मौलाना अबुल कलाम आजाद पर निबंध | Essay on Maulana Abul Kalam Azad in Hindi

1. प्रस्तावना:

मौलाना अबुल कलाम आजाद भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक महान् सेनानी तथा राष्ट्रवादी नेता थे । आचार्य जे०बी० कृपलानी ने उनके सम्बन्ध में कहा था- ”वे भारत के एक महान् शास्त्रवेत्ता, विद्वान्, प्रभावशाली वक्ता, राष्ट्रभक्त एवं विश्ववादी नेता थे ।” धर्मनिरपेक्षतावादी सिद्धान्तों में उनकी गहरी आस्था थी । उनकी निडरता एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व के कई उदाहरण मिलते हैं । भारतीय संस्कृति में उनका अटूट विश्वास था ।

2. जन्म परिचय:

मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्म सन् 1888 में मक्के में हुआ था । उनके पिता सूफी पण्डित थे, अर्थात् धर्मशास्त्र के आचार्य थे । अबदुल कलाम के पिता मौलाना खैरूद्दीन का विवाह मदीन के प्रसिद्ध विद्वान् शेख मोहम्मद जहर की कन्या से हुआ था ।

मौलाना खैरूद्दीन को धर्मशास्त्र का अगाध ज्ञान था । उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखीं । उनके पिता को दुर्घटना में चोट लगी थी । अत: अपनी चिकित्सा कराने कलकत्ता आ गये और यहीं के होकर रह गये । पिता की मृत्यु के बाद उन्हें उनका स्थान ग्रहण करने पर जोर दिया गया, किन्तु उन्होंने अस्वीकार कर दिया ।

अबुल कलाम ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त की । उन्हें विभिन्न विषयों को पढ़ाने के लिए अलग-अलग अध्यापक आया करते थे । इस्लामी ढंग की शिक्षा पूर्ण रूप से प्राप्त कर उन्होंने दर्शनशास्त्र, तर्कशास्त्र व गणित की भी शिक्षा प्राप्त की । वे प्रगतिशील विचारों के मुसलमान थे ।

एक बार उन्होंने सर सैयद अहमद के रूढ़िवादी धार्मिक विचारों का विरोध भी किया था । वे जानते थे कि पुराने ढंग की शिक्षा प्राप्त करने से काम नहीं चलेगा । अत: विज्ञान के साथ-साथ अंग्रेजी का ज्ञान भी आवश्यक है । अपने मित्र की सहायता से शब्दकोश और समाचार-पत्रों के माध्यम से अंग्रेजी सीख ली । अबुल कलाम के विचारों में एक उदार दृष्टिकोण था, जिससे कुछ लोग प्रभावित हुए और कुछ ने इनका विरोध किया ।

3. उनके कार्य:

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अबुल कलाम देश के सच्चे सपूत थे । अत: 1905 के बंग-भंग आन्दोलन में वे सक्रिय रूप से कूद पड़े । उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम बहुमत के आधार पर बंगाल विभाजन का पुरजोर विरोध किया । बंगाल के क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आकर इस आन्दोलन को आगे बढ़ाया । उन्होंने इराक, मिश्र, सीरिया, तुर्की और फ्रांस की भी यात्रा की और इन देशों के राष्ट्रवादियों से सम्पर्क किया ।

मुसलमानों में राष्ट्रीय विचारधारा का प्रचार करने के लिए उन्होंने 1912 में उर्दू साप्ताहिक पत्रिका ”अलहिलाल” का प्रकाशन किया । इसकी लोकप्रियता ऐसी थी कि सप्ताह में 26 हजार प्रतियां बिकने लगीं । 1914 में अंग्रेज सरकार ने इसे साम्राज्यवाद विरोधी मानकर जब्त कर लिया । 1916 में उन्हें कलकत्ता से निष्कासित कर अन्य राज्यों में प्रवेश से वंचित कर दिया । उन्हें 6 माह के लिए बिहार के रांची में नजरबन्द कर दिया गया ।

1920 में रिहा होते ही वे गांधीजी से मिले और असहयोग आन्दोलन में पूरी शक्ति से भाग लिया । 1923 में जब वे रिहा होकर आये, तो उन्हें न केवल कलकत्ता अधिवेशन का सभापति चुना गया, वरन् अखिल भारतीय स्तर का राष्ट्रीय नेता भी घोषित किया गया । नमक सत्याग्रह में गांधीजी के साथ फिर जेल में डाल दिये गये । लंदन के गोलमेल सम्मेलन के असफल होते ही उन्हें 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के सिलसिले में कैद कर लिया गया । वे सन् 1945 तक जेल में रहे ।

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देश के स्वत्तन्त्र होने के बाद वे प्रथम शिक्षा मन्त्री बने । विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग 1948 और माध्यमिक शिक्षा आयोग 1959 में उन्होंने वैज्ञानिक व प्राविधिक शिक्षा की वकालत की । उन्हीं के प्रयत्नों से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना हुई । शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान देने के साथ-साथ उन्होंने उर्दू भाषा और साहित्य की बड़ी सेवा की । आजीवन कार्य करते हुए 22 फरवरी 1958 को उनकी मृत्यु हो गयी ।

4. उपसंहार:

मौलाना अबुल कलाम आजाद सच्चे राष्ट्रभक्त, एक कुशल वक्ता तथा महान् विद्वान् थे । पुराने एवं नये विचारों में अद्‌भुत सामंजस्य रखने वाले हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे । देश सेवा और इस्लाम सेवा दोनों को एक्-दूसरे का पूरक मानते थे । हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही संस्कृतियों के अनूठे सम्मिश्रण की वे एक मिसाल थे ।

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