राजा राम मोहन राय पर निबंध | Essay on Raja Ram Mohan Roy in Hindi
1. प्रस्तावना:
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राजाराममोहन राय आधुनिक भारत के जनक ही नहीं थे, वरन् वे नये युग के निर्माता थे । वे आधुनिक सचेत मानव थे और नये भारत के ऐसे महान् व्यक्तित्व थे, जिन्होंने पूर्व एवं पश्चिम की विचारधारा का समन्वय कर सौ वर्षों से सोये हुए भारत को जागृत किया ।
वे इस समाज एवं शताब्दी के ऐसे निर्माता थे, जिन्होंने उन सब बाधाओं को दूर किया, जो हमारी प्रगति के मार्ग में बाधक थीं । वे मानवतावाद के सच्चे पुजारी थे । उन्हें पुनर्जागरण व सुधारवाद का प्रथम प्रर्वतक कहा जाता है ।
2. प्रारम्भिक जीवन:
राजाराममोहन राय का जन्म बंगाल के राधानगर में 22 मई सन् 1772 को हुआ था । उनके तीन विवाह हुए थे; क्योंकि दुर्भाग्यवश उनकी पूर्व पत्नियों का देहावसान हो गया था । 16 वर्ष की अवस्था में उन्होंने प्रचलित अन्धविश्वासों पर एक निबन्ध लिखा था । राजाराममोहन राय बहुविवाह एवं बालविवाह के कट्टर विरोधी थे । वे ईस्ट इण्डिया कम्पनी के राजस्व विभाग में नौकरी करते थे ।
सन् 1809 में कलेक्टर के दीवान बन गये । जब वे रंगपुर में नियुक्त थे, तो वहां उन्हें अनेक धर्मावलम्बी मिले, जिनके बीच विचार गोष्ठियों के आधार पर ब्रह्मसमाज की नींव पड़ी । 1812 में उन्होंने सती प्रथा को समाप्त करने का संकल्प लिया ।
1814 में नौकरी से त्यागपत्र दे दिया । राजाराममोहन राय हिन्दू धर्म में मूर्तिपूजा, बहुविवाह, बाल विवाह, सती प्रथा, अनमेल विवाह के बोलबाले से काफी दुखी थे । इस बीच उन्होंने वेदान्त-सूत्र उपनिषद का बंगला अनुवाद किया । 1823 में हिन्दू नारी के अधिकारों का हनन नामक पुस्तक लिखी, जिसमें यह मांग की गयी कि हिन्दू नारी को अपने पति की सम्पत्ति में हिस्सा मिलना चाहिए ।
1827 में वर्ण व्यवस्था के विरुद्ध वजसूचि नामक पुस्तक लिखी । राजाराममोहन राय ने हिन्दू कॉलेज की स्थापना की । इस कार्य में उन्हें सर एडवर्ड व डेविड हाल तथा हरिहरानन्द का साथ भी मिला । यद्यपि हरिहरानन्द संन्यासी थे, तथापि उन्होंने हिन्दू समाज के लिए बहुत कुछ किया ।
राजाराममोहन राय के धार्मिक विचारों को चुनौती देने के विचार से मद्रास के राजकीय कॉलेज के प्रधानाध्यापक शंकरशास्त्री ने राजाराममोहन को शास्त्रार्थ के लिए ललकारा । शास्त्रार्थ में मोहनराय की जीत हुई । अपने शास्त्रार्थ सम्बन्धी विचारों को उन्होंने अंग्रेजी, हिन्दी, बंगला तथा संस्कृत भाषाओं में प्रकाशित किया । ईसाई धर्म व उनकी मिशनरियों के कार्यों की आलोचना करने के फलस्वरूप उन्हें बाइबिल का अध्ययन कर उनसे शास्त्रार्थ करना पड़ा । इसके लिए उन्होंने यूनानी, हिब्रू, लेटिन भाषाएं भी सीखीं।
सन् 1821 में उन्होंने बाइबिल के न्यू टेस्टा में वर्णित धार्मिक चमत्कारों को मानने से इनकार कर दिया । इसके लिए उन्हें काफी अपशब्द सुनने को मिले, किन्तु उन्होंने अपना मानसिक सन्तुलन नहीं खोया । राजाराममोहन राय के विचारों से पादरी विलियम काफी प्रभावित थे । उनके सद्प्रयत्नों से ही उन्होंने सती प्रथा का अन्त किया । यद्यपि इस मार्ग में उन्हें अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा ।
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बैंटिंग ने 4 दिसम्बर 1829 को कानून बनाकर सती प्रथा पर रोक लगा दी । इस कानून से कट्टरपन्धियों में हलचल-सी मच गयी । कोर्ट में मुकदमे दायर हुए, पक्ष-विपक्ष की दलीलों के बीच मोहनराय को अपमान के कड़वे घूंट भी पीने पड़े । राजाराममोहन राय ने प्रगतिशील ब्रह्मसमाज की स्थापना की । इस कार्य में उनके प्रमुख साथी थे, केशवचन्द्रसेन ।
3. राजाराममोहन राय के धार्मिक, सामाजिक, शैक्षिक सुधार कार्य:
राजाराममोहन राय के धार्मिक सुधार कार्यों में मूर्तिपूजा तथा कर्मकाण्ड का विरोध रहा है । हिन्दू धर्म की धार्मिक कुप्रथाओं एवं अन्धविश्वासों का उन्होंने जमकर विरोध किया । वे एक समाजसुधारक थे, अत: उन्होंने उन सब कुरीतियों का विरोध किया, जो मानवता के विरुद्ध थीं । इनमें सती प्रथा, अनमेल विवाह, बहुविवाह, जातिप्रथा का विरोध था ।
उनके राजनैतिक सुधार कार्यों में प्रेस व विचार सम्बन्धी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, प्रशासन सम्बन्धी सुधार हैं, जिनमें जमींदारों से लगान की दरें कम कराया जाना, कृषिसुधार, भारत सरकार का प्रशासनिक व्यय कम करना है । एक शिक्षाविद की तरह मोहनराय ने ग्रीक, हिब्रू, अंग्रेजी, बंगला, संस्कृत, अरबी, फारसी व गुरुमुखी का ज्ञान भी प्राप्त किया । उन्होंने 1816-17 में अंग्रेजी स्कूल की भी स्थापना की ।
4. उपसंहार:
राजाराममोहन राय को आधुनिक युग का निर्माता, आधुनिक भारत का जनक इसलिए कहा जाना उचित है; क्योंकि उन्होंने देश व जाति-उत्थान के लिए महान कार्य किये । मानवता के लिए किये गये उनके कार्यों के लिए भारत उनका ऋणी रहेगा ।
टैगोर ने ठीक ही कहा है- ”राजाराममोहन राय इस शताब्दी के महान् पथ निर्माता हैं । उन्होंने भारी बाधाओं को हटाया है, जो हमारी प्रगति को रोकती हैं । उन्होंने हमको मानवता के विश्वव्यापी सहयोग के वर्तमान युग में प्रवेश कराया है ।