हैदरअली पर निबन्ध |Essay on Hyder Ali in Hindi
1. प्रस्तावना:
18वीं शताब्दी के भारतीय इतिहास में हैदरअली का नाम उल्लेखनीय रहेगा; क्योंकि हैदरअली एक कुशल राजनीतिज्ञ, उच्चकोटि का सेनानायक, अच्छा प्रशासक था । धार्मिक तथा सामाजिक पक्षपात से मुक्त उसका चरित्र उदार, साहसी, मातृभूमि के सच्चे सेवक के रूप में इतिहास में अमर रहेगा ।
2. जीवन वृत्त एवं उपलब्धियां:
हैदरअली का जन्म 1722 में हुआ था । उसके पिता फतह मुहम्मद 1728 के एक युद्ध में 6 वर्ष के हैदर को छोड़कर वीरगति को प्राप्त हुए थे । हैदर के बड़े भाई शाहबाज को जब मैसूर सेना में नौकरी मिल गयी, तो उसने छोटे हैदर और अपनी विधवा मां का पालन-पोषण किया । 16 वर्ष की अवस्था में हैदर भी मैसूर की सेना में भरती हो गया ।
मैसूर का राजा विलासी, अयोग्य और प्रमादी व्यक्ति था, जिसकी सत्ता प्रधानमन्त्री नन्दराज ने हथिया ली थी । अशिक्षित होने के बाद भी हैदर देश की अराजक स्थिति पर पैनी नजर रखता था । एक सामान्य सैनिक होते हुए भी उसने अपने जीवन को भोग-विलास से दूर रखा था ।
उसकी स्मरणशक्ति इतनी अद्भुत थी कि वह एक समय में कई समस्याओं पर विचार कर सकता था । 5 तरह की भाषाएं बोलने के साथ-साथ मनुष्यों को परखने की शक्ति उसमें थी । वह अयोग्य और आलसी लोगों को पसन्द नहीं करता था ।
हैदर ने राज्य की अराजक स्थिति का भरपूर फायदा उठाया । आसफजहां निजामुलमुल्क की मृत्यु के बाद उसने उत्तराधिकार के युद्ध में मैसूर के नासिरजंग का समर्थन किया । नासिरजंग की हत्या के बाद उसने खजाने का बहुत बड़ा भाग अपने अधिकार में लेकर आर्थिक शक्ति अर्जित कर ली । वह यूरोपीय सैनिकों के अनुशासन और सैन्य-कौशल से बहुत प्रभावित था । फ्रांसीसी युद्ध प्रणाली का उसने गहन अध्ययन किया । इस अध्ययन के लिए वह पाण्डिचेरी भी गया ।
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1755 में डिंडिगल का फौजदार नियुक्त होने के बाद उसने मैसूर के प्रधानमन्त्री नन्दराज को हटाकर स्वयं का अधिकार कर लिया, किन्तु राजा को अपदस्थ नहीं किया । पड़ोसी देशों को लूटकर हैदर ने बड़ी सेना तैयार कर ली थी । निरन्तर युद्धों के द्वारा उसने अपने राज्य का विस्तार किया ।
इधर मराठे, निजाम तथा अंग्रेज हैदरअली की सफलताओं से भयभीत होकर उस पर नियन्त्रण लगाने की सोच रहे थे । 1761 में जब हैदरअली ने माधवराव पेशवा और निजाम के आन्तरिक कलह का फायदा उठाकर बेदनूर, सावनुर, करनूर और कड़प्पा पर नियन्त्रण कर लिया, तो माधवराव ने 1764 के युद्ध में हैदर को परास्त करते हुए उसके 1 हजार सैनिकों को मार डाला ।
मराठों ने हैदर के सेनापति फजल अली खां को हराकर धारवाड़ का किला छीन लिया । हैदर के 1200 सैनिक मारे गये और वह हार गया । इस युद्ध में हैदर और मराठों के बीच सन्धि होने के बाद हैदर ने 32 लाख रुपये हर्जाना दिया । तुंगभद्रा, सावनूर पर अधिकार छोड़ दिया ।
हैदरअली की शक्ति से घबराये मालावार के सामन्तों तथा अंग्रेजों ने एक संयुक्त मोर्चा बनाकर नवम्बर 1766 में हैदराबाद के निजाम से एक सन्धि कर ली । इस तरह अंग्रेज, निजाम और मराठों का एक संयुक्त मोर्चा बना । हैदर ने अपनी कूटनीति से मराठों को 35 लाख की रिश्वत देकर अपनी ओर कर लिया, किन्तु 1767 में स्मिथ के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने मैसूर पर आक्रमण कर दिया । अंग्रेजों ने चंगामाघाट तथा त्रिनोमली के युद्ध में निजाम और हैदरअली की मिली-जुली सेना को परास्त किया ।
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हार के बाद निजाम ने अंग्रेजों से सन्धि कर ली । कम्पनी मैसूर पर पूर्ण अधिकार चाहती थी । इस युद्ध में हैदरअली ने अंग्रेजों को धूल चटाते हुए मंगलौर पर अधिकार कर लिया । सेनाओं को तीन भाग में बांटकर मद्रास पर आक्रमण करते हुए उसे भी छीन लिया । अन्त में अंग्रेजों ने 4 अप्रैल 1769 को हैदरअली से सन्धि करते हुए एक दूसरे के जीते हुए क्षेत्र लौटा दिये । युद्धबन्दी वापस कर दिये । इस सन्धि से हैदर की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई ।
प्रथम मैसूर युद्ध के बाद अंग्रेजों ने हैदर से यह सन्धि की थी कि यदि कोई तीसरी शक्ति उस पर आक्रमण करेगी, तो वह सहायता देंगे, लेकिन 1771 में मराठों द्वारा मैसूर पर आक्रमण करने की दशा में अंग्रेजों ने हैदर की सहायता नहीं की ।
इस विश्वासघात ने हैदर को और अधिक मजबूत किया । 1775 में अंग्रेज-मराठा युद्ध होने पर अंग्रेजों ने निजाम सरकार को लगान देना बन्द कर दिया, जिसे वसूलने के लिए उसने अपनी सेना हैदर के राज्य से भेजी । हैदर ने उसका साथ दिया ।
गुन्टुर पर हैदर ने अधिकार कर लिया । 1778 में मराठों, निजाम और हैदर ने अंग्रेजों के विरुद्ध संयुक्त मोर्चा बनाया । इधर 1781 में डचों ने कारोमण्डल तट पर हैदर से सन्धि कर ली । 1780 के कर्नाटक युद्ध में हैदर अपनी विशाल सेना के साथ अंग्रेजों पर टूट पड़ा । वे वहां से भागकर मद्रास की शरण में जा पहुंचे । हैदर के पुत्र टीपू ने कांजीवरम में अंग्रेजों को धूल चटायी । 1780 में अरकाट तथा सम्पूर्ण कर्नाटक पर हैदर का अधिकार हो गया ।
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वारेन हैरिटग्ज ने महादजी सिन्धिया और बरार के राजा तथा निजाम को अपनी ओर मिलाकर हैदर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया । मित्रों के इस विश्वासघात से हैदर ने अपने साहस को 1781 के पोर्टोनोवो के युद्ध में बनाये रखा । अंग्रेजों के पांच सौ सैनिक तथा हैदर के तीन हजार सैनिक मारे गये । सितम्बर 1781 में अंग्रेजों ने शोलिंगर के युद्ध में हैदर को हराया ।
हैदर के पुत्र टीपू ने तंजौर के निकट अंग्रेजों को हराकर अपने पिता की पराजय का बदला ले लिया । मालाबार के तट पर हंबर्स्टोन को टीपू के हाथों मात खानी पड़ी । इसी बीच 1782 में कैंसर के रोग से हैदरअली की मृत्यु हो गयी । टीपू सुलतान ने अपना युद्ध जारी रखा ।
3. उपसंहार:
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हैदरअली एक कुशल राजनीतिज्ञ था । यद्यपि अंग्रेज, मराठे और निजाम उसके शत्रु बने रहे । उसने मित्रता के बाद धोखा ही पाया । फिर भी उसने अपने साहस और धैर्य को न खोकर अंग्रेजों के साथ अपनी लड़ाई जारी रखी । वह एक ईमानदार शासक भी था । धार्मिक पक्षपात से मुक्त होकर प्रजाहित में उसने कार्य किये ।
उसका मन्त्री पूर्णिया ब्राह्मण था, जो उसका बड़ा ही विश्वासपात्र था । उसने राज्य के सभी बड़े पदों पर हिन्दुओं को भी रखा था । हैदर ने अपनी सेना को यूरोपीय ढंग से सुसज्जित करने का प्रयास किया था । हैदरअली और उसके पुत्र टीपू के साथ अंग्रेजों के 4 युद्ध हुए । उन्होंने मैसूर पर अपना अधिकार मरते दम तक नहीं छोड़ा ।