शाहजहां पर निबंध | Essay on Shah Jahan in Hindi

1. प्रस्तावना:

मुगल सम्राट शाहजहां का शासनकाल मुगल राज्य का स्वर्ण युग कहा जाता है । समृद्धि, शान्ति, सुव्यवस्थित विशाल साम्राज्य तथा सभी क्षेत्रों में उन्नति के चरमोत्कर्ष के साथ-साथ ऐसा वैभव-विन्यास उस काल का था, जिसको देखकर विदेशी यात्रियों तक की आखें चौंधिया जाती थीं ।

मुगल शासक शाहजहां के शासनकाल में राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक स्थिति अपने चरम पर थी । वह अपने विशाल स्वर्णिम वैभव को ऐश्वर्य के उत्कर्ष पर पहुंचाने में जितना सफल हुआ, उतना शायद कोई अन्य बादशाह नहीं ।

2. जीवन वृत्त एवं उपलब्धियां:

शाहजहां का जन्म 5 जनवरी 1592 को लाहौर में हुआ था । उसकी माता मानवती {जगतगुसाई] थी, जो राजपूत राजकुमारी थी । जोधपुर के मोटाराज उदयसिंह की पुत्री थी । शाहजहां के बचपन का नाम खुर्रम था और पिता का नाम जहांगीर उर्फ सलीम था । खुसरो और परवेज शाहजहां के बड़े भाई थे । जहांगीर के जन्म के समय ज्योतिषियों ने उसके स्वर्णिम भविष्य की भविष्यवाणी कर दी थी ।

4 वर्ष 4 माह 4 दिन के बाद खुर्रम का विद्या संस्कार प्रारम्भ कर दिया गया । अकबर और जहांगीर ने खुर्रम की शिक्षा में विशेष रुचि लेते हुए उसे ईरानी विद्वान मुल्ला कासिम बेग तबरेजी से प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण करवायी । अन्य अध्यापकों में हकीम अली, शेख सूफी, तारतार खां थे । खुर्रम कुशाग्र बुद्धि वाला राजकुमार था । उसे नीरमुराद जुबैनी ने धनुर्विद्या और राजा शालिवाहन ने घुड़सवारी तथा गोली चालन की शिक्षा दी ।

शाहजहां का प्रथम विवाह ईरान के शाही वंशज मिर्जा मुजफ्फर हुसैन की पुत्री सफवी से 20 अक्तूबर 1610 को हुआ, जिससे उसे 1611 को एक कन्या परहेज बानू उत्पन्न हुई । शाहजहां का दूसरा विवाह 1612 में 20 वर्ष की अवस्था में आसिफ खां की पुत्री अर्जुमंदबानू उर्फ मुमताज महल से हुआ, जिससे उसे 14 सन्तानें थीं ।

7 तो बाल्यकाल में मर गयीं और शेष सात में-जहांआरा बेगम, दाराशिकोह, शाहशुजा, रोशनआर बेगम, औरंगजेब, मुराद बक्श तथा गौहरआरा बेगम थे । शाहजहां का तीसरा विवाह शाहनवाज खान की पुत्री से 23 अगस्त 1617 को हुआ । उसके रूप- सौन्दर्य पर मुग्ध होकर उसे मुमताज महल और मल्लिका ए जमां की उपाधि दी थी ।

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शाहजहां के शासनकाल में मुगल साम्राज्य की सीमाओं का पर्याप्त विस्तार हुआ । उसका साम्राज्य उत्तर में अफगानिस्तान, काबुल से लेकर दक्षिण में गोवा, दौलताबाद, मध्य एशिया में भी फैला हुआ था । अहमदनगर राज्य, बरार, गोलकुण्डा, बीजापुर तक फैला हुआ था । राजस्थान में जोधपुर, जयपुर, कोटा, बूंदी, बीकानेर आदि स्थानों में उसने राजपूतों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित किये थे । अनेक राजपूत सामन्त थे ।

पश्चिम में उसका साम्राज्य सिन्ध में लाहौर, पूर्व में आसाम से सिलहट तक बंगाल, बिहार, उड़ीसा तक था । उसने पुर्तगालियों का दमन कर रखा था । उसका शासन प्रबन्ध कल्याणकारी व सुव्यवस्थित था । सारे साम्राज्य में एक-सी शासन व्यवस्था कायम थी । वह न्यायप्रिय सम्राट था । प्रति बुधवार मुकदमे सुनकर बराबर न्याय दिया करता था ।

न्याय देते समय अमीर-गरीब, ओहदे तथा जाति-धर्म में अन्तर नहीं रखता था । शाहजहां के शासनकाल में प्रजा इतनी सुखी और समृद्धिशाली थी कि लेनपूल ने लिखा है- ”शाहजहां अपनी उदारता, दयालुता के कारण प्रजाप्रिय था । वह प्रजा का अपनी सन्तान की तरह पालन करता था । दुर्भिक्ष, पीड़ितों की सहायता के लिए उनके सारे कर्ज माफ कर मुफ्त राजकीय भोजनालय स्थापित किये थे ।

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किसानों का भी वह हितैषी था । यमुना नदी पर उसने सिंचाई के लिए नहर तथा बांधों का निर्माण किया था । उसने यात्रियों और व्यापारियों की सुख-सुविधा का ध्यान रखने के लिए सड़क और रास्तों को चोर-डाकुओं से सुरक्षित रखा । साम्राज्य की सीमाएं इतनी सुरक्षित थीं कि कोई भी विदेशी शासक 30 वर्षों के शाहजहां के शासनकाल में उसके राज्य पर आक्रमण नहीं कर पाया ।

उसके साम्राज्य में 22 सूबे थे और उसके योग्य, बुद्धिमान, प्रशासनिक अधिकारी थे । ईमानदार अधिकारियों की वजह से 10 लाख रुपये परगने की वार्षिक आय और भूमि कर से 45 करोड़ रुपये वार्षिक, अन्य करों से प्राप्त आय के कारण उसका शाही राजकोष अपार धन-सम्पदा से लबरेज था ।

हस्तकला, दस्तकारी, शृंगार की विभिन्न वस्तुएं-रंगीन व सुन्दर रेशमी. सूती, जरी के वस्त्र थे, जिनकी कलात्मकता देखते ही बनती थी । कलात्मक वस्तुओं के निर्माण हेतु सहस्त्रों कारीगर कारखानों में कार्य करते थे । एशिया और यूरोप तक व्यापार था । शाहजहां के शासनकाल में सांस्कृतिक क्षेत्र में सर्वाधिक उन्नति हुई ।

भवन निर्माण कला, चित्रकला, संगीत, साहित्य आदि की उन्नति अपने पूर्ण वैभव पर थी । उसके दरबार का ऐश्वर्य और उसके द्वारा निर्मित भव्य भवन उसके शासनकाल को ऐश्वर्यशाली बना देते हैं । दिल्ली का लालकिला, दीवाने आम, दीवाने खास, दिल्ली की जामा मस्जिद, आगरा की मोती मस्जिद, कश्मीर के उद्यान, लाहौर और अजमेर के भव्य भवन तथा आगरा का वह ताजमहल, जिसे उसने मुमताज महल की याद में बनाया था । विश्व के वें आश्चर्य के रूप में उस संगमरमर निर्मित भवन की कलात्मक श्रेष्ठता, सम्पन्नता विश्व प्रसिद्ध है ।

भवन निर्माण कला के समान ही संगीतकला, नृत्यकला, चित्रकला, सुन्दर हस्स लेखन कला, उद्यानकला को राजाश्रय देकर उन्नति के शिखर पर पहुंचाया । शाहजहां स्वयं एक अच्छा गायक था । उसके दरबार में गायन, वादन करने वाले श्रेष्ठ कलाकारों की कद्र की जाती थी ।

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शाहजहांकालीन चित्रकला हाशियों में बेल-फूल, पत्ते, चिड़ियों, पशुओं आदि के सुनहरे, चटकदार, चमकदार, भड़कीले तथा आकर्षक एवं मौलिक स्वरूप में थे । रंगाई, छपाई तथा लेखन कला उत्कृष्टता की छाप छोड़ती है । साहित्यनुरागी शाहजहां के शासन में अरबी, फारसी, हिन्दी और संस्कृत के कवियों, ज्योतिषियों ने श्रेष्ठतम रचनाए कीं ।

शाहजहां के रत्नजडित मयूर सिंहासन में तो विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा जगमगाता रहता था । उसका मयूर सिंहासन उसके शासनकाल के समृद्धि और गौरव का सजीव प्रमाण है । अकबर की तरह शाहजहां अपनी धार्मिक नीति में उदार और सहिष्णु नहीं हो पाया ।

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वह कट्टर सुन्नी मुसलमान था 1 उसने संकीर्ण, अनुदार धार्मिक नीति अपनायी, जिसके फलस्वरूप प्रशासकीय स्थिति में भेदभाव की नीति अपनायी, सामाजिक क्षेत्रों में भी वह धार्मिक असहिष्णु था । उसकी हिन्दू विरोधी नीति का परिणाम यह हुआ कि उसने हिन्दुओं पर तीर्थयात्रा कर पुन: लगा दिया ।

बलपूर्वक हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन भी करवाया । उसने अजमेर के सभी प्राचीन तीर्थस्थान, पुष्कर में वराह का मन्दिर विध्वंस कर दिया । उनकी प्रतिमा को झील में फिकवाया । पुर्तगालियों के साथ भी धार्मिक कट्टरता की नीति अपनायी । पंजाब के कागड़ा दुर्ग देवी मन्दिर में गौवध तक करवाया । अत: उसकी इन नीतियों के फलस्वरूप शासनकाल के इतने वैभव के बाद भी उसे पूर्णत: स्वर्णिम युग नहीं कहा जा सकता।

3. उपसंहार:

शाहजहां का शासनकाल कला और सांस्कृतिक वैभव की दृष्टि से स्वर्णिम था, किन्तु उसकी धार्मिक असहिष्णुतावादी नीति के कारण समस्त प्रजा उससे खुश नहीं थी । उसे महत्त्वाकांक्षी, विलासप्रिय, भ्रष्ट चरित्र, अपव्ययी, धन लोलुप, ऐश्वर्य व शानो-शौकत से रहने वाले शासक के रूप में भी इतिहासकारों ने वर्णित किया है । निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि वह अकबर जैसा महान्, उदार, धार्मिक नीति वाला शासक नहीं था ।

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