाबाद, अंबाला, आगरे की आगजनी की घटना ने अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया । अंग्रेज शासक आग लगाने वाले लोगों को पकड़ने में नाकाम रहे । इसके बाद कई सिपाहियों ने चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग बन्द कर दिया ।
कइयों ने अंग्रेजों को मार डाला । सजा के तौर पर 25 जवानों की वर्दियां उतारकर उन्हें जेल भेज दिया गया । देश की औरतों ने मेरठ के सिपाहियों पर लानत भेजी- ”तुम्हारे भाई जेल में हैं और तुम बाजार घूम रहे हो ।” सारा जन समर्थन देख सिपाहियों ने अपने भाइयों को जेल तोड़कर मुक्त किया । बगावत पर बगावत होने लगी और भारत की आजादी के लिए जनजागृति का बीज बो गये मंगलपाण्डे । सारा देश उनके बलिदान को हमेशा याद रखेगा ।