संत कबीर पर निबंध | Essay on Saint Kabir in Hindi!

कबीर के जन्म के संबंध में विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत हैं । कुछ विद्वानों ने इनको एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न होना प्रमाणित किया है और कुछ ने एक मुसलमान जुलाहे के यहाँ ।

कुछ भी हो, किंतु कबीर ने तत्कालीन परिस्थिति के अनुसार ही स्वयं अपने व्यक्तित्व का निर्माण किया । वह एक साथ ही द्रष्टा, स्रष्टा और युग-प्रवर्तक बने । स्वभाव से ही फक्कड़, मस्तमौला और अपने प्रति ईमानदार । विद्यालयी शिक्षा से वंचित ‘मसि कागद छुयौ नहीं कलम गह्रौ नहिं हाथ ।’

कबीरदास का व्यक्तित्व भक्ति, प्रेम तथा मानवता की विभिन्न धाराओं में बहा, जिसने उनकी जीवनप्रद वाणी को साहित्य की अतुल संपत्ति बना दिया । हिंदी साहित्य के हजार वर्षों के बीच कबीर जैसा व्यक्तित्व पैदा नहीं हुआ ।

कबीर संप्रदाय का सबसे बड़ा सिद्धांत ईश्वर अद्वैतता है । कबीर का ईश्वर सर्वव्यापी है । वह भौतिक पदार्थों का सेवन करनेवाले ईश्वर से सर्वथा भिन्न है । पत्थर की मूर्ति के रूप में उसकी उपासना करना कबीर के विचारों के विरुद्ध है ।

कबीर ने अपने राम को राम, हरि, गोपाल, साहब, राउर, खरसम आदि अनेक नामों से विभूषित किया है:

”निर्गुन राम, निर्गुन राम जपहु रे भाई । दशरथ सुत तिहुँ लोक बखाना । राम नाम का मरमु न जाना ।।

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर के सिद्धांत को द्वैताद्वैत का विलक्षण समत्ववाद बनाया है; अर्थात् जो द्वैत और अद्वैत से भी विलक्षण है, परंतु उनके समान ही है, ऐसा ब्रहम का कवीर का था ।

कबीर मुनिप्त्रा के कट्‌टर विरोधी थे । ऐसी पूजा करनेवालों को उन्होंने ढोंगी की उपाधि दी है । वह इसकी कटु आलोचना करते हुए व्यंग्यपूर्ण शब्दों में कहते हैं:

ADVERTISEMENTS:

”पाहन पूजै हरि मिलै तौ मैं पूजूँ पहार ।”

कबीर के रहस्यवाद में सूफी मत का आभास मिलता है । एक संत के लिए परमात्मा की प्राप्ति ही धर्म का रूप है । सूफी मत में भक्त ने अपने को स्त्री-रूप में और आराध्य को पुरुष-रूप में माना है । कबीर के प्रेम में भी अपने प्रियतम के मधुर मिलन के लिए एक तड़प, उन्माद अथवा वेदनाजनित कसक और टीस है ।

उन्होंने कहा भी है :

ADVERTISEMENTS:

”हरि मोर पीऊ मैं राम की बहुरिया ।”

कबीरदास का भक्त रूप ही वास्तविक स्वरूप है । इसी के इर्द-गिर्द उनके अन्य रूप स्वत: प्रकाशित हो उठते हैं । उनका भक्ति पर अपूर्व विश्वास था-

”हम न मरब मरिहैं संसारा हम कूँ मिल्या जियावन हारा ।

कबीर के जीवन का लक्ष्य न तो कविता करना था, न अपनी अद्वितीय प्रतिभा का प्रदर्शन करना, बल्कि उनका उद्‌देश्य था, आत्मज्ञान प्राप्त करना, जो आत्मा के आनंद के लिए आवश्यक है; क्योंकि वे तो ब्रहम के जिज्ञासु थे, साथ ही समाज-सुधारक तथा हिंदू-मुसलिम एकता के समर्थक भी ।

साधना के क्षेत्र में वे युगगुरु और साहित्य के क्षेत्र में युगद्रष्टा थे । अत: उन्हें हम निस्संदेह ही एक कुशल कलाकार कह सकते हैं, क्योंकि उनके द्वारा उपस्थित किए गए रूपक और मानसिक चित्र बड़े ही सजीव और मार्मिक हैं ।

ADVERTISEMENTS:

कबीर अपनी बात समझाने की शक्ति रखते थे । भक्ति का उपदेश देकर आत्मज्ञान का मार्ग बताते थे । जब वे कहते- “तू कहता कागद की लेखी, मैं कहता आँखिन की देखी”, तब उनका उद्‌देश्य उनके काव्य में स्पष्ट हो जाता है ।

कबीर की साखियों में माया, जीव, ब्रह्म आदि गूढ़ विषयों के प्रतिपादन के साथ-साथ कल्पना-तत्त्व का भी अद्‌भुत सम्मिश्रण है । अपने भावात्मक पदों और दोहों में अपनी सहज प्रतिभा के सहारे किन्हीं-किन्हीं स्थलों पर उन्होंने बड़े सजीव रूपक तथा अनूठी कल्पनाएँ प्रस्तुत की हैं:

”कबीर माया डोलनी पवन झकोल हार । संतनु माखन खाइया छाछ पियै संसार ।।

ADVERTISEMENTS:

ADVERTISEMENTS:

कबीर के रचना संग्रह (बीजक) को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि धर्म की जिज्ञासा उत्पन्न करने के लिए वह उलटबासियाँ लिखते तथा संकीर्णता को हटाने के लिए

‘रेखते’ । साखियों की भाषा राजस्थानी मिश्रित खड़ीबोली है, जबकि शब्दों में अवधी का प्राधान्य है । प्राय: उनकी भाषा में सूफी मत का निरूपण है । पारिभाषिक शब्दों के साथ पंचमेल खिचड़ी भाषा का प्रयोग हुआ है । पं. रामचंद्र शुक्ल ने उनकी भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ भाषा कहा है ।

विद्वान् लेखक का यह कथन अक्षरश: सत्य है । कबीर ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति साखी, शबद, रमैनी के ही द्वारा की है । जैसा कि उस समय प्रचलित था- डफली बजाकर गाते समय जैसी लय उनके मुख से निकल जाती, वही उनकी छंद-योजना बन जाती थी ।

ADVERTISEMENTS:

कबीर की कविता में रस, अलंकार और छंद गौण हैं तथा संदेश प्रधान । यह संदेश इतना महान् है कि उनकी कविता में अलंकार-छंदादि का चमत्कार न होने पर भी रस की कमी नहीं आई । अपने संदेश के बल पर ही वे महाकवि हैं ।

वे रहस्यवादी और भावुक थे । भाषा, छंद और अलंकार के पचड़े में पड़ता उन्हें स्वीकार न था । स्वाभाविकता कबीर की कविता का प्राण है । यदि आध्यात्मिक संदेशों को श्रेष्ठ माना जाए तो निस्संदेह हिंदी साहित्याकाश में कबीर का वही स्थान है, जो सूर और तुलसी का है ।

Home››Personalities››